कविताएँ:अरविन्द श्रीवास्तव

    चित्तौड़गढ़ से प्रकाशित ई-पत्रिका
  वर्ष-2,अंक-22(संयुक्तांक),अगस्त,2016
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कविताएँ:अरविन्द श्रीवास्तव 


यह चुप्पी का कोई शोकगीत नहीं

चित्रांकन
 नहीं थीं बिल्लियां संवाद में
कौवे भी नहीं थे
नदारत थी तितलियां 
फिर भी वे सुन रहे थे हमें चुपचाप

चतुर हत्यारा भी किसी संवेग पर 
सबसे अधिक चुप दिख रहा था
ज्वालामुखियों को कैद करने वाला व्यक्ति
दिख रहा बर्फ सा 

पसरा हुआ था सन्नाटा
कोलाहल भरे सड़कों पर
साँकल सहमी रहती और स्वप्न देखने का मतलब
दावत देना था खतरे को
निरापद जगहें महफूज नहीं थी यहाँ
गुप्त तहखानों की निगरानी
सेंधमारों के हिस्से थी

निर्विवाद बचा नहीं था कुछ भी
प्रेमिकाओं ने भी अपने नफा-नुकसान
शुरू कर दिया था देखना
काजल केमिकल से भरे थे और मुस्कान
बाजार की भाषा में
कीमत वसूलने को थी उतारू और
संजीदा मसले सदियों से 
विसंगतियों और विडम्बनाओं का
दस्तावेज़ बनकर
फड़फड़ा रहे थे फाइलों में

किसी प्रतिकार का दोहन 
राजनीतिज्ञ कर लेते थे
बड़ी चतुराई से

प्रत्येक त्रासदी किसी न किसी चुप्पी का हिस्सा थी
चुप्पी एक खतरनाक स्थिति थी और
मुश्किल होता जा रहा था यहाँ चुप्पी से बचना
हम सभी शामिल होते जा रही थे
किसी न किसी की 
चुप्पी में!
**

पहाड़

पहाड़ मिट्टी में मिल गया
जैसे हमारा प्रेम
हमारी परंपराएँ
हमारे सपने और दुनिया से
कई-कई प्रजातियाँ तितलियों सी

पहाड़ मिटा जैसे धरती का
निर्भीक डायनाशोर
बड़े सम्मान से
जैसे खत्म हुई बीसवीं सदी

जैसे कई-कई बार राजनीति की भेंट
चढ जाते हैं
प्रतिवादी हौसले
बलिष्ठ भुजाएँ
कोमल काया !
**


धर्म संकट

पुजारी ने आंखें मूंद ली है
घंटी नहीं बज रही मंदिर में
नहीं चढ़ पाया है भोग
व्याकुल हैं देवतागण भूख से

सन्नाटा पसरा है मातमी

ताबड़तोड़ गोलियाँ चली है
नए पुजारी के चयन में

इधर ट्रस्टियों नें धर्म संकट की बात कही
उधर कुत्ते भूक रहे हैं बेहिसाब !
**

जब हम प्रेम करते हैं
                  
हम प्रेम करते हैं और हम पर नज़र रखी जाती है
तमाम पेड़ काट दिये जाते हैं- कि कोयल
कूके नहीं और परिन्दे घर नहीं बसाये इधर
तितलियाँ अपनी प्रजातियों के साथ तबाह हो जाय
नदियों और पहाड़ों को छीना जाता है हमसे
कचरों के ढ़ेर मे खो जाते हैं तालाब
रोशनदान से उजाड़ा जाता है घोंसले को
चिड़िया चिचियाती हुई भागती है
दक्षिण दिशा में

हम प्रेम करते हैं जहाँ
बारुदी सुरगें बिछी होती है वहाँ
कई-कई खापों के फरमान छोड़े जाते है
हमारे पीछे
पार्कों में सुरक्षा-प्रहरी खदेड़ते हैं हमें
हमें कथित 'सेनाकराते हैं उठक-बैठक
जब कभी प्रेम करते हैं हम
सरहद पर चीनी सैनिकों का अतिक्रमण
हो जाता है शुरु !
**

मौसी जो कविता में नहीं हैं
                    
ऊटपटांग खर्चों से माँ को रोकने वाली मौसी
अपनी होशियारी और काबिलियत की बदौलत
हमेशा माँ की प्रिय रही
माँ ने भी कई-कई बार
अपनी कृतज्ञता जाहिर करते हुए कहा कि
असल में तो तुम्हें- मौसी ने ही पाला था
तुम्हारा बचपन मौसी के कंधों पर बीता
बगैर उसका गाना सुने-
खाते नहीं थे कभी तुम

आज मौसी की अपनी दुनिया है
वह हमारी कविता का हिस्सा नहीं रही कभी भी
फ़िल्मों में मौसी के कई रूप दिखते हैं
माँ के आरंभिक दिनों में
मौसी सबसे बड़ी ताकत थीं
हमारे घर की चर्चाओं में
अक्सर सुर्ख़ियाँ बटोरती रहीं मौसी
अपनी लघु भूमिका में अक्सर
उस नायिका की तरह आती रहीं वह
जिसे बीच में ही किसी दूसरी फ़िल्म में
सम्पूर्ण भूमिका के साथ अवतरित होना पड़ता है।
**

निरपेक्ष जन

प्रत्येक देश और काल में
जन्म ले रहे थे व्यवस्था-विरोधी
वे जन्म ले रहे थे तनाव व घुटन के माहौल में
वे आक्रोश और प्रतिरोध की सन्तान थे
उनके लिए दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह थी कि
जब कभी उनके हाथ आती थी व्यवस्था
तभी एक नया व्यवस्था-विरोधी तबका
जन्म ले लेता था
कभी व्यवस्था सर चढ़कर बोलती
तो कभी करती विरोध
व्यवस्था कभी पराजित नहीं होती थी और
व्यवस्था-विरोधी कभी थकते नहीं थे
इस नूराकुश्ती से निरपेक्ष जन ने
कयास लगा लिया था कि आपस में इनकी
मिली-भगत है
निरपेक्ष जन देखते थे टुकुर-टुकर
प्रत्येक बार इन्हीं के सर
इल्जाम मढ़ा जाता था-
अज़ी जो कुछ हो रहा है
आपके भले के लिए !
**

प्रेम का विवरण

प्रेम का विवरण कुछ इस तरह लिखा जाए
जिसमें भाषा शिल्प और एक दूसरे को
ठगने वाले लुभावने संवाद वर्जित हो
पठनीय प्रेम को अपठनीय बनाया जाय
किसी तरह की बेचैनी का उल्लेख निषिद्ध हो
तड़प का गला घोटते मुस्कुराते चेहरे दिखने चाहिए
बेहतर है गंध के विवरण में
समूचे प्रेम को समेटा जाए
गंध अलिखित बगैर वसीयत
अदृश्य अस्पृश्य और वांछित
सदी से सदियों तक

प्रेम के विवरण में प्रेमियों को
मत घसीटा जाए
विवरण के स्थान रिक्त हों
शांत कोलाहल मुक्त
बैंडबाजे और बारात से
बची रहे कायनात
एक तर्ज़े सुखन ईजाद हो
जिसकी भनक कान को न लगे
रगो में दौड़ता लहू रहे बेखबर

प्रेम को दिल में अंकुरित होने दें
कुशल राजनीतिज्ञ की तरह
उसकी हत्या का प्रबन्ध करें
जैसे बड़े कवि करते हैं
अक्सर छोटे कवियों की !
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पृथ्वी पर..

यह मध्यरात्रि का समय है
सो रहे हैं कुछ लोग गहरी निद्रा में
क्योंकि जाग रहे हैं कुछ लोग चौकन्ना हो कर

नदियाँ जाग रही है
जाग रही हैं हवाएँ
पेड़-पौधे जाग रहे हैं
घर के वृद्ध बाबा और जाग रहा है
पड़ोस का कुत्ता
लाख-लाख अपमान और जिल्लत सहते
हमारी सुकून भरी निद्रा के लिए
जाग रहे हैं ये सभी
इनके होने से हमारी परमप्रिय निद्रा
है सुरक्षित
और पृथ्वी पर मंगल !
**

सही समय पर

सही समय पर हमने प्रेम किया
कविता लिखी सही समय पर
सही समय पर चिरायते का करुवा घूँट पिया हमने
फेंका मुखौटा
समयातीत से किया संवाद
सही समय पर सुनी गईं मेरी प्रार्थनाएँ
बजी चुटकी और फरमान आया महामहिम का
तब हम धरती में थोड़ा और धँसना चाहते थे
उड़ने के बजाय !
**

साहित्य-सेवा

बड़ी निर्लज्जता से
दाँत चियार कर
कहता है वह शख़्स
-सेवानिवृति के पश्चात
मैं भी करूँगा साहित्य-सेवा
फ़िलवक्त समय नहीं है
आपकी तरह
बेरोजगार नहीं हूँ न !
**

हमारी पीड़़ा

डगर कठिन है
मरोड़ती अंतरियों से निकले शब्दों का
पहुँच पाना उन बन्द दरवाजों तक
जहाँ संजीदे मसलों पर हमारे प्रतिनिधि
व्यस्त होते हैं एक दूसरे को
करने में बद्सूरत

हमारे खेतों की पगडंडियो से गुजरते हैं
मेरे शब्द
जहाँ मुखिया के लठैत
करते हैं हाथापायी
मिलती है जहाँ 
चुप्पी की नेक सलाह
कष्टों से भरा होता है
हमारे शब्दों का सफर
गांव-कस्बे से पार्लियामेंट तक का 

इसी तरह हमारी पीड़ा
रेंग-रेंग कर
करती है प्रवेष
लोकतंत्र की सबसे बड़ी मंडी में !
**


भय

बहुत उठा पटकजोड़-तोड़ और
माथापच्ची के बाद भी
नहीं थी मुक्ति भय से
क्योंकि भय एक अमूर्त्त दुखदायक
मनोविकार मात्र नहीं रह गया था

उर्वर था भय का प्रदेश और
गतिमान वायरस सदृष्य
खुफिया आंखें तलाश रही थी
धरती के चप्पे-चप्पे पर जबकि
सिरहाने बैठा भय
कर रहा था अठखेलियां
और साहचर्य का भय
अधिक भयावह था
एकाकीपन से !
शून्यता और भीड़ सभी कुछ
भय की ज़द में
सन्नाटा और आहट भी

लो बाल बाल बच गया मैं
अभी-अभी मृत्यु ने
ली प्यार की झप्पी !

अरविन्द श्रीवास्तव
(कवि और फिलहाल बिहार प्रगतिशील लेखक संघ के राज्य सचिव एवं मीडिया प्रभारी हैं।बीते सालों इनकी कविताओं का संग्रह 'राजधानी में एक उज़बेक लड़की' चर्चा में रहा।)
कला-कुटीर, अशेष मार्ग,मधेपुरा- 852112. बिहार
संपर्क सूत्र:-9431080862,ई-मेल:-arvindsrivastava39@gmail.com

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