21वीं सदी के संदर्भ में सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्य चेतना
- आशा मीणा
शोध सार : सुभद्रा कुमारी चौहान का काव्य भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की अग्निज्वाला को शब्दों का स्वर देकर उसे जन-जन की चेतना में प्रवाहित करने वाला सशक्त माध्यम सिद्ध हुआ। उनकी कविताएँ केवल सृजन नहीं, अपितु संकल्प, साहस और स्वाभिमान की स्वर-प्रतिध्वनि थीं। "झाँसी की रानी" जैसी रचना आज भी राष्ट्रभक्ति की धधकती चिन्गारी को प्रज्वलित करती है और मन में वीरत्व का संचार करती है। वर्तमान समय में, जब राष्ट्रीयता के स्वर बहुधा राजनीतिक और वैचारिक बहसों में उलझकर मूल भावना से दूर होते जा रहे हैं, तब सुभद्राकुमारी चौहान की ओजस्विनी वाणी और भी अधिक प्रासंगिक हो उठती है। उनका साहित्य यह उद्घोष करता है कि राष्ट्रप्रेम केवल भाषणों का विषय नहीं, बल्कि यह साहस, संघर्ष और सामाजिक उत्तरदायित्व से जुड़ा एक जीवंत भाव है। आज की पीढ़ी, जो तकनीकी जाल और भौतिकवादी प्रवृत्तियों में उलझी हुई है, उनके सहज किन्तु ओजपूर्ण काव्य के माध्यम से यह अनुभव कर सकती है कि कविता केवल भावनाओं का गान नहीं, बल्कि इतिहास का साक्ष्य और परिवर्तन का शस्त्र भी हो सकती है।
बीज शब्द : अग्निज्वाला, धधकती,  चिन्गारी, वीरत्व, राष्ट्रीयता, उद्घोष, भौतिकवादी, प्रासंगिक, प्रज्वलित, स्वर बहुधा।
मूल आलेख : सुभद्राकुमारी चौहान की काव्य चेतना समकालीन भारत के लिए एक नैतिक पथप्रदर्शक है, जो हमें यह स्मरण कराती है कि देशभक्ति केवल हृदयगत भाव नहीं, अपितु एक जाग्रत कर्तव्यबोध है। सुभद्रा कुमारी चौहान राष्ट्रीय काव्यधारा एवं भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की एक सक्रिय प्रतिनिधि रचनाकार रही हैं। उनका काव्य राष्ट्रीय स्वाधीनता की संघर्ष की भूमि पर पल्लवित हुआ है। राष्ट्रीय काव्यधारा के कवियों में मैथिलीशरण गुप्त, सियारामशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी और बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ की परंपरा में बड़े सम्मान के साथ सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम लिया जाता है। बीसवीं शताब्दी की सर्वाधिक यशस्वी कवयित्री में सुभद्रा कुमारी चौहान का प्रमुख योगदान रहा है। स्वतंत्रता से पूर्व जिन साहित्यकारों ने अपने साहित्य के माध्यम से भारतीय जनमानस के मन में राष्ट्रीय चेतना का भाव पैदा किया उनमें सुभद्रा कुमारी चौहान अग्रणी रही हैं। उनकी कविताओं में राष्ट्र के प्रति प्रेम, त्याग, निष्ठा, आत्म बलिदान एवं सम्मान का भाव दिखाई देता है।
सुभद्रा कुमारी चौहान का लेखन का अधिकांश भाग स्वतंत्र एवं मुक्ति को समर्पित है। उन्होंने राष्ट्रीय स्वाधीनता का अभिनंदन ष्स्वदेश के प्रतिश् कविता में बड़े ही ओजस्वी स्वरों के माध्यम से किया है। स्वाधीनता संघर्ष, देश प्रेम एवं राष्ट्रीय भावनाओं को अभिव्यक्त करने वाली उनकी कविताओं में त्याग और बलिदान की भावना हमें स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। लोक जीवन की लयात्मकता से परिपूर्ण सुभद्रा जी की कविताएं, उनका साहित्य स्वाधीनता के भावी संघर्षों के लिए हमेशा प्रेरणास्पद रहा है। चित्रा मुद्गल सुभद्रा कुमारी चौहान के संदर्भ में कहती हैं कि ’’सुभद्रा कुमारी चौहान की स्वाधीनता विषयक कलम की शहादत भगत सिंह की शहादत की तरह बार-बार याद करने की है।’’1
सुभद्रा कुमारी चौहान अपने बचपन से ही दबंग बहादुर और विद्रोही स्वभाव की रही हैं। वे आरंभ से ही समाज में अशिक्षा, अंधविश्वास, परंपरागत-रूढ़िवादी कुरीतियों आदि के विरुद्ध संघर्ष करती हुई दिखाई देती हैं। उन्होंने अपने समाज में जिन परिस्थितियों, विसंगतियों को देखा और जो अनुभव किया उसे अपने साहित्य में प्रस्तुत किया। अपने पति लक्ष्मण सिंह की प्रेरणा और उनके सहयोग से वह लगातार आंदोलन में सक्रिय रही। माखनलाल चतुर्वेदी को उन्होंने अपने गुरु के रूप में स्वीकार किया है। स्वाधीनता आंदोलन में उनकी सक्रियता एवं सहभागिता को देखकर सुभद्रा कुमारी ने उन्हें अपना आदर्श एवं पथ प्रदर्शक माना। उनके विचारों को आत्मसात करते हुए निरंतर राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाती रही हैं और कई बार जेल की यात्राएं की हैं। जेल जाने के पश्चात् उन्होंने अपनी कविताओं के द्वारा लोगों के मन में राष्ट्रीय चेतना का संचार करती रही। उनकी कलम कभी रुकी नहीं। महादेवी वर्मा सुभद्रा कुमारी की सखी थी। महादेवी वर्मा ने उनके जीवन को बहुत ही करीब से देखा था। कवयित्री के संबंध में महादेवी वर्मा कहती हैं कि ‘‘वे राजनीतिक जीवन में ही विद्रोहिणी नहीं रही,अपने पारिवारिक जीवन में भी उन्होंने विद्रोह को सफलतापूर्वक उतारकर उसे सृजन का रूप दिया।‘‘2
सुभद्रा कुमारी ने जिस युग में लिखना प्रारंभ किया था वह युग राजनैतिक, सामाजिक दृष्टि से स्वाधीनता आंदोलन का युग था। उस समय की युगीन परिस्थितियां और गांधीजी का प्रभाव सुभद्रा कुमारी के साहित्य एवं जीवन पर प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है। उनकी राष्ट्रीय भावना उनके काव्य में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। उनकी कविताओं में जो राष्ट्रीय चेतना एवं देश प्रेम दिखाई देता है उसका क्रियात्मक रूप उनके राजनीतिक जीवन में दिखाई देता है।  मुक्तिबोध ने भी सुभद्रा कुमारी के राष्ट्रीय काव्य को हिंदी में बेजोड़ माना है । कुछ विशेष अर्थों में सुभद्रा जी का काव्य हिन्दी में बेजोड़ है क्योंकि उन्होंने उस राष्ट्रीय आदर्श को जीवन में समाया हुआ देखा है, उसकी प्रवृत्ति अपने अंतःकरण में पाई है, अतः वह अपने समस्त जीवन-संबंधों को उस प्रवृत्ति के प्रकाश में चमका देती है यही उनके राष्ट्रीय कार्य की बड़ी ऊंचाई और सफलता है।
सुभद्रा कुमारी ने स्त्री स्वतंत्रता को केवल स्त्रियों से जोड़कर ही नहीं देखा बल्कि उन्होंने स्त्री स्वतंत्रता को पूरे राष्ट्र की स्वतंत्रता के साथ जोड़कर देखा। उन्होंने स्त्रियों को अपने देश की स्वतंत्रता के लिए स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया और उनके आह्वान पर सैकड़ों नारियां अपने घरों से निकलकर बाहर आई और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और सत्याग्रह में भाग लिया। इस संबंध में मुक्तिबोध का मानना है कि “सुभद्रा कुमारी चौहान नारी के रूप में ही रहकर साधारण नारियों की आकांक्षाओं और भावों को व्यक्त करती हैं। बहन, माता, पत्नी के साथ-साथ एक सच्ची देश सेविका के भाव उन व्यक्त किए हैं। उनकी शैली में वही सरलता है, वही अकृत्रिमता और स्पष्टता है जो उनके जीवन में है। उनमे एक ओर जहाँ नारी-सुलभ गुणों का उत्कर्ष है, वहीं दूसरी ओर स्वदेश प्रेम और देशाभिमान भी है जो एक क्षत्रिय नारी में होना चाहिए।”3
अपनी रचनाओं में उन्होंने स्त्रियों को एक देवी, दासी या निर्बल स्त्री के रूप में प्रस्तुत नहीं किया बल्कि उन्होंने स्त्रियों को अपनी सखी, अपनी सहचरी और देश के लिए आत्म बलिदान देने वाली वीरांगनाओं के रूप में प्रस्तुत किया है। जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेकर अपना आत्म बलिदान दिया। देश की नारी शक्ति को उसकी दबी हुई शक्ति का ज्ञान कराकर उन्हें देश की सेवा के लिए प्रेरित करते हुएकवयित्री कहती हैं-
‘15 कोटी असहयोगिनियाँ, दहला दे, ब्रह्मांड सखी।
भारत-लक्ष्मी लौटाने को, रच दे लंका कांड सखी।
खाना पीना सोना जीना, वो पापी का भार सखी।
मर-मर कर पापों का कर दे, हम जगती के छार सखी।
देखें, फिर इस जगती तल में, होगी कैसे हार सखी।
भारत मां की बेटी कांटे, होवे बेड़ा पार सखी‘। 4
उनका पूरा जीवन और साहित्य दोनों ही देश के प्रति समर्पित रहा है उन्होंने इतिहास के वीर चरित्रों के माध्यम से स्वाधीनता आंदोलन के प्रति लोगों को जागृत किया। 1857 के स्वाधीनता संग्राम का नेतृत्व करने वाली रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य, उनके बलिदान का उदाहरण देते हुए ‘झांसी की रानी‘ जैसी कालजयी कविता लिखी। कविता के माध्यम से उन्होंने भारतीय जनमानस में राष्ट्रप्रेम की भावना को जगाया। रानी लक्ष्मी बाई के जीवन की प्रेरक कथा के माध्यम से सुभद्रा कुमारी ने महिलाओं का एक ऐसा वर्ग तैयार किया जो स्वाधीनता आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार थी। उन्होंने स्त्रियों को रानी लक्ष्मीबाई की भांति वीरांगना बनने की प्रेरणा देकर नारी जागरण का उद्घोष किया।
‘झांसी की रानी की समाधि पर‘ नामक कविता में उन्होंने सबसे पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अमर वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई के बलिदान पर अपने स्नेह और श्रद्धा के पुष्प अर्पित किए हैं और उनकी समाधि में छिपी उनकी ‘राख की ढे़री‘ में भारत की आजादी की चिंगारी को देखा है।
‘इस समाधि में छिपी हुई है, एक राख की ढेरी।
जल कर जिसने स्वतंत्रता की, दिव्य आरती फेरी।
यह समाधि यह लघु समाधि है, झाँसी की रानी की।
अंतिम लीलास्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की। 5
सुभद्रा कुमारी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से केवल स्त्रियों को ही नहीं अपितु उन्होंने बच्चों से लेकर बड़ों सभी के लिए राष्ट्रीय कविताएं लिखी। उनके साहित्य के संबंध में सुमन राजे का मानना है कि ‘‘सुभद्रा जितनी बड़ी साहित्य-योद्धा थी उससे अधिक बड़ी स्वातंत्र्य योद्धा थी।  उनका जीवन देश के लिए त्याग की अप्रतिम कथा है। साहित्य-सृजन में उन्होंने बच्चों से लगाकर बड़ों और वृद्धों तक के लिए राष्ट्रीय कविताएं रची और राष्ट्रीय कविताएं रचने के संकल्प में उन्हें जहां जो उपकरण उपलब्ध हुआ, उसका भरपूर उपयोग किया। जीवन और कविता दोनों को ही उन्होंने समग्रता में जिया। स्त्री के सभी रूप बालिका, प्रेमिका, पत्नी, बहन और मां, उनके जीवन में भी और कविता में भी दिखायी देते है। पूरे वैभव और संवेदना के साथ उतरे हैं।  सभी में सूत्र बदला राष्ट्रीय भावना की है। जीवन और कविता की ऐसी पारस्परिक ता बहुत कम देखी जाती है। वे अपनी कविताएं जीवन की तरह जीते हैं और जीवन कविता की तरह लिखती हैं।‘‘6
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी सर्व प्रमुख थे। सुभद्रा जी के जीवन पर महात्मा गांधी का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से दिखायी देता है। गांधी के सत्य और अहिंसा के मार्ग में दृढ़ विश्वास रखती थी। उनके विचारों को अपना आदर्श मानती थी और उनका अनुसरण करती थी। गांधी जी के प्रेरक संदेश को कवयित्री अपनी कविताओं के द्वारा भारतीय जनमानस तक अपनी कविता ‘विजय दशमी‘ के माध्यम से पहुंचाना चाहती है।
‘दो विजये! वह आत्मिक बल दो, वह हुंकार मचाने दो।
अपनी निर्बल आवाजों से, दुनिया को दहलाने दो।
‘जय स्वतंत्रिणी भारत माँ, यों कहकर मुकुट लगाने दो।
हमें नहीं, इस भू-मण्डल को, माँ पर बलि-बलि जाने दो।
छेड़ दिया संग्राम, रहेगी, हलचल आठों याम सखी!
असहयोग सर तान खड़ा है, भारत का श्रीराम सखी‘! 7
उनकी रचनाएं भले ही लोगों में आक्रोश पैदा करने वाली थी लेकिन उनकी आस्था सत्य और अहिंसा के मार्ग को अपनाने की थी। गांधीजी की अनुयायी होने के कारण उनकी कविताओं में गांधीजी के प्रति सम्मान दिखाई देता है। उन्होंने अपनी कविता ‘लोहे को पानी कर देना‘ में गांधी को राम और कृष्ण के समान बताकर देश मे छाए गुलामी के संकटों के बादलों से भारत के जन मानस की रक्षा करने का आह्वान किया है। देश के गरीब किसानों, मजदूरों को गांधी जी के सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। और उन्हें अपने देश के लिए निरंतर संघर्ष करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहती हैं -
उस ओर साधना है, ऐसी इस ओर अशिक्षित और अजान,
फावड़ा और कुदाल वाले मजदूर और भोले किसान।
आशा करते थे एक रोज वह अवतारी जरूर आवेगा,
आसुरी कृत्य करके समाप्त फिर नई दुनिया बसावेगा।
पर किसे ज्ञात था जग में वह अवतरित हो चुका ज्ञानी,
जिसके तप बल से फूंकें सभी दुनिया के ज्ञानी-विज्ञानी ।
वह कौन? एक मुट्ठी भर का आज नंगा-सा बूढ़ा फकीर,
जिसके माथे पर सत्य-तेज, जिसकी आंखों में विश्व पीर।
जिस की वाणी में शक्ति, विद जो कुलिश-कपाटों को जाती,
जिसके अंतर का प्रेम देख असि-धारा कुंठित हो जाती।
वह गांधी हम सबका ‘बापू‘, वह अखिल विश्व का प्यारा है,
वह उनमें से ही एक जिन्होंने आकर विश्व उबारा है‘। 8
यहां कवयित्री ने केवल महात्मा गांधी को ही नहीं बल्कि स्वाधीनता आंदोलन में अपना आत्म बलिदान करने वाले बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय जैसें महापुरुषों को भी याद करते हुए देश की जनता को जागरुक करने का प्रयास किया है।
‘तिलक, लाजपत, गांधी जी भी, बंदी कितनी बार हुए।
जेल गए जनता ने पूजा, संकट में अवतार हुए। 9
यहाँ सुभद्रा कुमारी का दृढ़ विश्वास है कि जिस प्रकार राम और कृष्ण अपनी प्रजा की रक्षा करने के लिए अनेक रूपों में अवतार लेते हैं और उनकी रक्षा करते हैं, उसी प्रकार महात्मा गांधी भी देश का नेतृत्व करते हुए अंग्रेजोंकेबढ़ते हुए अत्याचार, उनकी दमनकारी शोषण की नीतियों, और गुलामी की जंजीरों से मुक्ति के लिए भारतीय जनमानस को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। सत्य और अहिंसा के मार्ग पर निरंतर चलते हुए, संघर्ष करते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए। कवयित्री गांधी जी को भी राम और कृष्ण की परंपरा में उनके समान ही मानते हुए कहती हैं-
‘जब जब भारत पर भीड़ पड़ी, असुरों का अत्याचार बढ़ा,
मानवता का अपमान हुआ, दानवता का परिवार बढ़ा।
तब तब हो करुणा से प्लावित करुणाकर ने अवतार लिया,
बनकर असहायों के सहाय दानव-दल का संहार किया।
सतयुग त्रेता देता बीता, यश-सुरभि राम की फैलाता,
दुःख के बादल हट गये, ज्ञान का चारों ओर प्रकाश दिखा,
कवि के उर में कविता जागी, ऋषि-मुनियों ने इतिहास लिखा।
जन-जन में जागा भक्ति-भाव, दिशि-दिशि में गूंजा यशोगान,
मन-मन में पावन प्रीति जगी, घर-घर में थे सब पुण्यवान।
द्वापर भी आया, गया, कृष्ण की नीति-कुशलता दरशाता।
कलियुग आया, जाते-जाते उसके गांधी का युग आया,
गांधी की महिमा फैल गयी, जग ने गांधी का गुण गाया‘।10
इस कविता के माध्यम से कवयित्री यह कहने का प्रयत्न करती है कि जिस प्रकार राम ने रावण का और कृष्ण ने कंस का वध करके अपनी प्रजा की रक्षा करते हुए उनके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई उसी प्रकार महात्मा गांधी के नेतृत्व से देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्ति अवश्य मिलेगी और हमारा देश स्वतंत्र होगा।  भारत के प्रत्येक जन-जन के मन में गांधी जी के सत्य, अहिंसा और स्वराज्य की भावना पैदा होगी। सुभद्रा कुमारी ने गांधी जी के स्वराज्य, सत्य और अहिंसा के मार्ग के प्रति अपनी आस्था और विश्वास प्रकट करते हुए अपनी कविताओं के द्वारा राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते हुए भारतीय जनमानस के वीर सेनानियों और महापुरुषों को अंग्रेजों के द्वारा अनेक प्रकार से प्रताड़ित किया जाता था। उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया जाता था। उन पर लाठी चार्ज किया जाता था और उन पर गोलियां चलाई जाती थी। माखनलाल चतुर्देवी राष्ट्रीय आंदोलन के समय कई बार जेल गए और उन्होंने जेल में अपनी कविताओं के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना से जन-जन को जागृत किया। सुभद्रा जी स्वयं देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते हुए कई बार जेल की यात्राएँ की है और वहां उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन से संबंधित बिना किसी भय के अनेक कविताओं की रचना की है। उन्होंने जेल को कृष्ण मंदिर के रूप में संबोधित किया है क्योंकि उनका मानना है कि कृष्ण ने भी कंस के अत्याचारों से अपनी प्रजा की रक्षा के लिए अनेक प्रकार के संघर्ष  किए और उन्हें कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। उसी भांति हमारे देश के महापुरुषों, वीर सिपाहियों, देश के नौजवानों, देश की वीरांगनाओं ने सभी ने मिलकर अंग्रेजों की शोषणकारी एवं दमनकारी नीति का विरोध किया हैं। उन्हें जेल में जाने का कोई डर नहीं हैं। सुभद्रा जी भारत की आजादी के लिए भारतीय जनमानस के मन में जो जोश और उत्साह दिखायी देता है उस उत्साह को अपनी कविता ‘बिदा‘ के द्वारा बताती  हैं-
‘जेल! हमारे मनमोहन के
प्यारे पावन जन्म-स्थान।
तुझको सदा तीर्थ मानेगा
कृष्ण-भक्त यह हिन्दुस्तान‘। 11
अंग्रेजों के द्वारा किए गए अत्याचार, शोषण और  उनकी गुलामी की जंजीरों को तोड़ते हुए हमारे भारतीय जनमानस के वीर नौजवानों जब जेल भेजा गया  तब कवयित्री ने जेल जाने वाले वीर सेनानियों को अपना भाई मानती है और अपने भाइयों को कृष्ण के रूप में संबोधित करती है और स्वयं को एक बहन के रूप में प्रस्तुत करती है। उन्हें देश की आजादी के लिए अंग्रेजों के अत्याचारों से सामना करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहती है-
‘सदियों सोयी हुई वीरता, जागी, मैं भी वीर बनी।
जाओ भैया, विदा तुम्हें,करती हूँ मैं गम्भीर बनी।
याद भूल जाना मेरी, उस आँसू वाली मुद्रा की।
कीजे यह स्वीकार बधाई, छोटी बहिन ‘सुभद्रा’ की‘। 12
जेल में भेजे गए अपने भाइयों को राखी भेजते हुए देश की आजादी के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर करने के लिए कहती है। कवयित्री अपनी कविता ‘राखी‘ में अपने भाइयों का मनोबल बढ़ाते हुए कहती हैं-
‘भैया कृष्ण! भेजती हूँ मैं, राखी अपनी, यह लो आज।
कई बार जिसको भेजा है, सजा-सजाकर नूतन साज।
लो आओ, भुजदण्ड उठाओ, इस राखी में बँध जाओ।
भरत भूमि की रजभूमि को, एक बार फिर दिखलाओ।
बोलो, सोच-समझकर बोलो, क्या राखी बँधवाओगे।
भीर पडेगी, क्या तुम रक्षा-करने दौड़े आओगे।
यदि हाँ तो यह लो मेरी, इस राखी को स्वीकार करो।
आकर भैया, बहिन ‘सुभद्रा‘,के कष्टों का भार हरो‘। 13
इस कविता के माध्यम से कवयित्री ने देश के प्रति समर्पित होने वाले अपने भाइयों अर्थात देश के युवाओं को त्याग और बलिदान के लिए प्रेरित किया है ।
राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम कोकिला के नाम से सुभद्रा कुमारी चौहान को जाना जाता है। उन्होंने ‘झांसी की रानी’, ‘झांसी की रानी की समाधि पर’, ‘वीरों का कैसा हो वसंत’, ‘जलियांवाला बाग में बसंत’ जैसी कविताओं के माध्यम से कवयित्री ने अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम को उजागर किया है। उन्होंने अपना सर्वस्व देश के प्रति न्यौछावार कर दिया। ‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी‘ देश की आजादी के लिए जिस तरह झांसी की रानी वीर मरदानों की भांति अंग्रेजों से अपने अंतिम समय तक संघर्ष करती रही और संघर्ष करते-करते अपने प्राणों की आहुति दे दी। ऐसी वीरांगना की कहानी हमारे भारतीय समाज की स्त्रियों को अपने देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने के लिए, अपना आत्म बलिदान देने के लिए प्रेरित करती है। कवयित्री का मानना है कि देश की आजादी के लिए स्त्रियां भी देश के वीर जवानों के साथ मिलकर देश की आजादी के लिए संघर्ष करें। ‘झांसी की रानी’ कविता के माध्यम से कवयित्री देश की स्त्रियों का आह्वान करती हुई उन्हें प्रोत्साहित करती है और उनके संघर्ष से प्रेरणा लेते हुए देश के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए कहती है-
‘सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आजादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी‘।
भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों का बलिदान  देने वाली रानी लक्ष्मीबाई की कुर्बानी को हमारा देश आज भी उन्हें सम्मान के साथ याद करता है। ‘झांसी की रानी की समाधि पर‘ कविता में रानी लक्ष्मीबाई की समाधि उनकी वीरता और शौर्य का प्रतीक है। आज भी उनकी समाधि उनके देश के प्रति अपने प्राणों का बलिदान देने की अमर कहानी को प्रस्तुत करती है। उनकी समाधि हमारे देश के वीर नौजवानों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। कवयित्री का मानना है कि उनकी समाधि कोई छोटी समाधि नहीं हैं बल्कि यह उस वीरांगना कि समाधि है जिसने अपनी अंतिम सांस अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी और अपने घुटने शत्रुओं के सामने नहीं टेके। अपने प्राणों कि बलि दे दी लेकिन अपना सिर नहीं झुकने दिया। यह उस अमर वीरांगना कि अमर समाधि है।
इस समाधि में छिपी हुई है, एक राख की ढेरी।
जल कर जिसने स्वतंत्रता की, दिव्य आरती फेरी।
यह समाधि यह लघु समाधि है, झाँसी की रानी की।
अंतिम लीलास्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की। 15
राष्ट्रीय काव्यधारा की कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के काव्य में हमें जहां एक ओर राष्ट्र प्रेम की झलक दिखाई देती है वहीं दूसरी ओर उनके काव्य में समाज में व्याप्त सामाजिक विसंगतियों के विरुद्ध विद्रोह भी दिखाई देता है। अंग्रेजों द्वारा भारतीय लोगों के बीच में वर्ण, धर्म, जाति को आधार बनाकर मनमुटाव पैदा करना चाहते थे ताकि भारतीय समाज के लोगों के मन में आपसी भेदभाव, बैर, घृणा जैसे भाव लोगों के मन पैदा हो। जिससे लोगों के मन में समानता, बंधुत्व की भावना को खत्म होगी, भारतीय समाज कमजोर होगा । लोगों के बीच मानवता का भाव खत्म करने पर आपसी भाईचारा, मानवता की भावना खत्म होगी ओर समाज कमजोर होगा । अंग्रेजी सत्ता के लोग भारतीय समाज के लोगों  के बीच’ फूट डालो राज करो’ की नीति को अपनाताते हुए उनका लाभ उठाना चाहती है।  लेकिन सुभद्रा जी बचपन से ही छुआछूत के विरोध में थी। उन्होंने जाति,धर्म के भेद को कभी नहीं माना। उनके लिए मनुष्य और उनकी मनुष्यता सर्वोपरि थी। उन्होंने अपनी कविताओं में सामाजिक असमानताओं का विरोध करते हुए देश में समानता, भाईचारे और मानवता की भावना का समर्थन किया है। समाज में किसी व्यक्ति के साथ अछूतों जैसा व्यवहार होता है तब उसके मन को ठेस पहुँचती है । उस व्यक्ति की पीड़ा को समझते हुए कवयित्री अपने मन की संवेदनाओं को  अपनी कविता श्प्रभु तुम मेरे मन की जानोश् के माध्यम से व्यक्त करने का प्रयास करती हैं-
मैं अछूत हूँ, मंदिर में आने का मुझको अधिकार नहीं है।
किंतु देवता यह न समझना, तुम पर मेरा प्यार नहीं है॥
प्यार असीम, अमिट है, फिर भी पास तुम्हारे आ न सकूँगी।
यह अपनी छोटी सी पूजा, चरणों तक पहुँचा न सकूँगी 16
समाज में छुआछूत के आधार पर होने वाले भेदभाव को देखने के पश्चात कवयित्री के मन में अनेक प्रकार के प्रश्न उठने हैं कि यदि ईश्वर सबका एक है तो फिर ईश्वर का बंटवारा कैसे हो सकता है? ईश्वर सभी जाति के व्यक्तियों के लिए एक है। फिर भी समाज में जाँत-पाँत को लेकर ईश्वर का भी बंटवारा क्यों कर दिया जाता  है?  सुभद्रा जी ने अपनी कविताओं के माध्यम से अपने मन में उठे सवालों के जवाब ढूंढने का प्रयास करती है । देश में बढ़ते हुए अत्याचार और दोहरे आचरण का भी खुलकर विरोध करती है। जब तक हमारे देश में छुआछूत, ऊंच-नीच  और सामाजिक असमानताओं का विरोध नहीं किया जाएगा तब तक समाज में सामाजिक समानता, सद्भाव संभव नहीं है। -
यह निर्मम समाज का बंधन, और अधिक अब सह न सकूँगी।
यह झूठा विश्वास, प्रतिष्ठा झूठी, इसमें रह न सकूँगी॥
ईश्वर भी दो हैं, यह मानूँ, मन मेरा तैयार नहीं है।
किंतु देवता यह न समझना, तुम पर मेरा प्यार नहीं है 17
कवयित्री के मन में अपने ईश्वर के प्रति वही आस्था, निष्ठा, प्रेम और सत्कार का भाव है जो भाव अन्य व्यक्तियों  के मन में ईश्वर के प्रति है। यदि सबके मन में एक ही ईश्वर है तो समाज में सभी व्यक्तियों के बीच छुआछूत, ऐसा असमानता का भाव क्यों दिखाई देता है? लोग आपस में क्यों लड़ते हुए दिखायी देते है?
मेरा भी मन है जिसमें अनुराग भरा है, प्यार भरा है।
जग में कहीं बरस जाने को स्नेह और सत्कार भरा है
वही स्नेह, सत्कार, प्यार मैं आज तुम्हें देने आई हूँ।
और इतना तुमसे आश्वासन, मेरे प्रभु! लेने आई हूँ।
तुम कह दो, तुमको उनकी इन बातों पर विश्वास नहीं है।
छुत-अछूत, धनी-निर्धन का भेद तुम्हारे पास नहीं है। 18
उन्होंने अपनी इस अंतिम कविता ‘प्रभु तुम मेरे मन की जानो’ कविता की पंक्तियों के माध्यम से समाज में फैली असमानताओं का विरोध किया है ।
निष्कर्ष : सुभद्रा कुमारी का काव्य राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत रहा है। उन्होंने अपने काव्य के केंद्र में राष्ट्र को रखा है और राष्ट्र के प्रति अपने प्रेम, निष्ठा को अभिव्यक्त किया है। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से प्रदेश की जनता को जागरुक करने का प्रयास किया  है। देश की स्वतंत्रता के लिए उन्होंने कई बार जेल की यात्राएं भी की है लेकिन उनका मन सदैव देश के प्रति समर्पित रहा। राष्ट्रीय काव्यधारा की महिला कवयित्री होने का सम्मान सुभद्रा कुमारी चौहान को प्राप्त है। यदि महादेवीवर्मा के शब्दों में कहा जाए तो नदियों का कोई स्मारक नहीं होता, दीपक की लौ को सोने से मार दीजिए पर इससे क्या होगा।  हम सुभद्रा के संदेश को दूर-दूर तक फैलाएं और आचरण में उसके महत्व को माने यही सफल स्मारक है।
संदर्भ :
1. सुभद्रा कुमारी चौहान, प्रतीक मिश्र, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ, 2006   पृ.सं.- 42
2.वही, पृ.सं.- 40
3.मुक्तिबोध रचनावली भाग-5,नेमिचंद्र जैन(सं),राजकमल पेपरबैक्स,नईदिल्ली, पृ.सं.- 370
4.‘विजय दशमी’, सुभद्रा कुमारी चौहान ग्रंथावली, रूपा गुप्ता, स्वराज प्रकाशन, नई दिल्ली पृष्ठ सं.-103)
5.‘झांसी की रानी की समाधि पर‘, सुभद्रा कुमारी चौहान ग्रंथावली, पृ.सं.-158
6.हिंदी साहित्य का आधा इतिहास,सुमन राजे, भारतीय ज्ञानपीठ,नई दिल्ली पृष्ठ सं.-252
7.‘विजय दशमी’, सुभद्रा कुमारी चौहान ग्रंथावली, पृष्ठ सं.-104
8.‘लोहे को पानी कर देना’, सुभद्रा कुमारी चौहान ग्रंथावली, पृष्ठ सं. 183
9.‘बिदा’, सुभद्रा कुमारी चौहान ग्रंथावली, पृष्ठ सं.-115
10.‘लोहे को पानी कर देना’, सुभद्रा कुमारी चौहान ग्रंथावली, पृष्ठ सं.-182
11.‘बिदा’, सुभद्रा कुमारी चौहान ग्रंथावली, पृष्ठ सं.-115
12.वही, पृष्ठ सं.-116
13.‘राखी’, सुभद्रा कुमारी चौहान ग्रंथावली, पृष्ठ सं.-98
14. ‘झांसी की रानी’, सुभद्रा कुमारी चौहान ग्रंथावली, पृष्ठ सं.-81
15. ‘झांसी की रानी की समाधि पर’,सुभद्रा कुमारी चौहान ग्रंथावली,पृ. स.-158
16.‘प्रभु तुम मेरे मन की जानो‘, सुभद्रा कुमारी चौहान ग्रंथावली, पृष्ठ स.-185
17.वही, पृष्ठ सं.-186
18.वही पृ.सं.- 186
आशा मीणा
सहायक आचार्य,हिन्दी विभाग, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय,मोतिहारी
अपनी माटी
( साहित्य और समाज का दस्तावेज़ीकरण )
  चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका
Peer Reviewed & Refereed Journal , (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-61, जुलाई-सितम्बर 2025
सम्पादक  माणिक एवं जितेन्द्र यादव कथेतर-सम्पादक  विष्णु कुमार शर्मा चित्रांकन दीपिका माली

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