हरित क्रान्ति की तकनीक भारत सहित दक्षिणी एशिया के देशों के अनुकुल नहीं है। भारत में कृषि विकास तथा मिट्टी के उपजाऊ पन को बरकरार रखने की कई प्राचीन विधियां है। जिन्हें सजीव करने की जरूरत है। उक्त विचार ख्यात नाम वैज्ञानिक एवं ओरगेनिक कृषि के हितेषी डा. जी.एन. रेड्डी ने डा. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्ट एवं प्रयत्न समिति द्वारा आयोजित ‘‘प्राकृतिक एवं जैविक कृषि’’ विषयक संवाद में व्यक्ति किये। डा. रेड्डी ने कहा कि कृषि उत्पादन बढ़ाने के क्षेत्र में दक्षिणी एशिया का अपना दर्शन होना चाहिये। भारत जैसे देश में परम्परागत कृषि विधियों की देशी तकनीक विकसित किये बिना सतत् उत्पादन बढ़ाना मुश्किल होगा।
सभा की अध्यक्षता करते हुए एडवोकेट मन्नाराम डांगी ने कहा कि खेती मात्र व्यवसाय नहीं वरन् आजीविका है। रासायनिक खादों के इस्तेमाल तथा मोनसेन्टो बीजों के प्रयोग से कृषि उत्पादन बढ़ाने के बजाय कृषि भूमि बर्बाद हो गयी है। कृषि विशेषज्ञ डा. शैलेन्द्र तिवारी ने दक्षिणी राजस्थान में बढ़ते बी.टी. कपास के क्षेत्र पर चिन्ता व्यक्त करते हुए इसे भविष्य के लिये आत्मघाती बतलाया। पूर्व मत्स्य पालन निदेशक ईस्माल दूर्गा ने मत्स्य पालन में बढते रसायनों के उपयोग पर चिंता व्यक्त की। पूर्व पार्षद अब्दूल अजीज खान ने फलों, सब्जीयों में बढते रासायनिकों पर गंभीर आपती दर्ज करवाई। आस्था के भवंर सिंह चदाणा ने सरकार की कृषि नितियों में बदलाव की जरूरत बताई। ट्रस्ट सचिव नंदकिशोर शर्मा ने कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिये विभिन्न रसायनों के प्रकोप पर चिंता व्यक्त करते हुऐ प्राकृत, जैविक कृषि विद्या पर शोध की जरूरत बतलाई। प्रयन्त संस्था के निदेशक मोहन डांगी ने कहा कि ओरगेनिक कृषि ही भारतीय कृषि को दिशा दे सकती है। संवाद में वरिष्ठ नागरिक मंच के एस.एल. तम्बोली, जागरण के गुडहरी वर्मा, खजूरी विकास संस्था के बंशीलाल गर्ग, आस्था के राघवदत्त व्यास, एस.पी. डब्लू, डी.के. डा. जगदीश ने भाग लिया। स्वागत एवं धन्यवाद नीतेश सिंह ने ज्ञापित किया।
this report is useless as it did not contain the main arguments of the speakers
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