आज की रचना किसी रूप में बरसात से जुड़ी है. सार्थक आज की जरुरत के मुताबिक़ लगे.रचनाकार चाणक्य पूरी दिल्ली के वासी है और अकादमिक योग्यता के तौर पर अन्नामलाई विश्वविद्यालय से पुस्तकालय विज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्रीधारी हैं. Phone No.:+91 11 9871089027,shambhu_74@yahoo.com हे जयेष्ट राज ठंढे पड़ जाओ॥ अपनी घमस से मत तडपाओ॥ हुआ आगमन जैसे हितेरा॥ नदी तालाब सब लिए बसेरा॥ पानी की किल्लत मच जाती॥ रगड़ झगड़ चाकू चल जाती॥ सूख रही कंचन सी बगिया॥ रास न आये रसिक की बतिया॥ तन से गिरे नीर की लारी॥ बिन पानी क्या सींचे माली॥ जीव-जंतु ब्याकुल सब ठाढ़े॥ पानी दे दो ऊँट भी मांगे॥ नयी नवेली कोठारी में सोये॥ तेरी तड़प से मन में रोये॥ जयेष्ट राज अब शर्म तो कीजे॥ नयी बहु है करम तो कीजे॥ नयी नाविली ब्याह के आयी॥ खुशियों का संसार है लायी॥ बारह व्यंजन बना के लाई॥ घर में नयी सुहागिन आई॥ साजन के बिया प्यार से खाओ॥ हे जयेष्ट राज ठंढे पड़ जाओ॥
bahut sunder rachna ! achhee tukbandi
जवाब देंहटाएंगर्मी की भीषणता को बताती अच्छी रचना
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