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सम्पादक कविता सिंह सहायक आचार्य (शिक्षा) इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज मोबाइल : 7258810514 |
सह-सम्पादक गोपाल गुर्जर सहायक आचार्य (शिक्षा) उच्च अध्ययन शिक्षा संस्थान, IASE, अजमेर (राजस्थान) मोबाइल : 80786 21643
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प्रशान्त कुमार प्राचार्य ट्रिनिटी इंटरनेशनल स्कूल पिंडवाड़ा (सिरोही) मोबाइल : 7976918930 |
आलेख भेजने की अंतिम तिथि 15 फरवरी 2026
शिक्षा वह माध्यम है जो व्यक्ति और समाज की
आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक वास्तविकताओं को गढ़ती और बदलती है। शिक्षा किसी भी
समाज की आत्मा होती है। यह न केवल व्यक्ति को ज्ञान और कौशल प्रदान करती है,
बल्कि उसके भीतर लोकतांत्रिक चेतना, सामाजिक
जिम्मेदारी और सांस्कृतिक आत्मबोध भी विकसित करती है। किंतु शिक्षा का स्वरूप हमेशा
परिवर्तनशील रहा है और कभी-कभी यह प्रगतिशील होने के बजाय यथास्थिति बनाए रखने और
सामाजिक असमानताओं को स्थायी करने का साधन भी बन जाती है। राजनीतिक स्वार्थों की
पूर्ति और सत्ता-प्रणालियों के हित साधन के रूप में शिक्षा का प्रयोग हमारे
लोकतंत्र के लिए एक गंभीर प्रश्न है।
भारतीय शिक्षा की यात्रा परंपरागत गुरुकुल
प्रणाली से शुरू होकर औपनिवेशिक काल की नौकरी-केंद्रित व्यवस्था और स्वतंत्रता के
बाद अपनी तमाम कमियों और समावेशन की सीमाओं के बावजूद लोकतांत्रिक आदर्शों तक
पहुँचने के माध्यम के तौर पर स्वीकार की गई। आज, वैश्वीकरण, निजीकरण और तकनीकी हस्तक्षेप ने शिक्षा को नए अवसर दिए हैं, लेकिन इसके साथ-साथ अमीर-गरीब, ग्रामीण-शहरी और
निजी-सरकारी शिक्षा संस्थानों के बीच की खाई और गहरी हो गई है। डिजिटल शिक्षा और
ऑनलाइन माध्यम जहाँ नई संभावनाएँ खोलते हैं, वहीं डिजिटल
डिवाइड करोड़ों बच्चों और युवाओं को पीछे धकेल रहा है।
शिक्षा के सरोकार अब केवल पाठ्यक्रम या कक्षाओं
तक सीमित नहीं रह सकते। यह सामाजिक न्याय, लैंगिक समानता, सांस्कृतिक
विविधता की रक्षा, पर्यावरणीय चेतना और लोकतांत्रिक मूल्यों
की मजबूती से गहराई से जुड़ा हुआ विषय है। परंतु व्यवहार में इन सरोकारों को लागू
करना आसान नहीं है। समावेशन (Inclusion) की अवधारणा अभी भी
अधूरी है—वंचित वर्गों, हाशिए पर खड़े समुदायों और दिव्यांग
विद्यार्थियों तक समान अवसर पहुँचाने की चुनौतियाँ हमारे सामने हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 इस संदर्भ में एक
अहम दस्तावेज़ है। इसमें कई दावे और प्रावधान किए गए हैं, परंतु
इनके निहितार्थों पर गहन विमर्श आवश्यक है। भाषा और मातृभाषा का प्रश्न, उच्च शिक्षा के निजीकरण और विदेशी निवेश की संभावना, कौशल-आधारित शिक्षा के ज़रिए बाज़ार की ज़रूरतों को प्राथमिकता मिलना,
तथा समावेशन को केवल नीतिगत दस्तावेज़ों तक सीमित रखना—ये सब ऐसे
मुद्दे हैं जिन पर सतर्क निगरानी की आवश्यकता है। नीति के प्रभावों को बिना
आलोचनात्मक दृष्टि के स्वीकार करना शिक्षा को लोकतांत्रिक और मानवीय मूल्यों से
दूर ले जा सकता है।
इस प्रकार भारतीय शिक्षा आज एक चौराहे पर खड़ी
है—जहाँ एक ओर अवसर और संभावनाएँ हैं, वहीं दूसरी ओर असमानता, बाज़ारीकरण
और राजनीतिक हस्तक्षेप की गहरी चुनौतियाँ भी मौजूद हैं। यह आवश्यक है कि शिक्षा को
केवल रोजगार या राजनीतिक साधन के रूप में न देखा जाए, बल्कि
इसे लोकतंत्र की मज़बूती, सामाजिक न्याय और मानवीय मूल्यों
की संवाहक के रूप में पुनर्स्थापित किया जाए।
"अपनी माटी" का शिक्षा विशेषांक इन्हीं
प्रश्नों और चुनौतियों पर गंभीर विमर्श का मंच बनेगा। इसमें शिक्षा की ऐतिहासिक
यात्रा, बदलते स्वरूप, लोकतांत्रिक
सरोकार, समावेशन की कठिनाइयाँ, अमीर-गरीब
की खाई, तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के निहितार्थों पर गहन
चर्चा की जाएगी। यह अंक पाठकों को न केवल शिक्षा की वर्तमान स्थिति से परिचित
कराएगा, बल्कि भविष्य की दिशा पर विचार करने के लिए भी
प्रेरित करेगा।
थीम
- भारतीय शिक्षा की ऐतिहासिक यात्रा और वर्तमान परिदृश्य
- शिक्षा दर्शन
- शिक्षा और लोकतंत्र
- शिक्षा और राजनीति
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 : निहितार्थ
- समावेशन और वंचित तबकों की शिक्षा
- शिक्षा और दलित
- शिक्षा और आदिवासी
- मुस्लिम और अल्पसंख्यक समुदायों की शिक्षा
- महिला शिक्षा और लैंगिक समानता
- विकलांग विद्यार्थियों की शिक्षा
- प्रवासी मज़दूरों और घुमंतू समुदायों की शिक्षा
- अनाथ और आश्रयहीन बच्चों की शिक्षा
- ग्रामीण शिक्षा
- शहरी गरीब और झुग्गी बस्तियों में शिक्षा
- LGBTQ+ समुदाय और शिक्षा
- भाषाई अल्पसंख्यक और मातृभाषा का प्रश्न
- उच्च शिक्षा में वंचित वर्गों की भागीदारी
- शिक्षा और निजीकरण
- शिक्षा और बाज़ारीकरण
- डिजिटल शिक्षा और डिजिटल डिवाइड
- शिक्षा और पाठ्यचर्या
- हिडन करिक्युलम
- पाठ्यपुस्तकें और विचारधारा
- शिक्षक की बदलती भूमिका
- विद्यालय और विश्वविद्यालय की स्वायत्तता
- शिक्षा और सामाजिक न्याय
- शिक्षा और संस्कृति
- शिक्षा और रोजगार
- शिक्षा और पर्यावरणीय चेतना
- शिक्षा और सरकारी योजनाएं
- शिक्षा और बजट
नोट- लेख में संदर्भों का अधोलिखित रूप से प्रयोग करें
1. लेख में अंग्रेजी या अन्य किसी भाषा के उदाहरण का उपयोग करते हुए
उसका मूल फुटनोट में अवश्य दें,उदाहरण के स्थान पर उसके अनुवाद क उपयोग करें.
2. संदर्भ के लिए एम.एल.ए. शैली का उपयोग कर्ण, उदाहरण के लिए अपनी माटी पत्रिका के संदर्भ शैली यहाँ देंखें – https://www.apnimaati.com/p/infoapnimaati.html


