कविताएँ :डॉ. हेमलता यादव

त्रैमासिक ई-पत्रिका
वर्ष-3,अंक-24,मार्च,2017
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कविताएँ :डॉ. हेमलता यादव
चित्रांकन:पूनम राणा,पुणे 


चीख
अंधेरे को चीरती चीख


बरसाती रात मे


उस नासमझ लडकी की


जो पानी से बचने के लिए


दिवार की ओट मे


खडी हो गई


हलकी ठंड से सिमटी


अनजान थी


कुछ ही देर बाद
उसके हलक से


निकलने वाली


चीख से


और वो जानवार


एकटक घूरता हुआ


उसके कोमल शरीर को


गिध्द जैसी ललचाई


नजंरो से,


उभरता दृश्य


एक हड्डी पर


झपटते श्वान का


फिर चीख


बेबस चीख


सिर्फ चीख




आजादी की चाहत


पंख फैला जब-जब


उंची उड़ी चिरैया


झपट गया बाज कभी गिद्ध


नहीं


मत करो आजादी की चाहत


तुम पिंजरे में ही हो सुरक्षित


न वृक्ष न कोटर


न आकाश विस्तृत


मात्र करो सांत्वना


कि तुम हो जीवित


जबरन कभी बाज कभी गिद्ध


घसीटेगें तुम्हें बाहर


दे हवाला आजादी का


दुबक जाना


इनकी बातों से


मत मचलना


समझ जाना कि


बहेलिए हैं सब


लालचवश


आजादी की चाह से पहले


झांकना


देखना


महसूस करना


इन बाजों की आंखों में


नाचती नग्न भूख


और गिद्धों के


मुंह से टपकती


लिजलिजी लार




उम्मीद के दो रूप


रौशनी   
रात को


खुली आंखो से सुलाती है


सुबह बन नई किरण जगाती है


पिता की फटकार


से जिंदगी सिखाती है


माँ की लोरी


बन हृदय से लगाती है


कक्षा में पीछे बैठे


बच्चे की आंखो में शरारत


बन नजर आती है


एक उम्मीद


दुल्हन की आंखों में


नया सपना सजाती है


उम्मीद


और उजली नजर


आती है जब कोई


गर्भवती बिन देखे


अपने बच्चे को


सहलाती है


सुधियों को दरकाती हुई उम्मीद


अंतिम सांस तक जिलाती हैं


उम्मीद तब और भी


रिझाती है जब लाखों


उम्मीद टुटने पर भी


एक नई उम्मीद मुस्काती है


जड़ उम्मीद


उदीप्त रौशनी का


मुखौटा पहने सुर्योदय में


छाया घना अंधेरा है


तपते मन को भरमाता


शुष्क मरीचिका का फेरा है


मेरी उम्मीद


सपनों के आकाश से टुटता


आस का तारा है


धुप की झुलस से


पुखुडि़यों पर अदृश्य होता


ओसकण है


विवशता की कटार से


घायल होता स्वप्निल


लम्हे का कतरा है


मेरी उम्मीद


दहकते पलाश सी


अल्हड़ता लिए निष्करुण


उदासीन उपेक्षा है


चाँद के स्पर्श को


लालायित उठती गिरती


ज्वार लहर है


मीलों तक आगे चलती


छटपटाती लम्बी प्रतीक्षा है


मेरी उम्मीद


गुनगुनी मिट्टी से धुल बनती


प्रीतगंध में भीगी काया है


मौन पतझर से पहले झरती


मधुमास की मधुर श्वास है


मेरी उम्मीद




सुबह की पहली किरण


के उजास को बोझिल करता


शाम का बासीपन है


संबधो के लावे से चटककर


बिखरती सिंदुरी जिन्दगी है


तुम्हारे स्वार्थ की अग्नि में सुलगती


मासुम सी हसरत है


मेरी उम्मीद


सुने अंधियारे की खामोशी तोड़ता


कांपती सिसकियों का दबा स्वर है


जीवनभर प्यास बुझने


की आस लिए


नदी किनारे का


जड़ पत्थर है


मेरी उम्मीद

डॉ. हेमलता यादव
459c/6 गोविन्दपुरी ,कालकाजी नई दिल्ली 110019,
संपर्क:9312369271,hemlatayadav2005

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