आलेख : राजस्थान की साहित्यिक पत्रकारिता और 'लहर' / माधव राठौड़

राजस्थान की साहित्यिक पत्रकारिता और 'लहर'
- माधव राठौड़

 

इस स्तम्भ के बारे में :

(स्वतंत्रता के पश्चात राजस्थान में हिन्दी लघु पत्रिकाओं के प्रकाशन ने साहित्यिक पत्रकारिता को एक नई दिशा प्रदान की। जहाँ स्वतंत्रता पूर्व इस क्षेत्र में कुछ सीमित प्रयास ही दृष्टिगोचर होते थे, वहीं स्वतंत्रता के उपरांत लघु पत्रिकाओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। ये लघु पत्रिकाएँ केवल साहित्यिक अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बनीं, बल्कि उन्होंने वैचारिक आंदोलनों, साहित्यिक प्रवृत्तियों और सांस्कृतिक विमर्श को भी समृद्ध किया। इन सबके बावजूद भी राजस्थान की साहित्यिक पत्रकारिताका सम्यक मूल्यांकन नहीं हुआ है।

यह स्तंभ राजस्थान की स्वातन्त्र्योत्तर प्रमुखहिन्दी लघु पत्रिकाओं पर केंद्रित रहेगा, जिसमें उनके संपादकीय दृष्टिकोण, प्रतिबद्धता तथा साहित्यिक योगदान का विश्लेषण किया जाएगा।)

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राजस्थान की साहित्यिक पत्रकारिता और लहर

हालाँकि आजादी से ठीक पूर्व और आजादी के बाद राजस्थान से ठीक-ठाक संख्या में साहित्यिक पत्रिकाएँ निकालना प्रारंभ हो चुकी थी। इन पत्रिकाओं में धीरे ही सही मगर साहित्यिक आंदोलनों, घटनाओं एवं हिन्दी साहित्य के नव प्रयोगों के उतार-चढ़ाव  दर्ज हो रहे थे। अगर राजस्थान से निकलने वाली लघु पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि 1880 से लेकर 2024 तक लगभग 100 से अधिक पत्र-पत्रिकाएँ निकल चुकी हैं।दशकवार भी देखें तो हर दशक में पांच-दस पत्रिकाएँ निकलती रहीं हैं। आज भी राजस्थान से 25 से 30 पत्रिकाएँ नियमित या अनियतकालीन निकल रही हैं

            प्रारम्भिक पत्रिकाओं में  कलाधर’ (सं. मूलचंद भट्ट, पाली, 1949), ‘झरना’(सं. नेमीचंद्र जैन 'भावुक', जोधपुर, 1947), ‘राष्ट्रभाषा’ (सं. हरिप्रसाद शर्मा, जयपुर,1949), 'राष्ट्रवाणी' (सं. रामस्वरूप गर्ग, अजमेर,1949), 'किलकारी' (सं. दीपचन्द्र छंगाणी, जोधपुर,1949),  'साहित्य प्रवाह'  (सं. नेमिचन्द जैन 'भावुक',जोधपुर,1950), 'प्रेरणा' ( सं. कोमल कोठारी,जोधपुर,1953), 'मरू भारती' ( सं. कन्हैयालाल सहल,पिलानी,1953) 'नवनिर्माण' (सं. नेमिचन्द जैन 'भावुक',जोधपुर,1953), 'राजस्थान साहित्य' ( सं.जनार्दन राय नागर,उदयपुर,1954), 'परम्परा' (सं.नारायण सिंह  भाटी,जोधपुर,1956) आदि उल्लेखनीय नाम हैं।

जब भी इस लघु पत्रिका आन्दोलन में'लहर' पत्रिका का जिक्र आता है तब अजमेर और प्रकाश जैन का नाम उभर कर सामने आता है लेकिन 'लहर' नाम सेपहली पत्रिका जोधपुर से निकली थी।महेंद्र मधुप के अनुसार – “राजस्थान की साहित्यिक पत्रिकाओं का आधुनिक काल जोधपुर से प्रकाशित होने वाली 'लहर' पत्रिका (1950) से होता है। इसके संपादक जगदीश ललवाणी और लक्ष्मीमल सिंघवी थे।1

इस तरह 'लहर' पत्रिका के बाद राजस्थान से और कई महत्त्वपूर्ण पत्रिकाएँ निकलना आरंभ हुईं, जिनमें 'समीक्षा' ( सं. भागीरथ भार्गव, अलवर,1958), 'निष्ठा'( सं.कृष्णबल्लभ शर्मा, जयपुर,1960), 'कविता' (सं. देवराज उपाध्याय,भागीरथ भार्गव,जुगमन्दिर तायल,अलवर,1961 ),'वातायन' (सं. हरीश भादाणी, बीकानेर, 1961), 'सहित्यिकी'( सं. जय सिंह नीरज, अलवर,1962), 'आज की कविता'( सं. राजानंद, बीकानेर, 1965) ' संप्रेषण' (सं.चंद्रभानु भारद्वाज, भरतपुर,1966), 'धरातल'( सं. मणि मधुकर, जयपुर,1965), 'संबोधन'( सं. गुलफाम, समर्थ जैन कमर मेवाडी, कांकरोली,1966)  इत्यादि प्रमुख नाम हैं

1926 में जोधपुर में जन्मे प्रकाश जैन वधर्मपत्नी मनमोहनी जैन ने मिलकर अजमेर से 1957 मेंलहरपत्रिका निकाली, जिसकी वजह से अजमेर शहर भी दिल्ली,इलाहबाद,भोपाल की तरह साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र बन गया था। उन्होंने सम्पादकीय निष्ठा के साथ इसे राष्ट्रीय स्तर की पत्रिका बनाया।

इस तरह 1957 के बाद ही सही अर्थों में राजस्थान की लघु पत्रिकाओं का आधुनिक काल शुरू होता है। लहरके स्थापित होने के बाद राजस्थान से कई अन्य लघु पत्रिकाओं का भी प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। लहरपत्रिका ने उस समय जो प्रतिमान स्थापित किये वे आज भी लघु पत्रिकाओं के लिए आदर्श हैं। इसकी वजह थी, प्रकाश जैन की साहित्यिक सोच सम्पादकीय दृष्टिकोण,यही वजह है कि आज भी उनके योगदान को आदर के साथ देखा जाता है।

प्रकाश जैन को याद करते हुए लेखक हेमंत शेष अपने एक आलेख में लिखते है कि –“अगर प्रकाश जैन होते तो 28 अगस्त को 93 साल के हो जाते! अजमेर शहर, मासिक पत्रिका  लहरऔर इसके सम्पादक प्रकाश जैन तीनों, कोई अलग अलग तीन शब्द नहीं- पर्याय थे लहरका हिन्दी की श्रेष्ठतर और गंभीर साहित्यिक पत्रिकाओं में तब जो स्थान था उसे कोई पुराना साहित्यिक नहीं भूल सकता क्यों कि तब लहरमें छपने का अर्थ बस एक ही था : समकालीन साहित्य में लेखक के तौर पर स्थापित हो जाना ...

वे आगे उनकी  सम्पादकीय दृष्टि के बारे में लिखते है कि उन्हें हजारों रचनाओं में से खरे और खोटे की विवेक की अप्रतिम पहचान थी। नए, संभावनाशील बनते या अच्छे लेखक को वह नींद में भी सूंघ सकते थे। वह अपनी निगाह रचना पर रखते थे- रचनाकार पर उतनी नहीं। वह किसी को महज़ इस कारण अपनी पत्रिका में जगह नहीं देते थे कि वह राजस्थान का निवासी है। उनके लिए रचना महत्त्वपूर्ण थी, कि निवास का प्रमाण पत्र।2

आज भी पत्रिका के अंकों से गुजरते हुए इसमें प्रकाशित सामग्री को देखते हैं तो निश्चित रूप से उसमें गहन संपादकीय विवेक परिलक्षित होता है।लहरके अंकों से होकर हिन्दी कहानी के सारे आन्दोलन गुजरे हैं। इसके अंकों में कहानी, नई कहानी, अकहानी, सचेतन कहानी, समानांतर कहानी और नई कहानी आन्दोलन को लेकर लंबे समय तक विचारात्मक बहसें  चलती रही हैं।

लहरपत्रिका के अक्टूबर 1963 अंक में रमेश बक्षी ने नई कहानी : पुरानी कहानीके बारे में एक आलेख लिखा था जिसमें उन्होंने पुरानी कहानी की पीढ़ी के कहानीकारों से सवाल करते हुए नई कहानी की प्रवृत्तियों पर बात की थी – “जो पुराना है, वह सब सही है, यह भी गलत है और जो नया है, बस वही सही है, यह भी गलत है। अच्छे लोग परीक्षण करके ही किसी वस्तु को अपनाते हैं। मूर्ख लोग यानी अप्रबुद्ध लोग दूसरे की लकीरी की फकीरी करते हैं।3

इन लघु पत्र-पत्रिकाओं मे हिन्दी साहित्य की कविता की विकास यात्रा और उससे संबंधित आन्दोलन पर भी लगातार बात होती रही है। उनमें कविता की नई प्रवृत्तियों और आन्दोलन का मूल्यांकन भी बराबर होता रहा है।लहरमें1951 में आयानई कविता आन्दोलनके बारे में भी बात हुई।  नई कविता, अकविता, नई धारा, विचार कविता आदि पर भी बात हुई। इस संदर्भ में लहरपत्रिका के अलग-अलग अंकों में नई कविता आन्दोलन को लेकर विचार विमर्श, प्रतिरोध और गुटबाजियों के बारे में पढ़ने को मिलता है।

            ओमप्रकाश दीपक का आलेख नई कहानी बनाम नई कविता’, विष्णु चंद्र शर्मा का नाराज कवियों के बेल बूटेदार मुहावरे और दुश्मनों के खिलाफ अंतरंग कवितातथा विजय बहादुर सिंह का कविता वाद और आन्दोलन के अलावाआलेख आज भी नई कविता की आन्दोलन को समझने में मददगार दिखाई देते हैं।

लहर' पत्रिका के कवितांक-1 में आलोचक धनंजय वर्मा समकालीन कविता के बारे में लिखते हैं - "समकालीन कवि की चिंता भाषा में खुद को सिर्फ कह देने भर की नहीं, समकालीन अनुभव का परत दर परत उद्घाटन भी उसकी फिक्र है। शब्द और अर्थ के तनाव और संश्लेष के जरिए वह समकालीन वास्तविकता के जटिल और अंतर विरोधी संसार की केवल शिनाख़्त करना चाहता है बल्कि अपनी पहचान अपने अनुभव, अपनी संवेदनात्मक प्रतिक्रिया को दूसरों तक जस का तस पहुंचाना भी चाहता है।"4

'लहर' के कविता विशेषांक नवंबर-दिसंबर 1982 अंक में देश भर के कई महत्वपूर्ण कवि नागार्जुन, नन्द चतुर्वेदी, ऋतुराज, उदय प्रकाश,हरीश भादानी, विजेंद्र, हेमंत शेष, भरत यायावर सहित कई कवियों की कविताएँ प्रकाशित हुई थी।

आपातकाल में भी राजस्थान की हिन्दी लघु पत्र-पत्रिकाएं अपना प्रतिरोध दर्ज करवाती रही हैं। आपातकाल के समय कवि कमलेश की कविता 'लहर' पत्रिका में प्रकाशित हुई थी

" क्या आज रात सचमुच सारे अखबारों की इमारतें जलकर राख हो जाएगी

 दमकल समय पर पहुंच कर भी बुझा नहीं पाई सिनेमाघरों में लगी आग

आज क्या सचमुच पेंशनयाफ़्ता बूढ़े सुबह पार्क में हाहाकार नहीं करते होंगे"5

'लहर' पत्रिका में केवल उस समय की अपने समय को अभिव्यक्त करती कविताएँ प्रकाशित होती थी बल्कि कविता पर आलोचनात्मक आलेख भी प्रमुखता से छपते थे।

 डॉ.जीवन सिंह  कवि विजेंद्र, मंगलेश डबराल और ऋतुराज की कविताओं पर आलोचनात्मक लेख 'एक संकटग्रस्त उम्मीद की सृजन प्रक्रिया' लिखते हुए कहते हैं -" जीवनानुभव, विचार दृष्टि और  कला को क्रियाशील यथार्थ की विविध आयामों की संगति में साधकर रचना के स्तर पर प्रतिष्ठापित करना केवल एक कुशल  शिल्पी का काम है, वरन अपने परिवेश की सही समझ इसकी प्राथमिक शर्त है। यह तभी संभव है जबकि एक रचनाकार वैज्ञानिक विश्व दृष्टि से संपन्न हो।"6

लहरमें कहानी और  कविता तो स्तरीय छपती ही थी लेकिन सबसे अच्छी बात यह थी कि 'लहर' पत्रिका में पाठकों के पत्रों को प्रमुखता से छापा जाता था। पत्रिका के कवितांक-2 में स्वप्निल श्रीवास्तव एक पत्र के जरिये प्रतिक्रिया देते हुए लिखते हैं -" लहर का यह कवितांक अपने आप में महत्वपूर्ण है। मैनेजर पांडे के इंटरव्यू के बहाने आज की कविता के बारे में बहुत सार्थक बातचीत की गई। जिससे आज की कविता से संबंधित तमाम पक्ष उजागर हुए हैं और उसकी सीमाएं भी प्रकट हुई है।"7

संपादक प्रकाश जैन की नज़र केवल हिन्दी बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं में जो लिखा जा रहा था,उस पर भी रहती थी। इस सन्दर्भ में 1962 में 'लहर' पत्रिका का गुजराती साहित्य पर केंद्रित गुजराती साहित्य विशेषांककाफी महत्वपूर्ण है ।जिसमें गुजराती साहित्य की सभी विधाओं पर समग्रता से बात करते हुए कहानी, कविता,नाटक, और आलोचनात्मक लेखों के जरिये  गुजराती साहित्य  की पड़ताल की गई है।

गुजराती कहानी की पड़ताल करते हुए संपादक प्रकाश जैन लिखते हैं- कुछेक अपवादों के अतिरिक्त हमें लगा कि गुजराती कहानी अभी भी परंपराग्रस्त है, इसका एक बहुत बड़ा कारण यह लगा कि गुजराती सामान्य धर्मनिष्ठ और शांत प्रकृति के होते हैं।"8

 ‘लहरपत्रिका में उर्दू भाषा की कई कहानियां भी प्रकाशित हुई थी। इसके जनवरी 1965 अंक में हामिद कश्मीरी की कहानी समझौताकाफ़ी चर्चित रही थी।लहरपत्रिका में विदेशी साहित्य को भी स्थान दिया जाता था। इसके 1969 अंक में बर्तोल्त ब्रेख्त की कविताएं प्रकाशित हुई थी।

किसी भी पत्रिका की यात्रा को ठीक से समझने के लिए उसके संपादकीय मददगार होते हैं क्योंकि बिना सम्पादक की सोच को जाने बिना पत्रिका की अंतर्वस्तु को ठीक से नहीं समझा जा सकता है।

पत्रिकाओं में प्रकाशित संपादकीय का इसलिए भी अध्ययन करना प्रासंगिक होगा क्योंकि इसी से तय होता है कि प्रकाशक किस तरीके की सामग्री और किन समकालीन मुद्दों और विमर्शों को अपनी पत्रिकाओं में स्थान देने में रुचि रखते थे। संपादकीय दृष्टि से ही स्पष्ट होता है कि संपादक के लिए लेखकीय प्रतिबद्धता, मानवीय मूल्यों और चिन्ताओं पर उसका क्या पक्ष है।

हालाँकि लहरके अधिकांश अंकों में संपादकीय नहीं दिखाई देते हैं लेकिन जहां कहीं पर भी अंकों में या फिर विशेषांकों में संपादकीय लिखे गए हैं उसको पढ़ते हुए पत्रिका की प्रतिबद्धता स्पष्ट होती है। 

लघु पत्रिकाओं की स्थिति पर चिंता जताते हुए प्रकाश जैन लिखते हैं – “कोई पत्रिका जीवित रहती है, असमय में मर जाती है यह बात कतई महत्त्व नहीं रखती। महत्त्व यह बात रखती है कि अगली आने वाली पत्रिका का मार्ग वह अपने जीवन काल में प्रशस्त करती है या नहीं।"9

इसी तरह लघु पत्रिकाओं के लघुशब्द पर आपत्ति जताते हुए प्रकाश जैन लिखते हैं – “यह नामकरण ही गलत नहीं है क्या? छोटी पत्रिका माने क्या? वैसा ही कुछ जैसा भारत में छोटा आदमी, छोटी जात या फिर पत्रिका का छोटा आकार?”10

इस तरह उपरोक्त संपादकियों को पढ़ते हुए स्पष्ट होता है कि लहरपत्रिका के संपादक प्रकाश जैन लघु पत्रिकाओं को लेकर खासे  चिंतित थे, चाहे लघु पत्रिकाओं के आर्थिक संकट की बात हो या उनके दृष्टिकोण को लेकर हो।

लहरपत्रिका के सम्पादक रचनाकारों को विचारधारा के साथ-साथ अपने परिवेश के प्रति सजग रहने को लेकर लिखते हैं- "हम किसी विचारधारा या सामाजिक दर्शन को समर्पित हो यह बात तो समझ में आती है पर अपने परिवेश, मानसिकता को हम एकदम अदेखा कर दें, यह समझ में नहीं आता"11

रचनाकार के सामाजिक दायित्वों पर भी सवाल खड़ा करते हुए अपने संपादकीय में प्रकाश जैन लिखते हैं -" क्या आज कवि और सामान्य जन के बीच सचमुच कोई गहरा और आत्मीय रिश्ता है? क्या सामाजिक नृशंसता और राजनीतिक स्वार्थ की प्राप्ति के प्रयत्नों के विरोध में कवि और रचनाकार का कोई  दायित्व नहीं है?"12

इस तरह लहर के संपादकियों प्रकाशित सामग्री  से गुजरते हुए स्पष्ट नज़र आता है कि संपादक प्रकाश जैन और मनमोहिनी जैनने समकालीन मुद्दों को चाहे वह आपातकाल हो या भारत-पाकिस्तान, भारत-चीन युद्ध हो, भूखमरी हो, गरीबी बेरोजगारी के मुद्दे हो,आम चुनाव हो या फिर लघु पत्रिकाओं के संकट की बात हो, इस पत्रिका ने समय-समय पर इन समकालीन मुद्दों पर रचनाओं का प्रकाशित कर देश की जनता का ध्यान आकर्षित किया था। केवल देश के बल्कि वैश्विक स्तर पर जो समकालीन ज्वलंत मुद्दे थे, उनके ऊपर भी साहित्यिक प्रवृत्तियों के नजरिये से पाठकों को रूबरू करवाया।

इसके रचनात्मक अवदान के बारे में बात करते हुए स्वयंप्रकाश लिखते हैं -" 'लहर' हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता का एक स्वर्णिम अध्याय है। हिन्दी की गम्भीर रचनात्मकता एक इतिहास की तरह 'लहर' के पन्नों पर सुरक्षित है। हिन्दी कविता और हिन्दी कहानी के लम्बे आत्म-संघर्ष का पूरा आलेख 'लहर' के विशेषांकों में महफूज़ है। हिन्दी का कोई भी महत्त्वपूर्ण शोध प्रबन्ध 'लहर' के हवालों बग़ैर पूरा नहीं हो सकता।"13

इसलिए यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नजर नहीं आती कि लहर’  हिन्दी साहित्यिक पत्रिका के इतिहास की वह आधुनिक पत्रिका थी, जिसने वर्षों तक पाठकों को बेहतरीन रचनाएँ देकर समृद्ध किया है।इस पत्रिका ने जो कीर्तिमान स्थापित किये, वे बाद की पत्रिकाओं के लिए आदर्श बनें इसलिए इसके अंकों में प्रकाशित कहानी,कविता और आलेखों का जिक्र करते हुए समकालीन पत्रिकाएँ खुद कोलहरसे तुलना करते हुएआज भीगर्व महसूस करती हैं।

उस समयलहरकी ख्याति को लेकर कृष्ण कल्पित लिखते हैंकि - “जबकल्पना’, ‘ज्ञानोदय’, ‘सरस्वतीइत्यादि पत्रिकाओं की धूम थी, उस समय प्रकाश जैन ने अपने प्रयासों से अजमेर सेलहरजैसी पत्रिका निकाली। कई दशक तक प्रकाशित होने वाली इस पत्रिका ने हिन्दी साहित्य का परिदृश्य बदला। साथ ही राजकमल चौधरी,रमेश बक्षी जैसे विद्रोही लेखकों को स्थापित किया।14

उस समयलहरमें नये लेखक का छपने का अर्थ होता था राष्ट्रीय स्तर पर पहचान स्थापित होना। इसलिए लहर पत्रिका में छपने के लिए देशभर के साहित्यकार लालायित रहते थे।लहरका कहानीकार राजकमल चौधरी पर प्रकाशित अंक आज भी याद किया जाता है।

इसके पीछे असल वजह यह थी कि उस समय लघु पत्रिका निकालने का मूल उद्देश्य  व्यवसाय होकर पत्रकारिता एक मिशन थी।लहरके सम्बन्ध में हेमंत शेष लिखते हैं कि - “यह महज़ एक पत्रिका नहीं मिशन था- प्रकाश जी के जीवन का मिशनएक ऐसा कठिन यज्ञजिसे वह और उनकी सहयोगी मनमोहिनीहर तरह के संकट और बाधाओं से जूझते हुए हर महीने पूरा किया करते थे।15

इस तरह कह सकते हैं किलहरपत्रिका का प्रारम्भ राजस्थान की साहित्यिक पत्रिकाओं के लिए आधुनिक काल का प्रस्थान बिन्दु था। इस पत्रिका ने जो साहित्यिक पत्रिका के रूप में जो प्रतिमान स्थापित किये,वे आज भी मानबिन्दु है।इसलिएलहरको टालकर कभी भी लघु पत्रिकाओं की विकास यात्रा लघु पत्रिका आन्दोलन का अध्ययन अधूरा ही होगा।

 

संदर्भ :

  1. सं. राजेंद्र शर्मा, स्वातन्त्र्योत्तर राजस्थान का हिन्दी साहित्य, राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर,पृ.सं.191
  2. https://hindinestcom/Diary/015htm लहर पत्रिका, सं. प्रकाश जैन, वर्ष 7, अंक 4, अक्टूबर 1963 पृ.सं. 74
  3. लहरपत्रिका, सं. प्रकाश जैन, नवम्बर-दिसम्बर1982,पृ.सं.6
  4.  ‘लहर पत्रिका, सं. प्रकाश जैन. वर्ष 12, अंक 1, जुलाई 1968, पृ.सं. 30
  5. लहरपत्रिका, सं. प्रकाश जैन, कवितांक-2, जनवरी-फरवरी 1983, पृ.सं.48
  6. लहर' पत्रिका, सं. प्रकाश जैन, कवितांक-2,जनवरी-फरवरी 1983,पृ.सं.2
  7. 'लहर' पत्रिका, सं. प्रकाश जैनगुजराती साहित्य विशेषांक ,वर्ष 6 ,अंक 5 ,नवंबर 1962 पृ.सं. 7
  8. लहर पत्रिका, सं. प्रकाश जैन. वर्ष 12 अंक, 10 अप्रैल 1969,पृ.सं.33
  9. लहर पत्रिका, सं. प्रकाश जैन, वर्ष 12, अंक 7, जनवरी 1959, पृ.सं. 6
  10. लहरपत्रिका, सं.प्रकाश जैन, नवम्बर-दिसम्बर1982,पृ.सं.5
  11. लहरपत्रिका,सं.प्रकाश जैन,नवम्बर-दिसम्बर1982,पृ. सं.3
  12. स्वयं प्रकाश,हमसफरनामा, अंतिका प्रकाशन,गाजियाबाद,संस्करण 2010, पृ.सं.100
  13. कृष्ण कल्पित, दैनिक भास्कर, जयपुर संस्करण, 4 मई 2022
  14. https://hindinestcom/Diary/015htm

 

माधव राठौड़
शोधार्थी, पत्रकारिता एवं जनसंचार, जोधपुर
9602222444, msr.skss@gmail.com

अपनी माटी
( साहित्य और समाज का दस्तावेज़ीकरण )
  चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका
Peer Reviewed & Refereed Journal , (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-59, जनवरी-मार्च, 2025
सम्पादक  माणिक एवं जितेन्द्र यादव सह-सम्पादक  विष्णु कुमार शर्मा छायाचित्र  विजय मीरचंदानी

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