अरुण चन्द्र रॉय की कविता
नहीं है बहस का मुद्दा
1
(अरुण चन्द्र रॉय हमारे देश में बहुत मार्मिक ढंग से सच्चाई को अपनी रचनाओं में समेटने वाले कवि हैं-सम्पादक )
नए भारत के उदय की
बैलों के गले में बंधने वाली रस्सी से
झूल जाता है किसान
पीछे छोड़
ए़क पत्नी
ए़क बेटी
ए़क बेटा
महाजन का क़र्ज़
क़र्ज़ पर ना चुकाया गया ब्याज
2
संकल्प के पीछे
दौड़ता
ए़क मजदूर तोड़ देता है दम
छोड़ जाता है
अलमुनियम की टूटी थाली
घिसे हुए पैंट-शर्ट
लाल पीले हरे गुलाबी कार्ड
और एक आवंटित 'इंदिरा आवास'
3.
तीसरी महाशक्ति
ऊपर चढ़ गई हैं
सूचकांक रेखाएं
देश में
ए़क ऐसी ही रेखा
तेजी से घुस रही है
गाँव घर और जंगल के पेट में
जो असर कर रही है
दिमाग पर
और तैयार कर रही है
तरह तरह के कर्ज
अलग अलग 'आधारों ' के साथ
बनने की ख़ुशी के उल्लास में
विकासमान भारत के
खबर के बीच
ये बहस के मुद्दे कैसे हो सकते हैं इनसे कोई वोट बैंक थोडे बढेगा या तिजोरियाँ थोडे भरेंगी………………एक बेहद सशक्त व्यंग्य्……। आज के सिस्ट्म पर एक कडा प्रहार्……………बेहतरीन रचना मन को आंदोलित कर गयी।
उत्तर देंहटाएंतीनों कविताएं अपनी बात कहती हैं। पर अंत की पंक्ति -नहीं है बहस का मुद्दा- कविताओं को कमजोर बनाती है। क्योंकि पाठक वह पंक्ति पढ़ने के बाद कविता का प्रभाव खो बैठता है। अगर यह पंक्ति देनी ही है तो इसे तीनों कविताओं के शीर्षक के तौर पर-इस देश में-की जगह देना उचित होता।
उत्तर देंहटाएंकविताओं में कसावट की दरकार भी है।
सच है। ये सब थोड़े ही है बहस का मुद्दा। मुदा तो है कम-ऑन वेल्थ वाला गेम!
उत्तर देंहटाएंbhaut achchhi lagi apki ye rachnaye
उत्तर देंहटाएंbahut din baad apnimaati par fir swaagat
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