tag:blogger.com,1999:blog-5853620981665233836.post3761020037814305313..comments2024-03-25T11:26:27.348+05:30Comments on अपनी माटी: चार कविताएँ:हेमंत शेष Gunwant http://www.blogger.com/profile/11902535333148574269noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-5853620981665233836.post-50053638381571352242014-11-08T08:03:45.814+05:302014-11-08T08:03:45.814+05:30आदरेय हेमंत शेष जी ,
सादर वन्दन!
मैंने अभी-अ...आदरेय हेमंत शेष जी ,<br />सादर वन्दन!<br /> मैंने अभी-अभी आपकी चार कविताएँ-'अकेला, इतना पासअपने, हवा नहीं फिर भी चला हूँ और वही पत्थर'पढ़ी हैं.शब्द-शब्द मूर्तिवत तराशा हुआ.सबमें प्राणप्रतिष्ठा ऐसी कि लगता है जैसे अभी बोलने ही वाले हैं वे अबोले दुधमुंहे शब्द.<br /> चारों कविताओं में कलात्मक उत्कृष्टता समान रूप में .हर शब्द सधा,बंधा.सबके सब नपे-तुले. सजग इतने कि कुछ कहा नहीं कि बोल पड़ेंगे उत्तर में .अपने अर्थ के संपूर्ण देवत्त्व के साथ देंगे मन चाहा सार्थक आशीष . <br /> सहज मानवीय मूल्य कवि को आकृष्ट ही नहीं करते वह उन्हें अपनाए रखना चाहता है.उन्हें अपनाने की जितनी चाह उसमें है उससे कहीं अधिक उनके खोने की चिंता- ''जो चल कर साथ आये कौन से थे वे लोग जो बिसरा दिए<br />एक घड़ी उलटी अब निरंतर चल रही है."<br />मूल्यों के क्षरण पर कवि की टूटन उसे सघन रूप से संवेदित करती है.वह टूटता है-<br />"अगर महाकवि होने की आकांक्षा में हूँ तो<br />अब तक कभी का टूट जाना था<br />पहले<br />शमशेर बहादुर सिंह से पहले वही पत्थर<br />मेरे हृदय पर ."<br />यह टूटन हर महाकवि में रही है .अतः कवि अपने पूर्ववर्तियों के काव्य मूल्यों के साथ अपनी काव्य यात्रा जारी रखने में विश्वास रखता है.मूल्यों की परंपरा के संवाहक कवि हेमंत शेष को हार्दिक बधाई!<br />आपका <br />गुणशेखर <br />(डॉ.गंगा प्रसाद शर्मा),<br />प्रोफेसर(हिंदी),<br />भारतीय भाषा,संस्कृति एवं दर्शन विभाग,<br />गुआंगदोंग वैदेशिक भाषा विश्वविद्यालय ,गुआन्ग्ज़ाऊ,चीन.<br />फोन-००८६२०३६२०४३८५. HemantSheshhttps://www.blogger.com/profile/14694725282954331603noreply@blogger.com