tag:blogger.com,1999:blog-5853620981665233836.post1141730193906981160..comments2024-03-25T11:26:27.348+05:30Comments on अपनी माटी: कहानी: मय्यत के फूल/ डॉ. आयशा आरफ़ीन Gunwant http://www.blogger.com/profile/11902535333148574269noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-5853620981665233836.post-36263291614976469522020-07-08T22:49:05.223+05:302020-07-08T22:49:05.223+05:30आयशा जी आपकी कहानी मनोविज्ञान की बात जिस गहराई से ...आयशा जी आपकी कहानी मनोविज्ञान की बात जिस गहराई से करती है इसकी व्याख्या आसान काम नहीं। कथानक की संरचना खूबसूरत है। इस समय की विडंबना को आपने बख़ूबी पकड़ा है। कार में बैठा शख़्स उस फुटपाथ की लड़की के बारे में सोचता है लेकिन कुछ कर नहीं पाता। वह अपने ग़म में डूबा हुआ है। ड्राइवर अपनों से दूर है इसीलिए उसकी माँ रोज़ उसके सपनों में आती है। एलियनेशन,अजनबियत और अकेलापन के बीच मनुष्य साइकिक होता जा रहा है।mithilesh kumarihttps://www.blogger.com/profile/17716830504654650091noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5853620981665233836.post-63959006701563797892020-07-07T22:23:15.840+05:302020-07-07T22:23:15.840+05:30आप सभी का शुक्रियाआप सभी का शुक्रियासम्पादक, अपनी माटीhttps://www.blogger.com/profile/07960007382121871199noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5853620981665233836.post-33592513106676154562020-07-07T02:08:31.465+05:302020-07-07T02:08:31.465+05:30Gulabii gulab ko kale gulab tak ka safar kahani me...Gulabii gulab ko kale gulab tak ka safar kahani me chota lagta hai...<br />Magar padhne se ye ehsas hua isko pura karna sabki baaki bat nahi...<br />..<br />Kahani ko ek word me kahun to #umdah h...Azadhttps://www.blogger.com/profile/17781749738124972575noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5853620981665233836.post-75579063553649969802020-07-06T22:38:54.058+05:302020-07-06T22:38:54.058+05:30मैय्यत के फूल शहरी जीवन की पीड़ा को बयान करती हुई ...मैय्यत के फूल शहरी जीवन की पीड़ा को बयान करती हुई एक अच्छी कहानी है जो इंसानी रिश्तों के बिखराव को समेटे हुए है। कहानी शुरू से ही पाठक की रुचि बरकरार रखती है। विशेष रूप से फूल वाली लड़की और साहब की रोज़ रोज़ की मुलाक़ात नए नए अंदाज़ में होती है और पाठक अगली मुलाक़ात का बेसब्री से इंतज़ार करता है।ये सिर्फ साहब,फूल वाली लड़की और ड्राईवर की कहानी नहीं है बल्कि ये अलग अलग वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। सफलता पाने की धुन में शहरी जीवन यापन करने वाला हर वर्ग जीवन की अति आवश्यक वस्तु सुख चैन से दूर होता जा रहा है है।ऐसी कामयाबी का कोई मोल नहीं जो आपसी रिश्तों को खो कर हासिल की जाए। हमें इस कहानी के पात्रों की तरह वापस लौटना ही होगा।<br />इतनी अच्छी कहानी से रूबरु कराने के लिए डॉ आयशा आरफीन का आभार और ढेर सारी शुभकामनाएं!Ishteyaque Ahmadhttps://www.blogger.com/profile/01065207549691064056noreply@blogger.com