पाठक साथियों हमें कल वन्दना जी के उर्मिला की वेदना पर पोस्ट की हुई कविता पर बहुत से ई-मेल मिले और आज हम उन सभी को ध्यान में रखते हुए उनकी लिखी एक और रचना पोस्ट कर रहे हैं. हम आप सभी के द्वारा मिल रहे स्नेह का आदर करते हैं. अपनी माटी को बने अभी एक साल भी नहीं हुआ कि ये सफ़र बहुत सफलता से जारी है.एक बार आप सभी को धन्यवाद-सम्पादक
जब तक मैं न तुम्हें स्वीकार करूँ अपना वजूद कहाँ तुम पाओगे फिर क्यूँ नही चाहा तुमने अपना वजूद पाना मुझमें फिर क्यूँ नही चाहा तुमने स्वीकार करूँ में भी तुमको स्वीकार करूँ मैं ....................... -- सुन्दर भाव लिए हुए, बढ़िया रचना!
hrdyasparshi....
जवाब देंहटाएंkunwar ji,
जब तक मैं न तुम्हें स्वीकार करूँ
जवाब देंहटाएंअपना वजूद कहाँ तुम पाओगे
फिर क्यूँ नही चाहा तुमने
अपना वजूद पाना मुझमें
फिर क्यूँ नही चाहा तुमने
स्वीकार करूँ में भी तुमको
स्वीकार करूँ मैं .......................
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सुन्दर भाव लिए हुए,
बढ़िया रचना!
गहरे एहसास .... सच है पूर्ण रूप से न पाना .. अपूर्णता ही है .... एक दूजे के बिना सब कुछ अपूर्ण है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक लेखन....यही तो नहीं समझ पते सब की कहाँ अपूर्णता रह जाती है....बहुत अच्छी और गहरे भाव लिए रचना
जवाब देंहटाएंzabardast rachna ....her pankti ojpurn
जवाब देंहटाएंexcellent rachna... nishabd hue ham to...!
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