शोध आलेख : बाल साहित्य परंपरा और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला / स्वाती मिश्रा

बाल साहित्य परंपरा और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
- स्वाती मिश्रा

शोध सार : बाल साहित्य बच्चों के मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।यहउनकी कल्पनाशक्ति, भाषा कौशल, और रचनात्मकता कोनिखारने के साथ- साथ उन्हें नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों से भी जोड़ता है। सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' ने बाल साहित्य के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया है। उन्होंने पौराणिक आख्यानऔर ऐतिहासिक चरित्रों जैसे- ध्रुव, प्रह्लाद, महाराणा प्रताप और भीष्म के माध्यम से बच्चों के मन में सच्चाई, ईमानदारी, वीरता, देशप्रेम, बलिदान और नैतिक गुणों की भावना को विकसित किया। उनकी रचनाएँ केवल बच्चों को भारतीय सांस्कृतिक धरोहर से जोड़ने में सफल रही हैं, बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन में भी इनका महत्त्व स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आता है।इस आलेख में बाल साहित्य की परंपरा में सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की भूमिका का गहन विश्लेषण किया जाएगा। यह विश्लेषण निराला के योगदान को समझने और उनकी रचनाओं के महत्व को उजागर करने का प्रयास करेगा।

बीज शब्द : बाल साहित्य, सूर्यकांत त्रिपाठीनिराला, कहानी, स्वतंत्रता आंदोलन, देशभक्ति, नैतिकता, बच्चों, पौराणिक, ऐतिहासिक,चरित्र, मनोरंजन, मूल्य, ध्रुव, महाराणा प्रताप, प्रहलाद, भीष्म

मूल आलेख : बाल साहित्य ऐसा साहित्य है जिसे बच्चों को केन्द्र में रखकर लिखा जाता है। इसके अंतर्गत कविताएं, कहानियां, जीवनी, नाटक, लोरी, गीत प्रभाती इत्यादि समाहित हैं। बाल साहित्य का निर्माण उनकी उम्र, मनः स्थिति, क्रियाकलापों को ध्यान में रखकर किया जाता है। बात करें बाल साहित्य के उद्देश्य की तो इसका उद्देश्य केवल बच्चों का मनोरंजन करना होकर उनमें कल्पनाशक्ति, ईमानदारी, नैतिकता, साहस, सत्यनिष्ठा का विकास करने के साथ-साथ उन्हें सामाजिक भावनात्मक रूप से समझदार बनाना होता है। बाल साहित्य बच्चों में अपनी सरल भाषा, चित्रात्मकता मनोरंजक कहानियों के कारण बहुत प्रिय होता है। जो सवाल बच्चों के मन में उठते हैं, उनका जवाब बाल साहित्य बहुत सरल, स्पष्ट शब्दावली के माध्यम से मनोरंजक ढंग से देता है। वैसे तो बाल साहित्य के अन्तर्गत अनेक प्रकार की विधाएं शामिल हैं, लेकिन सर्वाधिक प्रिय विधा कहानी है। बाल्यावस्था से ही बच्चा दादी-नानी-मां से कहानी और गीत सुनकर बड़ा होता है। थोड़ा और बड़ा होने पर वह बाल साहित्य पढ़ता है, जिससे उसका चारित्रिक विकास होता है। इस प्रकार कह सकते हैं कि बाल साहित्य बच्चों में समाज, संस्कृति और नैतिकता की बुनियादी समझ पैदा करने वाली विधा है।

भारत जैसे देश में बाल साहित्य कोई नई अवधारणा नहीं है। यह प्राचीन काल से ही वेदों, उपनिषदों, पुराणों और लोक कथाओं में विद्यमान है, भले ही उसका रूप स्पष्ट ना हो; वह बच्चों को ध्यान में रखकर ना लिखा गया हो; उसका उद्देश्य मात्र शिक्षा देना हो, फिर भी इसको मानने से कोई इनकार नहीं कर सकता कि बाल साहित्य प्राचीनतम विधा नहीं है। प्राचीन काल से ही मौखिक कहानी मानव समाज का अभिन्न हिस्सा रही है। इसके माध्यम से लोग एक-दूसरे से अनुभव, ज्ञान, सुख-दु: साझा करते रहे हैं।लिखित परंपरा को देखें तो वेद, पुराण, उपनिषद के बाद संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश और हिंदी में बाल साहित्य की अनेक रचनाएं देखने को मिलती हैं। ध्यातव्य है कि बाल साहित्य नाम की कोई सुनिश्चित परंपरा नहीं मिलती, ही कोई कसौटी है जिस पर बाल साहित्य को कसकर कहा जा सके कि यह बाल साहित्य है। व्यास कृतभागवत पुराणमहाभारततथा वाल्मीकि कृतरामायणआदि में अनेक ऐसे कथा प्रसंग हैं जो बच्चों को प्रेरणा देते हैं। वैसे तो यह ग्रंथ धार्मिक हैं किंतु इनसे बच्चों को नैतिकता, साहस, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, न्याय, कर्तव्यपरायणता, भाईचारा इत्यादि की सीख मिलती है।

लगभग तीसरी सदी में विष्णु शर्मा द्वारा रचित पुस्तकपंचतंत्रआती है, जिसे बच्चों को शिक्षा देने के उद्देश्य से लिखा गया था।इसमें जानवरों को पात्र बनाकर शिक्षाप्रद बातें लिखी गई हैं।1पंचतंत्रकी कहानी मुख्यतः राजनीतिक और सामाजिक व्यवहार पर आधारित है। इसमें यह भी दिखाया गया है कि कैसे अनुभव, बुद्धि और विवेक के आधार पर समस्याओं का समाधान आसानी से किया जा सकता है।इसी समय लगभग 300 . पू. - 400 . पू  के मध्य बौद्ध संतों द्वारा संग्रहित जातक कथाएं देखने को मिलती हैं; जिसमें बौद्ध धर्म के सिद्धांतों के साथ-साथ भगवान बुद्ध के पूर्वजन्मों की कथाएं शामिल हैं। जिनसे दया, करुणा, सत्य, अहिंसा जैसे मूल्यों को समझा जा सकता है।14वीं सदी में पंचतंत्र की भांति ही नैतिक और धार्मिक शिक्षाएं प्रदान करने वाला ग्रंथहितोपदेशविष्णु शर्मा द्वारा लिखा गया। यह ग्रंथ मुख्य रूप से तात्कालिक परिस्थितियों में त्वरित निर्णय लेने की समझ पैदा करता है।

हिंदी में बाल साहित्य की शुरुआत अमीर खुसरो के समय से मानी जाती है। अमीर खुसरो की रचनाओं में बच्चों के लिए सरल और शिक्षाप्रद पहेलियांव मुकरियां देखने को मिलती हैं जैसे -

एक थाल मोती से भरा। सबके सिर पर औंधा धरा।

चारों ओर वह थाली फिरे। मोती उससे एक नगिरे।2

इनकी पहेलियों और मुकरियों में हास्य-व्यंग्य के साथ-साथ उपयुक्त विषय, भाषा, शिक्षा और मनोरंजन का मिश्रण देखने को मिलता है। खुसरो की रचनाएं केवल बच्चों का मनोरंजन करती हैं, बल्कि उन्हें नैतिक और सामाजिक शिक्षा भी देती हैं।हिंदी साहित्य के भक्तिकाल में धार्मिक और नैतिक शिक्षा को प्राथमिकता दी गई। तुलसीदास कृतरामचरितमानसऔर सूरदास की रचनाओं में आदर्श चरित्रों का चित्रण करके नैतिक शिक्षाएं प्रस्तुत की गईं। हालांकि, ये रचनाएं बच्चों के लिए विशेष रूप से नहीं लिखी गई थीं, लेकिन इनमें बच्चों के लिए आदर्श, शिक्षाओं और चरित्रों का समावेश था। इन रचनाओं का प्रभाव इतना गहरा था कि ये बाल साहित्य के लिए महत्वपूर्ण आधार बनीं।रीतिकाल में बाल साहित्य की दिशा में अधिक प्रगति नहीं हुई। इस काल में साहित्यिक प्रवृत्तियों का ध्यान अन्य विषयों पर था, बच्चों के साहित्य को स्थान नहीं मिला।

भारतेंदु और द्विवेदी युग में बाल साहित्य की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किए गए। इस काल में बाल साहित्य के विकास के लिए विशेष पत्रिकाएं निकाली गईं, जैसे किबाल दर्पण’,‘बाल हितकर,छात्र हितैषी, मानीटर, बालसखा’,‘खिलौना, चमचमऔरवानरइत्यादि। इन पत्रिकाओं ने बच्चों के लिए शिक्षा और मनोरंजन का एक नया माध्यम प्रस्तुत किया। ये पत्रिकाएं बच्चों को साहित्यिक सामग्री, नैतिक शिक्षाएं और खेल कूद की जानकारी प्रदान करने के साथ-साथ उनकी कल्पनाओं को आकार देने का कार्य कर रही थीं, जिससे बच्चों के मानसिक, सामाजिक और नैतिक विकास को बढ़ावा मिला। मुंशी प्रेमचंद ने बच्चों के साहित्य को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनकी रचनाओं में बच्चों के लिए अनेक कहानियां शामिल थीं, जो नैतिक शिक्षा और सामाजिक मूल्यों को प्रस्तुत करने के साथ उनकी मनःस्थिति को भी रेखांकित करती हैं।हंस’, ‘सुधाऔर अन्य पत्रिकाओं के माध्यम से प्रेमचंद ने बच्चों के लिए प्रचुर मात्रा में सामग्री उपलब्ध कराई, जो उनके साहित्यिक और नैतिक विकास में मील का पत्थर साबित हुई।

बालक एक ऐसा व्यक्ति है जो आपके कार्यों को आगे बढ़ाएगा। आज जहां आप बैठे हैं; वहीं कल वह बैठेगा। और जब आप चले जाएंगे तो आपके महत्वपूर्ण कार्यों को वह पूरा करेगा। आप अपनी इच्छा से कोई भी नीति अपना सकते हैं। किंतु उन्हें किस तरह पूरा करना है, यह बालक पर भी निर्भर करता है। आपकी सभी पुस्तकों का मूल्यांकन उनकी प्रशंसा अथवा निंदा उसी के द्वारा होगी। वास्तव में मानवता का भविष्य बालक के ही हाथों में है।3 इस बात को 20वीं शताब्दी के बड़े से बड़े रचनाकार ने स्वीकार किया है। चाहे वह श्रीधर पाठक,अयोध्यासिंह उपाध्यायहरिऔध’, मैथिलीशरण गुप्त, कामताप्रसाद गुरु, रामनरेश त्रिपाठी, बाबू गुलाबरायही क्यों ना हो, सभी ने बाल साहित्य की उपयोगिता और आवश्यकता को समझा, जिससे बाल साहित्य की एक समृद्ध परंपरा खड़ी हुई। जिसको सुभद्रा कुमारी चौहान,ठाकुर श्रीनाथ सिंह, सोहनलाल द्विवेदी, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठीनिरालाइत्यादि साहित्यकारों ने आगे बढ़ाया।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बाल साहित्य की रचना एक महत्वपूर्ण आवश्यकता बन गई थी। उस समय, जब स्वतंत्रता आंदोलन पूरे देश में एक विशाल आंदोलन के रूप में उभर रहा था, बच्चों में देशप्रेम, गौरवमयी अतीत, समानता,स्वतंत्रता और भाईचारे की भावना को जागृतकरने के लिए विशेष रूप से रचनात्मक साहित्य लिखे जा रहे थे। बाल साहित्य ने बच्चों में सामूहिक संघर्ष की भावना को प्रस्फुटित किया और उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के उद्देश्य और मूल्य से परिचित कराया। जब सभी प्रमुख साहित्यकार स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित रचनाएं कर रहे थे, तब कवि निराला जैसे दैदिप्यमान साहित्यकार की लेखनी का बाल साहित्य पर चलना स्वाभाविक था। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, जो छायावाद के प्रतिनिधि कवि और सशक्त हस्ताक्षर थे, ने इस आवश्यकता को पूरी तरह समझा और बाल साहित्य के क्षेत्र में भी अपनी महनीय भूमिका निभाई। आश्चर्य होता है कि निराला के संपूर्ण उपन्यास, कविता संग्रह पर पर्याप्त लिखा गया और शोध कार्य किया गया है, लेकिन जो भविष्य के भावी कर्णधार हैं; बच्चे, उनके ऊपर लिखा गया साहित्य कैसे छूट गया, यह सोचनीय विषय है। यह उदासीनता निराला के बाल साहित्य को लेकर है कि बाल साहित्य लेकर, यह कहना कठिन है।

निराला ने इतिहास तथापौराणिक कथाओं को अपनी कहानी का आधार बनाया है। इन कहानियों के माध्यम से वह गुलामी में जकड़ी जनता को जो सुषुप्तावस्था में चली गई है, उन सभी को गौरवमयी संस्कृति तथा शूरवीर नायकों की याद दिलाकर जागृत करना चाहते थे।निराला का बाल साहित्य सभी आयु वर्ग के बच्चों के लिए लाभकारी है।बच्चों में पौराणिक तथा ऐतिहासिक नायकों के माध्यम से ऊर्जा का संचार करना और साहस, निडरता, शौर्य, बलिदान का भाव भरना उनका मुख्य उद्देश्य था। निराला महाराणा प्रताप की जीवनी के माध्यम से देश की रक्षा, सांस्कृतिक और जातीय आदर्शों की रक्षा की आवश्यकता, और धर्म में रही गिरावट पर प्रकाश डालते हैं। वे स्वतंत्रता, आत्मसम्मान और देशभक्ति के महत्व को रेखांकित करते हुए कहते हैं: “देखो, आज कुछ ही शताब्दियों के अंदर कितना घोर परिवर्तन हो गया। उस जाति को आदर्श से भ्रष्ट, धर्म से पतित, सहानुभूति से बहिष्कृत, देश की हिताकांक्षा से विमुख और तुर्कों की सेवा में तत्पर होते देखकर क्या कभी कोई सच्चा स्वदेश-भक्त एक क्षण के लिए भी स्थिर रह सकता है?”4 निराला बच्चों को प्रेरित करते हैं कि वे देश की सेवा और अपने मूल्यों को स्थिर रखें, ताकि वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करने की ताकत प्राप्त कर सकें।

निराला महाराणा प्रताप की जीवनी में बताते हैं कि मनुष्य की स्वभाविक प्रवृत्ति सदा दूसरों को गुलाम बनाने की रही है: “जिस प्रकार प्रलय की अग्नि चारों ओर से पार्वत्य प्रदेश को घेर कर जलती रहती है, आज हम उसी तरह चारों ओर से घिरे हुए हैं और तभी तक हमारा अस्तित्व है, जब तक हम अपनी स्वतंत्रता के साथ अपनी जननी- जन्मभूमि की गोद में सुख से विचरण करते हैं। हमारे देश के हतश्री महाराजाओं को हमारी यह स्वतंत्रता पसंद नहीं। वे अपनी तरह हमें भी गुलाम बना लेना चाहते हैं। यह मनुष्यों की प्रकृति है।5 इसलिए, हमें अपने अस्तित्व को बनाए रखने और अपनी मुक्ति के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए।

निराला बच्चों में देशप्रेम, वीरता, साहस, निडरता और देश के लिए बलिदान की भावना का संचार करना चाहते थे। वे लिखते हैं: “वीरों! मृत्यु एक ही बार होगी, धर्म और अपनी माता के लिए मरना, इससे अधिक गौरव की मृत्यु हमें फिर शायद ही मिले। कीर्ति की उज्जवल पताका तुम्हारे हाथ से जाने पावे वीरों।6 कहने का तात्पर्य है कि सच्चे वीर की मृत्यु केवल एक बार होती है, और यदि वह मृत्यु धर्म और मातृभूमि की सेवा में हो तो यह सबसे गौरवमयी होती है।

निराला सुषुप्त पड़ी सांस्कृतिक विरासत के प्रति उदासीनता को दूर करने और मानवता के लिए मंगलकारी शक्ति जागृत करने का लक्ष्य रखते हैं। उनकी रचनाध्रुवबच्चों को भक्ति, कर्तव्यपरायणता, धैर्य और निर्भीकता का संदेश देती है और संपूर्ण मानवता की चिंता को भी दर्शाती है: “तिरस्कार, घृणा, अपमान, अत्याचार, निर्यातन इस पासविक प्रवृत्तियों के विरोध के लिए आज उसके खून की हर एक बूंद तीव्र गति से उसे कार्यतत्पर कर रही हैं। बालक सोच रहा है- इस अत्याचार का उपाय। चिरकाल से मनुष्य जाति, मनुष्य जाति पर जो अत्याचार करती चली रही है- इसका कारण, साथ ही इसका प्रतिशोध भी। वह अत्याचार सहने के लिए नहीं आया है।7 मनुष्य के व्यक्तित्व में अनेक दोष हो सकते हैं, किंतु उनमें निहित मानवीय विशेषताएं उन्हें अत्याचार, अन्याय और दमन के खिलाफ संघर्ष करने के लिए प्रेरित करती हैं।

निरालाध्रुवके माध्यम से भारत की प्राचीनतम परंपराअतिथि देवो भव:’ को मूर्त रूप में दिखाते हैं और बच्चों में इसका अंकुर बोने की कोशिश करते हैं। वे लगन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि: “बालक की वृत्ति ज्यों-की-त्यों सुमेरू की तरह अटल, समुद्र-सी गंभीर, रात्रि-सी गहन और धरित्री-सी धीर बनी रही। लगन में कोई बाधा उसे पराजित कर सकी। लक्ष्य से कोई प्रलोभन उसे च्युत कर सका।8इससे बच्चों को शिक्षा मिलती है कि हमें अपने मूल्य स्थिर रखना चाहिए और किसी प्रलोभन या कठिनाई से डरकर पलायन नहीं करना चाहिए; बल्कि लगन से बड़े से बड़े कार्य को सिद्ध किया जा सकता है। गुरु के महत्व को रेखांकित हुए निराला कहते हैं: “गुरु-रूपी आईने में ही परमात्मा का प्रतिबिंब पड़ता है- गुरु और परमात्मा अभेद हैं, शास्त्रों की यह उक्ति सप्रमाण सिद्ध हो गई।9गुरु ज्ञान के जरिए सदैव हमारी सहायता करते रहते हैं।

भीष्मकी कहानी के माध्यम से निराला बच्चों को आज्ञापालन, राजभक्ति, कर्तव्यपरायणता, वचनबद्धता और दृढ़ प्रतिज्ञा की शिक्षा देते हैं। सेवा और कर्तव्य की भावना में गहराई का होना  अत्यंत आवश्यक है, और यह केवल स्थिति या संसाधनों पर निर्भर नहीं होती। इसका श्रेष्ठ उदाहरण भीष्म पितामह के जीवन में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है- "सेवकों की कमी रहने पर भी पिता की सेवा करना देवव्रत अपना प्रथम कर्तव्य समझते थे।10इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि हमें अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को पूर्ण समर्पण और निष्ठा के साथ निभाना चाहिए, चाहे व्यक्तिगत स्थिति कैसी भी हो।

भीष्म का व्यक्तित्व कर्तव्यपरायणता, दृढ़ प्रतिज्ञा, समझदारी, सामर्थ्य और ईमानदारी का अद्वितीय संगम है। भीष्म कायहकथन "इससे पहले मैं साम्राज्य का त्याग कर चुका हूं। अब मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं विवाह भी करूंगा।11उनके संकल्पों की दृढ़ता और शक्ति को उजागर करता है। साम्राज्य का त्याग करने और विवाह करने की प्रतिज्ञा को उन्होंने पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए व्यक्ति के भीतर दृढ़ संकल्प का होना आवश्यक है।भीष्म का चरित्र यह भी सिखाता है कि कभी-कभी सामाजिक कर्तव्य को व्यक्तिगत इच्छाओं के तुलना में प्राथमिकता देनी पड़तीहै। उनका जीवन कर्तव्यपरायणता, ईमानदारी, इच्छाओं पर संयम और आत्म-नियंत्रण की महत्वपूर्ण शिक्षा प्रदान करता है। इस प्रकार, भीष्म की जीवन यात्रा कर्तव्य और सेवा के उच्चतम मानक स्थापित करती है, और यह दर्शाती है कि सच्चे समर्पण और निष्ठा से ही एक व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पूरी तरह निर्वाह कर सकता है।

निराला ने अपनीरामायण की अंतर्कथाएंके माध्यम से बच्चों को सकारात्मक दिशा देने का प्रयास किया है। उन्होंने वाल्मीकि, पृथु, नारद, अगस्त्य, ध्रुव, प्रह्लाद और भीष्म जैसे आदर्श चरित्रों के जरिए संयम, तपस्या, भक्ति, वचनबद्धता, धर्मपालन और समर्पण की महत्वपूर्ण शिक्षाएं दी हैं। ध्रुव के माध्यम से यह सिद्ध होता है कि सच्ची मेहनत और धर्मपालन से उच्च स्थान प्राप्त किया जा सकता है। अजामिल की कथा यह संदेश देती है कि धर्म के पालन से हमें शुभ फल मिलते हैं। गजेंद्र मोक्ष कहानी में वे प्राकृतिक संसाधनोंजैसे पर्वत, वनस्पतियाँ, और खनिज संपदाका विस्तृत वर्णन करते हैं, और सिद्ध, चारण, विद्याधर, गंधर्व, किन्नर जैसे अद्भुत प्राणियों की जानकारी भी प्रदान करते हैं। चित्रकूट, विंध्याचल, और कुलाचल पर्वतों के वर्णन से उन्होंने भारतीय भौगोलिक विविधताओं को उजागर किया। प्राकृतिक वर्णन की यह छटा दर्शनीय है: “त्रिकूट नाम का एक मनोहर पर्वत है, जो क्षीर-सागर से घिरा हुआ है। यह दस हजार योजन ऊंचा है, और इतना ही चारों ओर से घिरा हुआ। उसकी तीन चोटियां सोने, चांदी और लोहे की आभा से विभासित हैं, जिनसे दिशाएं चमकती रहती हैं, और सागर भी प्रतिफलित रहता है। उसमें और भी चोटियां हैं, जो भिन्न-भिन्न रत्नों और धातुओं की प्रभा से जगमग रहती हैं। उसमें असंख्य सुंदर- सुंदर पेड़, लताएं, तृण-गुल्म आदि हैं। पर्वत से सुखद कल-कल जल-शब्द करती उतरती हुई एक बड़ी ही सुहानी निर्झारिणी है, जो अपने शुभ्र-स्वच्छ जल से पर्वत के चरण धोती, दिगंत को मधुर ध्वनित करती, बहती चली जाती है।12इस प्रकार, निराला कीरामायण की अंतर्कथाएंबच्चों को धर्म, नैतिकता और प्राकृतिक सौंदर्य के प्रति गहरी समझ और प्रेरणा प्रदान करती हैं।वीरभद्र की कथाके जरिए निरालाबताते हैं कि जब कभी स्त्रियों का अपमान किया जाता है, तो इसके गंभीर परिणाम सामने आते हैं: "पतिदेव ने अपर कन्याओं के सामने सती का अनादर करके अच्छा नहीं किया। यह सब अनर्थ सती के शरीर त्याग के कारण हो रहा है।"13स्त्रियों की गरिमा और सम्मान की अनदेखी करने से केवल उनका आत्मसम्मान प्रभावित होता है, बल्कि इससे समाज में व्यापक असंतुलन और संकट उत्पन्न होते हैं।

महाभारत की भूमिका में निराला स्पष्ट कहते हैं कि: "यह संक्षिप्त महाभारत साधारण जनों, गृहदेवियों और बालकों के लिए लिखी गयी है।"14इस ग्रंथ में भीष्म, अर्जुन, द्रौपदी, दुर्योधन, कर्ण, और कृष्ण जैसे प्रमुख पात्रों के माध्यम से बच्चों को महत्वपूर्ण शिक्षाएँ दी गई हैं। जहां, अर्जुन का चरित्र हमें संकल्प और उद्देश्य के प्रति स्पष्ट रहना तथा कठिन परिस्थितियों में भी अपने लक्ष्य की ओर दृढ़ता से बढ़ने की प्रेरणा देता है। वहीं द्रौपदी के चरित्र द्वारा स्त्री सम्मान और आत्मसम्मान के महत्व को उजागर किया गया है। दुर्योधन और कर्ण के माध्यम से निराला हमें चेतावनी देते हैं कि शक्ति, लालसा और महत्वाकांक्षा की दिशा में भटकना विनाशकारी हो सकता है। अंततः, कृष्ण का चरित्र जीवन की जटिलताओं को समझने और धर्म का पालन करने का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है। कृष्ण की शिक्षाएँ बच्चों को जीवन में सही मार्ग पर चलने, धर्म का पालन करने, और नि:स्वार्थ भाव से कर्म करने की प्रेरणा देती हैं।

निराला ने केवल ऐतिहासिक, पौराणिक या मिथक चरित्रों पर आधारित रचनाएँ नहीं लिखीं, बल्कि उन्होंने बच्चों की प्रारंभिक अवस्था को ध्यान में रखते हुए शिक्षाप्रद कहानियाँ भी रचीं। इन कहानियों में जीवन के महत्वपूर्ण सबक, मूल्य, और संदेश को अत्यंत सरल और रोचक भाषा में प्रस्तुत किया गया है। उनकी कहानियों में नैतिकता, सच्चाई, मानवता, अहिंसा, और सतर्कता जैसे गुणों को प्रभावशाली ढंग से दर्शाया गया है।मुर्ग और लोमड़ी, मैं और हम’, ‘सिंह और चूहा’, ‘लोमड़ी और अंगूर’, ‘दो घड़े,लोमड़ी और कौआ’, ‘सुअर और गधा’, ‘कंजूस और सोना’, ‘किसान, उसका हल और गधा’, ‘महावीर और गाड़ीवान’, औरमेंढक और उनका राजाजैसी कहानियों में मनुष्यों, जानवरों और पेड़-पौधों आदिकाचित्रण सजीवता के साथ प्रभावशाली तरीके से किया गया है। येसीखभरी कहानियाँ’  अत्यंत रोचक हैं। इनसे जो संदेश बच्चों को मिलता है, वह कृत्रिम नहीं लगता, बल्कि स्वाभाविक रूप से प्रकट होता है। इन कहानियों में मानव, पेड़, पक्षी, और जानवरों को इस तरह से प्रस्तुत किया गया है कि वे पूरी तरह से एकीकृत और प्राकृतिक प्रतीत होते हैं।

मुर्ग और लोमड़ीकहानी से शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा सतर्क और सावधान रहना चाहिए। हमें दूसरों की बातों पर आंख मूंद कर विश्वास नहीं करना चाहिए। लोमड़ी ने कहा किकितने पशु-पक्षी हैं, उनमें सुलह हो गई है। एक दूसरे पर वार करें, इसके लिए मजबूर हो चुका है।15 लेकिन वह खुद को बचाने के लिए झूठ बोल रही थी। यह दर्शाता है कि हमें समझदारी से काम लेना चाहिए और खुद को धोखाधड़ी से बचाना चाहिए। स्वार्थी लोग केवल अपने हितों की परवाह करते हैं।

मैं और हमकहानी बच्चों को सिखाती है यदि हम गलत काम करते हैं तो उसकी सजा भुगतनी  पड़ती है। उदाहरण: पहले व्यक्ति ने खुशी-खुशी थैली को अपनी जेब में रख लिया, लेकिन जब लोगों ने उसको चोर समझकर उसका पीछा किया, तब उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ा।हमें सदैव सच्चाई के मार्ग पर चलना चाहिए। यह कहानी एकता और सहयोग के महत्व को भी दर्शाती है। दूसरे व्यक्ति ने ठीक ही कहा किजब हम दोनों एक साथ रास्ता चल रहे हैं, तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए कि मैंने यह चीज पड़ी पाई, बल्कि यह कि हमने पाई।16जब हम मिलकर काम करते हैं, तो समस्याओं का समाधान बेहतर होता है और हमें अपने साथी को साथ लेकर चलना चाहिए। स्वतंत्रता आंदोलन के संदर्भ में देखें कई नेता और सिपाही एक साथ मिलकर देश की स्वतंत्रता के लिए लड़े। अगर किसी ने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए या झूठ के आधार पर काम किया होता, तो आंदोलन कमजोर पड़ सकता था।

हिरण का छौना और हिरणकहानी बताती है कि वास्तविक खतरे का सामना करने से केवल बहस करना आसान होता है। हिरण का यह कहना किबहुत दफे मैं खुद मन- ही- मन कह चुका हूं। लेकिन कितना भी मैं दिल कड़ा करूं जब उनकी आवाज़ कान में पड़ती है, मैं भाग खड़ा होता हूं।17हिरन खुद को बलवान मानता है, लेकिन शिकारी के कुत्तों की आवाज सुनकर वह भाग जाता है, यह बताता है कि डर और खतरे का सामना करना मानसिक दृढ़ता और हिम्मत की बात है।बाहरी ताकतों से डरकर या भागकर समस्या का समाधान नहीं होता; वास्तविक साहस और संघर्ष ही हमें समस्याओं का सामना करने की ताकत देते हैं।

जंगल और कुल्हाड़ीकहानी से बच्चों को यह सीख मिलती है कि छोटी-छोटी चीजों की भी अपनी महत्वता होती है और किसी भी कार्य को हल्के में नहीं लेना चाहिए। लोहार ने छोटी सी लकड़ी की मांग की, लेकिन जंगल के पेड़ों ने उसकी मांग को हल्के में लिया और अंततः उनका पूरा अस्तित्व खतरे में गया। पेड़ों का यह कहना कियह दोष हमारी ही नासमझी का है,एक समय इससे हमारा नाश हो जाएगा।18दर्शाता है कि किसी भी काम को नजरअंदाज करने या उसे हल्के में लेने से दीर्घकालिक परिणाम हानिकारक हो सकते है।प्रकृति के संसाधनों का अत्यधिक और अनियंत्रित दोहन दीर्घकालिक समस्याएं उत्पन्न कर सकता है। हमें पर्यावरण के प्रति सजग और संवेदनशील रहना चाहिए ताकि हम दीर्घकालिक समस्याओं से बच सकें और प्रकृति के साथ संतुलित संबंध बनाए रख सकें।

पथिक और सीपीकहानी में जब दो पथिक एक सीपी पर अधिकार के लिए आपस में झगड़ते हैं, तो तीसरा पथिक आकर एक न्यायाधीश के रूप में बुद्धिमत्ता पूर्ण निर्णय लेता है, मांस को खाकर सीपी का टुकडा आधा आधा दोनों को दे देता है।इससे यह सीख मिलती है कि द्वंद और संघर्ष से केवल हानि होती है, जबकि सहयोग और समझौते के माध्यम से समाधान प्राप्त किया जा सकता है। स्वतंत्रता संग्राम में विभिन्न दल और विचारधाराएं एक साझा लक्ष्य के लिए संघर्षरत थीं। यदि आंदोलनकारी आपसी मतभेद और संघर्ष में उलझे रहते, तो स्वतंत्रता की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होती। यह प्रमाणित करता है कि आपसी विवाद और संघर्ष के बजाय, समझौता और सहयोग से बड़ी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।

निष्कर्ष : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का बाल साहित्य परंपरा में योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। उन्होंने केवल बाल साहित्य को साहित्यिक गुणवत्ता प्रदान की, बल्कि उसे सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी समृद्ध किया। उनकी रचनाएँ बच्चों के मानस पटल पर गहरा प्रभाव छोड़ने में सफल रहीं। स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में यह कहानियाँ केवल बच्चों में देशभक्ति और सामाजिक जागरूकता का संचार कर रही थीं, बल्कि उन्हें संघर्ष और साहस की प्रेरणा भी दे रही थीं। इन कहानियों ने बच्चों में देशभक्ति, वीरता , निडरता और नैतिक मूल्य विकसित किए, जिससे वे अपने समय की महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक स्थितियों को समझने में सक्षम हुए। निराला ने पौराणिक कथाएँ, ऐतिहासिक पात्र, और लोककथाओं को सरल और सहज भाषा में आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किया है। उनके बाल साहित्य ने भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को बच्चों तक पहुँचाया और उन्हें भारतीयता की गहरी समझ प्रदान की। इस प्रकार, निराला ने बाल साहित्य को केवल मनोरंजन का साधन बनाकर, नैतिक और सामाजिक शिक्षाओं का माध्यम बनाया। उनके लेखन ने बच्चों को भारतीय संस्कृति और समाज के मूल्यों से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया, जिससे बाल साहित्य की परंपरा को नई दिशा मिली और यह विधा समृद्ध हुई। निराला की बाल कृतियाँ आज भी बच्चों के मानसिक और सामाजिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

संदर्भ :
1.  https://m.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AA%E0%A4%82%E0%A4%9A%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
2.    आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी साहित्य का इतिहास,प्रयाग पुस्तक सदन, इलाहाबाद,2015, पृ. 32
3.  अनुपमा तिवारी, डॉ. ओम प्रकाश द्विवेदी : बालसाहित्यकेविकासकीप्रक्रियाकाअध्ययन,इंडियन स्ट्रीम्स रिसर्च जर्नल, दिसम्बर 2022,पृ.03
4. संपा. विवेक निराला सूर्यकांत त्रिपाठीनिरालासंपूर्ण बाल रचनाएं, लोकभारती प्रकाशन, प्रयागराज,2022, पृ.59
5.    वहीं, पृ.60
6.    वहीं, पृ.86
7.    संपा.नंदकिशोर नवल निराला रचनावली(7), राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, 1983, पृ. 44
8.    वहीं, पृ. 49- 50
9.    वहीं, पृ. 52
10. वहीं, पृ. 149
11. वहीं, पृ. 152
12. संपा. विवेक निराला सूर्यकांत त्रिपाठीनिरालासंपूर्ण बाल रचनाएं, लोकभारती प्रकाशन, प्रयागराज, 2022, पृ.473-474
13. वहीं, पृ. 480
14. संपा. नंदकिशोर नवल : निराला रचनावली (8), राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, 1983, पृ. 64
15. संपा. विवेक निराला सूर्यकांत त्रिपाठीनिरालासंपूर्ण बाल रचनाएं, लोकभारती प्रकाशन, प्रयागराज, 2022, पृ. 19
16. वहीं, पृ. 19
17. वहीं, पृ.20
18. वहीं, पृ. 22

 

स्वाती मिश्रा
असिस्टेंट प्रोफ़ेसर(हिंदी विभाग), 
रघुनाथ गर्ल्स पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज, मेरठ

बाल साहित्य विशेषांक
अतिथि सम्पादक  दीनानाथ मौर्य
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-56, नवम्बर, 2024 UGC CARE Approved Journal

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