मुकुल जोशी आज के उन थोड़े से कहानीकारों में से हैं जो आज भी प्रेमचंद परम्परा के यथार्थवाद पर भरोसा रखते हैं और जिनके दिल मैं दुनिया को बहतर बनाने का जज्बा मचलता है. मुकुल जोशी को हम प्यार से मेजर साहिब कहते हैं क्योंकि जब वह हमारे संपर्क मैं आये मेजर ही थे. अब तो माशाल्लाह कर्नल बन गए हैं. उनकी एक खासियत यह है कि वह बाज़ार के लिए नहीं लिखते और विडम्बना देखिये की इस सहज से गुण को भी एक लेखक की विशेषता बताना पड़ रहा है. आज जब हर चीज़ एक पण्य वस्तु बनती जा रही है और कहानीकार ने भी अपनी रचना को शायद एक प्रोडक्ट मान लिया है मेजर जोशी की कहानियों से गुज़रना देहात की चांदनी रात में नीम के पेड़ की ठंडी हवा को याद करने जैसा है.
![]() |
जानेमाने कथाकार स्वयं प्रकाश जिनकी जनवादी कहानियां हमेशा पाठकों को आकर्षित करती रही है.सूरज कब निकलेगा, आदमी जात का आदमी, पार्टीशन, ज्योतिरथ के सारथी के साथ हमसफरनामा समेत कई चर्चित कृतियों के रचयिता, देशभर की घुमक्कड़ी और चित्तौड़ में लम्बे प्रवास के बाद हाल 'वसुधा' का सम्पादन करते हुए भोपाल में बसे हुए हैं.उनका ईमेल पता |
मेजर जोशी की कहानी कला की एक विशेषता रोज़मर्रा के सामान्य जीवन से रोचक और मानीखेज कथास्थितियाँ ढूंढ लेना है. यहाँ नाटकीय अतिरंजना नहीं मात्र एक धैर्यपूर्ण अवलोकन है जो पाठकों को भी उसी तरह चकित और विभोर करता है जैसे लेखक को.कहना न होगा की इसमें उनकी बेबनावत भाषा और दिखाई न देते शिल्प का कितना बड़ा हाथ होताहै.
कहते हैं अच्छा सुनार वह जिसकी गढ़ई में झालन न दिखाई दे और होशियार दरजी वह जिसकी सिलाई में टांका न दिखाई दे. यह बात मेजर जोशी जैसे कहानीकारों पर एकदम ठीक बैठती है .
मेजर जोशी किसी ख़ास विचारधारा से संबध नहीं लेकिन इंसानियत के सवाल पर वह सहज रूप से एक प्रबल पक्षधर हो जाते हैं ,उनकी कुछ कहानियों में आश्चर्यजनक रूप से समता की एक छुपी हुई पुकार सुनाई देती है. और उसके लिए उनके पात्र भी सक्रिय हो गए दिखाई देते हैं.
फ़ौज से जुड़े हुए लेखकों मैं देशभक्ति का एक भावुक उबाल दिखाई देना एक आम बात है लेकिन इन्साफ, इंसानियत और इंसानी बराबरी के लिए किसी में ऐसी तड़प का दिखाई देना एक बेहद सुकून देनेवाली बात है.एक कहानीकार के रूप में मेजर जोशी की उपस्थिति बहुत हौसला बढ़ने वाली है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें