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आशा जी पाली,राजस्थान अपनी कुछ पुस्तकों के प्रकाशित के साथ सतत लेखन करती रचनाकार asha09.pandey@gmail.com |
ग़रीब का जीवन
'दर्द 'के समृद्ध महल हैं
'रंज़" की ऊँची दीवारें
'दुःख 'का रंग रोगन सजा
बंधी 'वेदनाओं ' की बन्दनवारें
'विपदाओं के बाग़ -बग़ीचे
'करुण'झूलों की कतारें
'आंसू 'के रिमझिम सावन
'कसक' की शीतल फुहारें
'चिंताओं 'के झाड़-फानूस से
'सजते' घर के गलियारे
'बेबसी के पलंग पर लेटी
दुल्हन'पीड़ा 'की चीत्कारें
'सूनेपन की साँझ में आता
दूल्हा'मजबूरी घर -द्वारे
दे 'अभावों ' की महंगी मिठाई
करते लाडलों की' मनुहारें '
पा 'दुत्कारों 'के खेल -खिलौने
खिलतीं बच्चों किलकारें
रोज़ सजाते आँगन देहरी
दीपक से 'आहों 'के अंगारे
'भूख 'परी सी छम -छम आती
टिम-टिम करते 'टीस' के तारे
जब' अरमानों का चूल्हा' जलता
मिल बैठ खाते ग़म सारे
'कंटक -प्रस्तर' के कोमल बिस्तर
बजती आल्हादित स्वपन झंकारें
'अँधेरे 'लिखते जिस की यश गाथा
यही है 'ग़रीब 'का जीवन प्यारे
लड़की
न दुत्कारो रात का अँधेरा -
कहकर मुझको ,
ज़न्मता मेरी ही कोख से
तुम्हारे घर का उजाला
कड़वा समझ गिरा देते जिसे-
हाथ में लेने से पहले ,
जो तुमको लगता अमृत -
मुझी में पनपता वो प्याला
मैं चिड्कली [ बेटी ]
अनचाही तुम्हारे आँगन उतरती
मिल जाये तो स्नेह के नहीं तो
केवल संस्कारों के दाने चुनती
जरुरत भर उछलती
जरुरत भर मचलती
घर भर स्नेह पंखों की छाया करती
नित नव दायित्वों के पाठ समझती
जरुरत भर उड़ती
जरुरत भर फुदकती
दिखाओ तो देख लेती सूरज की किरणें
नहीं तो अंधेरों के ही साये में पलती
जरुरत भर आँख खोलती
जरुरत भर बोलती
जितने दिन रहने दो अपने आँगन
बैठी रहती,जिस दिन उड़ाओ
चुपचाप किसी अन्य आँगन जा ठहरती
अधिकारों को बिसराती
कर्तव्यों का पालन करती
मैं चिड्कली
कुछ हाइकु
ढलेगी शब
झिलमिला रही है
शम्मे -उम्मीद
आँखे सावन
उजड़ा बेवा -मन
कैसा मौसम ?
कद्दे -आदम
आईने हर तरफ
फिर भी झूंठ
कटे पेड़ ने
खोल दी मेरी आंखे
हरिया कर
जीवन थैला
भरा तमाम उम्र
अंततः खाली
आंतकवाद
गंभीर परेशानी
मानवता पे
संग रहते
अजान ओ आरती
वक्ते -सुबह
यतीम- बेवा
मुरझाये गुल से
उजड़ा बाग़
आदी हो जाती
सितम सहने की
झुकी गर्दन
क्यों आते ज्यादा
सर्दी ;गर्मी वर्षा
गरीब-घर
आशा पाण्डेय जी की कवितायेँ बेहद प्रभावशाली बनी हैं खास तौर पर कविता लड़की और कुछ हाइकु... मानिक और आशा जी दोनों को बहुत बहुत बधाई और शुभकामना...
जवाब देंहटाएंआपनी माटी में मेरी कवितायेँ व हाइकु पकाशित करने के लिए आपका हार्दिक आभार मानिक जी
जवाब देंहटाएं1916 - 2016
हटाएंविधा हाइकु
सौ हाइकुकारों की
शताब्दी हर्ष
पुस्तक , विमोचन ,4 दिसम्बर 2016 हाइकु दिवस आयोजन
शामिल होने की इच्छा हो तो सम्पर्क करें
1916 - 2016
हटाएंविधा हाइकु
सौ हाइकुकारों की
शताब्दी हर्ष
पुस्तक , विमोचन ,4 दिसम्बर 2016 हाइकु दिवस आयोजन
शामिल होने की इच्छा हो तो सम्पर्क करें
bahut bahut badhai
जवाब देंहटाएंAsha ji....Congratulations.
जवाब देंहटाएंKavita likhna khel nahi he puchho in faNkaro se, ye sab loha kaat rahe he kagaz ki talwaro se...!
जवाब देंहटाएंAasha ji...kya koob likha he...! hriday tal se shubhkamnaye...aap ko.
Asha ji all the poems touch heart!!
जवाब देंहटाएंआशा दीदी,,,
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा रचनाये .खास कर बेटी के ऊपर........
मेरे पिताजी की एक रचना देखिये
बुआ ने गीत गया,बहनों ने थाली बजाई …..
सभी समझे आज मै सुखी,पर मेने ख़ुशी नहीं पाई .
कितना अभागा,बदनसीब,बात बड़ी दुखदाई ………….
तेरे खजाने में सब कुछ था,क्या कमी आई ………….
बाप की पदवी तो दो बार पाई…..
पर इस घर में तुने बेटी नहीं भिजवाई …………
इतनी मेहर तो मालिक अब कर देना ………………..
तेरे खजाने में कोई कमी नहीं खलेगी ………….
जब मेरे आँगन में पोती चहकेगी …
आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाओं हेतु आप सभी मित्रों का हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंकविताए व हाइकु ..... बहुत खूब .....
जवाब देंहटाएंआशा जी आज मैंने इस वेब पत्रिका पर आप कि सुंदर रचनाएँ पढ़ी, बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएं