'गीतांजलि' को अपने अध्ययन-क्रम में शामिल करने और
उसके अनुवाद की ललक आज भी बनी हुई है। हिंदी के ख्यात कला-समीक्षक प्रयाग शुक्ल का
कहना है कि 'गीतांजलि' जैसी क्लासिक कृति का अनुवाद हर पीढ़ी को
अपनी तरह से करना चाहिए।भारतीय भाषाओं में 'गीतांजलि' के अनुवादों का सिलसिला उस पर नोबेल प्राइज मिलने के बाद से ही
शुरू हो गया था। कितने बड़े आश्चर्य की बात है कि गीतांजलि का सबसे पहला अनुवाद
स्वयं रवींद्रनाथ ने किया था। हालांकि वे अपने इस अनुवाद से संतुष्ट नहीं थे।
उन्होंने लिखा था बांग्ला 'गीतांजलि'
के मूल भावों की अंग्रेजी में अनुवृत्ति
संभव नहीं है। अनुवाद करते समय बहुत से भाव गायब हो जाते हैं। अनुवाद एक ऐसी चादर
है जिससे पैर ढको तो सिर खुला रहता है और सिर ढको तो पैर।
हिंदी में 'गीतांजलि' के अनुवाद की लंबी परंपरा है। इन अनुवादों पर पहला अध्ययन
शांति निकेतन की डॉ. शकुंतला मिश्र ने किया। दरअसल उनके शोध का विषय रवींद्रनाथ के
हिंदी में हुए सारे अनुवादों का सूचीबद्ध अध्ययन करना था। जैसे उपन्यासों, कहानियों, नाटकों, कविताओं,
निबंधों और उनकी ‘गीतांजलि’
का। डॉ. शकुंतला को ‘गीतांजलि’ के 20 में से सिर्फ 10
हिंदी अनुवाद मिल सके थे। फिर उनके विश्लेषण की दिशा डॉ. देवेश के अध्ययन से भिन्न
है। डॉ. देवेश का लक्ष्य सिर्फ ‘गीतांजलि’ के हिंदी अनुवादों का क्रम से
तुलनात्मक अध्ययन करना था। उन्होंने तमाम पुस्तकालयों को खंगालकर ‘गीतांजलि’ के 38
हिंदी अनुवाद प्राप्त किए। ये अनुवाद देवनागरी लिप्यंतरण के साथ गद्य और पद्य
दोनों में थे। डॉ. देवेश ने पहली बार यह भी सूचित किया कि कितने हिंदी अनुवाद मूल बाङ्ला ‘गीतांजलि’ से किए गए हैं और कितने रवींद्रनाथ कृत अंग्रेजी ‘गीतांजलि’ के अनुवाद से।उनका अध्ययन 8 परिच्छेदों में विभक्त है। पहला अध्याय
है ‘गीतांजलि : अध्ययन की पृष्ठभूमि’,
दूसरा है ‘कवि कृत बाङ्ला और अंग्रेजीी गीतांजलि’, तीसरा है ‘गीतांजलि
के हिंदी अनुवाद’, चौथा है ‘गीतांजलि के गद्यानुवादों की तुलना’,
पांचवां है ‘गीतांजलि के पद्यानुवादों की तुलना’, छठा ‘नवीन
प्रस्थान’, सातवां ‘आधार ग्रंथ’ और आठवां ‘अनुवादक
परिचय परिशिष्ट’।
डॉ. देवेन्द्र कुमार देवेश
साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली
मो. 09868456153
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रवींद्रनाथ ठाकुर की ‘गीतांजलि’ के हिंदी अनुवादों पर डॉ. देवेश की यह कृति अत्यंत गंभीर और
तथ्यों की दृष्टि से प्रामाणिक है। मेरा मत है कि जब-जब ‘गीतांजलि’
के हिंदी अनुवादों पर हुए विमर्शों को कोई पढ़ना चाहेगा तब-तब उसे इसी कृति को पढ़ना
पड़ेगा। यह कृति कालांतर में एक संदर्भ ग्रंथ के साथ एक शोध कृति के रूप में समादृत
होगी। हिंदी में ऐसे बहुत कम शोध कार्य हुए हैं जिन्होंने शोध प्रबंध की सीमा से
परे जाकर एक मौलिक कृति का रूप धारण कर लिया हो। डॉ. देवेश का यह अनुशीलन इसी तरह
की कृति है।
अपने तथ्यपूर्ण विवचन
में उन्होंने इस भ्रम का निवारण किया है कि ‘गीतांजलि’
का अंग्रेजी अनुवाद रवींद्रनाथ ने नहीं विलियम वटलर येट्स अथवा सी.एफ. एंड्रूज ने
किया था। इस तरह के विवादों को डॉ. देवेश ने रवींद्रनाथ और जगदीशचंद्र बसु,
रोथेंस्टाइन आदि को लिखे उनके पत्रों का
हवाला देकर दूर किया है। यह विवेचन अत्यंत रोचक और तथ्यों से पूर्ण है। यह भ्रम
किस तरह से हिंदी लेखकों के बीच भी फैला हुआ था डॉ. देवेश ने उसे भी सोदाहरण अपने
विवेचन का विषय बनाया है। जैसे, ‘सारिका’ के अक्टूबर 1982 ई. में प्रकाशित ‘नोबेल
पुरस्कार विजेता कथाकार विशेषांक’ में
वीर राजा द्वारा आयोजित एक परिचर्चा में हिंदी के प्रतिष्ठित कथाकार अमृतलाल नागर
ने कहा, ‘’वह बाहर गए, धनी व्यक्ति थे, येट्स
से मित्रता थी, मिले वह प्रभावित
हुआ। उसने अंग्रेजी में अनुवाद किया।‘’
डॉ. देवेश ने एक
उदाहरण और दिया है जो ‘गीतांजलि’ के अंग्रेजी अनुवाद के बारे में फैले
भ्रम और अज्ञान को रेखांकित करता है : ‘’अभी
हाल ही में गीतांजलि की प्रकाशन शती का उल्लेख करते हुए हिंदी की एक प्रतिष्ठित
पत्रिका के संपादक ने अपने संपादकीय में लिखा है, ‘गीतांजलि को विश्वव्यापी ख्याति टैगोर को नोबेल पुरस्कार
प्राप्त होने के उपरांत मिली, जब
उसका अनुवाद ‘सांग ऑफरिंग्स’
नाम से हुआ। कुछ अनुवाद टैगोर ने स्वयं
किए और येट्स तथा कई अन्य विद्वानों ने किए।‘’ (त्रिलोकी नाथ चतुर्वेदी, साहित्य अमृत, सितंबर 2010, पृ.
6)।
डॉ. देवेश ने रवींद्रनाथ
ठाकुर द्वारा इंदिरा देवी चौधुरानी, अपनी
भतीजी को लिखे एक पत्र (6
मई, 1913 ई.) द्वारा इस भ्रम
का निराकरण किया है। इसी तरह उन्होंने रवींद्रनाथ के एक पत्रांश का उदाहरण देते
हुए कहा है कि अनुवाद में एंड्रूज द्वारा मिली सहायता बहुत बड़ा झूठ है। 4 अप्रैल, 1915 ई. को रोथेन्स्टाइन को लिखे अपने पत्र में रवींद्रनाथ ने
स्पष्ट रूप से लिखा है : ‘’कुछ
लोग यह संदेह करते हैं कि मैंने अपनी साहित्यिक सफलता के लिए एंड्रूज की भारी
सहायता प्राप्त की है, यह
इतना बड़ा झूठ है कि मैं इसका उपहास ही उड़ा सकता हूं। (डॉ. देवेश द्वारा अपने ग्रंथ
में पृष्ठ 29 पर उद्धृत)।
डॉ. देवेश ने इस भ्रम
के निराकरण के लिए शशि प्रकाश चौधरी के लघु शोधप्रबंध ‘गीतांजलि के हिंदी अनुवादों का अध्ययन’ तथा श्यामल कुमार सरकार द्वारा इस संदर्भ में ‘विश्वभारती क्वार्टरली’ में लिखे अंग्रेजी लेख का हवाला देकर
इस पर गंभीरता से विचार किया है और यह सिद्ध किया है कि अंग्रेजी ‘गीतांजलि’ रवींद्रनाथ द्वारा ही अनूदित है। इस अनुवाद को मूल कृति का
दर्जा इसलिए दिया गया है क्योंकि उन्होंने इस अनुवाद में पर्याप्त स्वतंत्रता से
काम लिया है।इस पुस्तक पर प्रो.
इंद्रनाथ चौधुरी की टिप्पणी विशेष रूप से उल्लेखनीय है : ‘’डॉ. देवेंद्र कुमार देवेश की शोध-आलोचनात्मक पुस्तक ‘गीतांजलि के हिंदी अनुवाद’ हिंदी शोध क्षेत्र की एक अनूठी कृति है।‘’ (भूमिका, पृ. 7)।
भाषा, भाव, लय, गति,
प्रवाह, शब्द-चयन, प्रतीक,
बिंब आदि दृष्टियों से ‘गीतांजलि’ के हिंदी अनुवादों का जब भी तुलनात्मक अध्ययन किया जाएगा
तब-तब डॉ. देवेश की पुस्तक को ही प्रस्थान-बिंदु मानना पड़ेगा।इस अध्ययन से
रवींद्रनाथ की कहानियों, उपन्यासों,
नाटकों, निबंधों के हिंदी अनुवादों का भी अलग-अलग दृष्टियों से
तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है। इस दृष्टि से शरत् के भी उपन्यासों के हिंदी
अनुवादों को शोध के लिए चुना जा सकता है।इस प्रकार डॉ. देवेश
की यह कृति अन्य शोधकार्यों की भी प्रेरक बिंदु बन सकती है।
गीतांजलि के हिंदी अनुवाद, ले. डॉ. देवेंद्र कुमार देवेश, प्र. विजया बुक्स, दिल्ली, पृ.
220, मूल्यः 295 रुपए, संस्करणः
प्रथम 2011
बहुत-बहुत आभारी हूँ माणिक जी।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत बधाई देवेश जी....
जवाब देंहटाएंदेवेंद्र जी को प्रणाम, आपकी सामान्य स्वाभाविकता से इस बात का आभास हो जाता है कि आपका अनुवाद स्वाभाविक ही होगा । हाँलाकि अनुवाद को दोयम दर्जा का कार्य माना जाता है परंतु आपने नोबल प्रतिष्ठित गीतांजली जैसे महाकाव्य के अनुवाद का दुरूह कार्य कर हम जैसे छोटे अनुवादक जो सरकार की राजभाषा नीति तक फँसे रह जाते है उनके लिए मिशाल दी है । आपको साधुवाद । आपके इस पुस्तक को जल्द पढ़ने की कोशिश करूँगा ।
जवाब देंहटाएंरविशंकर जी, मेरी संदर्भित पुस्तक 'गीतांजलि' के समस्त हिन्दी अनुवादों का तुलनात्मक अध्ययन है। वैसे मैंने स्वयं भी इसका अनुवाद किया है, जिसे http://hindigitanjali.blogspot.com/ पर पढ़ा जा सकता है।
जवाब देंहटाएंhttp://hindigitanjali.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंDevesh,to publish criticism on his book 'GEETANJALI KE ANUVAAD' I am greatful to you.Thank you.
जवाब देंहटाएंइसकी पीडीएफ हैं ??
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