लखनऊ
समारोह शुक्रवार की शाम उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के वाल्मीकि सभागार में शुरू हुआ। इसका उदघाटन प्रसिद्ध कवि नरेश सक्सेना ने किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि प्रतिरोध का सिनेमा पूंजी के बाजार में जनसंघर्षों से जुड़कर जनता की आवाज को मुखरित करने का प्रयास है। सक्सेना ने कहा कि सिनेमा एक कठिन लेकिन ताकतवर माध्यम है।दुर्भाग्य है कि हिन्दी पटटी में सिनेमा की तकनीक, कला पर गंभीर कामनहीं हुआ। उन्होंने डाक्यूमेंट्री और टेली फिल्म निर्माण के अनुभव को साझा करते हुए कहा कि पिफल्म सभी तरह की कलाओं का सामंजस्य है और यहगहन संवेदना के साथ हमारे जीवन में उतरता है।उदघाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे कवि, समीक्षक व जन संस्कृति मंच केराष्ट्रीय उपाध्यक्ष अजय कुमार ने कहा कि फिल्म कला का सबसे ज्यादाइस्तेमाल शासक और शोषक वर्ग ने किया है। इन्होंने इसे जनता के प्रतिरोध को कुंद करने का माध्यम बनाया। प्रतिरोध का सिनेमा समाज, देश को बदलने के लिए चल रहे संघर्ष का आइना है। इस आंदोलन को तेजी से आगे बढ़ाने कीजरूरत है।जन संस्कृति मंच द ग्रुप के संयोजक संजय जोशी ने प्रतिरोध के सिनेमा कीयात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि लखनऊ का यह फेस्टिवल हमारा 20 वां आयोजनहै। पिछले छह वर्ष की यह यात्रा हमने जनता के सहयोग से पूरी की है।प्रतिरोध का सिनेमा, आवारा पूंजी, कारपोरेट पूंजी के दम पर बन रहे सिनेमाऔर उसको दिखाने के तंत्र का जनता के सहयोग से दिया जाने वाला जवाब है।
संचालन करते हुए जसम लखनऊ के संयोजक कौशल किशोर ने कहा कि सिनेमा के जरिए प्रतिरोध संघर्ष की आवाज को हम मुखरित कर रहे हैं। हमारा यह प्रयास जनता के संघर्ष के साथ जुड़ा हुआ है। जन संस्कृति मंच के संस्थापक अध्यक्षव प्रसिद्ध नाटककार गुरु शरण सिंह जसम के संस्थापक सदस्य व कथाकार कलासमीक्षक अनिल सिन्हा और प्रख्यात फिल्मकार मणि कौल की स्मृति में आयोजित इस फेस्टिवल के शुभारंभ के पहले हाल में दिवंगत गुरुशरण सिंह,अनिल सिन्हा ,मणि कौल, रामदयाल मुंडा, कमला प्रसाद, कुबेर दत्त और गजलगायक जगजीत सिंह को दो मिनट मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई।उदघाटन सत्र के तुरंत बाद जसम की सहयोगी सांस्कृतिक संगठन, बलिया कीसंकल्प ने क्रांतिकारी कवि गोरख पांडेय की कविता समझदारों का गीत, उदयप्रकाश की कविता बचाओ और अदम गोंडवी की कविता चमारों की गली की शानदार रंग प्रस्तुति की। इसके अलावा संस्था ने भिखारी ठाकुर की अमर कृति विदेशिया नाटक के तीन गीत भी गाए। संकल्प की इन प्रस्तुतियों कों दर्शकों ने काफी पसंद किया।
आशीष्ा त्रिवेदी के निर्देशन में इन कार्यक्रमों में संकल्प के दस रंगकर्मियों ने हिस्सा लिया। फेस्टिवल के पहले दिन के अंतिम सत्र में ईरान के मशहूर फिल्मकार जफरपिनाही की पिफल्म आफ साइड दिखाई गई। फिल्म ईरान में महिलाओं के फुटबालमैच देखने की पृष्ठभूमि पर बनी है। कुछ लड़कियां पाबंदी के बावजूद विश्वकप क्वालीफाइंग के लिए ईरान और बहरीन के बीच हो रहे मैच को देखनेचली जाती हैं। उन्होंने अपनी पहचान छिपाने के लिए पुरुषों का कपड़ा पहन लिया है। इसके बावजूद वे पकड़ी जाती हैं और उन्हें एक कमरे में बंद करदिया जाता है। निगरानी कर रहे सिपाहियों से लड़कियों की डिवेट होती है औरसिपाही उनके पक्ष में हो जाते हैं। वे उन्हें मैच का आखों देखा सुनानेलगते हैं। जफर पिनाही इस पिफल्म के जरिए ईरान की पुरुषसत्तात्मक व्यवस्था पर चोट करते हैं। साथ ही किरदारों के माध्यम से संघर्ष के निर्णायक दौर में लोगों का सत्ता के खिलाफ खड़े हो जाने की स्थिति सामनेलाते हैं।
88 मिनट की इस पिफल्म ने दर्शकों को पूरी तरह से सम्मोहित करलिया।पिफल्म फेस्टिवल महिलाओं के संघर्ष पर बनी पिफल्मों पर केन्द्रित है।फेस्टिवल में फिल्मों का चयन इसी थीम पर किया गया है। फिल्म फेस्टिवल में महिलाफिल्मकारों की अन्य विषयों पर बनी पिफल्मों को भी खास तौरपर शामिल किया गया है। ताकि सिनेमा में महिला फिल्मकारों के योगदान कोअलग से रेखांकित किया जा सके।
स्मारिका का लोकार्पण,चित्र व पुस्तक प्रदर्शनी का उदघाटन
फेस्टिवल में कवि भगवान स्वरूप कटियार द्वारा संपादित जसम फिल्मोत्सव -2011 स्मारिका का लोकार्पण किया गया। स्मारिका में फेस्टिवल के दौरान दिखाई जाने वाली पिफल्मों का सारांश व परिचय तो दियाही गया है कई महत्वपूर्ण लेख भी शामिल किए गए हैं। प्रसिद्ध चित्रकारअशोक भौमिक द्वारा संयोजित चित्र प्रदर्शनी भी लगाई गई है। प्रदर्शनी में प्रख्यात जनवादी चित्रकारों चित्त प्रसाद, जैनुल आबदीन और सोमनाथ होड़के 21 प्रतिनिधि चित्रों को प्रदर्शित किया गया है। गोरखपुर पिफल्मसोसाइटी और लेनिन पुस्तक केन्द्र द्वारा पुस्तकों व डाक्यूमेंट्री फिल्मों की प्रदर्शनी भी लगाई गई है।
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