हिन्दुस्तान में पिछले पांच हजार सालों से चली आ रही मुनियों की संस्कृति में हमारी संगीत परम्परा का बहुत बडा प्रभाव रहा है। मगर सरकारी उदासीनता के चलते आज टीवी चैनलों की भरमार में शास्त्रीय संगीत से जुडा एक भी चैनल नही है। दूसरी तरफ हमारी आज की युवा पीढी तेज दिमाग वाली है मगर उसकी योग्यता को उचित दिशा देने वाली शिक्षा व्यवस्था में संगीत जैसा संवेदनशील विषय चोथे पांचवे दर्जे पर आता है।हम अपने बच्चों पर बहुत सारी ऐसी चीजें थोप रहे हैं जो कि उन्हें पसंद भी नहीं रहे हैं.
पंडित विश्व मोहन भट्ट जी अन्य दशों से भारत की तुलना के सवाल पर कहते हैं कि भारत के बजाय अन्य देशों में कभी प्रस्तुती के दौरान बिजली नहीं जाती,कभी साउंड सिस्टम देर से नहीं आता,कभी श्रोताओं को चुप रहने के लिए नहीं कहना पड़ता,कभी कार्यक्रम के प्रबंधक देर से नहीं आते. और तो और श्रोता भी पूरी तैयारी के साथ आते हैं. जिन्हें कला और कलाकार के बारे में पूरी जानकारी होती है,ऐसी संवेदनशीलता भारत में बहुत मुश्किल नज़र आती है.ये विचार विश्वभर के लगभग 41 देशों में अपने कार्यक्रम दे चुके पद्मश्री विश्व मोहन भट्ट ने स्पिक मैके के लिए राजस्थान दौरे पर आने पर चित्तौडगढ में कहे.
पंडित विश्व मोहन भट्ट जी अन्य दशों से भारत की तुलना के सवाल पर कहते हैं कि भारत के बजाय अन्य देशों में कभी प्रस्तुती के दौरान बिजली नहीं जाती,कभी साउंड सिस्टम देर से नहीं आता,कभी श्रोताओं को चुप रहने के लिए नहीं कहना पड़ता,कभी कार्यक्रम के प्रबंधक देर से नहीं आते. और तो और श्रोता भी पूरी तैयारी के साथ आते हैं. जिन्हें कला और कलाकार के बारे में पूरी जानकारी होती है,ऐसी संवेदनशीलता भारत में बहुत मुश्किल नज़र आती है.ये विचार विश्वभर के लगभग 41 देशों में अपने कार्यक्रम दे चुके पद्मश्री विश्व मोहन भट्ट ने स्पिक मैके के लिए राजस्थान दौरे पर आने पर चित्तौडगढ में कहे.
पद्मश्री और ग्रेमी अवार्ड जैसे बड़े सम्मान को भी अपने व्यक्तित्व से आदर देने वाले विश्व जी अपने गिटार के ज़माने से लेकर मोहन वीणा और बाद में विश्व वीणा को बनाने को बनाने की कहानी भी याद करते हैं.फिलहाल उन्हें उनकी सबसे प्रिय मोहन वीणा के लिए ही बहुत लोकप्रियता के साथ जाना जाता है.अपने बहुत से शिष्यों को कुशलता से काम करते देख वे बहुत खुश होते हैं. उनका सबसे बड़ा नाम करने वालों में उनका अपना बेटा सलिल भट्ट ही है जिन्होंने खुद भी एक नवाचार करके ''सात्विक'' वीणा बनाई ही और बजा भी रहे हैं.पंडित जी के सभी शिष्यों में बहुत से तो रेडियो और दूरदर्शन के 'ए' ग्रेड के कलाकार बन चुके हैं.
पंडित जी कहते है कि आजकल का संगीत एक आइटम होता है जहां एक जाता है एक आता है,की परम्परा रही है.,दूजी तरफ शास्त्रीय के संगीत के चाहने वाले बहुत कम भले ही हों मगर वो अपने आप में वट वृक्ष की भांती है,उस पर किसी और संगीत का आक्रमण जैसी बात मुमकीन नहीं है.शास्त्रीय संगीत की किसी एक प्रस्तुति में जो उस दिन विशेष गाया बजाया जाता है वो दूजे दिन नहीं होता,तत्काल कल्पना शक्ति के ज़रिए जो पैदा होता है वो सदैव नवाचारी लगने वाला संगीत है ये.बदलते वक्त के साथ शास्त्रीय संगीत कभी भी तहलका भी नहीं मचाता और आने के बाद एकदम गायब भी नहीं होता है,वो अपनी एक गति से काम करता रहता है यानिकी वो अपनी जगह कायम रहता है.
मुझे पंडित जी को सुनने का मौक़ा जब भी मिला उनके साथ संगत कलाकार केवल बनारस के तबला वादक राम कुमार मिश्र दिखे,जो खुद भी बहुत माने हुए कलाकार है.दोनों में बहुत अच्छा मेल -मिलाप है. ख़ास तौर पर पंडित जी की गरमी अवार्ड वाली रचना ''ए मीटिंग बाइ द रिवर'' .जब पंडित जी अपने पूरे मन से बजाते है तो वे ''केसरिया बालम पधारो म्हारे देश '' बहुत अच्छे से बजाने के साथ खुद गाते भी हैं.
वे कहते हैं कि एक ज़माना था जब हम आकाशवाणी के भरोसे रहते थे जहां रेडियो संगीत सम्मेलन सुनने को इन्तजार करते थे.मगर अब तो वक्त बदल गया ही.आज इंटरनेट के ज़रिये पूरी की पूरी दुनिया एक गाँव बन गई ही.इसीलिए ये संभव हुआ है कि मेरे इस वाध्य यन्त्र को अमेरिका में विडियो सी.डी. के ज़रिए पढ़ाया जा रहा है.दुनिया भर से फोन और ई-मेल आते हैं, ये मोहब्बत ही बहुत बड़ा सम्मान है.
(पंडित विश्व मोहन भट्ट जी से माणिक की बातचीत के अंश )
Manik ji
जवाब देंहटाएंACHCHAA SAWAL HAI KI JANWARON KE LIYE TO CHAINAL HOSAKATA HAI PAR SANGEET KE LIYE NAHIN