मैंने पहली बार कोई उजड़ी हुई इतनी व्यवस्थित बस्ती देखी. वैसे तो कुलधरा के लिए कहा जाता है .....
कुलधर मंदिर मजीद कुलधर कुल री सायबी
कुलधर में जिमदीठ कुल धर में दीठी नहीं .
ज़त थी और उसके लिए पूरे गाँव ने अपना सब कुछ छोड़ने में में ज़रा भी वक़्त नहीं गवाया . चौड़ी सड़कें, चौपालें, गाड़ियों को रखने के स्थान और घरों का सुव्यवस्थित आकार आज भी इस बस्ती के
वैभव की दास्ताँ सुनाते हैं तो पूरे गाँव में फैला सन्नाटा जैसे बीते वक़्त का साक्षी बनकर खड़ा हो जाता है . मेरे साथ जो लोग थे उन्हें पूरा भरोसा था कि इस गाँव में भूत हैं. मैंने कहा कि मुझे उन भूतों से मिलना है तो उन्होंने वहां रात रुकने की चुनौती दे डाली मैं चुनौती स्वीकार करता इससे पहले ही हम जिस घर में खड़े थे वहां मेरे साथ गए सलीम खां ने नीचे के तलघर में उतरने की कोशिश की तो सैकड़ो चमगादड़ बाहर आ गए और फिर जो हम बाहर भागे तो रात रुकना तो छोड़िये हम तो वहां उस ढलती हुई शाम में रुकने का मन भी नहीं बना पाए . वो सचमुच एक भयावह अनुभव था एक टूटे खंडहर मैं सैकड़ो चमगादड़ों का अचानक हमला ... मैंने तो बस यही कहा ..... कुलधर में जिमदीठ कुल धर में दीठी नहीं
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (01-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!