कितना ज़रूरी है हस्तक्षेप
व्यवस्था में इस दौर
फटती पेंट के पिछवाड़े
लगे ठेगरे की मानिंद
सोचना निहायत ज़रूरी है
अटरम-शटरम के आलम में
छानी हुई चाय की मानिंद
फिर बैखोफ लेना चुस्कियां
कितनी ज़रूरी हो गयी है
असल की पहचान और
नक़ल को नकारना यूं
छाजले से कंकडों को पारना
कितना ज़रूरी है ऊंची उठती
हवेलियों को यथासमय छांगना
सौ गालियों को पारते
शिशुपाल वधने की मानिंद
उनकी कवितायेँ आदि उनके ब्लॉग 'माणिकनामा' पर पढी जा सकती है.वे चित्तौड़ के युवा संस्कृतिकर्मी के रूप में दस सालों से स्पिक मैके नामक सांकृतिक आन्दोलन की राजस्थान इकाई में प्रमुख दायित्व पर हैं.
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