१
लक्ष्य
ग्राफों को
ऊपर ले जाने का है
किसी भी कीमत पर
किसी की कीमत पर
२
हम सभी
संसाधन हैं
उत्पादन के
जहाँ
संवेदनाओं के लिए
नहीं है कोई स्थान
३
आयात
निर्यात
के बीच
हिचकोले खाता है
रक्त चाप
प्रभावित नहीं करता अब
माँ की चिट्ठी
४
चार 'पी' के
सिद्धांत पर
टिका है
बाजार
संवेदनाएं
जहाँ पी से
नहीं होता है
प्रेम
पी से होता है
प्रोडक्ट
प्राईस
प्लेस
एवं
प्रोमोशन
५
कम
करनी है लागत
प्रतिस्पर्धी
बने रहना है
बाजार में
बंद कर दो
कुछ और
चूल्हे
६
इन दिनों
स्टॉक
ऊपर है अपना
बंद कर दो अब
'कॉर्पोरेट सोसल रेस्पोंसिबिलिटी'
जैसी फिजूलखर्ची
ये कवितायें दिल्ली के वासी एक सरकारी अफसर अरुण रॉय की हैं ,जिन्हें ज्य़ादा अच्छे से ''सरोकार'' पर पढ़ा जा सकता है.वैसे इनका विविधता पूर्ण लेखन और उसमें भी लगातार बने रहना तारीफ़ मांगता है.

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Arun Roy
प्रबंधन: कुछ छोटी कवितायें
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About अरुण चन्द्र रॉय
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अल्पसंख्यक विमर्श
शोध आलेख:विमर्शों की कसौटी पर ‘टोपी शुक्ला’/मोहम्मद हुसैन डायर
विमर्शों की कसौटी पर ‘ टोपी शुक्ला ’ ( बाल , भाषा और अल्पसंख्यक...

बहुत दिन बाद अरुण जी ने अपनी माटी पर लिखा है कही इस बार भी आपकी कविता का ये बांकपन लोगो को आकर्षित ना कर जाए.अरुण बाबू बधाई.आपकी एक कविता जो मैंने आपके अपने ब्लॉग''सरोकार'' पर पढी थी''घिसी हुई पेंट बेहद अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
बहुत उम्दा परिभाषायें जैसे.
जवाब देंहटाएंअरुण की सभी कविताओं में अपनी माटी का स्वर दृष्टव्य है। जीवंत सरोकारों के कवि तकनीक से विह्व्ल भी लगते हैं परंतु तकनीक के महत्व को पूर्ण मन से स्वीकारते भी हैं। यही तो मन-धन है।
जवाब देंहटाएंसूत्रों में सटीक बात कह गए अरुणजी .
जवाब देंहटाएंप्रबंधन से जुडी अरुण राय की कवितायेँ आज के जीवन में बाजारवाद के प्रभावों के दुष्परिणामों का सटीक चित्रण है. वही बाजारवाद जो मनुष्य को भावनाविहीन रोबोट बनाने के लिए आतुर है.क्या हम धीरे धीरे रोबोट में परिवर्तित नहीं हो रहे हैं? अरुण राय कि कविता इस सवाल पर गंभीरता से सोचने पर मजबूर करती है .
जवाब देंहटाएंआलम खुरशीद
अरुण जी की कविताओं में विविधता होती है कभी प्रेम से सराबोर तो कभी जीवन के कटु सत्य से सरोकार रखती हैं इनकी कवितायेँ. अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबाजारवाद और आज की भोगवादी संस्कृति का कच्चा चिटठा सरोकार पर पढने को मिला. ज्यादातर यथार्थ से जुडी और विस्मित कर देने वाली कवितायें इस पोस्ट पर हैं . रचनाकार जमीं से जुड़े और अपने आसपास के परिवेश से विषयों को लेते हैं और उसके अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालने की पैठ रखते हैं.
जवाब देंहटाएंअरुण की सभी कविताओं में अपनी माटी का स्वर दृष्टव्य है
जवाब देंहटाएंbahumukhi partibha ke dhani hai arun ji..
जवाब देंहटाएंचार 'पी' के
जवाब देंहटाएंसिद्धांत पर
टिका है
बाजार
संवेदनाएं
जहाँ पी से
नहीं होता है
प्रेम
पी से होता है
प्रोडक्ट
प्राईस
प्लेस
एवं
प्रोमोशन
shandaaar!! sach me ye 4 Ps hi mayne rakhte hain......prem ko kaun puchhta hai ......:0
Arun Sir!! sach me aap sabdo ke dhani ho........:)
अरुण जी एक सिद्धहस्त कवि हैं. बड़ी चतुराई और सुघरता से गागर में सागर भर जाते हैं. भाषा की सादगी में मानवीय मूल्यों की घुटती सी अभिव्यक्ति हमारे दैनिक परिवेश के उपमानों में सर चढ़ कर बोलती है. संवेदना का पैनापन ऐसा कि हृदय में पीड़ा नहीं एक चुभन सी होती है. बहुत ही अच्छी प्रस्तुति बल्कि प्रस्तुतियों का समाहार !! धन्यवाद !!!
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