कल की शाम
एक यादगार
शाम थी.
अवसर था
जवाहर लाल
नेहरू विश्वविद्यालय
में 'कविता
पाठ' का.
आशा के
बाद भी
मैं चकित
था कि
कार्यक्रम इतना अधिक सफल रहा.अगर आदित्य
दुबे के
शब्दों में
कहूँ तो
‘आशा से
भी बहुत
बढ़कर सफल.’
और इस
सफलता का
श्रेय जाता
है कवियों
और श्रोताओं
को. कवियों
ने जितने
मन से
पढ़ा, श्रोताओं
ने उतने
ही चाव
से सुना.
दोनों के
बीच एक
ऐसा रिश्ता
बन चुका
था जिसे
तोड़ना एक
पाप जैसा
लग रहा
था. इस
कार्यक्रम की एक और विशेषता
यह रही
कि कवियों
ने न
केवल अपनी
रचनाएँ बहुत
मन से
सुनाई, अपितु
दूसरे कवियों
की रचनाएँ
भी उतने
ही शौक़
से व
उनका उत्साह
बढ़ाते हुए
सुनी. यह
सब इतना
अच्छा था
कि जानेमाने कवि मंगलेश डबराल की कमी
नहीं खलने
पायी. मंगलेश
जी केरल
से अपनी
फ्लाईट लेट
हो जाने
के कारण
कार्यक्रम में नहीं पहुँच सके.
मेरे एक
निवेदन पर
इस कार्यक्रम
में कविता-पाठ हेतु
पहुँचे अनामिका
जी, गोबिन्द
प्रसाद जी, मिथिलेश श्रीवास्तव जी ,लीना मल्होत्रा जी,श्रीकांत सक्सेना जी,मुकेश मानस जी औरअजय अज्ञात जी का मैं
ह्रदय से
आभारी हूँ.
कार्यक्रम की शुरुआत
अजय अज्ञात
जी ने
की और
एक शुद्ध
साहित्यिक मंच को अपनी गज़लों
के माध्यम
से एक
कवि सम्मेलनीय
रूप दिया.
श्रोताओं को
यह खूब
पसंद आया
और उन्होंने
देर तक
तालियाँ बजायीं.
अजय जी
ने उसके
बाद 'माँ'
शीर्षक से
एक कविता
सुनाई जो
बेहद पसंद
की गयी.
'माँ' पर
जब मैं
कुछ पढ़ता
या सुनता
हूँ तो
मुझे मनुवर
साहब और
कविता जी
याद आ
जाते हैं
और यह
स्वाभाविक भी है परंतु अजय
जी की
इस कविता
को सुनकर
मुझे कविता
जी की
'माँ' शीर्षक
कविता ही
याद आई
और मैंने
इसका उल्लेख
भी किया.
मैं चाहूँगा
कि अजय
जी और
कविता जी
आपस में
अपनी कविताएँ
शेयर करें
और देखें
कि दोनों
ने ही
माँ पर
कितने अच्छे
ढ़ंग से
लिखा है.
अजय अज्ञात
के बाद
मुकेश मानस
ने अपनी
रचनाओं से
श्रोताओं को
रूबरू कराया.
दलित विषयक
कविताएँ और
हिंदी के
नामवर आलोचक
पर पढ़ी
गयी उनकी
कविता बहुत
पसंद की
गयी. श्रीकांत
सक्सेना जी
ने अपनी
हिंदी गज़ल
से शुरुआत
की और
कई कविताओं
का पाठ
किया और
श्रोताओं का
पूरा सम्मान
पाया.
लीना मल्होत्रा राव
ने अपनी
कविताओं के
माध्यम से
सभी को
इतना प्रभावित
किया कि
जब वे
माइक के
सामने से
हट गयीं
तो श्रोताओं
की इच्छा
को ध्यान
में रख
कर मुझे
उनसे निवेदन
करना पड़ा
कि 'अभी
न जाओ
छोड़ कर
कि दिल
अभी भरा
नहीं.' उन्होंने
'प्यार में
धोखा खायी
हुई लड़की'
से आरंभ
कर 'चाँद
पर निर्वासन'
तक कई
बेहद सुंदर
रचनाओं को
श्रोताओं के
सामने रखा.
मिथिलेश श्रीवास्तव
जी ने
अपनी रोचक
शैली में
एक के
बाद एक
कई रचनाएँ
प्रस्तुत कीं.
उनके कविता
पाठ का
ढ़ंग इतना
रोचक था
कि श्रोता
बस उससे
बंध से
गए थे.
गोबिन्द प्रसाद
जी ने
जिस तरह
से डूब
कर और
रस ले
लेकर कविता
पाठ किया
वह बहुत
कम देखने
को मिलता
है. उन्होंने
एक के
बाद एक
कई रचनाओं
का पाठ
किया फिर
भी श्रोता
मानने को
तैयार नहीं
थे और,
और रचनाएँ
सुनना चाहते
थे. गोबिन्द
जी ने
कहा कि
वे एक
तरह से
मेज़बान की
हैसियत से
हैं और
इसलिए चाहते
हैं कि
मेहमान कवियों
को अधिक
सुना जाए.
यूँ तो
तालियाँ हर
सुंदर और
अच्छी रचना
और हर
कवि के
लिए बज
रही थीं
किंतु गोबिन्द
प्रसाद जी
के बाद
जैसे ही
संचालक ने
अनामिका जी
को कविता
पाठ के
लिए आमंत्रित
किया, पूरा
हाल तालियों
से गूँज
उठा. अनामिका
जी ने
एक के
बाद कई
रचनाओं का
पाठ किया.
रचनाएँ सुनकर
श्रोता अभिभूत
होते रहे
और श्रोताओं
की प्रतिक्रिया
से अनामिका
जी. बाद
में उन्होंने
मुझसे कहा
भी कि
इतने अच्छे
श्रोता बहुत
मुश्किल से
मिलते हैं.
मेरे निवेदन
पर उन्होंने
अपनी ‘जुएँ’
कविता भी
सुनाई जो
कि श्रोताओं
के बेहद
बेहद पसंद
आयीं.
अंत में, मेरे
आग्रह पर
जे.एन.यू. के
भारतीय भाषा
केंद्र में
अध्यापक, उर्दू
व उर्दू
मीडिया के
जाने-पहचाने
नाम व
मेरे बड़े
भाई Dr.Shafi Ayub ने जिस
तरह से
आगंतुकों का
धन्यवाद ज्ञापन
किया वह
भी एक
सुंदर कविता
से कम
नहीं था.
सच में
यह उन्हीं
के प्रयास
का नतीजा
था कि
यह आयोजन
सफलतापूर्वक सम्पन्न हो पाया.
श्रोताओं में, मेरे
एक निमंत्रण
पर दूर-दूर से
केवल कविता
सुनने के
लिए आये
अपने मित्रों
को देखकर
मन इस
आश्वस्ति से
भर गया
कि कविता
सचमुच एक
बहुत महत्वपूर्ण
वस्तु है
और कविता
और कविता
का महत्व
दोनों ही
सदैव बने
रहेंगे. इन
मित्रों में आदित्य,श्रुति शर्मा,ग्रेगोरी गुल्डिंग,विपुल शर्मा,सुबोध आदि प्रमुख
थे. कार्यदिवस
और दोपहर
का समय
होने के
कारण कुछ
मित्र चाहकर
भी नहीं
पहुँच सकें
जैसे प्रभात रंजन,प्रमोद तिवारी आदि.आशुतोष ने
स्वयं इसी
दिन और
इसी समय
डी.यू.
के हिंदी
विभाग में
अशोक वाजपेयी
जी का
कविता पाठ
आयोजित करवा
रखा था,
अतः वे भी
नहीं आ
सके.प्रो.सत्यमित्र दुबे जे अस्वस्थ होने
के कारण
नहीं आ
सकें. आशा
करता हूँ
कि वे
अब स्वस्थ
होंगे. जयपुर
में हो
रहे ‘साहित्य
उत्सव’ में
चले जाने
के कारण
सुमन केसरी जी,सत्यानानद निरुपम भी नहीं आ
सके. विपिन चौधरी जी को
किसी आवश्यक
कार्यवश अपने
गृहनगर जाना
पड़ गया. अंजू शर्मा जी अपनी बेटी की तबियत
खराब हो
जाने के
कारण नहीं
आ पायीं.
अगर ये
सारे लोग
भी आ
जाते तो
खचाखच भरे
हाल में
बहुत सारे
लोगों को
शायद जगह
भी नहीं
मिल पाती.
कार्यक्रम का संचालन इस अकिंचन
ने किया
और मित्रों
ने कहा
कि अच्छा
संचालन किया
तो मैंने
मान लिया
कि ठीक-ठाक हो
गया होगा.
बहुत बहुत शुक्रिया इस रिपोर्ट को प्रकाशित करने के लिए.
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