कविताएँ :हरिराम मीणा


साहित्य और संस्कृति की मासिक ई-पत्रिका 
अपनी माटी

यहाँ हरिराम मीणा जी की नन्हीं कविताएँ एकमुश्त प्रस्तुत कर रहे हैं जो उन्होंने कुछ भागों में फेसबुक पर साझा की थी-सम्पादक 


जो ज़मीन से नहीं थे जुड़े
वो ही ज़मीनों को ले उड़े।
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षड़यंत्र-अश्व की ठोकर से मेरी प्रतिमा हो गयी नष्ट
मेरे भीतर सुकरात, बुद्ध, ईसा, गांधी
इसलिये सहज सह लिया कष्ट।
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जेठ की उस दुपहर तो
फट ही गया था आसमान का ज्वालामुखी
वह तो कवच था पसीने का
जो मैं चलता ही गया जानिबेमंजिल।
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चाँदी के अंगवस्त्र में
सजती रही शुक्लाभिसारिका पूनम
और निहारता रहा निष्ठुर नभ
गोलार्द्ध के उस पार की धूप।
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उम्र की बल्लियों पर
टांगता रहा जीवन का हर पल
पता ही ना चला
पांवों को कितना धॅंसाता ले गया ज़मीन का दलदल।
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विमर्शों के नक्कारखाने में
मेरी अस्मिता 
तलाशती है
कोई कुंवारा टापू।
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भूमण्डलीकरण के रथ पर सवार पूंजी
बाजार की ध्वजा
विज्ञापन के बाण
और लक्ष्य 
आम आदमी के सपने।
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यह कैसा अद्यतन संस्करण काल का
जिसके पाटे पर 
क्षत-विक्षत इतिहास
चिता पर जलते आदर्श
जिनके लिये शहीद हुए थे 
कितने ईसा और सुकरात।
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कालचक्र की गिरारी में 
फॅंसी पृथ्वी
चाहती अपनी
कुंवारी आदिमता।
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दुनिया का भला आदमी
रोटी के लिये लड़ता-लड़ता
बन गया सबसे बुरा।
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सर्द अंधेरी भूतहा रात में 
उसे देखते ही
मैंने पूछा-
क्या तुम भी सड़कों पर उतरते हो इस कदर?
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साजिशों के कुरूक्षेत्र में
भांजता ही रहा वह
अनुभूत सत्य की लाठी।
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हटाते ही पत्थर
उठ खड़ी हुई
कब से दबी घास।
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मारो मुझे एकमुश्त
महॅंगा ना पड़ जाय
किश्तों में किया मेरा कत्ल।
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बनना मुंसिफ 
सोच समझ कर
हो न कहीं
तू कातिल मेरा।
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बोलने की तो क्या
असल वजह होती है
ना बोलने की।
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ताल्लुक है कोई
भीतर के लावे का
पृथ्वी की हरी-भरी परत से।
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तलाश रहा मैं
कब से आग वो
राख कर दे 
दूसरी को जो।
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गाँव जलाने आये थे सब
मेरी कुटिया
पड़ गई भारी।
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भोंक रहा कुत्ता संध्या से
बस्ती जागी
आधी रात।
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मस्तिष्क कंदराओं में
कब से दुबकी यादें
बाहर आने को झाँक रही
अब मांग रही कुछ शब्द उधार
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सावधान है छुईमुई अब
छूना सोच समझकर भाई
बदला वक्त
छिपी आँचल में तेज कटारी
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कालखण्ड की परतों में छिपकर बैठा जो
पड़ी नजर इतिहासविज्ञ की
मिथकों के तहखानों में धॅंस गया अचानक
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प्लेटो को पसंद नहीं थे कवि वो
सीधी सी बात को
उलझा देते जो
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बहुत हो चुका
चेले के पतीले में तैश उफना
जो है तू करामाती
बना दे सीधा गुरु ही
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धरा-धुरी को पकड़
नाभि छू
नाप रहा सागर, आकाश
फिर भी चैन नहीं।
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जमाना यह कैसा आया
ना हॅंसने की तरह हॅंसा जाता
ना रोने की तरह रोया।
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लोकतंत्र में एक जम्बूरा ठोकतंत्र का
दिखता दूजा भोगतंत्र का
और तीसरा ढोकतंत्र का
किंतु नहीं है लोक-मदारी ठोसतंत्र का।
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यक्ष-वेदना से हो प्रेरित
निर्वासन के कृष्णपत्र पर
विरह-रक्त की मसि से लिखा
कालिदास ने मेघदूत।
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हॅंसी द्रोपदी जीवन में दो बार
फिसला था जब अहंकार स्फटिक सतह पर
और दुबारा
शरशैया पर नीति भूलता राजसभा का मूक अतीत।
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काली रात के खौफनाक साये में
उम्मीद के खम्भों पर
वह बुजुर्ग टांगे जा रहा था
असंतोष के पोस्टर।
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नागिनों के समंदर सी
लहराती-गहराती जा रही थी रात
वह शख्स देखे जा रहा था
भोर की पताका उठाते लाल सपने।
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ठर्रा के पलीता ने
आग लगा दी गुस्से की भट्टी में
मजदूर ने पहली बार जुबान खोली
पल-पल का हिसाब लूंगा हरामियों से।
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जुआ उठाये बैलों को उसने टचकारा
हल का फाल धॅंसता गया सूखी जमीन में
उम्मीदभरी नजरों से
वह नापने लगा पूरा आकाश।
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कर्ज के इतने भारी पत्थर थे दिमाग में
कि, स्याहीसना अंगूठा ही
खुद ब खुद चस्पां हो गया
बही के कागज पर।
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फिर चुनाव की भेरी बजी 
नूराकुश्ती नेताओं की
बेबस जनता उनके आगे 
बारबार बाजी में हारी।
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गिद्ध दृष्टि आला कुर्सी पर
तीसमारखा एक बोलता उल्टा-सीधा
दूजा कुर्सी पकड़े चुप है
उधर नये मुल्ले के किस्से।
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देख रूपैया
भांड मीडिया ढोल बजाता
चाल चुनावी चले मदारी
जम्बूरियत बनी जम्बूरा।
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शतरंजी बिसात पर आओ
राजनीति के सब उस्तादो
छासठा साला बूढ़ा भारत
देखो तो, कितना सदमे में।
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दर्जनभर से ज्यादा निकले
पत्र घोषणाओं के फिर से
नारों के नक्कारालय में
सुनें कौन जनता की तूती।
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फिर से दिखे सभी नंगे
चुनाव के इस दंगल में
इकदूजे के रहे फाड़ते
धोती और पायजामा सब।
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प्रजातंत्र की बूढ़ी गैया
भटकी फिर चुनाव जंगल में
तन-मन कैसे नौंचे जाते
राजनीति के रीछ-बघेरे।
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आओ, खेलें बोटमबोट
जनता पर दावों की चोट
नेता भाई, पीटो ढोल
छिपी रहे सब पोलमपोल।
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अब के नये मदारी आये
काला जादू लेकर आये
इधर बाप-दादी की बातें
उधर सब्जबागी सौगातें।
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छीना-झपटी धक्कमपेल
मतवाले मतदाता झेल
हर खेमा में चकरमलीदा
मौका आया, लगा सभी के चूना-तेल।

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हरिराम मीणा
ऐतिहासिक उपन्यास धूणी तपे तीर 
से लोकप्रिय 
सेवानिवृत प्रशासनिक अधिकारी,
विश्वविद्यालयों में 
विजिटिंग प्रोफ़ेसर 
और राजस्थान विश्वविद्यालय
में शिक्षा दीक्षा
ब्लॉग-http://harirammeena.blogspot.in
31, शिवशक्ति नगर,
किंग्स रोड़, अजमेर हाई-वे,
जयपुर-302019
दूरभाष- 94141-24101
ईमेल - hrmbms@yahoo.co.in
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1 टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही खूबसूरत छोटी - छोटी कवितायेँ !
    अनुपमा तिवाड़ी

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