शोध आलेख : लॉकडाउन में ट्रांसजेंडर समुदाय के समाजार्थिक और स्वास्थ्य सुविधाओं पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन / डिसेंट कुमार साहू

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लॉकडाउन में ट्रांसजेंडर समुदाय के समाजार्थिक और स्वास्थ्य सुविधाओं पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन  

डिसेंट कुमार साहू

 शोध सारांश :

अध्ययन का उद्देश्य लॉकडाउन की वजह से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के सामाजिक-आर्थिक जीवन में आये बदलाव और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं पर हुए प्रभावों का अध्ययन करना है। शोध उद्देश्य को पूरा करने के लिए रायपुर (छत्तीसगढ़) शहर के 10 ट्रान्सजेंडर से टेलेफोनिक साक्षात्कार लिया गया। यह गुणात्मक शोध है और शोध अभिकल्प अन्वेषणात्मक शोध अभिकल्प है। अध्ययन में पाया गया कि कोविड-19 वाइरस के प्रसार को रोकने के लिए अचानक लगाए गए लॉकडाउन के कारण ट्रान्सजेंडर व्यक्तियों को विभिन्न सामाजिक, आर्थिक व स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा। उनकी आर्थिक गतिविधि पूरी तरह से बंद हो गई थी। इसका प्रभाव उनके मूलभूत जरूरतों के साथ ही स्वास्थ्य पर भी पड़ा। उन्हें लिंग पुनः पुष्टि सर्जरी (Sex reassignment surgery) की प्रक्रिया रोकनी पड़ी। 

बीज शब्द : ट्रांसजेंडर, कोविड-19, लॉकडाउन, स्वास्थ्य सुविधाएं

मूल आलेख :

कोविड-19 महामारी ने दुनियाभर के लोगों के स्वास्थ्य, आजीविका और सामाजिक जीवन को प्रभावित किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा महामारी घोषित किए जाने के बाद अनेक देशों ने परिस्थिति अनुसार अलग-अलग समय में लॉकडाउन घोषित किया। भारत सरकार ने 23 मार्च 2020 से लॉकडाउन की घोषणा की जिसे कई चरणों में विस्तारित करते हुए 31 मई 2020 तक बढ़ाया गया।[1] परिणामस्वरूप, सार्वजनिक स्थानों को बंद कर दिया गया, लोगों की आवा-जाही को प्रतिबंधित करते हुए सामाजिक दूरी का पालन करने को कहा गया। अचानक घोषित लॉकडाउन से देशभर में लोग बिना किसी पूर्व सूचना एवं तैयारी के जो जहां थे वे वही कैद हो गए। कोविड महामारी के दौरान लगाए गए लॉकडाउन ने समाज के कमजोर और हाशिए के वर्गों के सामने आने वाली चुनौतियों को और ज्यादा बढ़ाया, उनमें से एक ट्रांसजेंडर समुदाय है जो पहले से ही कलंकित जीवन और गंभीर भेदभाव का सामना कर रहा है। मानव अधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त ने जेंडर व यौनिक भिन्नता प्रदर्शित करने के कारण हाशिये पर रहने वाले लोगों के लिए कहा "एलजीबीटीआई लोग कई समाजों में सबसे कमजोर और हाशिए पर हैं, और कोविड-19 के जोखिम वाले लोगों में से हैं"[2] इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने इन समूहों के लिए कोविड-19 के दौरान भेदभाव ना हो इसके लिए दिशानिर्देश भी जारी किया। परिवार और समाज के सामने अपनी जेंडर पहचान ट्रान्सजेंडर के रूप में रखने वाले व्यक्ति परिवार और समाज से बहिष्कृत जीवन व्यतित करने के लिए अभिशप्त हैं। तीसरे जेंडर के रूप में कानूनी मान्यता मिल जाने के बाद भी इस समुदाय के प्रति समाज के व्यवहार में ज्यादा परिवर्तन नहीं आया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने 2018 में ट्रान्सजेंडर की सामाजिक, आर्थिक व जीवन जीने की दशा को लेकर एक अध्ययन किया था। अध्ययन में पाया गया कि 92 प्रतिशत ट्रान्सजेंडर किसी भी तरह के आर्थिक गतिविधि में भाग नहीं ले पाते मजबूरन उन्हें अपनी आजीविका के लिए भिक्षावृत्ति व यौनकार्य में धकेल दिया जाता है। अध्ययन में कहा गया है, "वे आर्थिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में पूरी तरह से अदृश्य हैं"।[3] "निम्न स्तर की शिक्षा और सामाजिक बहिष्कार उनके रोजगार और आजीविका के अवसरों को सीमित करता है"।[4] सिर्फ 2 प्रतिशत ही ट्रान्सजेंडर अपने परिवार के साथ रहते हैं, जबकि 99 प्रतिशत कहते हैं कि उन्हें कई बार सामाजिक अस्वीकृति का सामना करना पड़ा। 57 प्रतिशत ट्रान्सजेंडर लिंग (सेक्स) परिवर्तन शल्य क्रिया करवाना चाहते हैं लेकिन वे इसका खर्चा उठाने में असमर्थ हैं।[5] रिपोर्ट स्कूल व बाहर होने वाले भेदभाव, हिंसा के भयावह आंकड़े पेश करता है।

भारत में लॉकडाउन के दौरान ट्रान्सजेंडर व्यक्तियों पर पड़ने वाले प्रभाव पर कम ही अध्ययन हुए हैं। देश व अन्य देशों में हुए अध्ययन से पता चलता है कि कोविड 19 के संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने ट्रान्सजेंडर समुदाय के जीवन के विभिन्न आयामों को प्रभावित किया। ट्रांसजेंडर समुदाय के कई लोग राष्ट्रव्यापी बंद के कारण आय के सभी स्रोतों को खो चुके हैं। सामाजिक कलंक उनके लिए भोजन जैसी आवश्यक वस्तुओं तक पहुंच को मुश्किल बना दिया है और कई ट्रान्सजेंडर किराया भुगतान करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जो लोग पारंपरिक आजीविका पर निर्भर करते हैं, जैसे कि सेक्स वर्क, बधाई (शादियों और अन्य उत्सवों में आशीर्वाद देना), और भीख मांगना, महामारी और उसके बाद के लॉकडाउन से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं।[6] [7] अध्ययनों में पाया गया कि ट्रान्सजेंडर व जेंडर अनिर्धारित व्यक्तियों का स्वास्थ्य सेवा तक पहुँचना मुश्किल या असंभव हो गया है जिससे हार्मोनल और मनोवैज्ञानिक उपचारों की शुरुआत या निरंतरता में बाधा उत्पन्न हो रही है। जेंडर निर्धारण संबंधी सहायता व ट्रान्सजेंडर विशिष्ट स्वास्थ्य सेवाओं में बाधा होने के कारण लॉकडाउन के दौरान समुदाय में ज्यादा मनोवैज्ञानिक परेशानी पाई गई।[8] [9] [10] आपात स्वास्थ्य सेवाओं को छोड़कर सभी स्वास्थ्य  सेवाओं को बंद करने से पहले निर्धारित सेक्स पुनः पुष्टि सर्जरी को स्थगित किया गया।[11] महामारी के पहले से ही स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँचने वाले वाले ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए कई बाधाएं मौजूद थी, जैसे कि विशेष स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की कमी; नतीजतन, बहुत कम ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को लिंग पुनः पुष्टि सर्जरी और हार्मोन हस्तक्षेप प्राप्त होते हैं, खासकर कम आय और मध्यम आय वाले देशों में।[12] विभिन्न अध्ययन यह दिखाते हैं कि जेंडर निर्धारण संबंधी स्वास्थ्य सेवाएँ ट्रान्सजेंडर व्यक्तियों के मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। भेदभाव के कई रूप और एक-दूसरे से जुड़ने वाले कारणों के परिणाम स्वरूप ट्रान्सजेंडर समुदाय के द्वारा अनुभव की जाने वाली भेद्यता मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के उच्च जोखिम में रखती हैं, जो विभिन्न बीमारियों और दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक जटिलताओं को जन्म दे सकती हैं।[13] अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों का कोरोना वायरस से अधिक प्रभावित होने को ध्यान में रखते हुए, ट्रान्सजेंडर समुदाय में एचआईवी संक्रमण की उच्च दर इस समुदाय को कोराना वाइरस के लिए भेद्य समूह बनाता है।[14] [15] वे अन्य बीमारियों से भी ग्रसित हैं, नेशनल सेंटर फॉर ट्रान्सजेंडर फॉर ट्रान्सजेंडर एक्वालिटी (NCTE) के अनुसार वयस्क ट्रांस अन्य जनसंख्या के मुक़ाबले में अपने स्वास्थ्य के प्रति कम सचेत रहते हैं। इस तरह की समस्याओं को वे बहुत हल्के में लेते हैं। 5 में से 1 वयस्क ट्रान्सजेंडर मधुमेह, जोड़ों का दर्द या अस्थमा में से एक या एक से अधिक बीमारियों से ग्रस्त पाया गया है"।[16] 

ट्रान्सजेंडर शब्द का प्रयोग :

आमतौर पर ट्रांसजेंडर या "ट्रांस" एक वृहद शब्दावली के रूप में प्रयोग किया जाता है, इस अध्ययन के लिए "ट्रांसजेंडर" शब्द के अंतर्गत उन सभी लोगों को शामिल किया गया है जो पुरुष के शरीर में पैदा हुए और खुद को भिन्न जेंडर के रूप में पहचान करते हैं। अर्थात ऐसे व्यक्तियों को शामिल किया गया है जिनका जेंडर पहचान या अभिव्यक्ति जन्म के समय सौंपे गए लिंग (सेक्स) से अलग हैं। 

अध्ययन का उद्देश्य और प्रणाली :

प्रस्तुत अध्ययन का मुख्य उद्देश्य लॉकडाउन की वजह से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के सामाजिक-आर्थिक जीवन में आये बदलाव और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं पर हुए प्रभावों का अध्ययन करना है। प्रस्तुत अध्ययन एक गुणात्मक अध्ययन है जिसे करने के लिए अन्वेषणात्मक शोध अभिकल्प को अपनाया गया है। कोविड-19 के मद्देनजर शोधार्थी ने ट्रांसजेंडर समुदाय के 10 व्यक्तियों से संपर्क किया है जो अपनी आजीविका के लिए अलग-अलग व्यवसायों से जुड़े है। शोधार्थी द्वारा ट्रान्सजेंडर व्यक्तियों से सहमति प्राप्त करके टेलिफोनिक साक्षात्कार किया गया। जिसके लिए साक्षात्कार निर्देशिका तैयार की गई थी ताकि शोध के उद्देश्यों को केंद्रित रखते हुए ट्रांसजेंडर समुदाय पर लॉकडाउन के प्रभावों को समझा जा सके। प्रस्तुत अध्ययन में टेलिफोनिक साक्षात्कार को विषयवार तरीके से व्याख्यायित किया गया है। यहाँ शोधार्थी ने अलग-अलग व्यवसायों से जुड़े लोगों से इसीलिए संपर्क किया ताकि अलग-अलग आयामों को समझा जा सके। अध्ययन में शामिल ट्रान्सजेंडर लॉकडाउन से पहले ट्रेन में भिक्षावृत्ति, बधाई-मंगती, निजी दुकान में शॉपकीपर, रेस्टोरेन्ट में वेटर व मेकअप आर्टिस्ट के कार्यों से जुड़ी थी।

अध्ययन का क्षेत्र :

जनगणना 2011 के अनुसार छत्तीसगढ़ में कुल ट्रान्सजेंडर की संख्या 6,591 है।[17] हाल के दिनों में ट्रान्सजेंडर कल्याण संबंधी कई कार्य छत्तीसगढ़ में हुए हैं। छत्तीसगढ़ स्कूल के पाठ्यक्रम में ट्रान्सजेंडर विषय को शामिल किया गया है, सार्वजनिक शौचालयों में ट्रान्सजेंडर के लिए अलग शौचालय बनाए जा रहे हैं, सरकारी आवासों में ट्रान्सजेंडर को आरक्षण दिया गया है, रोजगार प्रशिक्षण व ऋण की भी सुविधा प्रदान की जा रही है। ट्रान्सजेंडर की समुदाय आधारित संगठन (सीबीओ) मितवा समिति ने राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के साथ ट्रान्सजेंडर संवेदनशीलता कार्यशाला का आयोजन भी किया है। इस तरह छत्तीसगढ़ सरकार ट्रान्सजेंडर को मुख्यधारा के समाज में समायोजित करने के लिए जरूरी कदम उठा रही है। रायपुर शहर में ट्रान्सजेंडर बड़ी संख्या में रहते हैं और सरकार के द्वारा दी जा रही सुविधाओं का लाभ भी उठा रहे हैं। मितवा समिति के अनुसार रायपुर में लगभग 700 ट्रान्सजेंडर रहते हैं जिनमें से सिर्फ 400 अपनी जेंडर पहचान के साथ परिवार और समाज के सामने आए हैं। इस तरह यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि राज्य सरकार के सकारात्मक रवैय्या के बाद भी ट्रान्सजेंडर लॉकडाउन से कितने और किस तरह से प्रभावित हुए हैं।  

सरकारी व गैर-सरकारी सहायता :

केंद्र सरकार से लॉकडाउन के दौरान 1500 रुपए की सहायता राशि प्राप्त हुई। राज्य सरकार के द्वारा प्रत्येक महीने लॉकडाउन के दौरान 7 किलोग्राम चावल, 1-1 किलोग्राम चना व शक्कर भी दिया गया। इसके साथ ही अजीम प्रेमजी फाउंडेशन, ऑक्सफेम इंडिया व गूंज जैसी गैर-सरकारी संस्थाओं से भी खाद्य सामग्री की सहायता प्राप्त हुई थी। 

अध्ययन का परिणाम :

आजीविका के विभिन्न कार्यों में लगी ट्रान्सजेंडर को लॉकडाउन के दौरान विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ा। आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह से बंद होने व उनके पास किसी प्रकार का बचत ना होने की वजह से खाद्य सामाग्री खरीदने में भी मुश्किलों का सामना किया। इसके अलावा उन्हें अलगाव में रहना पड़ा जिसका प्रभाव उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा। उनकी स्थिति ऐसी भी नहीं थी कि वे स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए भुगतान कर सके।

 ट्रांसजेंडर समुदाय और उनकी सामाजिक चुनौतियाँ :

ट्रान्सजेंडर समुदाय के सदस्य अपनी रोज़मर्रा के जीवन के अनुभवों को समुदाय के सदस्यों के बीच साझा करने में सहज महसूस करते हैं क्योंकि अन्य लोगों के बीच वे जगह नहीं पाते या उनके जेंडर अभिव्यक्ति के लिए द्वेषपूर्ण वातावरण का सामना करना पड़ता है। लॉकडाउन के दौरान ट्रान्सजेंडर ने खुद को ज्यादा अलगाव में पाया। उत्तरदाताओं ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वे समुदाय के सदस्यों से नहीं मिल पा रहे थे। वे समुदाय के सदस्यों से ना ही अपने अनुभव साझा करने के लिए मिल सकते थे और वे अवसर भी बंद हो गए थे जब वह एक-दूसरे से मिला करते थे। भोजन और लॉकडाउन की अनिश्चितता ट्रान्सजेंडर के बीच तनाव का कारण रही।

लॉकडाउन के दौरान कुछ ट्रान्सजेंडर, हिजड़ों की पारंपरिक टोली में शामिल हुए जिनकी आजीविका का साधन विभिन्न शुभ अवसरों पर बधाई व मंगती है। इस तरह लॉकडाउन ने पारंपरिक हिजड़ा समुदाय की ओर अलग-अलग कार्यों में लगे ट्रान्सजेंडर समुदाय के व्यक्तियों को आकर्षित किया। हालांकि सीमित संख्या में ही ट्रान्सजेंडर को पारंपरिक हिजड़ा समुदाय में शामिल किया गया। 

ट्रांसजेंडर समुदाय और उनके आर्थिक संकट के आयाम :

10 में से 9 ट्रान्सजेंडर ने कहा कि लॉकडाउन से पहले जिस कार्य से उनकी आजीविका चलती थी वो लॉकडाउन के दौरान बंद हो गई। जिसकी वजह से उन्हें खाने-पीने की जरूरी सामग्री खरीदने में भी परेशानियों का सामना करना पड़ा। एक ट्रान्सजेंडर का काम जारी रहा लेकिन उसे भी समय पर वेतन नहीं मिल पाया जिसके कारण वह भी अपनी रोज़मर्रा की जरूरतें पूरी नहीं कर पा रहा था।

10 में से 6 लोग अपने स्वयं के घरों में रह रहे थे (6 में से 4 राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त आवास में, 2 परिवार के साथ) जिसकी वजह से उन पर किराये का अतिरिक्त भार नहीं था। 2 ट्रान्सजेंडर ने बताया कि उनके मकान मालिक ने 4 महीने तक किराया नहीं लिया जबकि 2 ट्रान्सजेंडर ने कहा कि उन्हें कमरे का किराये देने के लिए परेशान किया गया।

लॉकडाउन से पहले जो ट्रान्सजेंडर किसी निजी दुकान में काम कर रहे थे वे भी लॉकडाउन के बाद किसी प्रकार का कार्य पाने में असमर्थ रहे फलतः उन्होने अपनी आजीविका के लिए भिक्षावृत्ति व यौनकार्य का चुनाव किया। एक सदस्य बताती है कि, "मैं कभी नहीं चाहती थी कि दूसरों के सामने हाथ फैलाऊँ लेकिन जब काम ढूंढते-ढूंढते थक गई तो मुझे सिगनल (ट्रैफिक सिग्नल) पर लोगों के सामने हाथ फैलाना पड़ा।" (रिमझिम; 11 जनवरी, 2021) उक्त कथन से स्पष्ट होता है कि जो ट्रान्सजेंडर किसी निजी संस्थान में काम कर रही थी उनकी नौकरी चली गई है और अब ना चाहते हुए भी उन्हे आजीविका के उन्हीं असम्मानीय कार्यों में जाना पड़ रहा है जिसमें ट्रान्सजेंडर लगे हुए हैं।  

10 में से 6 ट्रान्सजेंडर ने कहा कि उनके पास किसी जान-पहचान के व्यक्ति से सहायता मांगने का भी विकल्प नहीं था। वे बताते हैं कि समुदाय में सबकी स्थिति एक जैसी ही थी ऐसे में किसी से मदद नहीं मांग सकते थे। बधाई टोली से जुड़े ट्रान्सजेंडर ने कहा कि उन्हें जजमान लोगों से मदद मिली।

 ट्रांसजेंडर समुदाय और उनकी स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ :

3 ट्रान्सजेंडर ने कहा कि वे सेक्स पुन: पुष्टि सर्जरी (Sex reassignment surgery) की प्रक्रिया में थे और मानसिक व शरीरीक रूप से तैयार होने के लिए हार्मोन्स थेरेपी ले रहे थे लेकिन लॉकडाउन लगने के बाद पैसे न होने की स्थिति में उन्हें हार्मोन्स लेना बंद करना पड़ा। इसके अलावा 2 ट्रान्सजेंडर ने बताया कि वे लॉकडाउन के दौरान बीमार हुई और उनके पास न डॉक्टर को देने के लिए पैसे थे और ना ही दवाई के लिए ही पैसे थे। लगभग सभी ट्रान्सजेंडर ने लॉकडाउन के दौरान खाने-पीने की समस्या, एकांत में रहने को लेकर तनाव की स्थिति में रहे।

आर्थिक वजहों से हार्मोन्स थेरेपी बंद कर चुकी एक ट्रान्सजेंडर कहती है कि "मैं अपने शरीर के साथ कम्फ़र्टेबल नहीं हूँ यही कारण है कि आपरेशन के द्वारा इसमें बदलाव करवाना चाहती हूँ ताकि जो मैं महसूस करती हूँ वैसा ही मेरा शरीर भी हो। इसमें देर होना मेरे लिए कष्टदायी है।" (सुनीता; 09 जनवरी, 2021)

कथन से स्पष्ट होता है कि इच्छानुसार शारीरिक बदलाव कई ट्रान्सजेंडर के लिए शरीर और मन के बीच तालमेल बिठाने के लिए जरूरी होता है। वे जितनी जल्दी हो सके पुरुष शरीर के निशानों को मिटा देना चाहती हैं ऐसे में उस प्रक्रिया में किसी प्रकार की बाधा आना उसके परेशानी का कारण हो सकती है।

एक 22 वर्षीय उत्तरदाता, जो कोरोना संक्रमित भी थी कहती है कि "1 किचन और एक कमरे के घर में 5 आदमी महीनों तक कैसे रहे यह हम ही जानते हैं, मेरे लाइफ का सबसे बुरा अनुभव रहा। हमारे पास इलाज कराने तक के पैसे नहीं थे। कुछ दोस्तों से उधार लेना पड़ा। परिस्थितियाँ इस तरह की बन गई थी कि मैं बहुत ज्यादा तनाव में चली गई, मुझे डर लगने लगा था। अचानक रोने लगती थी। आज भी मैं एंटी डिप्रेशन (Anti-depression) की दवाई ले रही हूँ और उस स्थिति से बाहर निकलने का प्रयास कर रही हूँ। अभी भी रोजगार का कोई निश्चित नहीं है। एक तो ट्रान्सजेंडर होने की परेशानी और ऊपर से कोरोना पॉज़िटिव होने के कारण मुझे दोहरी परेशानी का सामना करना पड़ा। डिप्रेशन के कारण है या कोरोना के कारण मुझे पता नहीं लेकिन मुझे बहुत चीजें अभी ज़ोर देकर याद करनी पड़ती हैं या जब कोई बोलता है तब याद आती है। सुनाई भी कम देने लगा है, कई बार मैं किसी से बात करते हुए दोबारा पुछती हूँ कि उसने क्या कहा। अभी भी मैं पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हुई हूँ।" (रानी; 09 जनवरी, 2021) जैसा कि इस उद्धरण में बताया गया है, एक कोविड-19 पॉजिटिव ट्रांसजेंडर व्यक्ति को दोहरा कलंक का सामना करना पड़ सकता है, सबसे पहले उनकी जेंडर पहचान के कारण, फिर उनके कोविड-19 पॉजिटिव स्थिति के कारण। इसके ऊपर से खाद्य सामाग्री की कमी ने इस समुदाय के लोगों पर अतिरिक्त बोझ डाल दिया। 

परिचर्चा :

प्रस्तुत अध्ययन ने लॉकडाउन के दौरान ट्रान्सजेंडर समुदाय के द्वारा सामना की जाने वाली आर्थिक, सामाजिक व स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को उजागर किया है। संरचनात्मक असमानताओं के कारण ट्रान्सजेंडर समाज में कई तरह की परेशानियों का सामना करते हैं। कानूनी रूप से जेंडर पहचान मिल जाने के बावजूद परिवार और समाज ने ट्रान्सजेंडर व्यक्तियों को स्वीकार नहीं किया है। वे अभी भी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक जीवन में भाग लेने से बहिष्कृत ही है। लगातार कलंक, भेदभाव, दुर्व्यवहार, यौन उत्पीड़न आदि का सामना करने के कारण यह समुदाय किसी भी संकट की अवस्था में ज्यादा भेद्य समूह है। अप्रत्यासित लॉकडाउन लगाए जाने के कारण ट्रान्सजेंडर समुदाय को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ा। केंद्र व राज्य सरकार के द्वारा प्राप्त राशन सामग्री और 1500 रुपए की राशि ट्रान्सजेंडर के एक बड़े वर्ग तक पहुँच ही नहीं पायी, और जिन्हें यह सहायता प्राप्त भी हुई वह उनके लिए अपर्याप्त रही। 4.8 लाख की अनुमानित आबादी के बावजूद, केवल 5711 ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को ही बैंक हस्तांतरण का लाभ प्राप्त हो पाया।[18] बिना किसी पूर्व सूचना और नियोजन के लगाए गए लॉकडाउन के कारण यह समूह कोविड-19 के वायरस और अन्य शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से भेद्य समूह बनी है। ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकतर सदस्यों ने गंभीर समस्याओं का सामना किया, क्योंकि खाद्य सामग्री खरीदने, किराए का भुगतान करने व स्वास्थ्य सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए उनके पास पर्याप्त बचत नहीं है। समुदाय की आजीविका काफी हद तक सामाजिक संबंधों (Social interactions) पर निर्भर करती है, जिससे समुदाय के लिए सामाजिक दूरी और अलगाव एक अस्वीकार्य कार्य बन जाता है। ट्रान्सजेंडर समुदाय का एक बड़ा भाग ट्रेन में भिक्षावृत्ति करके अपनी आजीविका चलाता है लेकिन कोविड-19 महामारी के संक्रमण के बाद से स्थितियाँ बदली हैं और ट्रेन में भिक्षावृत्ति बंद है। इस तरह जो ट्रान्सजेंडर ट्रेन में भिक्षावृत्ति करते थे वे अब ट्रैफिक सिग्नल, टोल प्लाज़ा पर भिक्षावृत्ति कर रहे हैं। कुछ यौनकार्य में शामिल हुए हैं तो कुछ हिजड़ों की पारंपरिक टोली में भी शामिल हुए हैं। 

निष्कर्ष : अध्ययन से स्पष्ट होता है कि कोविड-19 के संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए अप्रत्यासित लॉकडाउन ने ट्रान्सजेंडर समुदाय को बुरी तरह से प्रभावित किया। पहले से ही यह समुदाय भारतीय समाज में हाशिये पर है इस महामारी ने इस समुदाय के समक्ष चुनौतियों को बढ़ाया ही है। समुदाय के लोग भिक्षावृत्ति, बधाई, यौनकार्य या कम वेतन वाली निजी नौकरियों में लगे हुए थे जिनमें से अधिकांश ने अपनी आजीविका के साधन को खो दिया। किसी तरह की बचत ना होने या कम बचत होने व सामाजिक पूंजी न होने के कारण समुदाय ने खाद्य सामग्री जुटाने में कठिनाइयों का सामना किया। सरकारी व गैर-सरकारी संगठनों से जुटाए गए सहायता सामग्री ने उनकी मुश्किलों को कम जरूर किया लेकिन वह पर्याप्त नहीं था। अलगाव, खाद्य सामग्री व लॉकडाउन की अनिश्चितता, स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए भुगतान न कर पाने की स्थिति ने ट्रान्सजेंडर के मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित किया है। समुदाय के अधिकतर लोगों के सामने स्थिति ऐसी थी कि वह किसी से मदद पाने में खुद को असमर्थ पा रहे थे। 

संदर्भ


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डिसेन्ट कुमार साहू, पी-एच.डी. समाजकार्य

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा

                                                    dksahu171@gmail.com, 9669818125

        अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-37, जुलाई-सितम्बर 2021, चित्रांकन : डॉ. कुसुमलता शर्मा           UGC Care Listed Issue  'समकक्ष व्यक्ति समीक्षित जर्नल' ( PEER REVIEWED/REFEREED JOURNAL) 

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