'अपनी माटी' का नामवर सिंह 'जन्मशताब्दी विशेषांक' / Apni Maati Namwar Singh Special issue


                                                              

अपनी माटी
( साहित्य और समाज का दस्तावेज़ीकरण )
Peer Reviewed & Refereed Journal
अपनी स्थापना के 13वें वर्ष में प्रवेश
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका 


नामवर सिंह 'जन्मशताब्दी विशेषांक'
(ISSN 2322-0724 Apni Maati)
अंक-63, जनवरी-मार्च, 2026
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सम्पादक

बृजेश कुमार यादव
असिस्टेंट प्रोफ़ेसर
इलाहबाद डिग्री कॉलेजप्रयागराज

माणिक
संस्कृतिकर्मी
चित्तौड़गढ़ 

सम्पादन सहयोग
स्तुति रायअसिस्टेंट प्रोफ़ेसर, एस.एस. खन्ना कॉलेजप्रयागराज
रामानुज यादवअसिस्टेंट प्रोफ़ेसर, सी एम. पी. डिग्री कॉलेजप्रयागराज
संजय साव, शोधार्थी, हिन्दी, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय,दिल्ली  


प्रस्तावना  

 नामवर सिंह ने अपने नाम को सार्थकता प्रदान की- ‘यथानामे तथागुणे’। वे हिन्दी के सबसे चर्चित आलोचकों में से हैं और उतना ही विवादित भी! नामवर सिंह ने हिन्दी आलोचना को जटिलता से न केवल मुक्त कराया बल्कि उसे लोकप्रियता के शिखर पर भी पहुँचाया। उन्होंने हिन्दी आलोचना को नया दृष्टिकोण प्रदान किया। साहित्य एवं कला के सामाजिक महत्त्व पर नए सिरे से विचार किया और उसकी सामाजिक उपादेयता में प्रगतिशील वैचारिकी का अमली जामा पहनाया। नये दौर के साहित्य को वह पारम्परिक दृष्टिकोण से देखने के पक्षपाती नहीं थे। यही कारण है कि रूढ़ पारंपरिक और पुराने पड़ चुके साहित्यिक सौन्दर्यशास्त्रीय प्रतिमानों को उन्होंने बदलने की वकालत की। नये दौर के साहित्य में विचारधारा (वैचारिकी) महत्त्वपूर्ण थी, जिसका मूल्यांकन सामंतयुगीन साहित्य सिद्धान्तों से संभव नहीं था। कविता और आलोचना के क्षेत्र में उन्होंने साहित्य के नये प्रतिमानों को गढ़ा और ‘दूसरी परम्परा की खोज’ का कठिन मार्ग प्रशस्त किया।

नामवर सिंह का आलोचकीय दायरा सिर्फ़ हिन्दी तक सीमित नहीं है। सच्चे अर्थों में वह भारतीय साहित्य के समीक्षक थे। हिन्दीतर भाषाओँ के अद्यतन साहित्य का विषद अध्ययन था। यही कारण है कि उनकी ख्याति महज़ हिन्दी तक सीमित नहीं थी। वह हिंदी के बाहर भी उतने ही समादृत थे। उनकी दृष्टि भारतीय भाषाओँ में लिखे जा रहे साहित्य पर तो थी ही, साथ ही विश्व साहित्य में आ रहे नवाचारोन्मुखी भी थी।

हिंदी समीक्षा एवं आलोचना को नामवर सिंह ने बहुत कुछ दिया है। हिन्दी आलोचना को एक नयी धार दी। नामवर सिंह ने हिंदी अकादमिक जगत् का  मार्क्सवादी साहित्य चिंतन से ‘व्यापकता और गहराई’ में परिचय करवाया। छायावाद से रहस्यमयता का आवरण हटाने और उसे ‘राष्ट्रीय जागरण की काव्यात्मक अभिव्यक्ति’ के रूप में स्थापित करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी के अनुसार ‘अपभ्रंश साहित्य के अध्येता हुए हैं लेकिन नामवर सिंह उसके आलोचक थे|’ नामवर सिंह की आलोचना दृष्टि में ‘प्रासंगिकता का प्रमाद’ नहीं है, बल्कि विचारधारा की गहराई और समाजशास्त्र की व्यापकता है। वे ‘इतिहास की शव साधना’ के बजाय इतिहास को ऐतिहासिक-सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करने के पक्षधर थे। नामवर सिंह सांप्रदायिक उन्माद के दौर में ‘ज़माने से दो-दो हाथ’ करने को भी प्रतिबद्ध हैं। नामवर सिंह को ‘वाद-विवाद और संवाद’ के लिए भी जाना जाता है।

नामवर सिंह के आलोचना की अपनी विशेषता, सीमायें और कुछ विसंगतियां भी हैं। विशेषकर अज्ञेय, रामचंद्र शुक्ल और तुलसीदास सम्बंधित उनकी मान्यताओं में बाद में हुए बदलाव के कारण। हिंदी में साहित्यिक विमर्शों के मद्देनज़र उनकी दृष्टि की सीमाओं का भी अंदाज़ा लगता है।

नामवर सिंह का जन्मशताब्दी वर्ष शुरू हो चुका है। आज वे हमारे बीच होते तो ख़ुशी-ख़ुशी जन्मशताब्दी वर्ष में शरीक होते; जैसे उन्होंने अपने षष्टिपूर्ति या अन्य समय-समय पर मनाये गए जन्मोत्सवों में मुदित-मगन मन से शामिल हुए। उनका व्यक्तित्त्व और कृतित्त्व बहुत व्यापक है। वे हमारे बीच भौतिक रूप में उपस्थित नहीं हैं; उनका कृतित्त्व है। हिंदी साहित्य पर उनकी आलोचकीय आभा तरोताज़ा है। इसी के सहारे उनके किये-अनकिये का मूल्याँकन साहित्यालोचकों को करना है। नामवर सिंह अपने पीछे विवेक सम्मत साहित्यालोचकों-पाठकों की एक लम्बी कतार भी छोड़ गए हैं। हमारा प्रयास है कि जन्मशताब्दी वर्ष के बहाने हम अपने शीर्षस्थ आलोचक को याद करें। उनके कृतित्त्व का मूल्यांकन एवं पुनर्पाठ हो। उनसे प्राप्त साहित्यिक दृष्टि और आलोचकीय परम्परा का विकास हो। नामवर सिंह पर बहुत शोधकार्य हो चुका है, बहुत सारे विशेषांक पहले भी आ चुके हैं लेकिन हमारा उद्देश्य है कि नामवर सिंह से उनके अंतिम दिनों में जुड़े शोधार्थी-विद्यार्थियों का अनुभव भी सामने आये साहित्य अध्येता की युवा पीढ़ी  नामवर सिंह को कैसे देखती-समझती है! इन्हीं कौतुक के साथ इस विशेषांक की प्रस्तावना बनी है! आप सभी जुड़ेंगे इस उम्मीद के साथ आप सभी के शोधपूर्ण आलोचकीय आलेखों का स्वागत है! धन्यवाद।  

विशेषांक के मुख्य बिन्दु:

  • Ø नामवर सिंह का राजनीतिक व्यक्तित्त्व
  • Ø नामवर सिंह की राजनीतिक चेतना
  • Ø नामवर सिंह का कवि-ह्रदय  
  • Ø छायावादी आलोचना और नामवर सिंह
  • Ø नामवर सिंह का ‘अपभ्रंश भाषा और साहित्य’ चिंतन
  • Ø हिन्दी आलोचना और नामवर सिंह की ‘दूसरी परम्परा’
  • Ø नामवर सिंह और कहानी आलोचना-दृष्टि
  • Ø नामवर सिंह का भक्तिकालीन चिंतन 
  • Ø नामवर सिंह और कविता आलोचना के ‘नये प्रतिमान’?
  • Ø नामवर सिंह का भाषा-विमर्श
  • Ø नामवर सिंह की इतिहास दृष्टि
  • Ø नामवर सिंह का सम्पादकीय विवेक
  • Ø नामवर सिंह के अध्यापन कौशल की विशेषता
  • Ø नामवर सिंह का ‘साहित्य और समाजशास्त्रीय’ चिंतन
  • Ø नामवर सिंह की वक्तृतकला
  • Ø नामवर सिंह और अस्मितामूलक विमर्श
  • Ø संस्मरणों में नामवर सिंह   
  • Ø नामवर सिंह के प्रमुख अन्तर्विरोध
  • Ø नामवर सिंह के लिखित और मौखिक (व्याख्यान) साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन
  • इसके अतिरिक्त आप अपनी रूचि के अनुसार कोई अन्य विषय

 

 आलेख भेजने  और इस विशेषांक से जुड़े समस्त संवाद के लिए एकमात्र पता 

birjuhindijnu@gmail.com मो. 9968396448, 9811190748

आलेख भेजने की अंतिम तिथि 20 दिसम्बर, 2025  अंक प्रकाशन तिथि  31 मार्च, 2026

शोध आलेख हेतु नियमावली यहाँ देखिएगा