आपको याद होगा
कि इसी
फेसबुक के
जरिये मैंने
अपनी 4000 किताबों को बेटियों की
तरह विदा
किया था।
मेरी ये
किताबें अलग
अलग पुस्तकालयों,
वाचनालयों, जरूरतमंद विद्यार्थियों, घनघोर पाठकों
और पुस्तक
प्रेमियों तक पहुंचीं थीं। बाद
में कई
पुस्तक प्रेमियों
और पुस्तकालयों
की ओर
से संदेशे
आते रहे
कि उन्हें
भी हमारे
अनमोल खजाने
में से
कुछ किताबें
चाहिये। अफसोस
तब तक
सारी किताबें
जा चुकी
थीं।
अब एक बहुत
अच्छी खबर
ये है
कि मेरे
इस प्रयास
से प्रेरित
हो कर
रायपुर स्थित
मेरी अभिन्न
मित्र रत्ना
वर्मा ने
भी अपनी
पुस्तकें उपहार
में देने
का मन
बना लिया
है। वे
भी अपने
जीवन की
सबसे बड़ी,
अमूल्य और
प्रिय पूंजी
अपनी किताबों
को अपने
घर से
विदा करना
चाहती हैं।
वे चाहती
हैं कि
उनकी किताबें
जहां भी
जायें, नये
पाठकों के
बीच प्यार
का, ज्ञान
का और
अनुभव का
खजाना उसी
तरह से
खुले हाथों
बांटती चलें
जिस तरह
से वे
उन्हें बरसों
से समृद्ध
करती रही
हैं। पुस्तकों
का ये
उपहार वे
अपने पिता
स्व. श्री
बृजलाल वर्मा
(पूर्व केंद्रीय
मंत्री) की
स्मृ्ति में
दे रही
हैं।
कहानी, उपन्यास, जीवनियां,
आत्मकथाएं, बच्चों की किताबें, अमूल्य
शब्द कोष,
एनसाइक्लोपीडिया, भेंट में
मिली किताबें,
यूं ही
आ गयी
किताबें, रेफरेंस बुक्स सब तरह
की किताबें
हैं इनमें।
इस बार
शर्त सिर्फ
यही है
कि ये
पुस्तकें और
बहुत सारी
दुर्लभ पत्रिकाएं
भी केवल
और केवल
पुस्तकालयों और वाचनालयों को ही
दी जायेंगी।
किताबें मंगाने
वाले पुस्तकालयों
को कूरियर
का या
डाक खर्च
वहन करना
होगा। किताबें
एक ही
पुस्तकालय को न दे कर
अलग अलग
पुस्तकालयों के बीच वितरित की
जायेंगी और
छत्तीसगढ़ के पुस्तकालयों को प्राथमिकता
दी जायेगी।
इच्छु्क पुस्त़कालय किताबें
पाने के
लिए डॉक्टर
रत्ना वर्मा
से drvermar@gmail.com या मुझसे
mail@surajprakash.com पर सम्पर्क
कर सकते
हैं।एक और अच्छी
खबर ये
है कि
पुणे के
मेरे एक
मित्र अंग्रेजी
की अपनी
5000 किताबें देने का मन बना
चुके हैं।
उसकी सूचना
जल्द ।
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