ग़ज़ल:कौटिल्य भट्ट ‘सिफ़र’

जुलाई-2013 अंक 


ख़्वाबों को बनते बिखरते देखा करते है 
वो जिनके अपने ख़्वाब हुआ करते हैं 

हमने  देखे है  ऐसे कमजर्फ भी दुनिया में   
जो पास जलते घर को हवा दिया करते हैं

इंसान बनाने बंद कर दिये है आजकल 
खुदा भी अब सिर्फ खुदा बनाया करते  हैं 

कौन रोता है ग़ैरों की खातिर यहाँ पर 
खुद के दर्द को याद कर सब रोया करते हैं  

जो बोलता नहीं उसे बोलना मत सिखाओ 
आँसू बुजुगों के यही बात दोहराया करते हैं 

नज़र ना लगे सफ़ेद पैरहन को किसी की 
ये लोग करतूते हमेशा काली किया करते हैं 

 ख़्वाबों में भी उनके आने से आंखे नम हुई  'सिफर'
आँसू, यादों से अपने मरासिम यूँ निभाया करते हैं

कौटिल्य भट्ट ‘सिफ़र’
चित्तौड़गढ़,राजस्थान से ताल्लुक रखते हैं 
पठन-लेखन में रूचि मगर
छपने-छपाने में अरूचि संपन्न युवा साथी हैं 
गुजरात,मध्यप्रदेश और राजस्थान में 
बहुत घुमक्कड़ी की है।
राजस्थान सरकार के रजिस्ट्रार विभाग 
में निरीक्षक के पद 
पर सेवारत हैं 
मोबाइल-09414735627




Post a Comment

और नया पुराने