बिटिया के नाम पाती
- अश्विनी व्यास
प्रिय अद्रिजा,
जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएँ।
अब तुम सोलह वर्ष पूर्ण कर के सत्रहवें वर्ष में प्रवेश कर रही हो। यह वह समय है जब मैं एक पिता के रूप में तुमसे कुछ बात करना चाहता हूँ। कुछ बातें हैं जो मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ। वे बातें जो मैंने अनुभव की हैं। लेकिन मैं यह भी कहूँगा कि इनमें से किसको आत्मसात् करना है और किसको नहीं, यह मैं तुम्हारे विवेक पर छोड़ता हूँ। लेकिन एक बात मैं अवश्य कहना चाहूँगा कि विवेक का विकास कैसे हो, इस पर मंथन करना जरूरी है।
मैं समय के इस बिंदु पर तुमसे तीन बातें कहना चाहता हूँ। सबसे पहले जीवन में एक कौशल को विकसित करना। वह कौशल जो जीवन के निर्वहन के लिए अत्यंत आवश्यक है। प्रयास यह रहे कि कौशल और अभिरुचि के बीच में एक साम्य हो। जिस भी कौशल का चयन तुम करो, उस कौशल में सर्वश्रेष्ठ होने का प्रयास रहे। पर साथ में यह भी स्मरण रहे कि सर्वश्रेष्ठता एक मरीचिका है। लेकिन मरीचिका लगातार चलते रहने के लिए आवश्यक है। तुमको कई बार लगेगा कि तुम अपने कौशल में पारंगत हो गई हो लेकिन यह एक भ्रम है। कौशल और अधिक व्यापक सन्दर्भ में कहूँ तो ज्ञान एक अनंत यात्रा की तरह है या मेरी दृष्टि में होना चाहिए। सुख यात्रा में है। पहुँच जाने में आनंद नहीं है। लिहाजा निरंतर खुद को गढ़ने का, माँजते रहने का उपक्रम चलता रहना चाहिए। इस यात्रा का अपना आनंद है, कष्ट भी है लेकिन रोमांच कष्ट और आनंद के मिश्रण के बिना कैसे संभव है। जो भी अनुभव रोमांचक हैं, उनमें थोड़ा डर, थोड़ा खतरा, थोड़ा कष्ट और बहुत सा आनंद है। यह अनुभव ही जीवन को आनंद देते हैं। कोशिश करना कि तुम हमेशा कल से बेहतर बनने का प्रयास करो।
दूसरी बात जो मैं कहना चाहता हूँ, वह एक सलाह है। मानना अथवा ना मानना तुम्हारे विवेक पर निर्भर है। मैं तुम्हें यह सलाह दूँगा कि जीवन में कभी भी किसी भी वाद या पंथ के खूँटे से बँध कर मत रहना। सभी विचारों के प्रति सम्मान का भाव हो। हर विचार को पढ़ना, समझना और सबसे महत्त्वपूर्ण बात कि उस पर मंथन करना, लेकिन किसी भी वाद का पिछलग्गू कभी मत बनना। यह बात सदैव स्मरण रहे कि जीवन में मौलिक चिंतन अत्यंत आवश्यक है। यह मौलिकता निरंतर सीखने से आएगी। बहुत सा पढ़ना, सभी तरह के विचारों को पढ़ना। गाँधी को पढ़ो तो सावरकर को भी पढ़ना। केमू को पढ़ो तो कबीर को भी पढ़ना। 'अर्थशास्त्र' पढ़ो तो 'कामायनी' भी पढ़ना। अगर 'डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया' पढ़ो तो 'इंडिया ऑफ्टर गाँधी' भी पढ़ लेना। अमूल के विकास की गाथा को पढ़ो तो हरित क्रांति भी पढ़ लेना। सीखना सिर्फ पढ़ने तक सीमित नहीं है। मैं चाहता हूँ कि तुम खूब यात्राएँ करो। मैं कुछ जगहों पर तुम्हें ले जाने में सफल रहा लेकिन मैं चाहता हूँ कि तुम एकाकी यात्राएँ भी करो। यात्राएँ मनुष्य के जीवट की गाथा सुनाती है। फ़िजी जाओ तो समझना कि कैसे गिरमिटिये उस अथाह दुःख को झेल कर फ़िजी के साझा इतिहास का हिस्सा बन गए। कैलाश मानसरोवर भी जाना और उस अनुभव को भी जीना। समय मिले तो उन जगहों पर भी जाना और देखना कि वहाँ जीवन वैसा नहीं है जैसा हम उसके होने की कल्पना करते हैं। मैं फ़ॉकलैंड आइलैंड नहीं गया। पता नहीं जाऊँगा या नहीं, लेकिन तुम जाना। नया संगीत, भोजन, लेखन सब कुछ सीखना। जीवन में सीखते रहने के सुख से बड़ा कोई सुख नहीं है। यह सीखना तुमको किसी भी खूँटे से बंधने से मुक्त करेगा।
तीसरी बात जो मैं तुमसे कहना चाहता हूँ, वह है विविधता के प्रति सम्मान का भाव रखना। हम जिस दौर में जी रहे हैं उसमें एकता और एकरूपता के बीच का भेद मिट गया है। एकता का मतलब एकरूपता कतई नहीं है। जीवन में विविधता थी, है और मुझे आशा है सदैव रहेगी। यह विविधता ही जीवन में आनंद का संचार करती है। जीवन में वाद सदैव एक प्रकार का बंधन लाते हैं और स्वतंत्र चिंतन विविधता का आनंद लेने को आसान बनाते हैं। इस बात को भी याद रखना कि जीवन एक दिशीय प्रक्रिया नहीं है। लिहाजा यह अपेक्षा करना कि जीवन में सब कुछ न्याय पर आधारित है, बुद्धिमत्ता नहीं है। समानता भी नहीं है। इस बात को समझना जरूरी है कि असामनता, असत्य, निर्धनता, हिंसा ये भी जीवन के सत्य है। लेकिन जीवन का उद्देश्य नहीं। जीवन का उद्देश्य आनंद है। लेकिन अपने आनंद की सीमा किसी दूसरे की सीमा में अतिक्रमण ना करे। बहुत से सकारात्मक परिवर्तन की उम्मीद ही मुझे इस बात के प्रति आशावान बनाती है कि आनंद यात्रा में है। पहुँचना कहाँ है और कब शायद किसी को पता नहीं।
मेरी कही ये बातें अंतिम नहीं है। इसके आगे भी कहने को बहुत कुछ है। पर जीवन भी लम्बा है। फिर और बातें करेंगे।
जीवन का आनंद लो।
ढेर सारा प्यार।
अश्विनी व्यास
दिसंबर 25, 2024
जयपुर।
अपनी माटी
( साहित्य और समाज का दस्तावेज़ीकरण )
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका
Peer Reviewed & Refereed Journal , (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-59, जनवरी-मार्च, 2025
सम्पादक माणिक एवं जितेन्द्र यादव सह-सम्पादक विष्णु कुमार शर्मा छायाचित्र विजय मीरचंदानी
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