बिहार प्रगतिशील लेखक संघ का दो दिवसीय 14वाँ राज्य सम्मेलन
बांये से तीसरे- डा. पूनम सिंह, राजेन्द्र राजन, डा. व्रजकुमार पाण्डेय,डा. अली जावेद, विनीत तिवारी और अमिताभ चक्रवर्ती |
- - साहित्य की मुख्यधारा प्रगतिवाद है!
- - नवसाम्राज्यवाद के खतरे से दुनिया को बचाने का संकल्प!
- - लेखक ही अगुवा बनकर समाज को रौशनी दिखायेगा!
- - आन्दोलन की कमान युवा पीढ़ी सम्भाले!
पूर्णिया के
कमला प्रसाद नगर (कला भवन)
में 11 एवं
12 फरवरी को
सम्पन्न हुआ।
कलम से
दुनिया की
जंग जीतने
के आगाज
एवं युवा
रचनाकारों की पुरजोर भागीदारी के
साथ चर्चित
साहित्यकारों की उत्साहपूर्ण उपस्थिति ने
कार्यक्रम को एतिहासिक बना दिया।
वरिष्ठ आलोचक
एवं बीएचयू
के पूर्व
आचार्य डा.
चैथीराम यादव,
प्रलेस के
राष्ट्रीय महासचिव प्रो. अली जावेद,
म.प्र.
प्रलेस के
महासचिव विनित
तिवारी, कथाकार
पुन्नी सिंह,
बांग्ला कवि
एव बंगाल
प्रलेस के
महासचिव अमिताभ
चक्रवर्ती, उ.प्र प्रलेस के
महासचिव संजय
श्रीवास्तव सहित बिहार संगठन के
अध्यक्ष डा.
व्रजकुमार पाण्डेय, महासचिव राजेन्द्र राजन
एवं उपाध्यक्ष
डा.पुनम
सिंह व
राज्य के
विभिन्न जनपदों
से आये
रचनाकर्मी प्रतिनिधियों ने इस क्षेत्र
के प्रतिष्ठित
लेखक-कथाकारों
यथा बंगला
के मूर्धन्य
साहित्यकार सतीनाथ भादुड़ी, उपन्यासकार एवं
आंचलिक कथाकार
फणीश्वर नाथ
रेणु, अनूपलाल
मंडल आदि
की समृद्ध
विरासत को
स्मरण व
नमन किया।
14 वें राज्य
सम्मेलन का
उद्घाटन करते
हुए प्रलेस
के राष्ट्रीय
महासचिव डा.
अली जावेद
ने कहा
कि हम
महान साहित्यकारों
- टैगोर, प्रेमचंद,
फै़ज,
नागार्जुन, केदार, रेणु
आदि की
जयन्ती इसलिए
मनाते हैं
कि हम
उनसे प्रेरणा
लें, लेकिन
पूर्वजों की
उपलब्धियों पर हम कबतक अपनी
पीठ थपथपाते
रहेंगे। आखिर
कब हमारी
लेखनी का
दम बदलाव
ला पाएगा।
उन्होंने कहा
कि परंपराओं
का नया
रूख कायम
करते हुए
यह बताना
जरूरी हो
गया है
कि साहित्य
पिछलग्गु नहीं
बल्कि समाज
के निर्माण
में अग्रणी
पंक्ति का
योद्धा है।
बिहार प्रलेस
के महासचित
राजेन्द्र राजन ने कहा कि
हम महान
कथाकार फणीश्वर
नाथ रेणु
एवं सतीनाथ
भादुड़ी की
धरती पर
आकर गौरवान्वित
महसूसते हैं।
राजन
द्वारा व्यक्त
उद्गार के
पश्चात इस
राज्य सम्मेलन
पर केन्द्रित
स्मारिका का
विमोचन किया
गया। स्वागत
भाषण में
डा. जयकृष्ण
मेहता ने
अपने स्वागत
संबोधन में
पूर्णिया की
समृद्ध साहित्यिक
एव सांस्कृतिक
परंपरा को
रेखांकित किया।
राजेन्द्र राजन ने अपने वक्तव्य
में कहा
कि - मैं
उत्सवधर्मी नहीं हूँ बल्कि अतीत
में जो
सपने संजोये
गये हैं
वे आजतक
साकार नहीं
हो पाये।
गरीब-फटेहाल लोगों
की चिंता
नहीं है...
किसान आत्महत्या
कर रहे
हैं, बेरोजगारों
की फौज
खड़ी हो
रही है,
महानगर ही
नहीं गांव
की गलियाँ
भी विदेशी
सामानों से
भरी पटी
है,राजन
ने कई
महत्वपूर्ण सवाल उठाए उन्होंने उपभोक्तावादी
संस्कृति, मंहगी शिक्षा व्यवस्था और
पुस्तकों से
पाठकों को
दूर करने
की साजिश
को बेनकाव
करने की
बात कही।
मध्यप्रदेश प्रगतिशील
लेखक संघ
के महासचिव
विनीत तिवारी
ने ब्रेख्त
की कविता
से अपना
वक्तव्य प्रारंभ
किया, उन्होंने
कहा कि
चुनौतियाँ भी बदली, ताकते भी
बदली है...
लोकतंत्र का
अर्थ अपने
में तबतक
सार्थक नहीं
है जबतक
उसमें समाजवाद
का सामंजस्य
न हो।
बिहार प्रलेस
की उपाध्यक्ष
डा. पूनम
सिंह ने
वैश्विकरण व बाजारवाद के खतरे
पर प्रकाश
डालते हुए
उन्होंने लेखकों
से अपना
पक्ष सामने
लाने की
बात कही,
उन्होंने अपनी
कविता ‘उन्हें
पसंद नहीं’
के माध्यम
से समय
में व्याप्त
जड़ता एवं
असमानता को
रेखांकित किया।
बांये से - रमेश ऋतंभर, अरुण शीतांश, अरविन्द श्रीवास्तव, डा. अली जावेद, डा. चैथी राम यादव, देवानन्द, अमिताभ चक्रवर्ती, अशोक कु. आलोक, डा. संजय श्रीवास्तव, पुन्नी सिंह, विनीत तिवारी व विश्वनाथ। |
बिहार प्रलेस
के अध्यक्ष
डा. व्रजकुमार
पाण्डेय ने
वैश्विक संकट में लेखको का
दायित्व क्या
हो - पर
प्रकाश डालते
हुए कहा
कि साम्रज्यवाद
का नया
रूप
पहले ब्रिटिश माडल का था,
अब अमरीकी
साम्राज्यवाद का है। वह व्रिटेन
से अलग
है इसमें
एक देश
में बैठकर
पूरी दुनिया
को डंडे
से हांकना
है। भूमंडलीयकरण
की नीतियाँ
देश से
हटाये बगैर
कल्याण नहीं
हो सकता...
लेखक ही
अगुवा बनकर
समाज को
रौशनी दिखाएगा।
इस अवसर
पर कोलकता
से पधारे
अमिताभ चक्रवर्ती
ने बंगला
में अपने
विचार व्यक्त
किए। प्रसिद्ध
आलोचक डा.
चैथी राम
यादव ने
‘आज का
वैश्विक संकट,
भारतीय संदर्भ
में’ विषय
पर बोलते
हुए कहा
कि आज
संकट आर्थिक
ही नहीं
सामाजिक संकट
भी है।
कबीर के ‘घर’ की व्याख्या करते हुए कहा कि हमारे देश में झगड़ा विषमताओं से भरा है उसे कबीर जलाने की बात करता है। उन्होंने कबीर के ‘बाजार’ और आज के बाजार में अन्तर स्पष्ट करते हुए कहा कि - आज का बाजार उपभोक्तावादी बाजार है। आदमी स्वयं बाजार में खड़ा है, मनुष्य की मनुष्यता को कैसे बचाया जाय? आदमी की पहचान आज उसके धन और जाति पर की जाती है। जिस समाजवादी विकल्प के रूप में पूंजीवादी व्यवस्था को रखा गया उसमें भाईचारा, समता आदि का अंत हो गया है। पूर्वी यूरोप व सोवियत संघ का जो विघटन हुआ इससे समाजवाद व माक्र्सवाद खत्म नहीं हुआ। उन देशों में माक्र्स का ‘दास कैपिटल’ फिर से पढ़ा जा रहा है ...।
कथाकार पुन्नी सिंह ने पूंजीवादी व्यवस्था के दुश्परिणाम को ‘फिरोजावाद के चूड़ी उद्योग’ के संदर्भ में व्याख्या की। उ.प्र. प्रलेस के महासचिव डा. संजय श्रीवास्तव ने कहा कि प्रगतिशील लेखक संघ एक दफ़्तर या कार्यालय नहीं है, यह एक आंदोलन है। उन्होंने कहा कि प्रलेस की जिम्मेदारी बनती है कि उसे बेनकाव करें जो साहित्य में राजनीति और पूंजीवाद को स्थापित कर रहे हैं...। वक्ताओं में डा. दीपक राय ने ‘वर्तमान विश्व परिदृश्य और लेखकीय प्रतिबद्धताएं’ पर अपना आलेख पाढ़ किया। मंचसंचालन रंगकर्मी नूतन आनंद ने किया। कार्यक्रम के प्रथम सत्र में प्रलेस के तीन पुराने पुरोधा साथियों - त्रिवेणी शर्मा ‘सुधाकर’, डा. व्रजकुमार पाण्डेय एवं डा. खगेन्द्र ठाकुर (अनुपस्थिति में) को अंगवस्त्र से सम्मानित किया गया। यह एक ऐतिहासिक क्षण था।
कबीर के ‘घर’ की व्याख्या करते हुए कहा कि हमारे देश में झगड़ा विषमताओं से भरा है उसे कबीर जलाने की बात करता है। उन्होंने कबीर के ‘बाजार’ और आज के बाजार में अन्तर स्पष्ट करते हुए कहा कि - आज का बाजार उपभोक्तावादी बाजार है। आदमी स्वयं बाजार में खड़ा है, मनुष्य की मनुष्यता को कैसे बचाया जाय? आदमी की पहचान आज उसके धन और जाति पर की जाती है। जिस समाजवादी विकल्प के रूप में पूंजीवादी व्यवस्था को रखा गया उसमें भाईचारा, समता आदि का अंत हो गया है। पूर्वी यूरोप व सोवियत संघ का जो विघटन हुआ इससे समाजवाद व माक्र्सवाद खत्म नहीं हुआ। उन देशों में माक्र्स का ‘दास कैपिटल’ फिर से पढ़ा जा रहा है ...।
कथाकार पुन्नी सिंह ने पूंजीवादी व्यवस्था के दुश्परिणाम को ‘फिरोजावाद के चूड़ी उद्योग’ के संदर्भ में व्याख्या की। उ.प्र. प्रलेस के महासचिव डा. संजय श्रीवास्तव ने कहा कि प्रगतिशील लेखक संघ एक दफ़्तर या कार्यालय नहीं है, यह एक आंदोलन है। उन्होंने कहा कि प्रलेस की जिम्मेदारी बनती है कि उसे बेनकाव करें जो साहित्य में राजनीति और पूंजीवाद को स्थापित कर रहे हैं...। वक्ताओं में डा. दीपक राय ने ‘वर्तमान विश्व परिदृश्य और लेखकीय प्रतिबद्धताएं’ पर अपना आलेख पाढ़ किया। मंचसंचालन रंगकर्मी नूतन आनंद ने किया। कार्यक्रम के प्रथम सत्र में प्रलेस के तीन पुराने पुरोधा साथियों - त्रिवेणी शर्मा ‘सुधाकर’, डा. व्रजकुमार पाण्डेय एवं डा. खगेन्द्र ठाकुर (अनुपस्थिति में) को अंगवस्त्र से सम्मानित किया गया। यह एक ऐतिहासिक क्षण था।
सर्वभाषा कवि सम्मेलन सत्र का संचालन करते मैं स्वयं |
समारोह का
एक विशेष
आकर्षण प्रथम
दिवस के
अंतिम सत्र
में सर्वभाषा
कवि-सम्मेलन’
का रहा,
विशिष्ठ अतिथि
एवं कवि
अमिताभ चक्रवर्ती
(कोलकता) एवं पूनम सिंह
की अध्यक्षता
व अरविन्द
श्रीवास्तव के संचालन में लगभग
चालीस कवियों
ने अपनी-अपनी कविताओं
का पाठ
किया जिनमें-
सर्वश्री रमेश
ऋतंभर, डा.
पुष्पा गुप्ता,
मीनाक्षी मीनल
(मुजफ्फरपुर) अनिल पतंग, विनिताभ (बेगूसराय)
अरुण हरलिवाल,
कृष्ण कुमार
(गया), विश्वनाथ
(खगडि़या) बांग्ला कवि आलो राय,
डा. मनोज
(पूर्णिया), अरुण शीतांश, संतोष श्रेयांश
(आरा), अरविन्द
ठाकुर, सुरेन्द्र
भारती, रघुनाथ
मुखिया, प्रतिभा
कुमारी (सुपौल)
दशरथ प्रजापति,
तनवीर मौलानगरी
(सीतामढ़ी), शशांक शेखर (बक्सर) सागर
आनंद (जहानाबाद)
आदि प्रमुख
थे।
दूसरे दिन
बिहार प्रलेस
के महासचिव
राजेन्द्र राजन ने प्रलेस
की 75 वीं
वर्षगांठ पर
लखनऊ में
आयोजित सम्मेलन
को स्मरण
करते हुए
- युवा पीढ़ी
की सार्थक
भागीदारी पर
संतोष व्यक्त
किया। श्री
राजन ने
राज्य का
प्रतिवेदन पढ़ा। साथ ही राज्य
के विभिन्न
जनपदों
से आये प्रतिनिधियों ने अपने-अपने प्रतिवेदन
द्वारा विमर्श
को आगे
बढ़ाया। समारोह में
इप्टा कलाकर
दिलीप कुमार
राय द्वारा
दुष्यंत की
गज़ल, गोपाल
सिंह ‘नेपाली’
एवं नीरज
के गीत
व कैफी
साहब की
नज़्म का
गायन ने
भी कार्यक्रम
को यादगार
बना दिया।
‘अभिधा प्रकाशन’
के सौजन्य
से लगा
‘बुक स्टाल’
भी आकर्षण
का केन्द्र
था।
इस सम्पूर्ण अविस्मरणीय कार्यक्रम के
आयोजक सुप्रसिद्ध
रंगकर्मी देवानन्द
एवं नूतन
आनंद के
प्रति सहभागियों
ने कृतज्ञता
व्यक्त की।
(मीडिया प्रभारी सह प्रवक्ता, बिहार प्रलेस)
अशेष मार्ग, मधेपुरा (बिहार),
मोबाइल- 09431080862.
मधेपुरा,बिहार से हिन्दी के युवा कवि हैं, लेखक हैं। संपादन-रेखांकन और अभिनय -प्रसारण जैसे कई विधाओं में आप अक्सर देखे जाते हैं। जितना आप प्रिंट पत्रिकाओं में छपते हैं, उतनी ही आपकी सक्रियता अंतर्जाल पत्रिकाओं में भी है। |
shukria bhaai !
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