(आकाशवाणी चित्तौड़गढ़ द्वारा किसान दिवस आयोजन के हित प्रकाशित स्मारिका में छपा है। इस स्मारिका के सम्पादक कवि और कथाकार योगेश कानवा थे। ये रूपक यहाँ 'अपनी माटी डॉट कॉम' पर दूसरी बार साभार प्रकाशित कर रहे हैं।)
(समस्त चित्र स्वतंत्र पत्रकार श्री नटवर त्रिपाठी के द्वारा ही लिए गए हैं-सम्पादक )
लेखक:-नटवर त्रिपाठी
किसान विश्वपाल जरा मुस्कराया और बोला। जमाना बहुत बदल गया। यहां पाँचसौ गज दूर पर गम्भीरी नदी हर मौसम में बहती थी, पर अब, निस्तेज़ हो गई गम्भीरी नदी बरसाती नाला हो गई है। यही दो ढ़ाई दशक पहले मेरे पिता ने इस नदी पर लिफ्ट लगाई, हमारे खेत गंभीरी के भरपूर पानी के कारण हरेभरे थे। खूब गन्ना पैदा होता था। नकद फसल मिलती थी। सब खुशहाल थे, हम भी और हमारे ईर्द-गिर्द सभी। मैने प्रश्न किया, हरियाली तो अब भी मस्त है। एक ओर अमरूदों से लकदक बड़े-बड़े खेत मुस्करा रहे हैं तो दूसरी ओर गेंहू , सरसों, मसालों तथा दलहनों की हरितिमा छाई है।
विश्वपाल ने अपने साथ गांव में और किसानों के यहां भी अमरूदों के बगीचे का प्रयोग कराया और आज इस ग्राम में 125 बीघा भूमि में एक दर्जन से अधिक किसानों के यहां अमरूदों के बगीचे हैं। किसी के पास-पांच बीघा से कम का बगीचा नहीं है। एक तरह से कहा जा सकता है कि इस ग्राम के अधिकांश किसानों ने कृषि विभाग के मानदण्डों के अनुसार वैज्ञानिक कृषि को अपना लिया है। अपनी सामान्य उपज के अलावा मसालों और दलहनों की खेती वैज्ञानिक तरीके से करते हैं। सभी किसान लगभग विश्वपाल सिंह के समान ही अमरूदों की और अन्य प्रकार की खेती करते हैं। खुशहाल लगते हैं और उनके बच्चे अच्छे पढ़ने लगे हैं, वे भी आत्म विश्वास से लबरेज हैं। सबसे पहले अमरूदों के बाग़ की शुरुआत पूर्व सांसद निर्मला सिंह ने की और विश्वपाल ने उदयपुर कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व डीन के परामर्श से लगाया।
गुलाब के एक-एक पौधे को उन्हें बच्चे की तरह सहेज कर रखना पड़ता है। इसकी रोज-रोज ठीक से कटाई-छटाई करनी होती है। समय-समय पर खाद और रोगनाशक दवाओं का प्रयोग करना पड़ता है। हां, सामान्य किसान को इस उच्च तकनीक तक पहुंचने में अभी समय लगेगा। इन पौधों पर पॉली हाउस के कारण बरसाती मौसम में सीधी वर्षा का पानी नहीं बरसता और न सीधी धूप और तेज सर्दी का असर पड़ता है। बगीचा मजबूत पालीथीन फिल्म से ढका पूरी कसावट लिए हुए है, जिसमें हवा रोशनी के लिए बाकायद यंत्र संचालित पर्दे लगे हैं। सिंचाई का एक विशेष ड्रिप सिस्टम है, जिससे पानी की बौछारें नहीं गिरती वरन् ‘मिस्टर’ एक यंत्र के माध्यम से धुंध छोड़ी जाती है जिससे गुलाब के पौधों की पत्तियां तर हो जाती है। पाली हाउस के 1000 मीटर लम्बाई-चौड़ाई वाले क्षेत्र में फूलों की 19 कतारें हैं इसमें से आधी कतार निष्क्रिय भी है। एक कतार में 17-18 सेमी. दूरी पर क्रास गुलाब के पौधे लगाए गए हैं और समूचे 1000 फीट में सभी पंक्ति में 5000 भिन्न-भिन्न रंगों के गुलाब के पौधे हैं।
विश्वपाल ने अपने बेटे को उच्च शिक्षा दिलाई है और परिवार के और युवा भी तकनीकी शिक्षा लिए हुए हैं। दिल्ली में ट्यूरिज्म इण्डस्ट्री से सम्बद्ध हैं। विश्वपाल इनकी सहायता से अपने विस्तृत खेत-खलिहान में एग्रीकल्चर ट्यूरिज्म के सपने को साकार करने में लगे हुए हैं। अपने नव-निर्मित मकान को भी इस आशय का रूप दिया है और संभव है खेंतों की हरितिमा के मध्य पर्यटकों के लिए टेण्ट होंगे और आवासीय सुविधायें होंगी। जिस शांति की खोज में विश्व के पर्यटक जैसलमेर के रेत के धोरों में सकून के लिए जाते हैं उसी शांति और सकून के लिए पर्यटकों के लिए एग्रीकल्चर ट्यूरिज्म का सपना साकार करने में ये लगे है। वह दिन दूर नहीं जब देशी-विदेशी सैलानी देश की ऐतिहासिक विरासत चित्तौड़गढ़, टेम्पल ट्यूरिज्म के लिए सांवरियाजी औेर बस्सी के अभयारण्य के लिए आते जाते ओछड़ी में किए जारहे ऐसे नव-अभिनव प्रयोग के हिस्सेदार होंगे। तब ओछड़ी गांव का रंग-ढंग बदलने लगेगा और पर्यटक मेवाड़ी तहजीब को आत्मसात करने लगेंगे।
चित्तौड़गढ़ जिले में विश्वपॉल सिंह कृषि में उच्च तकनीक अपनाने वाला कोई अकेला किसान नहीं है। पॉलीहाउस में उच्च तकनीक अपनाने वाले किसानों का आंकड़ा तीन दर्जन के आसपास हो गया है और बागवानी और बगीचे बनाने वाले किसानों की संख्या अब सैंकड़ों में नहीं हजारों में है। पॉलीहाउस में कृषि और बागवानी करने वाले डेढ़ से दो दर्जन किसान तो रावतभाटा में ही हैं। बस्सी के निकट जैसिंहपुरा में नन्दलाल धाकड़, जितावल ग्राम के श्यामसुन्दर शर्मा, सावा ग्राम में एक, ताणा में चार पॉली हाउस हैं। बांगेरड़ा मामादेव के जगदीश चन्द्र रिकार्ड सफेद मूसली की खेती करता है तथा सावा के नारायणलाल तेली का नाम श्रेष्ठ उद्यानिकी में जाना जाता है। नंदलाल धाकड़ जयसिंहपुरा को सब्जियों की खेती और बागवानी के लिए राज्य स्तर पर पुरस्कार के लिए चुना गया है। श्रीपुरा के नारायणलाल तथा सावा के भेरूलाल तेली का नाम जिले के अग्रणी किसानों में हैं। अकेली आछड़ी ग्राम में श्रीमती निर्मलासिंह, भूपतसिंह, रघुनाथसिंह, डॉ. जयसिंह, रणवीरसिंह, हर्षवर्धन, मांगीलाल, रतनलाल, प्यारचंद, अमृतलाल, भंवरलाल मेनारिया, आंवलहेड़ा ग्राम में चतुर्भुज कुमावत, बैजनाथिया में नारायणसिंह राठोड़, नारेला में गणपतसिंह, गंगरार में भेरूसिंह के देखने लायक बगीचे हैं। गंगरार के कानसिंह के यहां 450 बीघा का आंवला, अनार, चीकू और विभिन्न फलों का दर्शनीय बगीचा है। निम्बाहेड़ा तहसील मौसमी, अनार, किन्नू, आंवला, नींबू का घर है। इसी प्रकार बेंगू में नींबूं और बड़ीिसादड़ी में अममरूद और आंवला के बड़े पैमाने पर बगीचे हैं।
राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत खेतों में बगीचा लगाने के लिए कृषि विभाग की सक्रियता के साथ-साथ अनेक अनुदान की योजनाएं हैं। जिले में लगभग 2745 हेक्टेयर में अमरूद, संतरा, नींबू, आंवला, पपीता, अनार और अन्य फलों के बगीचे हैं जिनमे लगभग 26 हजार मै.टन फलों का उत्पाद हर वर्ष होता है। गत पांच वर्षों में चित्तौड़गढ़ जिले में लगभग 10 गुना बगीचों का विस्तार हुआ है जो अनुकरणीय है। फलों के उत्पाद का आंकड़ा भी आठ गुना तक पहुंचा है। इस जिले में सबसे ज्यादा अमरूद के 850 हेक्टेयर के उपरान्त 700 हेक्टेयर में आंवला के बगीचे हैं। इसके बाद संतरा, पपीता और नींबू के बगीचे आते हैं।
इस जिले में 3.13 लाख हेक्टेयर (41.7 प्रतिशत) भूमि कृषि योग्य है। उद्यानिकी फसलों के अन्तर्गत 33983 हेक्टेयर जो कृषि का लगभग 11 प्रतिशत है। इस तरह फलों के बगीचे 2742 हे., सब्जियों के 2335 हे., मसालों के 26656 हे. तथा औषधियों के 2250 हे. में बगीचे हैं। जिले की मुख्य उद्यानिकी फसले अकरूद, आंवला, नींबू, संतरा, अनार, अजवाईन, मैैथी आदि हैं। जिले में लगभग तीन दर्जन ग्रीनहाउस की स्थापना का आंकड़ा छू रहा है। इनमें शिमला मिर्च, रोज, जरबेरा आदि का उत्पादन किया जा रहा है। गत सात वर्षों के उद्यान विभाग के आंकड़े बताते हैं कि 3 हजार किसानों से बढ़ कर 18 हजार किसानों ने 3500 हेक्टेयर की तुलना में 24 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि में ड्रिप एवं फव्वारा सिंचाई कार्यक्रम को अपनाया है और इन्हें 22 करोड़ रुपये का अनुदान जुटाया गया।
(समाज,मीडिया और राष्ट्र के हालातों पर विशिष्ट समझ और राय रखते हैं। मूल रूप से चित्तौड़,राजस्थान के वासी हैं। राजस्थान सरकार में जीवनभर सूचना और जनसंपर्क विभाग में विभिन्न पदों पर सेवा की और आखिर में 1997 में उप-निदेशक पद से सेवानिवृति। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं।
कुछ सालों से फीचर लेखन में व्यस्त। वेस्ट ज़ोन कल्चरल सेंटर,उदयपुर से 'मोर', 'थेवा कला', 'अग्नि नृत्य' आदि सांस्कृतिक अध्ययनों पर लघु शोधपरक डोक्युमेंटेशन छप चुके हैं। पूरा परिचय
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