कविताएँ:किरण आचार्य

साहित्य और संस्कृति की मासिक ई-पत्रिका 
अपनी माटी
 सितम्बर अंक,2013

कविताएँ:किरण आचार्य,चित्तौड़गढ़

(1 )अनगढ़

रोटी का आकार 
गोल होना चाहिए 

पापड़ सेको  
एक भी काला दाग 
न हो तिल जितना भी नहीं 

बुहारी को 
अर्द्धचन्द्राकार घुमाओ 
देखो कचरा ना छूटे 

फटी रजाई के 
कोने पर करीने से 
सिलो पैबंद कि 
दिखे भी नहीं 

बरतन माँजते समय 
खड़खड़ाहट  न हो 

बडे हो या छोटे 
सब की बात सुन लो 
कहे सो करती रहो 
बस 
पलट कर जवाब नही देना 
अच्छे खानदान की बेटी जो हो 

दादी अम्मां बुआ मौसी ....
सब ने यही सिखाया 
कैसे बनें सुघड़ 

सिखाया वही  मुझे भी 
उन्होनें जो सीखा था

बेटी को गढ़ो ऐसा कि
घर को बनाए स्वर्ग 
पर यह धरती है एकतरफा 
ये काम है कठिन है

वे तो चुप रहीं 
करती रही अथक प्रयास 
पर मेरा मन अंदर से 
कुलबुलाता कहता रहा 

कुछ तो रहने 
दो मेरे भीतर 
जो मेरा है सिर्फ मेरा 

बना रहने दो अनगढ़ कुछ तो 
जिसे गढूं मैं अपने मन का

एक आजाद कोना तो हो 
जो हो सिर्फ मेरे लिए 
सभी नियमो बंदिशों से मुक्त 
एकदम अनगढ़ 


(2 )प्रायश्चित

मै खंजर हूँ 
खून से लथपथ
शर्मिन्दा हूँ
अपने अस्तित्व पर
कि 
मैं किसी की 
पीठ पर घोंपा गया हूँ

गहरे गाड़ दो मुझको  
कहीं पाताल में  
बरसों तक 
तिल तिल गलूँगा
यही मेरी सजा होगी

ओ खंजर नहीं 
यूँ नहीं
प्रायश्चित का एक तरिका यह भी कि 
पिघलो ऐसे कि एक
पतरा बन ढक दो 
किसी टपकती झोंपडी के पानी को 
बरसतीबरसात को 
झेलते धो लो अपनी आत्मा 
बरसो बरस धीरे-धीरे  
खजते-खजते( जंग लगना) मिल जाओ 
मिट्टी में 
होगा वही सच्चा प्रायश्चित

किरण आचार्य 
प्रोफेशनल एंकर और समाजशास्त्र विषय से शोधरत हैं. आकाशवाणी  से लगातार प्रसारित है. चित्तौड़गढ़, निम्बाहेड़ा और उदयपुर की कई सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं से अनौपचारिक जुडाव रखती हैं.सोच में मौलिकता कोशिश रखती है. कविता-कहानी लिखने के साथ ही अभिनय में रूचि है.लोक संस्कृति के प्रति विशेष रुझान रहता है.

संपर्क: मोबाइल-09414420124,
ई-मेल:kien.acharya@gmail.com

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