अगस्त-2013 अंक
रजनी मोरवाल
शिक्षिका और कवयित्री
सी- 204, संगाथ प्लेटीना,
साबरमती-गाँधीनगर हाईवे,
मोटेरा, अहमदबाद -380 005
दूरभाष 079-27700729,
मोबा.09824160612
पूरा परिचय यहाँ |
क्या मधुमास दिखे ?
भिनुसारा है रूठा-रूठा
साँझ उदास दिखे,
ऐसे मौसम में अब बोलो
क्या मधुमास दिखे?
रूई के फाहे से बादल
निर्जल औ' धुँधले,
खेतों में पपड़ी उग आई
जैसे हो उपले
धरती के ऑंखें पथराई
उभरी प्यास दिखे|
पनघट सूना बस्ती सूनी
व्याकुल वनपाँखी,
बरगद सूखा, टहनी सूखी
आकुल मधुमाखी,
मरघट में कोयल की बोली
क्या उपहास दिखे?
पेट, पीठ से चिपका जाता
आँख लगी धँसने,
ठूँठ, बाँझ पेड़ों के ऊपर
चील लगी बसने,
पतझड़ में सींचे हलवाहे
क्या परिहास दिखे?
शबनमी अहसास
ओस में भरकर छलकती
आसमां की प्यास,
दूर तक बिखरा हवा में
शबनमी अहसास|
पर्वतों पर धूप ताने
सो रही है भोर,
छाँव छुपकर तकती है
फुनगियों की ओर,
आ रही है ये अदा भी
वादियों को रास|
प्रीति का श्रृंगार फैला
धड़कनों के द्वार,
रेशमी अभिसार जागा
स्पंदनों के पार,
सिहरनों के गाँव ठहरा
भीगता मधुमास|
चाँदनी की बाँह पर लिख-
दो सजन का नाम,
और किरणों में मिला दो
प्रीति का पैगाम,
चाँद को होकर रहेगा
प्यार का आभास|
सपने भी कतरातें हैं
स्वार्थ भरी दुनिया में
सपने भी कतराते हैं
धुँधली-पतली नींदों
में वे
आ ही जाते हैं|
दिन भर अफ़रा-तफ़री रहती
आगे बढ़ने की,
जीवन की आपाधापी में
सीढ़ी चढ़ने की,
हाँफ रहे बेचारे
दिन भी
क्या चल पाते हैं?
बिखरे-बिखरे संबंधों में
टूटन की रेखा,
सच्चाई के चोगे में बस
झूठन ही देखा,
हाथों में खंजर है
फिर भी
गले लगाते हैं|
माँगें दिन-दिन बढ़ती जाए
मँहगाई दूनी,
बिन बोनस इस वर्ष दिवाली
फिर बीती सूनी,
बिना तेल के दीपक
सारे
बुझ-बुझ जाते
हैं|