उदयपुर,19 फर,2013
''अलगाव की संस्कृति के बरक्स कुछ सार्थक भी सोचे ''-अशोक जमनानी
अपनी माटी के तीन वर्ष पूरे होने पर उदयपुर में संगोष्ठी
जमनानी ने अपने नवीनतम उपन्यास 'खम्मा' का उल्लेख करते हुए कहा कि मांगनियार संस्कृति ने रेगिस्तान में रंग भरे है। आज के उदारीकरण के दौर में संस्कृति को नए तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है आज की संस्कृति बाजारवाद की संस्कृति बन बैठी है, फिल्म संगीत ने लोक गीतों की हत्या कर दी है। खम्मा उपन्यास कहता है कि लोक गीत बचेंगे तो संस्कृति बचेगी। उपन्यास लेखक की और से एक क्षमा है। उन्होंने कहा कि देश की तरक्की होनी चाहिए किन्तु इसके साथ ही संस्कृति का संरक्षण भी होना चाहिए।संस्कृतियों को समाज बनाता है संस्कृतिया समाज में ही फलती फूलती है। बाज़ारवाद के बढ़ते प्रभाव के मध्य संस्कृति को बचाना समाज और देश के सामने एक चुनौती है। उपन्यास पर टिपण्णी करते हुए अशोक जमानानी ने कहा कि यह पुस्तक एक पैगाम है जो बताती है कि दलितों को मुख्यधारा में कैसे लाया जाये। यहाँ ये बात गौरतलब है कि सदियों तक दलितों पर हुआ शोषण संस्कृति नहीं वरन सामाजिक विकृति ही थी।
व्याख्यान की अध्यक्षता करते हुए प्रो अरुण चतुर्वेदी ने कहा कि इन दिनों विचारो को लेकर जो सहिष्णुता का अभाव है।बहुलवादी समाज में सहिष्णुता का आभाव बहुत सारी परेशानियों को जन्म देता है। बाजारवाद के बढ़ते प्रभाव विघटनकारी वृतियों को जन्म देती है। व्याख्यान में गाँधी मानव कल्याण समिति के मदन नागदा,आस्था के अश्विनी पालीवाल,सेवा मंदिर के हरीश अहारी,समता सन्देश के सम्पादक हिम्मत सेठ, महावीर इटर नेशनल के एन एस खिमेसरा , विख्यात रंग कर्मी शिवराज सोनवाल ,शिबली खान, अब्दुल अज़ीज़ हाजी सरदार मोहम्मद,ए आर खान ,लालदास पर्जन्य .घनश्याम जोशी सहित कई प्रमुख नागरिको ने प्रश्नोत्तर और आपसी संवाद में भाग लिया।
इससे पहले व्याख्यान का संयोजन करते हुए ट्रस्ट सचिव नन्द किशोर शर्मा ने कहा कि बाज़ार का ध्येय लाभ होता है इससे साहित्य या समाज सेवा की अपेक्षा करना सही नहीं होगा। प्रारंभ में अपनी माटी के संस्थापक माणिक ने उपन्यासकार अशोक जमनानी का स्वागत करते हुए उनका ज़रूरी परिचय दिया और कहा कि साहित्य में पाठकीयता को बढाने के सार्थक प्रयास किये जाने चाहिए।इसके लिए रचनाकारों को भी अपनी विशुद्ध रूप से बैद्धिकता को अपनी रचनाओं में सीधे तरीके से उकेरने के बजाय गूंथे हुए रूप में रचना चाहिए।इससे आमजन को रचनाएं ज़रूर रचेगी।
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