'कुशल हो गये' कवि-लेखक-ग़ज़लकार रमेश चन्द्र शर्मा ‘चन्द्र’ की ग़ज़लों की पुस्तक है इससें पूर्व भी इनके दो ग़ज़ल संग्रह सहित कुल आठ क़िताबें पप्रकाशित हो चुकी है उनमें से तीन गीत संग्रह, तीन ग़ज़ल संग्रह और दो हाइकु संग्रह (छोटी कविता की जापानी विधा) प्रकाशित हो चुकी हैं इनकी ग़ज़लें ठेठ हिन्दी में लिखी हुई हैं इनकी ग़ज़लों में शिल्प कथ्य, बिंब उर्दू ग़ज़ल के मुकाबले कंही उन्नीस नहीं है। मेरे हिसाब सें ह्रदय का बोझ हल्का करने के लिए भावों की अभिव्यक्ति के निमित्त बोलने की अपेक्षा लिखकर शब्दों द्वारा जो दर्द अभिव्यक्त किया जाता है वह गीत ग़ज़ल का रूप लेकर एक जीवन धारण कर लेता है।
ह्रदय की उथल-पुथल, उत्थान-पतन, सुख-दुःख,आशा-निराशा, संयोग-वियोग की सभी स्मृतियाँ यहाँ ग़ज़ल बनकर ढ़ल गईं। व्यक्तिगत सम्बन्धों सें लेकर सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, भौतिक, आर्थिक एवं समस्त समसामयिक बिन्दुओं पर दृष्टिपात करती ये रचनाएं बहुत असरकारक है . इस पुस्तक को पढ़कर ऐसा आभास होता है कि रमेश चन्द्र के स्मृति भंड़ार में जितने भी कटु व मधुर अनुभवों के क्षणों की वेदना अथवा आनंद था वो सभी मार्मिक पल शब्दों के आवरण ओढ़ कर ग़ज़ल बन गये हैं। ज़िन्दगी की कठिनाइयों से लड़ते हुए आराम के क्षणों में जो मनोवेग उमड़ते हैं और हम उन्हें लिपिआबद्ध कर लेते हैं ऐसा ही कुछ लगता है. जहां बाद में वो जीवन की सबसें सुंदर और उत्कृष्ट रचना बन जाती हैं.नये संकेत व नये भावों की अनुभूति महसूस की जा सकती है।
ह्रदय की उथल-पुथल, उत्थान-पतन, सुख-दुःख,आशा-निराशा, संयोग-वियोग की सभी स्मृतियाँ यहाँ ग़ज़ल बनकर ढ़ल गईं। व्यक्तिगत सम्बन्धों सें लेकर सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, भौतिक, आर्थिक एवं समस्त समसामयिक बिन्दुओं पर दृष्टिपात करती ये रचनाएं बहुत असरकारक है . इस पुस्तक को पढ़कर ऐसा आभास होता है कि रमेश चन्द्र के स्मृति भंड़ार में जितने भी कटु व मधुर अनुभवों के क्षणों की वेदना अथवा आनंद था वो सभी मार्मिक पल शब्दों के आवरण ओढ़ कर ग़ज़ल बन गये हैं। ज़िन्दगी की कठिनाइयों से लड़ते हुए आराम के क्षणों में जो मनोवेग उमड़ते हैं और हम उन्हें लिपिआबद्ध कर लेते हैं ऐसा ही कुछ लगता है. जहां बाद में वो जीवन की सबसें सुंदर और उत्कृष्ट रचना बन जाती हैं.नये संकेत व नये भावों की अनुभूति महसूस की जा सकती है।
यथा एक खूबसूरत उदाहरण -
घर क्यों नहीं मकानों में/
रहते लोग दुकानों में/बाँट दिये किसने भाई/
जाति धर्म के खानों में/दूसरी तरफ आवरण पर आवरण है/
और कलुषित आचरण काम रावण बन गया है/
चतुर्दिक सीता हरण है।
पुस्तक में में वर्तमान समाज का स्त्रियों के प्रति जो रवैया है, उनकी स्थिति पर पीड़ा साफ झलकती है।
पाँव तम के पूजती जो/
कलम को धिक्कार कहना/
हर दबी कुचली उम्र को/
यातना की हार कहना/
पूरी ग़ज़ल ही गहराई की मिसाल है।
जिसको देखो वही दुःखी है/
एवं अंचल में काँटे भर लाये/
ये असुरक्षा के बोध की तीखी अभिव्यक्ति है।
संघर्षो सें हार न मानें/
मानव छोटा, जेब बड़ी है/
जीना ,मुश्किल कठिन घड़ी है
अपराधों और राजनीति की/
गाँठ न खुलती बड़ी कड़ी है।
इसके अतिरिक्त अर्थ की अराधना हमसे न होगी।
हर किसी की अर्चना हमसें न होगी।
रचनाकार:-रमेशचन्द्र शर्मा ‘चंद्र,ग़ज़लसंग्रह,'कुशल हो गये',कश्ती प्रकाशन,अलीगढ(उ.प्र.),मूल्य:-रू. 100/-
आदरणीय मानिक जी का हृदय से आभार श्री रमेशचन्द्र शर्मा "चन्द्र की "की पुस्तक" कुशल हो गए "पर मेरे द्वारा लिखी समीक्षा छापने के लिए .. इन की गज़लों को पढ़ कर मुझे बड़ी आत्मिक आनंद की अनुभूति मिली ..ओउर कुछ लिखने को विवश हो गई .. आपका पुन: पुन : कोटिश आभार मानिक जी
जवाब देंहटाएंIts our duty to promote good writing Ashaa Ji
जवाब देंहटाएंsammanniy asha ji. सटीक और संतुलित समीक्षा...इसे पढ़कर इस पुस्तक को पढ़ने की ललक जाग उठी! प्रभावी और विवेचनात्मक लेखन के लिए साधुवाद...
जवाब देंहटाएंwonderful u r nobel wirter ashaji the genious, bless u always
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