आग
अपने आवास के चारों ओर
घिरे जंगल में
असंतोष की
तुमने भड़कायी चिनगारी
अब आयी
तुम्हारे घर की बारी
मूल्य
जब से ह्रास हुआ
मानवता का मूल्य
तब से
जीवन का आर्थिक स्तर
हुआ है मूल्यवान
आंसू
टूटकर अपनों से
अलग हुआ क़तरा
इसीलिये
उसका अस्तित्व
पृथ्वी पर बिखरा
संबंध
एकाकी होते
मनुष्यों का
समाज में आपसी सम्बन्ध
बन गये हैं
रेशम के चादर में
मलमल के पैबन्द
सूरज
किसी पुलिस वाले की तरह
आग बरसात है
तभी अपने बंधुवर्ग को
ऐश्वर्य की नीड़ में
बिठाता है
शासन की तरह
निर्धनों की हंसी उड़ाता है
पहेली
मेरी आवाज़ को
क्रय करना चाहा तुमने
जो तुम्हारे निम्नस्तर पर
पत्थर की तरह उठ रहे हें
अब उन आवाज़ों से जूझो
जो पहेली तुमने बनायी
स्वयं उसका उत्तर बूझो
नेता
ऐसे रसिक हुए
गीत संगीत की चाह में
अब तो राग मेघ मल्हार
सुनते हैं
आह और कराह में
पुनरावृत्ति
पुनरावृत्ति अपनी
करता है इतिहास
इसलिये
आदिम होने का
हमें हो रहा है आभास
पत्थर
युग परिवर्तन हुए
किन्तु
मैं न परिवर्तित हुआ
सदा ठोकरों के मध्य
पलता रहा
मेरा
विद्रोह न कर पाने का गुण
मेरे पत्थर बनने की
नियति को छलता रहा
नियति
नियति मानव होने की
एक त्रासदी है
अनुभूत हुए----टूटे
तटस्थ हुए-----बिखरे
विचित्र यह
वर्तमान की यंत्र सदी है
प्रतिफल
मानव होने का मूल्य
वह चुकाता रहा
अपना स्वर
हर अन्याय के विरोध में
उठाता रहा
इसलिये अभावों में
जीवन बिताता रहा
प्रयास
हम परिवर्तत की
अनिवार्यता
अनुभव करते हुए भी
नहीं करते
सार्थक प्रयास
जबकि हंस भी करते हैं
परिवर्तन हेतु
दूरस्थ प्रवास
अखबार
किसी की मृत्यु
अपहरण बलात्कार
चाय को
बेमज़ा होने पर
विवश करता है अखबार
घोंघे
हम
सज्जनता के खोल के बाहर
लिजलिजे दुष्कर्म
किये जाते हैं
जब कभी हुई
कुख्याति की सम्भावना
घोंघे की तरह
झट से
खोल में घुस जाते हैं
आम
आम आदमी
वास्तव में आम है
परिवार के सदस्य
काटकर खाना चाहते हैं
तो खट्टा लगता है
शोषक चूसकर खाते हैं
तो वही खट्टा आम
उन्हें मीठा लगता है
बरसात
मरूथल में
मेघ थे उनके आश्वासन
मेह न बरसा
प्राणी तरसा
आग अधिक उगलते हैं
अब रेत के टीले
प्रकृति
जीवन सरोवर में
घटनाओं के कंकड़
पड़ते रहते हैं
तभी तो मानसिकता के तरंग
अस्तित्व को
विचलित करते रहते हैं
द्वंद्व
विपक्ष सत्तापक्ष पर
कीचड़ उछालता है
सत्ता स्वयं के अस्तित्व को
जीवित रखने
विपक्ष पर दोष के रंग थोपती है
इसी द्वंद्व युद्ध में
रंग और कीचड़ में
भर जाता है आम आदमी
गलत
गलत दिशा निर्देशों से
अपने इतिहास को
हम बिगाड़ने की
कोशिश करते हैं
अैर अपना भूगोल
और अर्थशास्त्र
बिगाड़ बैठते हैं
इन्द्रधनुष
जीवन है एक बूँद
सावन की बौछार का
और किरणें सूर्य की
मानव अभावों के प्रतीक
पड़कर बूंदों पर किरणें
बनाती हैं
स्वप्निल आकांक्षायुक्त
किन्तु काल्पनिक इन्द्रधनुष
वैचारिक
हृदयानुभूतियों के
प्रकाश में
उड़ते हैं पतंगे
वैचारिक विद्रोह के
किन्तु विवशता से उत्पन्न
समझौते उन्हें
खा डालते हैं
छिपकली की तरह
निम्न स्तर
खगों से हीन है मानव
क्योंकि
मस्तिष्कयुक्त मानव
निम्नता की सीमा तक
गिरता है
इसीलिये शायद
पृथ्वी पर रहता है
किन्तु पक्षी जो
आकाश में विचरते हैं
मरने पर या
घायल होने पर ही
पृथ्वी पर गिरते हैं
कार्यक्षेत्र-
कविता, लघुकथा, कहानीयों, लेख,
व्यंग्य तथा समीक्षा सभी विधाओं निरंतर रचनाएँ प्रकाशित।
आकाशवाणीके रायपुर, अम्बिकापुर
एवं विशाखपटनम केंद्रों से कार्यक्रमों की प्रस्तुतिसंयोजन व प्रतिभागिता।
तेलुगु व अंग्रेजी कविताओं का हिन्दी अनुवाद विविधपत्र-पत्रिकाओं में
प्रकाशित। तेलुगु के विचारोत्तेजक लेखों का संकलन हिन्दीमें अनूदित एवं कश्मीर
गाथा के रूप में प्रकाशित। स्थानीय कवियों कीकाव्य-गोष्ठियों का आयोजन व
संचालन। अक्तूबर 2002
में साहित्य, संस्कृतिएवं
रंगमंच के प्रति प्रतिबद्ध संस्था सृजन का गठन एवं सचिव के रूप में निरंतरअनेक
साहित्यिक संगोष्ठियों का आयोजन किया ताकि इस अहिन्दी क्षेत्र केहिन्दी
साहित्य प्रेमियों को सशक्त साहित्यिक मंच मिले।
प्रकाशित
कृतियाँ-
जज्बात केअक्षर (गजल संग्रह), कविता के नाट्य-काव्यों में चरित्र-सृष्टि ( शोध प्रबंध), विकल्प की तलाश में (कविता संकलन),चुभते लम्हे (लघुकथा संग्रह) के साथ साथ तेलुगु के विचारोत्तेजक लेखोंका संकलन हिन्दी में अनूदित एवं कश्मीर गाथा के रूप में प्रकाशित।
संप्रति-
हिन्दुस्तानपेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, विशाख रिफाइनरी में उप प्रबंधक -राजभाषा केरुप में कार्यरत। |

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