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पत्रिका: रंगवार्ता
संपादक: अश्विनी कुमार पंकज
अंक: एक,नवंबर-जनवरी २०१२
(त्रैमासिक)
मूल्य: रु.30/-
संपर्क: आधार अल्टरनेटिव मीडिया,
203, एमजी टावर, 23,
पूर्वी जेल रोड, रांची
834001, झारखण्ड
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रंगमंच की अपनी
दुनिया होती
है। सामाजिक,
ऐतिहासिक, सांस्कृतिक सहित हर मानवीय
पहलूओं की
अभिव्यक्ति को अभिनेता, अपने भाव-भंगिमा से
रंगमंच पर
जीवंत बनाने
की पुरजोर
कोशिश करता
है। रंगमंच
एक ऐसा
मंच होता
है, जहां
सच्चाई को
रेखाकिंत किया
जाता है।
रंगमंच की
दुनिया से
रू-ब-रू, रंग
थियेटर के
अंदर बैठे
लोग होते
हैं। वहीं रंगमंच
की दुनिया,
की गतिविधियों
को देश
-दुनिया से
जोड़ने का
काम मीडिया
के कंधों
पर आता
हैं। पत्र-पत्रिकाओं, टी.
वी. चैनलों
एवं रेडियो
पर रिपोर्ट-खबर के
माध्यम से
व्यापक पैमाने
पर लोगों
के सामने
आता है।
रंगमंच की दुनिया
से यों
तो कई
पत्र-पत्रिकाएं
देश भर
में प्रकाशित
हो रही
हैं। ऐसे
में झारखंड
से रंगमंच
और विविध
कला रूपों
की त्रैमासिक
पत्रिका “रंगवार्ता”
संपादक अश्विनी
कुमार ‘पकंज‘
और सह-संपादक अभिषेक
‘नंदन‘ के
नेतृत्व में
आयी हैं।
पत्रिका अपने
गेट-अप,
सेट-अप
और विषय-वस्तु को
लेकर चर्चें
में है।
“रंगवार्ता” का यह पहला अंक
नवम्बर-जनवरी,
2012, ‘‘ रंगमंच पर स्त्री छवियाँ ’’ पर
केन्द्रित हैं। हालांकि,” रंगवार्ता“
का पहला अंक इसके पूर्व
आया था,
लेकिन इस
बार आर.
एन. आई.
मिलने के
बाद इसे
पहला अंक
करार दिया
गया है।
रंगमंचीय गतिविधि
को यह
अपने पूरे
तेवर के
साथ लेकर
आया है।
“रंगवार्ता” की शुरूआत
चर्चित रंगकर्मी
गुरूशरण सिंह
पर रंग-नेपथ्य में
राजेश चन्द्र
ने ‘लहू
है कि
तब भी
गाता है….’,
में स्वर्गीय
गुरूशरण सिंह
की व्यक्तित्व,
कृत्तिव और
उनके रंगमंची
यात्रा पर
प्रकाश डाला
है। रंग-शख्स्यित ने
विनोदनी दासी
की आत्मकथा
अमार कथा
का संपादित
अंश प्रकाशित
किया गया
है। बीस
हजार बाद
रंगमंच पर
अपनी प्रतिभा
की छाप
छोड़ने वाली
पद्मश्री गुलाब
बाई की
कहानी को
निराला जी
ने रेखाकिंत
किया है।
रंगवात्र्ता के रंगमंच पर स्त्री
अंक में
बाल गंधर्व,
जयशंकर सुन्दरी,
चपल भादुड़ी,
मास्टर फिदा
हुसैन नरसी
जैसी कई
विख्यात महिला
रंगकर्मियों को पत्रिका में प्रमुखता
से जगह
दी गयी
है। अभिषेक
नंदन ने
भारतीय रंगमंच
पर महत्वपूर्ण
स्त्री हस्ताक्षरों
का संक्षिप्त
परिचय कराया
है। जिनमें
प्रमुख हैं-
अमाल अल्लाना,
अंजला महर्षी,
कपिला मलिक
वात्स्यायन, अनामिका हक्सर, उषा बैनर्जी,
अमला राय,
उषा सहाय
कपूर, डा0
गिरीश
रस्तोगी, कुदसिया जैदी, उषा गांगुली,
चेतना जालान,
शबीना मेहता
जेटली, कुसुम
कुमार, शीला
भाटिया, अनुराधा
कपूर, उर्षा
वर्मा, कुसुम
हैदर, कमला
देवी चट्टोपाध्याय,
रेखा जैन,
अरूधंति नाग,
तोइजोम शीला
देवी सहित
कई चर्चित
महिला नाटककारों
को अपने
आलेख में
जगह देते
हुए रंगमंच
पर महिलाओं
की अहम्
भूमिका को
ईमानदारी से
रेखाकिंत किया
है।
वहीं
कु.सत्यवती
ने ‘रंगमंच
पर स्त्रियों
का स्थान’
आलेख में
महिलाओं के
रंगमंच से
जुड़ने के
दौरान सामाजिक
सहित अन्य
कारणों पर
प्रकाश डाला
है। हेलेना
मोडेजेस्का का ऐतिहासिक वक्तव्य ‘द
वल्र्ड कांग्रेस
आॅफ रिपे्रजेन्टेशन
वूमेन (1894) में संकलित आलेख स्त्री
और रंगमंच
का
रिश्ता को “रंगवार्ता” ने प्रकाशित कर
सराहनीय कार्य
किया है।
हेलेना ने
बताने की
कोशिश की
है कि
स्त्री और
रंगमंच का
रिश्ता कम-से-कम
दसवीं शताब्दी
के मध्य
तक जाता
है। आलेख
मे उस
दौऱ की
महिला नाटककारों
की चर्चा
की गयी
है। अरविन्द
अविनाश अपने
आलेख ‘ पश्चिम
रंगमंच पर
स्त्री आगमन’
में बताने
की कोशिश
की है
कि विश्व
के हर
हिस्सें में
रंगमंच पर
आने के
लिए स्त्रियां
प्रतिबंधित रही हैं। अमितेष ने
‘युद्ध से
युद्धरत स्त्री
रंगमंच’ में
पाकिस्तान की चर्चित निर्देशिका सीमा
किरमानी और
असम की
पद्मश्री सावित्री
हेइसमैन के
रंगमंचीय भूमिका
को पाठकों
के समक्ष
रखा है।
‘‘ रंगवार्ता ’’ के इस
अंक में
कई साक्षात्कार
हैं। अभिषेक
नंदन ने
पटना की
रंगकर्मी ‘मोना झा‘ से विस्तार
से बातचीत
की है
तो वहीं
अफगानिस्तानी रंकर्मी मुनीरे हाशिमी से
पाणिनी आनन्द
की बातचीत
भी रोचक
है। कृपा
शंकर चैबे
ने बंगला
रंगमंच की
बहुचर्चित वरिष्ठ अभिनेत्री केतकी दत्त
से बंगला
रंगमंच को
लेकर लम्बी
बाचीत की
है। अन्य
आलेखों में
जयदेव तनेजा
का आलेख
‘हिन्दी नाटकों
में स्त्री’
है, किन्नरी
बोहरा – रंगमंच
पर एक
स्त्री नजरिया,
अनिता सिंह-स्त्री थिएटर
का सौन्दर्यबोध,
माया पंडित-राजनीतिक का
स्त्रीकरण: जी. पी. देशपांडेय के
नाटक, अश्विनी
कुमार पंकज-जेन्डर, कास्ट
और कम्युनिटी
के वर्चस्व
से जूझती
36 ग्राम की
स्त्री ‘नौटंकी
, आशा शर्मा-
रंगमंच पर
अदिति की
दस्तक और
अभिषेक कृष्ण
– ‘गुरिल्ला स्त्रियों का छापामार थिएटर’
पठनीय तो
है ही,
साथ ही
रंगमंच के
क्षेत्र में
शोध करने
वालों के
लिए संदर्भ
साम्रगी के
तौर पर
भी है।
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