मॉ
मॉ तुम कितनी भोली हो, मॉ तुम कितनी भोली हो।
तुम ही मेरी पूजा अर्चन, तुम ललाट की रोली हो।।
मॉ तुम ...........
तुम्ही धरा सी धारण करके, मुझको हरदम ही है पाला,
मॉ तुम .............
धीरे - धीरे स्नेह से तेरे, मैंने चलना थोड़ा सीखा,
पर आहट जब मिली कहीं कि, लाल हमारा थोड़ा चीखा,
दौड़ पड़ी नंगे पद हे मॉ, करूण स्वरों में तुम बोली हो।।
मॉ तुम ..............
बिना तुम्हारे सारा जीवन, लगता माते है यह रीता,
जब तक है आशीष तुम्हारा, तब तक मै हूँ जग को जीता,
तुम तो हो ममता की मूरत, सुखद स्नेह की झोली हो।।
मॉ तुम .............
अगर तुम्हारे ऊपर अपना, सारा जीवन अर्पित कर दूं ,
नही मिटेगा कर्ज तुम्हारा, चाहे सभी समर्पित कर दूं,
भले कुपुत्र हुआ मै बालक, कभी नही तुम डोली हो।।
मॉ तुम .................
मूक करुण स्वर
आओ चलें क्षितिज के पार,
जहॉ न होता यह संसार।
शान्ति अवनि है नभ का प्रांगण,
शान्ति प्रकृति का नीरव नर्तन।
नीरवता का राज्य रहेगा,
नीरव अनिल अनल पय धार।
आओ चलें क्षितिज के पार,
जहॉ न होता यह संसार।।1।।
अनावरित हो हिय मंजूशा,
बने चकोरी चॅद्र पियूशा,
सच्चे होयें सपने अपने,
अमित कल्पना हो साकार।
आओ चलें क्षितिज के पार,
जहॉ न होता यह संसार।।2।।
हम तुम होंगे दोनो एक,
वहॉ न होंगे विघ्न अनेक,
सुख के सारे साज सजेंगें,
अपना रचित नया संसार।
आओ चलें क्षितिज के पार,
जहॉ न होता यह संसार।।3।।
प्रणय मिलन की प्रबल पिपासा,
चिर संचित उर की अभिलाशा,
क्षण में तृप्ति बनेगी सारी,
नीति नव प्रीति रीति व्यवहार।
आओ चलें क्षितिज के पार,
जहॉ न होता यह संसार।।4।।
रचयिता
डॉ0 महेन्द्र प्रताप पाण्डेय ‘‘नन्द’’
राजकीय इण्टर कॉलेज
द्वाराहाट अल्मोड़ा
मॉ तुम कितनी भोली हो, मॉ तुम कितनी भोली हो।
तुम ही मेरी पूजा अर्चन, तुम ललाट की रोली हो।।
मॉ तुम ...........
तुम्ही धरा सी धारण करके, मुझको हरदम ही है पाला,
भूख सहा है हरदम तुमने, पर मुझको है दिया निवाला,
नही कदम जब मेरे चलते, ऊंगली पकड़ संग हो ली हो।।मॉ तुम .............
धीरे - धीरे स्नेह से तेरे, मैंने चलना थोड़ा सीखा,
पर आहट जब मिली कहीं कि, लाल हमारा थोड़ा चीखा,
दौड़ पड़ी नंगे पद हे मॉ, करूण स्वरों में तुम बोली हो।।
मॉ तुम ..............
बिना तुम्हारे सारा जीवन, लगता माते है यह रीता,
जब तक है आशीष तुम्हारा, तब तक मै हूँ जग को जीता,
तुम तो हो ममता की मूरत, सुखद स्नेह की झोली हो।।
मॉ तुम .............
अगर तुम्हारे ऊपर अपना, सारा जीवन अर्पित कर दूं ,
नही मिटेगा कर्ज तुम्हारा, चाहे सभी समर्पित कर दूं,
भले कुपुत्र हुआ मै बालक, कभी नही तुम डोली हो।।
मॉ तुम .................
मूक करुण स्वर
आओ चलें क्षितिज के पार,
जहॉ न होता यह संसार।
शान्ति अवनि है नभ का प्रांगण,
शान्ति प्रकृति का नीरव नर्तन।
नीरवता का राज्य रहेगा,
नीरव अनिल अनल पय धार।
आओ चलें क्षितिज के पार,
जहॉ न होता यह संसार।।1।।
अनावरित हो हिय मंजूशा,
बने चकोरी चॅद्र पियूशा,
सच्चे होयें सपने अपने,
अमित कल्पना हो साकार।
आओ चलें क्षितिज के पार,
जहॉ न होता यह संसार।।2।।
हम तुम होंगे दोनो एक,
वहॉ न होंगे विघ्न अनेक,
सुख के सारे साज सजेंगें,
अपना रचित नया संसार।
आओ चलें क्षितिज के पार,
जहॉ न होता यह संसार।।3।।
प्रणय मिलन की प्रबल पिपासा,
चिर संचित उर की अभिलाशा,
क्षण में तृप्ति बनेगी सारी,
नीति नव प्रीति रीति व्यवहार।
आओ चलें क्षितिज के पार,
जहॉ न होता यह संसार।।4।।
रचयिता
डॉ0 महेन्द्र प्रताप पाण्डेय ‘‘नन्द’’
राजकीय इण्टर कॉलेज
द्वाराहाट अल्मोड़ा
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