अश्वनी शर्मा
राजस्थान प्रशासनिक सेवा अधिकारी
11/177,भृगु पथ
मानसरोवर,जयपुर
सूर्य प्रकाशन मंदिर,
बीकानेर से 1999 में
प्रकाशित कृति-
ग़ज़ल संग्रह,'अँधेरे की चीख'
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वो कहते है जीवन का आधार नहीं है
मैं कहता हूँ कोई सलीकेदार नहीं है
जो सिक्कों में बदल नहीं पाया वजूद को
ये निश्चित है बंदा दुनियादार नहीं है
रिश्ते नाते,कसमे वादे,देव पुजा री
क्या बाकी है जिस का कि व्यापार नहीं है
जो सपनों कि ताक़त पर जीना चाहे है
क्या पायेगा सपनों का आकार नहीं है
सत्यानाशी के जंगल को क्या कोसेंगे
पेड़ कौन सा है जो कांटेदार नहीं है
अगर मुहब्बत ही जीने कि शर्त्त बने तो
बहुतेरों को जीने का अधिकार नहीं है
खुली किताबों जैसे जब जी चाहे पढ़ लो
मंजे हुए किरदारों जैसे यार नहीं है
अगर मुहब्बत ही जीने की शर्त्त बने तो
जवाब देंहटाएंबहुतेरों को जीने का अधिकार नहीं है.....वाह अश्वनी जी....ये आपका अपना... अलग अंदाज़.....बहुत ख़ूब..