विशाखापटनम की हिन्दी साहित्य, संस्कृति
एवं रंगमंच को समर्पित संस्था “सृजन” ने दिनांक 27नवंबर 2011 कोद्वारकानगर स्थित ग्रंथालय के प्रथम तल पर श्रीमति पारनंदी निर्मला की तीन अनूदित एवं एक
मौलिक पुस्तक का विमोचन तथा हिन्दी साहित्य
चर्चा का आयोजन किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता सृजन के अध्यक्ष नीरव कुमार वर्मा ने। मैंने स्वयं ने संचालन किया । स्वागत भाषण देते हुए
कार्यक्रम एवं सृजन संबंधी विवरण प्रस्तुत किया सृजन के संयुक्त सचिव डॉ.
संतोष अलेक्स ने।पुस्तकों का विमोचन
करते हुये नीरव कुमार वर्मा ने कहा की क्षेत्र की जानी मानी लेखिका के चार
पुस्तकों का एक साथ विमोचन सृजन के लिए और हिन्दी साहित्य के क्षेत्र के लिए एक
उपलब्धि है। उन्होंने पुस्तकों के विषय में विवरण देते हुये बताया की एक मौलिक
पुसता खुला आकाश में पारनंदी निर्मला जी की समस्त रचनाएँ हैं, जबकि तीन अन्य पुस्तकों में दो में
तेलुगू की चुनी हुयी और चर्चित कहानियों का अनुवाद है और एक पुस्तक में तेलुगू की
मानक लघुकथाओं का अनुवाद है।
श्रीमति पारनंदी निर्मला ने सृजन संस्था को धन्यवाद देते हुये कहा पिछले नौ
वर्षों से सृजन हिन्दी साहित्य को इस हिंदीतर नगर में पुष्पित पल्लवित करने में
पूरे मनोयोग से जुटी हुई है। दूसरी बार सृजन के तत्वावधान में पुस्तक विमोचन होना
मेरे लिए हर्ष का विषय है।
इसके बाद हिन्दी साहित्य चर्चा कार्यक्रम में सबसे पहलेश्रीमति पारनंदी निर्मला ने अपनी लघुकथा “थप्पड़” सुनाया जिसमें
बच्चों में झूठ न बोलने और बड़ों की झूठ का उन पर प्रभाव पर ताना बाना बुना गया था। श्रीमति सीमा वर्मा ने अन्ना हज़ारे के मौन को बिम्ब बनाकर कविता सुनाई –मौन शीर्षक से जिसमें मौन और उसके बाद के तूफान के
पहले के सन्नाटे का प्रतीकात्मक प्रस्तुति थी।
श्रीमती मीना गुप्ता ने पुराने संप्रदाय और
मानवीय मूल्यों को केंद्र में रख कर लिखा गया अपना “संस्मरण” सुनाया। डॉ एम
सूर्यकुमारी ने “कल का जवान” आज की अभाव्ग्र्स्त युवा पीढ़ी की व्यथा पेश की
जिसमें बढ़ती गरीबी,बेरोजगारी का जीवंत चित्रण था। श्रीमती सीमा शेखर ने दो कवितायें “कवि हृदय “और “आधुनिकता”शीर्षक से प्रस्तुत
की जिनमे जीवन के विविध पहलुओं को देखने वाली कवि की दृष्टि और आधुनिकता में लिपटे मनुष्यों में घटते मानव मूल्यों के
प्रति चिंता थी। “कविता” शीर्षक रचना में बी.एस. मूर्ति ने वर्तमान में मानव जीवन की विडंबना पर बिम्बात्मक रूप से
प्रस्तुत हुये। अपनी व्यंग्य शेरों और गीतलेकर प्रस्तुत हुए जी. अप्पाराव ‘राज’ जिसमें जीवन की अनेक विविधताओं का बखान था।
जी. ईश्वर वर्मा द्वारा“दो मिनट की मन की शांति” कविता में एकाकी होते मानवीय संबंध और उनमें लुप्त होती
प्यार की नमी से श्रोताओं को
झकझोरा। लक्ष्मी नारायण दोदका
ने “ ज़िंदगी और मौत” कविता में मनुष्य के
जन्म से मृत्यु तक चलते और पतित होते मानवीय मूल्यों का खुलासा किया।अशोक गुप्ताने अपनी कविता “शुक्रिया” में मानव के द्वारा
अलग अलग स्थितियों में अपने आभारी होने की स्थितियों का वर्णन प्रभावी ढंग से
किया। इसी क्रम में रामप्रसाद यादव ने “तुम्हें देखा ” कविता पढी जिसमें प्राकृतिक बिंबों, अनुभूतियों, संवेदनाओं के साथ साथ आज के कठोर समय
को प्रतीक बनाकर एक कविता चित्रा सा प्रस्तुत किया। एस वी आर नायुडु अपनी हास्य कविता “दमकी बात”में अच्छा हास्याओत्पादक वातावरण सृजित किया। मानवीय सम्बंधों में घटती आत्मीयता एवं बढते भौतिकवाद के बावजूद अपनी राह
हिम्मत के साथ चलते रहने की बात बताई श्रीमति भारती शर्मा ने अपनी कविता“हारना नही है” में। वर्तमान समाज, मानव-मूल्य, सम्बन्धों में एकाकीपन को अपनी कविता के माध्यम से प्रस्तुत
किया डॉ संतोष अलेक्स ने अपनी कविता
“ना जाने कबसे”में! वर्तमान भ्रष्टाचारी परिवेश में पतन और जुगाड़ की स्थितियों से भारी लघुकथा “इंद्रजाल” सुनाई डॉ टी महादेव राव ने!
इस कार्यक्रम में डॉ जीवी वी सत्यनारायणा , डॉ बी वेंकट राव, डॉ डी लक्ष्मण
राव ,सी एच ईश्वर राव आदि ने सक्रिय हिस्सा लिया। पढी गई प्रत्येक
रचना पर चर्चा हुई जिसे सभी ने सराहा। सभी का मत था कि इस तरह के कार्यक्रमों से
लिखने के लिए प्रोत्साहन एवं प्रेरणा मिलती है। डॉ. सन्तोष अलेक्स के धन्यवाद
ज्ञापन के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।
सचिव – सृजन,09394290204, mahadevraot@hpcl.co.in
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प्रकाशित कृतियाँ-जज्बात केअक्षर (गजल संग्रह), कविता के नाट्य-काव्यों में चरित्र-सृष्टि ( शोध प्रबंध), विकल्प की तलाश में (कविता संकलन),चुभते लम्हे (लघुकथा संग्रह) के साथ साथ तेलुगु के विचारोत्तेजक लेखोंका संकलन हिन्दी में अनूदित एवं कश्मीर गाथा के रूप में प्रकाशित।
संप्रति- हिन्दुस्तानपेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, विशाख रिफाइनरी में उप प्रबंधक -राजभाषा केरुप में कार्यरत। |

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