‘उदयपुर-बोध’ ‘हेमंत शेष की राय में, इनकी पर्याप्त सृजनशीलता श्रंखला है, जो ‘भैंसों‘ की तरह उतनी प्रसिद्ध तो नहीं हुई किन्तु फिर भी उसमें एक वरिष्ठ रचनाकार के ‘बदले’ हुए चित्र-मिजाज की छवियां देख पाना कठिन नहीं।1956 से 1960 के बीच पी.एन. चोयल ने हिन्दुस्तानी भैंसों का गहरा ‘अध्ययन‘ किया था और भारत की भैंसों को लेकर बनाए गए चित्रों और रेखांकनों ने इन्हें अपने इंग्लेंड प्रवास के दौरान और बाद तक पर्याप्त ख्याति दी।
एक हृदयाघात के बाद उनकी चित्र-रचना के ढंग में आए बदलाव रेखांकनीय हैं। चेहरे खोते स्त्रियों के उनके कई चित्र उसकी सामाजिक पहचानविहीनता पर विचारशील कलाकार की सार्थक टिप्पणी जैसे हैं। वह केनवास पर धूसर और कभी गर्म रंगों से पिघले हुए दृश्य के बड़े प्रभावशाली रचनाकार थे .... कबंध मानव आकृतियाँ भी उनके यहां कई बार अलग तरह की संवेदना जगा देती हैं! वह अंतिम दिन तक भी सक्रिय थे और अपने कलाकार पुत्र शैल चोयल के साथ उदयपुर में रहते हुए बराबर काम करते रहे.
क्या चोयल सा’ब गये? यह झूठ है- कला के इतिहास का सफ़ेद झूठ
हेमंत शेष
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