(काशीनाथ सिंह जैसे कथाकार और उपन्यासकार से मिलने पर उनके सहज व्यक्तित्व का आभास हो जाता है.हमें उनके चित्तौड़ प्रवास का अभी भी ठीक-ठाक अंदाजा है.शायद मैं नहीं भुला हूँ हो तो इसी अंश का पाठ उन्होंने यहाँ किया था. उनके बतियाने का अंदाज़ बड़ा पसंद आया.हम सभी को उनके इसी उपन्यास बनी फिल्म का इंतज़ार है.-माणिक )
काशीनाथ सिंह का
रचना पाठ
दिल्ली
नरभक्षी राजा
चाहे कितना
भयानक हो
दुर्वध्य नहीं
है,उसका
वध संभव
है। चर्चित
उपन्यास 'काशी
का अस्सी'
के एक
अंश को
सुनाते हुए
साहित्य अकादमी
से सम्मानित
हुए हिन्दी
कथाकार काशीनाथ
सिंह ने
कहा कि
अपना अलग
रास्ता बनाना
सार्थक रचनाशीलता
की पहचान
है. गुरु
गोबिंद सिंह
इन्द्रप्रस्थ विश्विद्यालय के अंग्रेजी विभाग
के युवा
विद्यार्थियों को अपनी रचना प्रक्रिया
से सम्बंधित
रोचक तथ्यों
को बताते
हुए उन्होंने
कहा कि
यदि मेरे
लेखन में
पाठक को
कुछ नया
और मौलिक
नहीं मिलता
तो भला
उसे कोई
क्यों पढेगा?सिंह ने
कहा कि
युवा विद्यार्थियों
को कहा
कि वे
अपने लिए
जो काम
पसंद करें
उसे सर्वोत्तम
ऊर्जा और
निष्ठा के
साथ पूरा
करें तो
उन्हें आगे
जाने से
कोई नहीं
रोक सकता.
उन्होंने इस
अवसर पर
महान शायर
फैज़ अहमद
फैज़ से
अपनी मुलाकातों
को याद
करते हुए
अनेक संस्मरण
भी सुनाये.
इससे पहले विश्वविद्यालय
के कुल
सचिव डॉ.बी.पी.जोशी ने
सिंह का
स्वागत करते
हुए कहा
कि अकादमिक
संस्थानों की जिम्मेदारी है कि
वे अपने
समय के
प्रतिनधि रचनाकारों-चिंतकों से
युवा विद्यार्थियों
को साक्षात
संवाद के
अवसर प्रदान
करें. उन्होंने
कहा कि
'लेखक से
मिलिए' श्रृंखला
का यह
आयोजन ऐसे
अवसर पर
हो रहा
है जब
साहित्य अकादमी
से सम्मानित
होकर काशीनाथ
जी हमारे
बीच आये
हैं.
आयोजन में युवा
आलोचक और
हिन्दू कालेज
के सहा.
आचार्य डॉ.
पल्लव ने
काशीनाथ सिंह
के सृजन
कर्म की
विशेषताओं को रेखांकित करते हुए
कहा कि
विचारधारा से जुड़े लेखकों पर
आरोप लगता
है कि
वे बहुधा
प्रयोगशील नहीं हो पाते,लेकिन
काशीनाथ सिंह
का लेखन
इस बात
का उअदाहरण
है कि
एक लेखक
किस तरह
लगातार अपना
विकास कर
सहित्य को
श्रेष्ठ देता
है. उन्होंने
कहा कि
कथ्य के
साथ साथ
शिल्प में
भी काशीनाथ
सिंह ने
लगातार नए
और पाठकधर्मी
प्रयोग किये
हैं. अधिष्ठाता
प्रो. अनूप
बैनिवाल ने
इस अवसर
पर कहा
कि मनुष्य
में
सीखने की प्रक्रिया निरंतर चलती
है और
सृजनधर्मियों से संवाद सरीखे आयोजन
इस प्रक्रिया
को अधिक
गतिशील बनाते
हैं.
आयोजन की शुरुआत
में फैज़,मखदूम और
पाब्लो नेरूदा
की नज्मों-कविताओं की
प्रस्तुति दी गई. विश्वविद्यालय के
छात्र-छात्राओं
द्वारा एक
कार्यशाला में बनाए चित्रों को
काशीनाथ सिंह
द्वारा वितरित
किया गया.साथ ही
फैज़ अहमद
फैज़ के
जन्म शताब्दी
वर्ष में
आयोजित संगोष्ठी
में भागीदारी
करने वाले
विद्यार्थियों को सिंह ने फैज़
की प्रतिनिधि
शायरी की
पुस्तक भी
भेंट की.
पुस्तक वितरण
राजकमल प्रकाशन
द्वारा प्रायोजित
किया गया
था. विभाग
की ओर
से डॉ.विवेक सचदेव
ने काशीनाथ
सिंह का
अभिनन्दन और
स्वागत अंगवस्त्रम
अर्पित कर
किया,कुल
सचिव डॉ.जोशी ने
विनायक प्रतिमा
भेंट की.
आयोजन में मैं स्वयं,डॉ.चेतना तिवारी,डॉ.शुचि
शर्मा, डॉ.नरेश वत्स
सहित बड़ी
संख्या में
विद्यार्थी भी उपस्थित थे.
डॉ.आशुतोष मोहन
सह आचार्य,
स्कूल आफ ह्यूमेनिटीज एंड सोशल साइन्सेज़ |
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