मेरा नन्हा दीया
दीवाली की शाम सूरज
जब लौटकर अस्ताचल आया
मेरे नन्हे दीये को देख
मुग्ध हो मंद मंद मुस्कुराया
मैंने अर्पित की कुछ उसे
किरणें सुनहरे प्रकाश की
उसने जहां अंधेरी रात थी
सुखी वह धरा की गोद में
बरस की थकन मिटा रहा था
तिमिर दुबका था ,मेरा
नन्हा दीया मुस्कुरा रहा था!!....
.
मैं नये सिरे से.....
क्या बच जाता है
किसी के पास
जब वह कहे
‘‘ मैं हमेशा तुम्हारा रहूंगा ’’
लेकिन
पल घड़ियां दिन
बीतते उग आता है
एक नया इंसान
अब से थोड़ा हटके
नयी देखी सोचों के साथ
जो बिलकुल अनजाना सा
रहता स्वयं से ,
लगता कोई आये
और
बखूबी जैसा वो चाहे
जैसे अब तक
न किया गया हो
नये सिरे से परिभाषित कर दे!!...
तुम्हें पता है ???
बादलों की अनधुनी
अधधुली रुई
सिमटी है मेरे आंचल में
महसूस किया तुम्हें
मैंने और
भीगे तुम मेरे प्यार में
लहर लहर लहराये
तुम्हारे इषारे
पत्तियों में छनती धूप की तरह
मेरे हदय आंगन में
समेट लिया
तुम्हारे छुए प्यार को
पवित्र ओस की तरह
और सज गया एक फूल
मेरे जीवन में
हूबहू तम्हारी तरह !!!!
तुम्हें पता है ???
वो फूल
अब भी
इर्द गिर्द ही है
मेरे !!....
किरण जी का बहुत ज़रूरी परिचय :-बी ए सितार राजस्थानी साहित्य ,एम ए राजनीति
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lambe time baad nitila ji ko padhaa
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