कादंबिनी क्लब, के तत्वावधान में हिंदी प्रचार सभा परिसर में क्लब की 227वीं मासिक गोष्ठी
आयोजित की गई| प्रो. ऋषभदेव शर्मा की अध्यक्षता में संपन्न इस गोष्ठी के
प्रथम चरण में शमशेर बहादुर सींह के शताब्दी के संदर्भ में ‘शमशेर बहादुर
सिंह को समझने की कोशिश’ विषय पर उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत
हिंदी प्रचार सभा की प्राध्यापक डॉ.जी.नीरजा ने विशेष व्याख्यान दिया.
‘देसिल बयना’ के अध्यक्ष दयानाथ झा मुख्य अतिथि रहे तथा संयोजन क्लब की
संयोजिका डॉ.अहिल्या मिश्र ने किया.
विशेष व्याख्यान देते हुए
डॉ.जी.नीरजा ने शमशेर को आंतरिक ऊर्जा से संपन्न कवि बताते हुए उनके
व्यक्तित्व और कृतित्व की संघर्षशीलता और रचनाधर्मिता पर विशेष चर्चा की.
डॉ.जी.नीरजा ने कहा कि "गद्य हो या पद्य - शमशेर की भाषा बनावटी नहीं है।
वे खड़ीबोली क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और उसका ठेठ तथा एक सीमा तक
खुरदरा अंदाज उनकी भाषा में भी है। खास तौर से उनकी कहानियाँ पढ़ते समय यह
साफ दिखाई देता है कि उनका गद्य बातचीत की शैली का है। वे जैसे बोलते
हैं, वैसे ही लिखते भी हैं। कहने का मतलब यह है कि लिखते समय भी वे बातचीत
का खुलापन लाते हैं।" डॉ.जी.नीरजा ने शमशेर की अनेक कविताओं के उदाहरण देते
हुए यह प्रतिपादित किया है कि "शमशेर की कविताओं में एक ओर प्रेम की
आकांक्षा, नारी सौंदर्य की कल्पना और निराशा से उत्पन्न व्यथा का मार्मिक
चित्रण है तो दूसरी ओर उनका मिज़ाज इन्क़लाबी है."
डॉ.ऋषभ देव शर्मा ने अध्यक्षीय
वक्तव्य में कहा कि शमशेर बहादुर सिंह एक कवि, समीक्षक, संस्मरणकार,
कहानीकार और कोशकार के रूप में हिंदी साहित्य में अविस्मरणीय योगदान के लिए
जाने जाते हैं. उन्होंने बताया कि शमशेर भारतीय और पश्चिमी साहित्यिक
परंपराओं के साथ साथ हिंदी, उर्दू और अंग्रेज़ी तथा साहित्य, चित्रकला,
वास्तुकला और संगीत के संगम के प्रतीक हैं तथा उन्होंने हिंदी कविता के
क्षेत्र में ‘हिंदुस्तानियत’ के संस्कार को परिपुष्ट किया. डॉ.शर्मा ने
शमशेर की भाषा में हिंदवी की लय की चर्चा करते हुए उसकी बिंबात्मकता और
समाजविद्धता की ओर भी ध्यान दिलाया और कहा कि शमशेर की तमाम कविता में
प्रगतिशीलता के प्रति एक खास तरह का रुझान निहित है जो नारेबाजी और
बड़बोलेपन के बिना शोषण के खिलाफ आवाज उठाता है. डॉ.शर्मा ने शमशेर की कुछ
चर्चित रचनाओं का वाचन भी किया.
दूसरे चरण में लक्ष्मीनारायण
अग्रवाल के संचालन में कवि गोष्ठी हुई, जिसमें प्रो.ऋषभ देव शर्मा,
कुंजबिहारी गुप्ता, सत्यनारायण काकड़ा, गौतम दीवाना, सूरजप्रसाद सोनी, उमा
सोनी, डॉ. रमा द्विवेदी, आज्ञा खंडेलवाल, डॉ. अहिल्या मिश्र, मीना मूथा,
भंवरलाल उपाध्याय, नीरज त्रिपाठी, डॉ. देवेन्द्र शर्मा, विनीता शर्मा, मीना
खोंड, जयश्री कुलकर्णी, मुकुंददास डांगरा, जुगल बंग जुगल', डॉ. सीता
मिश्र, सरिता सुराणा जैन, पवित्रा अग्रवाल, संपत देवी मुरारका, दत्तभारती
गोस्वामी, भावना पुरोहित आदि ने विविध विषयों को केंद्रित करते हुए
काव्यपाठ किया| सरिता सुराणा जैन के धन्यवाद के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ|
![]() गुर्रमकोंडा नीरजा साहित्यधर्मी व्यक्तित्व हेदराबाद.(रिपोर्ट एवं चित्र : संपतदेवी मुरारका) |
