भारतीय भूमि लोक चित्रण का समकालीन तंत्र चित्रकला पर प्रभाव
- अभिषेक चौरसिया एवं किशोर इंगले
चित्र1: महाराष्ट्र की ‘रंगोली’ भूमि लोक चित्रकला |
शोध सार : भारतीय संस्कृति एवं ऐतिहासिक धरोहर में लोक कलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इन कलाओं में लोक चित्रकला और समकालीन तंत्र चित्रकला दो मुख्य विधाएं हैं। लोकप्रियता एवं विभिन्न विशेषताओं के कारण इस भारतीय कला ने विशेष स्थान प्राप्त किया है। भारतीय चित्रकला ‘लोक कला’ की मुख्य विधा है जो स्थानीय संस्कृति, जीवन शैली एवं परंपराओं को प्रतिबिंबित करती है। लोक चित्रकला ने गांवों की जीवनधारा, पौराणिक कथाओं का प्रतिचित्रण व सांस्कृतिक महक को दर्शाने का कार्य किया है। लोक चित्रकला भारत की विविधता को प्रकट करती है। समकालीन भारतीय तंत्र चित्रकला ने नई दिशा में कदम रखा, जो पारंपरिक चित्रकला को आधुनिकता के साथ जोड़ने का प्रयास करती है। यह कला आधुनिक विचारधारा अथवा प्रयोगशीलता का प्रतीक है। जिसमें पारंपरिक तांत्रिक तत्वों के आधार पर नयी विचारधारा, तकनीकों और रोचक तथ्यों कों चित्रित किया है। लोक चित्रकला से प्रभावित तंत्र चित्रकला के माध्यम से, भारतीय समकालीन चित्रकारों ने अपने अनुभवों को गहराई से प्रकट किया है।
बीज शब्द : भारतीय भूमि लोक-चित्रकला, तत्व, समकालीन तंत्र चित्रकला, संस्कृति, रंगोली, अलंकरण, भय-निवारण, अंधविश्वास, नयी विचारधारा।
मूल आलेख : भारतीय चित्रकला भारत वर्ष के लिए कला संस्कृति के तुल्य है। चित्रकला संस्कृति की धरा में लोक चित्रकला मुख्य विधा के रूप में हैं। जहाँ ग्रामीण संस्कृति, परम्पराओं, जीवन शैली, धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक कथाओं को चित्रित किया जाता हैं। लोक चित्रकला के पाँच मुख्य स्वरुप है: 1.दीवार लोक चित्रकला, 2. भूमि लोक चित्रकला, 3. पट लोक चित्रकला, 3. गोदना लोक चित्रकला और 5. काष्ठ/शिल्प लोक कला हैं।
भूमि लोक-चित्रकला रंगोली घरों के आँगन में प्रतिदिन साकार किया जाता है। रंगोली विभिन्न समुदायों का सांस्कृतिक परिचय देने के साथ साहित्यिक, सामाजिक और धार्मिक अभिव्यक्ति को भी प्रकट करती है। भूमि लोक चित्रकला में तंत्र का महत्वपूर्ण स्थान है। भूमि लोक चित्रकला की उत्पत्ति अलंकरण, धार्मिक विश्वासों, अंधविश्वासों और भय-निवारण के उद्देश्य से हुई है। इसमें तंत्र की मुख्य भूमिका रही है। तंत्र विद्या, एक रहस्यमय और आध्यात्मिक विज्ञान है, जिसका अंतिम उद्देश्य परमात्मा से जुड़ना और रहस्यमय उपलब्धियों को पाना है।
भूमि में निर्माण की जाने वाली भूमि लोक-चित्रकला को देश के सभी प्रांतों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जिन्हें नीचे चित्र क्र. 1 से 5 तक में दिया है। महाराष्ट्र में ‘रंगोली’ (चित्र क्र. 1), बंगाल में ‘अल्पना’ (चित्र क्र. 2) राजस्थान की मांडना (चित्र क्र. 3), उत्तराखंड की ‘ऐपण’ (चित्र क्र. 4), उत्तर प्रदेश में ‘चौक पूरन’ (चित्र क्र. 5) कहा जाता है। भारतीय तंत्र समकालीन चित्रकार भूमि लोक चित्रकला एवं अन्य लोक चित्रकला पर आधारित समकालीन तंत्र चित्रकला के प्रवास की ओर बढ़े, यह जानना जरूरी है। समकालीन भारतीय चित्रकारों ने अपने कार्यों के आधार पर भारतीय पहचान को स्थापित करने के उद्देश्य से स्वदेशी कला की ओर रुख किया है। “नव तंत्रवाद 1960 के दशक में के.सी. एस. पणिकर (1911-1977) और उनकी श्रृंखला ‘वर्ड्स एंड सिंबल्स’ कार्य के साथ उभरा, जिसमें कलाकारों ने नव तंत्रवाद की अवधारणा समझाने के लिए ज्योतिषीय तत्वों, तमिल लिपि से प्रेरित सुलेख रूपों और दो-आयामी तांत्रिक आरेखों का आधार लिया है।”(1)
चित्र 2: बंगाल की ‘अल्पना’ भूमि लोक चित्रकला चित्र 3: राजस्थान की ‘मांडना’ भूमि लोक चित्रकला
चित्र 4: उत्तराखंड की ‘ऐपण’ भूमि लोक चित्रकला चित्र 5: उत्तर प्रदेश की 'चौक पूरना’ भूमि लोक चित्रकला
संदर्भ साधनों का अवलोकन -
‘भारतीय लोक-चित्रकला का समकालीन तंत्र चित्रकला पर पड़ा प्रभाव’ इस विषय का अध्ययन करने के लिए शोध पत्र का अवलोकन किया गया है। ‘इंडियास नव-तंत्रिसट्ज़’ (INDIA’S NEO-TANTRISTS) किशोर सिंह एवं पूनम बैद द्वारा यह अंग्रेजी लेख लिखा गया है। यह लेख दिल्ली आर्ट गैलरी द्वारा मार्च 2017 में प्रकाशित किया गया है । इस लेख में भारतीय तंत्र शास्त्र व तंत्र, मंत्र, यन्त्र की जानकारी दी है, साथ ही भारतीय कला में तंत्र कला के उद्देश्यों का परिचय भी दिया है। नवतंत्रवादी चित्रकार जी. आर. संतोष और बिरेन डे के चित्रकला का उल्लेख किया गया है, साथ ही रज़ा, पि .टी. रेड्डी, सोहन क़ादरी, के. वि. हरिदासन् , और जे. स्वामीनाथन के कार्यो पर भी चर्चा की गई है।
अनुसंधान की विधि -
इस अनुसंधान में, 'भूमि लोक चित्रकला का समकालीन तंत्र चित्रकला में प्रभाव' विषय पर विस्तार से विश्लेषण किया गया है। इस शोध कार्य को 'विवरणात्मक अनुसंधान विधि' के तहत पूरा किया गया है, जिसमें भारतीय लोक चित्रकला और तंत्र चित्रकला के उद्देश्यों को स्पष्ट किया गया है। इस अध्ययन में, 'नवतंत्रवादी शैली' के समकालीन चित्रकारों की तंत्र अमूर्त शैलियों पर आधारित चित्रकला का विशेष ध्यान दिया गया है, जो तंत्र, मंत्र, यंत्र, संस्कृत एवं अन्य लिपियों के साथ जुड़ी है। इस शोध कार्य के लिए, विभिन्न शोध पत्र, शास्त्रीय पुस्तकें, लेख और शोध-प्रबंध से सहायता ली गई है।
लोक चित्रकला में तान्त्रिक तत्व -
भारत की विभिन्न विद्याओं में तंत्र रहस्यमय विद्या है, “तंत्र (संस्कृत शब्द, अर्थात् तंतु) कुछ हिंदू, बौद्ध या जैन संप्रदायों के रहस्यमय आचरणों से संबंधित कई ग्रंथों में से एक है।”(2) हिंदू मान्यताओं के अनुसार, स्वयं भगवान शिव ही तंत्र विद्या के रचयिता हैं। तंत्र का मुख्य उद्देश्य केवल ईश्वर की प्राप्ति है, तंत्र में तीन अंग: यंत्र, मंत्र और तंत्र बताए गए हैं। साधक अपने इष्ट देवी-देवता की कामना एवं विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अपने अनुष्ठानिक तंत्र चित्रों को साकार करता है।
ग्रामीण घरों की महिलाएं व बहू-बेटियां अपनी माता, दादी, नानी के मार्गदर्शन से इन भूमि लोक चित्रकला को चुना, गेरू, हल्दी व चावल के तरल घोल से कागज, वस्त्र, भोजपत्र, ताड़पत्र, लकड़ी और पत्थर के फलक पर बनाना सीखती हैं। यह प्रथा धार्मिक परंपराओं का एक हिस्सा है। इसके अलावा भूमि-लोक चित्रकला ‘आलंकारिक लोक चित्रकला’ तथा ‘कौशलार्थ लोक चित्रकला’ के स्वरूपों में भी होती है। भूमि-लोक चित्रकला में महाराष्ट्र की रंगोली विशेष पहचान रखती है।
महाराष्ट्र की रंगोली चैत्रांगण -
जिस प्रकार महाराष्ट्र राज्य में अजंता, एलोरा के भित्ति-चित्र प्रसिद्ध हैं वैसे ही ‘वारली’ एवं भूमि-लोक चित्रकला में ‘रंगोली’ (चैत्रांगण) लोकप्रिय है। महाराष्ट्र में चैत्र मास में गुड़ी पड़वा से अक्षय तृतीया तक गौरी (माँ पार्वती) की पूजा की जाती है। तब प्रत्येक घरों के आंगन में चैत्रांगण रंगोली चित्र क्र. 6 के अनुरूप प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए तैयार किया जाता हैं। इससे पहले चैत्रांगन में 64 प्रतीक चिह्न बनाये जाते थे। हालाँकि, समय के साथ इसमें बदलाव आया है। रंगोली के शीर्ष पर आम के पत्तों का तोरण बनाया जाता है। मध्य में मंदिर बनाए गए है इस मंदिर में दो प्रतीक शिव-पार्वती या लक्ष्मी-नारायण या चैत्रगौरी या अनुराधा और स्वाति सृष्टि के दो नक्षत्र बनायें जाते हैं। भगवान गणेश और माँ सरस्वती के चित्र बनाएँ जाते हैं। यह चित्र हमारी समृद्धि के प्रतीक हैं। हाथी, घोड़ा, नाग, चील जैसे प्रतीक चिन्हों को भी अंकित किया जाता है। इसके अलावा कछुआ, बाँसुरी, स्वास्तिक, त्रिशूल, धनुष-बाण, तुलसी वृक्ष, मोर, कमल, कलश, आम, केला, शहनाई, डमरू के प्रतीकात्मक चिन्ह बनाए जाते हैं।
भारतीय समकालीन तंत्र चित्रकला का परिचय एवं महत्त्व -
प्राचीन कालीन तंत्र ग्रंथों और ‘शारदा तिलक’ में तांत्रिक चित्रों का वर्णन किया गया है। “मंत्र ध्वनि’ को सभी रूपों के निर्माण और विघटन की मूल नीति माना जाता है। यंत्र एक ज्ञानसूत्र है जो तांत्रिक साधना, ध्यान या एकीकृत में पहुंचने की प्रक्रिया को समझने में मदद करता है। यंत्र सरल ज्यामितीय रूपों से बनाया जाता है। 1960 के दशक में बीरेन डे, जी.आर. संतोष और मद्रास में के. सी. एस. पणिकर ने इस दिशा में अपनी रुचि को आगे बढ़ाया, जहाँ उन्होंने अतीत और स्थानीय कलात्मक परंपरा से संपर्क करके एक अविश्वसनीय भारतीय अमूर्त कला बनाई। कला के इस पैटर्न को पहले पश्चिम और बाद में भारत में सराहना मिली। इसे नव-तांत्रिक कला कहा जाता था।”(3) जे. स्वामीनाथन, सोहन कादरी, बीरेन डे, जी. आर. संतोष, के. सी. एस. पणिकर, पी. टी. रेड्डी और के. वी. हरिदासन् जैसे कलाकारों ने इस क्षेत्र में असाधारण काम करने का प्रयास किया है। भारतीय समकालीन तंत्र चित्रकारों में के. सी. एस. पणिक्कर और जे. स्वामीनाथन का विशेष महत्व दिखाई देता है।
चित्र 6: महाराष्ट्र ‘रंगोली-चैत्रांगण’ भूमि लोक चित्रकला
के.सी.एस. पणिक्कर (30 मई 1911-1977) -
कोवलेझी चीरम्पथूर शंकर पणिक्कर सफल चित्रकार और कला शिक्षक थे। इनका जन्म कोयंबटूर में सन् 1911 को हुआ। 1944 में इन्होंने मद्रास के प्रोग्रेसिव आर्ट स्कूल की स्थापना की। कुछ समय पश्चात वे उसी महाविद्यालय के मुख्य अध्यापक के रूप में नियुक्त हुए। अपने पद से सेवानिवृत्त होने के उपरांत उन्होंने “द चोलामंडल आर्टिस्ट विलेज’ की स्थापना की। चित्र क्र. 7 के अनुरूप ‘पणिक्कर ने 1963 में अपनी ‘वर्ड्स एंड सिंबल्स’ श्रृंखला शुरू की, जिसमें संख्यात्मक चिन्ह, रोमन लिपि, अरबी संख्याएँ और तांत्रिक प्रतीकों का संयोजन उपयोग किया।”(4) इनके चित्रों में भारतीय लोक चित्रकला, अलंकारिक, ज्यामितीय आकारों और तांत्रिक आरेखों, चिन्हों, संकेतों, संख्याओं, गणितीय सूत्रों एवं प्रतीकात्मक आकारों और मंत्रों को रहस्यमय तरीके से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
चित्र: 7 के.सी.एस. पणिक्कर ‘वर्ड्स एंड सिंबल्स’ (1968)
जे. स्वामीनाथन (21 जून 1928 - 25 अप्रैल 1994) -
भारत भवन के जनक जगदीश स्वामीनाथन का जन्म शिमला में 21 जून 1928 को हुआ। आरंभिक शिक्षा दिल्ली में पूर्ण हुई तथा चित्रकला का शिक्षण चित्रकार सैलोज मुखर्जी व भावेश चंद्र सान्याल के मार्गदर्शन में हुआ। सन् 1957 में, वे वारसा के ललित कला अकादमी में शामिल हो गए। साथ ही, गोंड और भील जनजाति के लोक चित्रकारों को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने का कार्य किया। “1960 के दशक की शुरुआत से उनके कार्यों में प्रमुख तांत्रिक प्रतीक दिखाई देने लगी। उदाहरण के लिए सन् 1963 का चित्र देख सकते हैं। (चित्र क्र. 8) कैनवास के तल को तीन खंडों में विभाजित करता है, जिनमें एक विशिष्ट प्रतीक है जो तीनों खंडों में हैं। बाईं ओर ‘वान गॉग’ के सूर्य की भांति है, जो प्रकाश की गति को प्रसारित करता है; दाईं ओर शिव का त्रिशूल और उनके बीच वर्ग में एक जानबूझकर अस्पष्ट छवि रखी गई है - एक लाल रंग की योनि, जो प्रकाश का उत्सर्जन करती है, एक बीज (पारंपरिक योनि/लिंगम छवि भी उतनी ही अस्पष्ट दिखती है। यह छवि, नीले-लाल रंग की पृष्ठभूमि पर रखी गई किसी भी पूर्णता के दोहरे स्वभाव के द्वैत का प्रतीक है, जिसमें स्त्री और पुरुष दोनों शामिल हैं। प्रकृति स्त्री-तत्व और पुरुष-तत्व त्रिकोण आदि को साकार किया है।”(5)
चित्र: 8 जे. स्वामीनाथन ‘शीर्षकहीन’ (1963)
निष्कर्ष : अनादि काल से ही भारत के भिन्न राज्यों में भूमि-लोक-चित्रकला में तंत्र का स्वरूप दिखाई देता है। इस लोक चित्रकला में ग्रामीण जनजीवन की आस्था, विश्वास एवं परंपरागत जीवन रूपों की अभिव्यक्ति हुई है। वे चित्र आज भी भूमि व भित्ति पर बनाए जाते हैं। इन आकृतियों को साकार करने का उद्देश्य सुख-समृद्धि, सौंदर्य, शुभ, मंगल और कल्याण हेतु लोक चित्रकला विभिन्न स्थलों और अवसरों पर बनाया जाता है। भारतीय ग्रामीण घरों में प्रवेश करते ही द्वार पर साकार भूमि लोक चित्रकला की संस्कृति का दर्शन होता है। जहाँ भावनाओं को व्यक्त एवं सौंदर्य को बढ़ावा दिया जाता है। इनकी सहजता व रहस्यों के प्रभाव में अथवा भारतीय पारंपरिकता को समकालीन तंत्र चित्रकारों ने नवीन स्वरुप में साकार किया।
संदर्भ :
- गूगल. (2023, 27 अक्टूबर). महाराष्ट्र की रंगोली भूमि लोक चित्रकला [छवि]. https://maharashtratimes.com/astro/festival/news/gudi-padwa-2020-significance-of-chaitrangan-rangoli-which-show-indian-cultural-prosperity/articleshow/74806766.cms
- गूगल. (2023, 27 अक्टूबर). बंगाल की अल्पना भूमि लोक चित्रकला [छवि]. https://chantal-jumel-kolam-kalam.com/en/alpona-images-and-symbols-of-bengali-women/
- सोनी वैद्य, (2023, 27 अक्टूबर). राजस्थान की मांडना भूमि लोक चित्रकला [छवि]. https://www.memeraki.com/products/symbol-of-elegnace-mandana-art-by-vidya-soni
- गूगल. (2023, 30 अक्टूबर). उत्तराखंड की ऐपण भूमि लोक चित्रकला [छवि]. https://rb.gy/u8ids
- गूगल. (2023, 30 अक्टूबर). उत्तर प्रदेश की चौक पूरना लोक चित्रकला कला [छवि]. https://www.google.com/search?q=easy%20chowk%20design%20for%20pooja.&tbm=isch&hl=en&rlz=1C1GCEA_enIN1072IN1072&sa=X&ved=0CCgQtI8BKAFqFwoTCOinjMaMnoIDFQAAAAAdAAAAABAH&biw=1688&bih=821#imgrc=32bISnfZURkw7M
- महाराष्ट्र टाइम्स.कॉम. (2022, 1 अप्रैल). गुढीपाडवाः भारतीय सांस्कृतिक समृद्धतेचे चैत्रांगण. महारष्ट्र की ‘रंगोली-चैत्रांगण भूमि लोक चित्रकला’ https://maharashtratimes.com
- के.सी.एस. पणिक्कर. शब्द और प्रतीक श्रृंगार. (1968) https://auctions.pundoles.com/lots/view/16AZHFS/words-and-symbols-series
- जे. स्वामीनाथन. शीर्षक हीन (1963) https://www.researchgate.net/figure/J-Swaminathan-Untitled-1963_fig3_326513651
- Apte, S. (2020, फ़रवरी 11). Indian & South Asian Modern & Contemporary Art. Neo Tantric Art as Liberation. https://www.sothebys.com/en/articles/neo-tantric-art
- तंत्र. (2020). [भारतकोश ज्ञान का हिन्दी महासागर]. https://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0
- Baid, P. (2017, March). INDIA’S NEO-TANTRISTS [Www.dagmodern.com]. www.dagmodern.com
- Words and Symbols Series. (n.d.). https://auctions.pundoles.com/lots/view/1-6AZHFS/words-and-symbols-series
- Kuzina, L. (2018). Tantric Corporeality Concept and Indian Modern Artist Jagdish Swaminathan. Atlantis Press. This Is an Open Access Article under the CC BY-NC License, 233, 530–535.
अभिषेक चौरसिया
शोधकर्ता, ललित कला विभाग, (चित्रकला) , राष्ट्रसन्त तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय, नागपुर, महाराष्ट्र
achourasia1@gmail.com, 8446239503
किशोर इंगले
मार्गदर्शक, शासकीय कला एवं अभिकल्प महाविद्यालय, लक्ष्मी नगर, नागपुर, महाराष्ट्र
9890691341
दृश्यकला विशेषांक
अतिथि सम्पादक : तनुजा सिंह एवं संदीप कुमार मेघवाल
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-55, अक्टूबर, 2024 UGC CARE Approved Journal
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