लखनऊ, 03 अक्टूबर।
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स्व.कुबेर दत्त जी |
प्रसिद्ध कवि, फिल्मकार, चित्रकार और दूरदर्शन के पूर्व चीफ प्रोड्यूसर कुबेर दत्त का आज निगमबोध घाट पर अंतिम संस्कार हुआ और उनकी अस्थियां गढ़ मुक्तेश्वर में गंगा में विसर्जित की गईं। कुबेर दत्त का निधन कल दिल्ली में हुआ। 02 अक्टूबर को दोपहर बाद उनकी पत्नी प्रसिद्ध नृत्यांगना और दूरदर्शन अर्काइव्स की पूर्व निदेशक कमलिनी दत्त जब दिल्ली पहुंची, तो उन्होंने पाया कि वे जीवित नहीं हैं। सुबह किसी वक्त नींद में ही उन्होंने आखिरी सांस ली होगी।
उनके निधन से साहित्य-संस्कृति और मीडिया की दुनिया में शोक की लहर दौड़ गई। किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था कि जबर्दस्त कलात्मक ऊर्जा, वैचारिक आवेग और गहरी संवेदनशीलता से भरे कुबेर दत्त, जिन्होंने अभिव्यक्ति के लिए कई बार जोखिम उठाए, साहित्य-राजनीति की सत्ताओं से टकराव मोल लिया, वे इस कदर चुपचाप हमारे बीच से चले जाएंगे। साहित्य-संस्कृति की दुनिया में सक्रिय हर पीढ़ी के लोगों से उनके गहरे संवेदनात्मक संबंध थे।
लखनऊ में यह खबर कल शाम को जैसे पहुँची साहित्य संस्कृति से जुड़े लोगों के लिए यह खबर आहत कर देने वाली थी। जसम के संयोजक कौशल किशोर, लेखक व पत्रकार अजय सिंह, नाटककार राजेश कुमार, आलोचक चन्द्रेश्वर, कवि भगवान स्वरूप कटियार कुबेर दत्त के शोकसंतप्त परिजनों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा है कि कुबेर जी का निधन वामपंथी-लोकतांत्रिक सांस्कृतिक धारा और जनपक्षधर मीडिया की दुनिया के लिए भारी क्षति है। प्रगतिशील-जनसांस्कृतिक मूल्यों के लिए कार्यरत अधिकांश लोगों के साथ उनके बहुत अंतरंग रिश्ते थे। 1985 के दिनों में वे बतौर प्रोड्यूसर लखनऊ दुरदर्शन में कार्यरत थे। उनका यहाँ की प्रगतिशील साहित्यिक गतिविधियों से गहरा जुड़ाव था तािा बड़ी गर्मजोशी के सााि इनक ार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। अपने लगाव की वजह से ही उन्होंने जसम के विज्ञान भवन, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पहले राज्य सम्मेलन के कार्यक्रमों का इलाहाबाद जाकर कवर किया और उसका दूरदर्शन में बेहतरीन प्रस्तुतिकरण हुआ। उनके द्वारा लखनऊ दूरदर्शन में साहित्यिक कार्यक्रमों की उन दिनों जो प्रस्तुतियाँ की गई, वह बेमिसाल है, विचार व कला दोनों स्तरों पर।
अपने शोक संवेदना में जसम की ओर से कहा गया कि वे एक अच्छे चित्रकार भी थे, कई लघु पत्रिकाओं ने उनके चित्रों से अपने आवरण भी बनाए। संगीत की भी उन्हें गहरी समझ थी। रिटायर्ड होने के बाद भी कला-संस्कृति की गतिविधियों पर लिखने का उनका सिलसिला जारी था। वे भारत में बेहतर व्यवस्था के निर्माण के लिए प्रयासरत तमाम लोगों के साथी थे। स्वामी विवेकानंद और क्रांतिकारी हंसराज रहबर से वे बहुत प्रभावित थे। माक्र्सवाद में उनकी गहरी आस्था थी और वे तमाम वामपंथी दलों की एकता के पक्षधर थे। अपनी परंपरा के साकारात्मक मूल्यों से माक्र्सवाद को उन्होंने हमेशा जोड़कर देखा।
एक संक्षिप्त परिचय :-1 जनवरी 1949-02 अक्टूबर 2011,गांव- बिटावदा, जिला- मुजफ्फरनगर, उ.प्र.,शिक्षा-एम.ए. हिंदी, पत्रकारिता में डिप्लोमा, फिल्म टीवी इंस्टीट्यूट आॅफ इंडिया, पुणे से दूरदर्शन प्रोड्यूसर के रूप में प्रशिक्षित
प्रकाशित कृतियां-
- काल काल अपात,
- केरल प्रवास,
- कविता की रंगशाला,
- धरती ने कहा फिर...(कविता संग्रह)
मीडिया-
- 1973 से दूरदर्शन में प्रोड्यूसर,
- स.के.नि,
- अधिशासी निर्माता और मुख्य निर्माता
- दूरदर्शन में हजारों फीचर्स का निर्माण
- अनेक साहित्यिक-सांस्कृतिक-कला संबंधी कार्यक्रमों का निर्देशन
- चित्रकला में विशेष रुचि
- हजारों पेंटिंग बनाए
- फिलहाल डीडी भारती के सलाहकार थे
- सार्क लेखक सम्मान, रूस और रेडियो प्राग द्वारा मीडिया पुरस्कार,
- सिने गोवर्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया द्वारा ‘सर्वश्रेष्ठ टीवी प्रोड्यूसर’ सम्मान
जन संस्कृति मंच,लखनऊ के संयोजक हैं.लखनऊ-कवि,लेखक के होने साथ ही जाने माने संस्कर्तिकर्मी हैं.
एफ - 3144, राजाजीपुरम, लखनऊ - 226017
मो - 08400208031, 09807519227
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