- Manik
- Mahendra Nandkishore
- Aditya Dev Vaishnav
- Pranjal Dave
- Jinni George
- Kumar Arjun
- Gunwant Kumar
- Deepak Kumar
- Saurabh Kumar
- Abhilasha Sharma
- Sanwar Jat
- Shahbaj Pathan
- Asif Khan
- Jyoti Kakwani
हमारे मुख्य शो/सीरीज
- ज़रूरी कविताएँ:
'ज़रूरी कविताएँ' सीरीज, जी हाँ 'अपनी माटी' के यूट्यूब टेलिकास्ट में अब एक नयी सीरीज शुरू कर रहे हैं 'ज़रूरी कविताएँ' इसमें हमारी टीम के कुछ यूट्यूबर साथी उनकी अपनी पसंद की और देश-दुनिया-समाज की बेहतरी के लिए ज़रूरी अनुभव होने वाली लोकप्रिय कविताओं को आपके सामने लाने का प्रयास करेंगे।यदि आप भी कविता पाठ में रूचि रखते हैं तो एक कविता का चयन करके हमें अपना विडियो भेजें। याद रहे विडियो भेजने से पहले कविता का चयन हमें बता दीजिएगा। बाक़ी शुक्रिया।
- मुलाक़ात विद माणिक
- स्टोरी ऑफ़ इंडियन यूथ
- जर्नी विद माणिक
- अपनी माटी टॉक
- बातें किताबों की
माननीय सम्पादक महोदय आपके gmail address पर मेल प्रेषित करने पर यह जवाब प्राप्त हो रहा है -There was a temporary problem delivering your message to info@apnimaati.com. Gmail will retry for 45 more hours. You'll be notified if the delivery fails permanently.यह समस्या पहले भी हो चुकी है आपसे सम्पर्क कैसे करें
जवाब देंहटाएंनमस्कार,
हटाएंअपनी माटी,(ISSN 2322-0724 Apni Maati) त्रैमासिक हिंदी वेबपत्रिका (www.apnimaati.com) के अब तक 24 अंक प्रकाशित हो चुके हैं। 24 अंकों तक की यह यात्रा आप सभी पाठकों और लेखकों के सहयोग के बिना संभव नहीं थी। यह बताते हुए खुशी हो रही है कि पहले अंक से 24 वें अंक के इस सफर में अपनी माटी का पाठक वर्ग साढ़े नौ लाख की संख्या को पार कर चुका है।
आगामी अंक अपनी माटी के लिए रजत जयंती अंक है। यह अंक उस समय प्रकाशित होने जा रहा है, जब 'माटी' का सबसे नजदीकी रिश्तेदार संकट की घड़ी में है। इस घड़ी में हमारा यह अंक 'किसान विशेषांक' के रुप में किसान भाई-बहनों के संघर्षों को समर्पित है। नवउदारवादी नीतियाँ और देश की आर्थिक नीतियों की सबसे ज्यादा मार वही झेल रहे हैं। उन्हें अपने उत्पादन का सही मूल्य तक नहीं मिल पा रहा है। एक तरफ सरकारी कर्मचारियों का वेतन तेजी से बढ़ा है किन्तु उस गति से किसान के उत्पादन का उचित मूल्य नहीं मिला है। यह फ़ासला बताता है कि हम और हमारी व्यवस्था किसानों के प्रति कितने असंवेदनशील है। राष्ट्रीय स्तर पर आज कोई किसानों का सर्वमान्य नेता भी नहीं रहा। कम्पनियां अपने उत्पादन का दाम खुद तय करती हैं वहीं किसान के उत्पाद का मूल्य सरकार तय करती है। विदर्भ, बुन्देलखण्ड और तेलंगाना में किसानों की आत्महत्या हमें अब नहीं झकझोरती है। विकास के चकाचौंध में हम किस तरफ जा रहे हैं?
इस अंक की गंभीरता, व्यापकता और विविधता के मद्देनजर इसके 'अतिथि संपादन' की जिम्मेदारी डॉ.गजेन्द्र पाठक, प्राध्यापक, हिंदी विभाग, हैदराबाद, केन्द्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद, संपर्क मो. 8374701410, 8919892935 और डॉ.अभिषेक रौशन, सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभाग, अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद, संपर्क मो. 9441087258, 9676584598 संयुक्त रुप से उठा रहे हैं।
इस अंक के लिए किसानों से जुड़े सभी पक्षों जैसे सामाजिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक, आर्थिक क्षेत्रों से सम्बंधित आपके लेख, साक्षात्कार, चर्चा-परिचर्चा, कहानी, नाटक और संस्मरण आदि साहित्यिक या गैर साहित्यिक रचनाएँ यूनिकोड फॉण्ट में टाइप करके हमारे ई मेल apnimaati.com@gmail.com पर 30 जून 2017 तक भेज दीजिएगा।
भवदीय
(जितेन्द्र यादव)
संपादक,मो. 9001092806
(सौरभ कुमार)
सह-संपादक,मो. 9884732842
Apka no. Dijie plz mujhe kuchh awashyak suchna chahie.
जवाब देंहटाएंनमस्कार,
हटाएंअपनी माटी,(ISSN 2322-0724 Apni Maati) त्रैमासिक हिंदी वेबपत्रिका (www.apnimaati.com) के अब तक 24 अंक प्रकाशित हो चुके हैं। 24 अंकों तक की यह यात्रा आप सभी पाठकों और लेखकों के सहयोग के बिना संभव नहीं थी। यह बताते हुए खुशी हो रही है कि पहले अंक से 24 वें अंक के इस सफर में अपनी माटी का पाठक वर्ग साढ़े नौ लाख की संख्या को पार कर चुका है।
आगामी अंक अपनी माटी के लिए रजत जयंती अंक है। यह अंक उस समय प्रकाशित होने जा रहा है, जब 'माटी' का सबसे नजदीकी रिश्तेदार संकट की घड़ी में है। इस घड़ी में हमारा यह अंक 'किसान विशेषांक' के रुप में किसान भाई-बहनों के संघर्षों को समर्पित है। नवउदारवादी नीतियाँ और देश की आर्थिक नीतियों की सबसे ज्यादा मार वही झेल रहे हैं। उन्हें अपने उत्पादन का सही मूल्य तक नहीं मिल पा रहा है। एक तरफ सरकारी कर्मचारियों का वेतन तेजी से बढ़ा है किन्तु उस गति से किसान के उत्पादन का उचित मूल्य नहीं मिला है। यह फ़ासला बताता है कि हम और हमारी व्यवस्था किसानों के प्रति कितने असंवेदनशील है। राष्ट्रीय स्तर पर आज कोई किसानों का सर्वमान्य नेता भी नहीं रहा। कम्पनियां अपने उत्पादन का दाम खुद तय करती हैं वहीं किसान के उत्पाद का मूल्य सरकार तय करती है। विदर्भ, बुन्देलखण्ड और तेलंगाना में किसानों की आत्महत्या हमें अब नहीं झकझोरती है। विकास के चकाचौंध में हम किस तरफ जा रहे हैं?
इस अंक की गंभीरता, व्यापकता और विविधता के मद्देनजर इसके 'अतिथि संपादन' की जिम्मेदारी डॉ.गजेन्द्र पाठक, प्राध्यापक, हिंदी विभाग, हैदराबाद, केन्द्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद, संपर्क मो. 8374701410, 8919892935 और डॉ.अभिषेक रौशन, सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभाग, अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद, संपर्क मो. 9441087258, 9676584598 संयुक्त रुप से उठा रहे हैं।
इस अंक के लिए किसानों से जुड़े सभी पक्षों जैसे सामाजिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक, आर्थिक क्षेत्रों से सम्बंधित आपके लेख, साक्षात्कार, चर्चा-परिचर्चा, कहानी, नाटक और संस्मरण आदि साहित्यिक या गैर साहित्यिक रचनाएँ यूनिकोड फॉण्ट में टाइप करके हमारे ई मेल apnimaati.com@gmail.com पर 30 जून 2017 तक भेज दीजिएगा।
भवदीय
(जितेन्द्र यादव)
संपादक,मो. 9001092806
(सौरभ कुमार)
सह-संपादक,मो. 9884732842
नमस्कार,
जवाब देंहटाएंअपनी माटी,(ISSN 2322-0724 Apni Maati) त्रैमासिक हिंदी वेबपत्रिका (www.apnimaati.com) के अब तक 24 अंक प्रकाशित हो चुके हैं। 24 अंकों तक की यह यात्रा आप सभी पाठकों और लेखकों के सहयोग के बिना संभव नहीं थी। यह बताते हुए खुशी हो रही है कि पहले अंक से 24 वें अंक के इस सफर में अपनी माटी का पाठक वर्ग साढ़े नौ लाख की संख्या को पार कर चुका है।
आगामी अंक अपनी माटी के लिए रजत जयंती अंक है। यह अंक उस समय प्रकाशित होने जा रहा है, जब 'माटी' का सबसे नजदीकी रिश्तेदार संकट की घड़ी में है। इस घड़ी में हमारा यह अंक 'किसान विशेषांक' के रुप में किसान भाई-बहनों के संघर्षों को समर्पित है। नवउदारवादी नीतियाँ और देश की आर्थिक नीतियों की सबसे ज्यादा मार वही झेल रहे हैं। उन्हें अपने उत्पादन का सही मूल्य तक नहीं मिल पा रहा है। एक तरफ सरकारी कर्मचारियों का वेतन तेजी से बढ़ा है किन्तु उस गति से किसान के उत्पादन का उचित मूल्य नहीं मिला है। यह फ़ासला बताता है कि हम और हमारी व्यवस्था किसानों के प्रति कितने असंवेदनशील है। राष्ट्रीय स्तर पर आज कोई किसानों का सर्वमान्य नेता भी नहीं रहा। कम्पनियां अपने उत्पादन का दाम खुद तय करती हैं वहीं किसान के उत्पाद का मूल्य सरकार तय करती है। विदर्भ, बुन्देलखण्ड और तेलंगाना में किसानों की आत्महत्या हमें अब नहीं झकझोरती है। विकास के चकाचौंध में हम किस तरफ जा रहे हैं?
इस अंक की गंभीरता, व्यापकता और विविधता के मद्देनजर इसके 'अतिथि संपादन' की जिम्मेदारी डॉ.गजेन्द्र पाठक, प्राध्यापक, हिंदी विभाग, हैदराबाद, केन्द्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद, संपर्क मो. 8374701410, 8919892935 और डॉ.अभिषेक रौशन, सहायक प्राध्यापक, हिंदी विभाग, अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद, संपर्क मो. 9441087258, 9676584598 संयुक्त रुप से उठा रहे हैं।
इस अंक के लिए किसानों से जुड़े सभी पक्षों जैसे सामाजिक, राजनीतिक, ऐतिहासिक, आर्थिक क्षेत्रों से सम्बंधित आपके लेख, साक्षात्कार, चर्चा-परिचर्चा, कहानी, नाटक और संस्मरण आदि साहित्यिक या गैर साहित्यिक रचनाएँ यूनिकोड फॉण्ट में टाइप करके हमारे ई मेल apnimaati.com@gmail.com पर 30 जून 2017 तक भेज दीजिएगा।
भवदीय
(जितेन्द्र यादव)
संपादक,मो. 9001092806
(सौरभ कुमार)
सह-संपादक,मो. 9884732842
माटी के लाल:समस्या और समाधान आलेख मैंने 13 जुलाई 17 को भेजा था। आग्रह है कि इसे छापने की कृपा की जाए और यदि कोई त्रुटि है तो संकेत किया जाए ताकि सुधार कर उसे उपयोगी बनाया जा सके...
जवाब देंहटाएं