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अतुल अग्रवाल |
पत्रकार कोई
आदर्शवादी जीव नहीं है, वह
कोई मिशन
नहीं बल्कि
प्रोफेशन का
आदमी है।
सामाजिक सरोकारों
की जिम्मेदारी
केवल पत्रकार
के माथे
थोप कर
उसे उसकी
खुद की
पारिवारिक जिम्मेदारियों से अलग नहीं
देखा जाना
चाहिए। पत्रकारों
के लिए
भी न्यूनतम
मजदूरी जैसा
कोई कॉन्सेप्ट
जरूरी होने
की बात
अग्रवाल ने
पूरजोर तरीके
से रखी।
अन्ना हजारे की
आन्दोलन में
मीडिया कोई
बड़ा काम
नहीं किया बल्कि
अपना धंधा
चमकाया है.ये बहुत
पुरानी बात
हो गयी
है.नई
बात तो
ये है
कि सूचना
का प्रजातंत्रीकरण
हो गया
हैं.इस
नए मीडिया
युग में
आप देखेंगे
कि कुछ
मीडिया हाउस
घरानों को
तो खरीदा
जा सकेगा
मगर तब
न्यू मीडिया
की उपज
इन ब्लॉग
लिखने वाले
लाखों कलमकारों
को खरीद
सकना मुमकिन
नहीं होगा.असल में
इस जुगाड़
को तोड़ने
की कवायद
ही है
न्यू मीडिया
.इसमें भी
दो बात
हो सकती
है कि
लोग आगे
जाकर कहे
कि ये
फुकट की
पत्रकारिता कब तक ? कहीं न
कहीं ये
सवाल पहले
अपनी रोजी-रोटी की
ज़रूरतें पूरी
करने पर
जाकर ख़त्म
होता है.
मगर इन सब
हालातों में
भी पत्रकार
और ठेकेदार
में अंतर
कायम रहना
ज़रूरी है.नौकरी और
सरोकार में
फर्क समझ
आना ज़रूरी
है.अतुल
अग्रवाल अपने
लहेजे में
कहते हैं
कि हम
पत्रकार अन्ना
हजारे और
गांधी नहीं
है.हम
भी एक
सामान्य इंसान
है हमें
महिमामंडित कर बड़ा नहीं बनाया
जाए.ये
मेरी नज़र
में ये
भी महज़
एक नौकरीभर
है,जैसे
और नौकरियाँ
होती आई
है.आखिर
में ये
ही कहूंगा
कि पत्रकारिता
केवल जीवन
का जुगाड़
है.दो
जून की
रोटी कमाने
का ज़रिया
भर है.
इसी बीच एक
श्रोता स्थानीय
शिक्षाविद डॉ. ए. एल.जैन
के सवाल
पर उन्होंने
अपने वक्तव्य
में कुछ
जोड़ते हुए
ये कहा
कि ये
बात भी
सच है
कि तनख्वाहें
बढ़ जाने
से भ्रष्टाचार
ख़त्म नहीं होगा.सही मायने
में ये
सबकुछ नीयत
का मामला
है.न्यूनतम
मज़दूरी हो
या लाखों
की पगार,नीयत बिगड़ने
पर वही
सब सरोकार
गौण हो
जाते हैं.
पिछले चौदह सालों
में नौ
टी.वी.चैनल में
काम करने
का तजुर्बा
है,और
उसके बलबूते
कह सकता
हूँ कि
देश के
कई गणमान्य
लोग टी.वी. पर
फुकट का
ज्ञान परोसते
नज़र आते
हैं.आठ
दस लाख
की महीनावार
पगार पाते
हैं.बिना
किसी का
नाम लिए
अतुल अग्रवाल
ने कहाँ
कि इसी
देश में
कुछ संपादकों
की गेंग
हैं जिसे
दंडवत किए
बगैर लोगों
के नौकरी
नहीं चल
सकती है.
(ये विचार राजस्थान श्रमजीवी पत्रकार संघ की राज्यस्तरीय कार्यशाला,चित्तौड़गढ़ में मुख्य वक्ता के तौर पर कहे )
उनकी कवितायेँ आदि उनके ब्लॉग 'माणिकनामा' पर पढी जा सकती है.वे चित्तौड़ के युवा संस्कृतिकर्मी के रूप में दस सालों से स्पिक मैके नामक सांकृतिक आन्दोलन की राजस्थान इकाई में प्रमुख दायित्व पर हैं.
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बहुत अच्छा लगा, साधुवाद
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