जोधपुर की पहचान के रूप में
विश्व-विख्यात
किले मेहरानगढ़
के बारे
में कभी
रुडयार्ड किप्लिंग
ने कहा
था " यह दुर्ग फरिश्तों और
देवताओं द्वारा
निर्मित लगता
है ............. ." यह बात
अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं लगती जब आप
मेहरानगढ़ से रूबरू होते है।चिड़ियाटूंक पहाड़ी पर बने इस
खूबसूरत किले
का स्थापत्य
किसी की
भी दृष्टि
को बांधने
की अचूक
सामर्थ्य रखता
है और
किले के
भीतर बने
महल,मंदिर,
संग्रहालय और पांडुलिपियों को सहेजे
पुस्तकालय सभी को कोई न
कोई वजह
दे ही
देते हैं ।आगंतुक देर
तक वहां
रुकने के
लिए लगभग
विवश हो
उठते हैं।
मुझे चिड़िया
नाथ जी
का वो
स्थान देखना
था जहां
कभी उनकी
धूनी जलती
थी ।
किला बनाने
के लिए
जब उसे
हटाया गया
तो उन्होंने
राठौड़ो की
फौज से
कहा तुम
बांकी फौज
हो और
आज भी
उस सन्यासी
का उलहाना
राठौड़ो को
रणबांका राठौड़
का ख़िताब
दिलाये हुए
है।
कहते
हैं उन्होंने
कुछ श्राप
भी दिए
थे जो
आज भी
अपना थोड़ा
बहुत असर
दिखाते हैं.
पर मुझे
तो उस
सन्यासी के
रहने की
जगह देखनी
थी इसलिए
मैं बड़ा
सा मैदान
पार करके
वहां पहुंचा
तो मेरे
अतिरिक्त वहां
और कोई
भी नहीं
था।
किले
की पर्यटकों
से भरी
दमघोंटू चहल-
पहल से
बिल्कुल विपरीत
वहां शांति
का साम्राज्य
था।
किले
का वैभव
अद्भुत मगर
उसमे आभिजात्य
का अहंकार
,
सन्यासी की स्मृति वैभव विहीन
परन्तु शान्ति
का अखंड
साम्राज्य।
मैं देर तक वहां
रुका रहा
फिर किले
में लौटा
तो आँखें
उस वीर
की स्मृति
को समर्पित
किसी स्थान
को ढूँढने
लगीं जिसका
नाम था-
राजाराम और
जिसने अपने
आपको किले
की नींव
में इसलिए
जिन्दा चुनवा
दिया, क्योंकि
यह मान्यता
थी कि किले की नींव
में जिन्दा
व्यक्ति चुनवाया
जायेगा तो
किला अजेय
हो जायेगा।
पूरे किले
में मुझे
उस महान
वीर का कोई स्मारक नहीं
मिला जो
हँसते-
हँसते
इसलिए नींव
के पत्थरों
में शामिल
हो गया
ताकि उसके
राष्ट्र का
वैभव अजेय
रहे।
सम्राटों
के पास उसकी स्मृति को
किले में
स्थान देने
का शायद
कोई कारण
नहीं रहा
होगा पर
मैं इस
अपराजेय वीरता
की
उपेक्षा से बहुत दुखी होकर
लौट ही
रहा था
कि तभी
मुझे रुडयार्ड
किप्लिंग की
बात याद
आयी कि
यह किला
देवताओं और
फरिश्तों का
बनाया लगता
है।
न
जाने क्यों
मुझे पक्का
यकीन हो
चला कि
जब रुडयार्ड
किप्लिंग ने
यह बात
कही होगी
तो उनके
मन में
जिस फ़रिश्ते
का चित्र
उभरा होगा।
वो किसी
सम्राट का
नहीं होगा
बल्कि
अपने राष्ट्र को अपराजेय बनाने
के लिए
हँसते-
हँसते
किले की
नींव का
पत्थर बन
जाने वाले
राजाराम का
होगा ।
ऐतिहासिक इमारतों को
छोड़ दिया
जाये तो
जोधपुर देश
के दूसरे
बड़े शहरों
की तरह
ही है।
कहीं उजला
कहीं गन्दला
कहीं भागता
हुआ कहीं
ठहरा हुआ.
जोधपुर राजस्थान
के बड़े
शहरों में
शुमार है
और पर्यटन
के नक़्शे
में एक
चमकता हुआ
सितारा भी
है इसलिए
नूर से
वाबस्ता है।
दिन भर
अतीत का
वैभव निहारने
के बाद
बाज़ार में
चौहटे का
दूध पीते
हुए मैंने
दुकानदार से
पूछा कि
उसे इस
शहर की
कौन सी
इमारत सबसे
अधिक पसंद
है तो
उसने हँसते हुए कहा "
हुकम,
मुझे तो
अपनी दुकान
सबसे ज्यादा
पसंद है.
जैसी भी
है लेकिन
अपनी तो
है.
महल-
किले तो
उनको हसीन
लगेंगे जिनके
वो हैं
या फिर
उनको अच्छे
लगेंगे जो
आपकी तरह
दूर-
दूर
से इन्हें
देखने आते
हैं ।
हम तो सैकड़ों लोगों
को दूध
पिलाते हैं
लेकिन वहां
चाय पीने
की हिम्मत
नहीं है
जो कहने
को अकाल
के नाम
पर गरीबों
ने बनाया
पर आज
अच्छा खासा
आदमी भी
वहां खाना
नहीं खा
सकता
...
इतना महंगा है ! "
मैं समझ
गया कि
वो उम्मेद
भवन पैलेस
की बात
कर रहा
है ।
इस
भव्य महल
का निर्माण
अकाल पीड़ितों
को रोज़गार
मुहैया करवाने
के लिए
किया गया
था.
लगभग
सोलह वर्षों
तक निर्माण
कार्य चलता
रहा और
अकाल पीड़ित
जनता ने
अपने राजा
की उदारता
का पूरा
मान रक्खा
और एक
अति भव्य
इमारत तैयार
हुई ।
अब
उम्मेद भवन
का एक
हिस्सा संग्रहालय
है ,
एक
हिस्से में
राज-
परिवार
रहता है
और शेष
हिस्सा एक
पांच-
सितारा
होटल है।
जोधपुर के
राज परिवार
को जनता
का बहुत
प्रेम मिला
और कभी
जोधपुर महाराज
हणवंत सिंह
जी का
दिया हुआ
चुनावी नारा
'
म्हें थांसू
दूर नहीं
हूँ '
प्रजा और राजा के बीच
की दूरी
को लगभग
समाप्त कर
गया था।
राजवंश अब
इतिहास बन
चुके हैं
पर लोकतंत्र
ने नए
सम्राटों का
राज्याभिषेक कर दिया है ।
कहने
को हर
नेता कहता
है कि
वो जनता
से दूर
नहीं है
पर गरीब
जनता के
प्रतिनिधि जिस पांच-
सितारा महफ़िल
में जूतम-
पैजार का
खेल खेलते
हैं वहां
तो साहिब
आपका और
मेरा तमाशा
देखने जाना
भी मुश्किल
है क्योंकि
हम लोग
आम आदमी
जो ठहरे।
जोधपुर का यात्रा वृतांत पढकर मै सारा हिल गया । इस अभिजात्य वैभव को देखकर गर्व करनें जैसा लगता हैं किन्तु ये वैभव जिनके कारण दिखाई पड़ता हैं उन्हे कोई भी याद नहीं करता हैं । कगूंरो को संसार देखता हैं किन्तु जो नींव को देख पाते हैं उनके पास गर्व करनें लायक कुछ नहीं बच पाता हैं ।
जवाब देंहटाएंश्री श्री 1008 चिड़ियानाथ जी की लगभग 600 बरस पहले की जीवित समाधि मेरे गांव पालासनी में है ।
जवाब देंहटाएं9784832143