शोध आलेख: पारिस्थितिकी पर्यटन उद्योग / डाॅ. आनन्द कुमार सिंह

 

पारिस्थितिकी पर्यटन उद्योग

 डाॅ. आनन्द कुमार सिंह

                                    

 

पारिस्थितिकी पर्यटन या फिर कहें कि पर्यावरण पर्यटन ऐसा पर्यटन है जिसमें पहाड़, झरने, नदिया, जीव-जन्तुओं, वन-जंगल मेंवनस्पति को देखने समझने और एतिहासिक संस्कृतिक पहलू का आन्नद लेने के लिए किसी स्थान की यात्रा की जाती है। पारिस्थिकी पर्यटन के अन्तर्गत पर्यटन का प्रबन्ध और प्रकृति का संरक्षण इस प्रकार से करना होता है कि जिससे पर्यटन में निरन्तर वृद्धि होती रहे और  पारिस्थिकी का संरक्षण भी सुनिचित हो सके पारिस्थिकी पर्यटन उद्योग में पर्यटन और प्रकृति दोनों पक्षों के बीच संतुलन को ध्यान में रखकर ही इस उद्योग का विकास किया जाता है जिससे स्थानीय समुदायों के विकास को गति मिले और इस क्षेत्र के रोजगार के जरूरतों को पूरा किया जा सके। विश्व पर्यटन संगठन के अनुसार, ‘ऐसा पर्यटन जिसमें अध्ययन, प्राकृतिक दृश्यों, जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों को देखने और किसी संस्कृतिक पहलू (अतीत या वर्तमान से जुड़े) का आनन्द लेने के लिए किसी स्थान की यात्रा पारिस्थिकी पर्यटन कहलाती है पारिस्थिकी को निम्न बिन्दुओं द्वारा समझा जा सकता है।

          इको-टूरिज्म पूर्णतः प्रकृति पर आधारित पर्यटन है।

              इको-टूरिज्म प्रकृति से छेड़छाड़ को रोकने में सहायक सिद्ध होता है। जिससे प्राकृतिक विरासत के संरक्षण में मदत मिलती है।

              इको-टूरिज्म में प्राकृतिक विरासत के संरक्षण पर्यटन के क्षेत्र में आर्थिक लाभ की भी प्राप्ति होती है। जिससे इसके पर्यटन की सार्थकता सिद्ध होती है।

              पारिस्थिकी पर्यटन से होनें वाले आर्थिक लाभ किसी एक समुदाय विशेष तक सीमित नहीं रहता। इसे स्थानीय लोगों के लिए आर्थिक, सामाजिक आदि गतिविधि में अपनी महती भूमिका निभाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पारिस्थितिकी पर्यटन, पर्यटन उद्योग की मान्यता को पूर्णतः स्वीकार करता है जिससे लोगों की आय मेें वृद्धि के साथ ही पारिस्थिकी प्रणाली की सुरक्षा और संरक्षण को बनाये रखनें में योगदान देता है। 

       पारिस्थिकी पर्यटन की कोई नई अवधारणा नहीं है बल्कि वर्तमान परिस्थितियों नें इसे पर्यटन का एक अनिवार्य आयाम बना दिया है। वर्तमान समय में विकसित एवं विकासशील दोनों ही देशों में इस क्षेत्र के प्रति विशेष ध्यान दिया जा रहा क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग और अन्य प्राकृतिक खतरे से पूरा विश्व आज गुजर रहा जिसे देखते हुए इको-टूरिज्म से पर्यावरण की देखभाल के साथ आर्थिक लाभ भी हो रहा। विगत वर्षो में इस आयाम में पर्यटकों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। लोग छोटे-छोटे समूहों में अछूते इलाकों की यात्रा करना पसंद कर रहें हैं। लोग वहां जाकर प्राकृतिक वातावरण का आनन्द लेते हैं और स्थानीय लोगों से सीधे सम्पर्क स्थापित करते हैं। जिससे वहां के पर्यावरण और लोगों के आर्थिक सामाजिक जीवन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। परन्तु इसे और अधिक व्यवस्थित करने की आवश्यकता है जिससे इसका पर्यावरण और समाज पर बुरे प्रभाव को रोका जा सके। इसके लिए इको टूरिज्म बेहद ही अनुकूल तरीके से पर्यटन विकास सुनिश्चित कर रहा है। विश्व में पारिस्थितिकी पर्यटन कोई नई सोच नहीं हैं परन्तु इस पर विशेष ध्यान 2002 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम विश्व पर्यटन संगठन के तत्वाधान में कनाडा के क्यूवेक शहर में आयोजितविश्व पर्यावरण सम्मेलनमें दिया गया जिससे विश्व का ध्यान इस आयाम पर विशेष रूप से गया। इस सम्मेलन में विश्व के सौ से अधिक देशों के हजारों से अधिक प्रतिनिधियों नें हिस्सा लिया था। इस सम्मेलन का परिणाम यह हुआ कि विश्व के अधिकांश देशों ने अपने यहां पारिस्थितिकी पर्यटन से सम्बन्धित नीतियों का क्रियान्वयन आरम्भ कर दिया। इसी वर्ष विश्व राष्ट्र संघ द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण वर्ष घोषित किया गया इस घोषणा पत्र में पारिस्थितिकी पर्यटन को एक ऐसा क्षेत्र बताया गया जो अर्थिक विकास की असीम संम्भावनाएंे समेटे हुए है और साथ ही यह निर्देशित किया गया है कि इस क्षेत्र को और अधिक नियोजित, संगठित, विकसित एवं प्रबंन्धित कर प्राकृतिक पर्यटन को श्रेष्ठतम रूप से संरक्षित कर सकते हैं।

        भारत की बात करें तो भारत में पारिस्थितिकी पर्यटन की अपार संम्भावनाएं हैं। भारत विश्व के सर्वाधिक जैव-विविधता वाले सात देशों में से एक है। अपनी किसी समृद्धि एवं प्राचीन विरासत के कारण यह बहुत से देशों के पर्यटकों को यहां पर्यटन के लिए आकर्षित करता है। इसको ध्यान में रखते हुए केन्द्र सरकार ने पर्यटन उद्योग और गैर-सरकारी संगठनों आदि के परामर्श से देश में 1998 में ही पारिस्थितिकी पर्यटन पर नीति और दिशा-निर्देश तैयार कर दिया था। इस नीति को लाने का उद्देश्य यह था कि देश के प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण उन्हें समृद्ध बनाने के प्रयास को नई गति प्राप्त हो तथा पर्यावरणीय संरक्षण और समुदाय के समुचित विकास पर ध्यान केंन्द्रित करना था। इसके लिए इसमें इसके माध्यम से प्रत्येक राज्य में राज्य बन विभाग, पर्यटन विकास निगम, होटल प्रबन्ध आदि को पर्यटकों की सुविधा के साथ कैम्प स्थल, इको कैम्प तथा अन्य स्थलों का विकास और पारिस्थितिकी पर्यटन केन्द्रों, लाॅजों, रिजार्टो की स्थापना और इसका समुचित क्रियान्वयन के साथ ही सम्बन्धित क्षेत्रों पर विशेष ध्यान केन्द्रित करने के लिए निर्देशित किया गया था हालांकि इस क्षेत्र में सरकार द्वारा निरन्तर प्रयास कर नयी-नयी कार्य योजना लाई जा रही है, परन्तु अभी भी इस क्षेत्र में बहुत अधिक करने की आवश्यकता है। पारिस्थितिकी पर्यटन के क्षेत्र में केरल, हिमालय, पूर्वोत्तर भारत, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह तथा लक्षद्वीप समूह जैसे स्थानों पर पारिस्थितिकी पर्यटन की अपार सम्भावनाएं हैं भारत में वन्य-जीव अभ्यारण और संरक्षण क्षेत्र की बात करें तो 97 संरक्षण रिजर्व, 214 सामुदायिक रिजर्व, 560 वन्यजीव अभयाण्य, 52 टाइगर रिजर्व, 18 वायो स्फीयर रजिर्व, 32 हाथी रिजर्व, 467 महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र, 104 राष्ट्रीय उद्यान को पर्यावरण के हिसाब से विकसित एवं संरक्षित किया जा रहा है और इसे इको-फ्रकेडली बनाने के लिए पर्यावरण मंत्रालय, पर्यटन मंत्रालय, होटल ऐसोसिएशन, टूर आॅपरेटर आदि मिलकर टूर पैकेज घोषित करते हैं। जिससे की पर्यावरण संरक्षण के साथ ही पर्यटकों को ईको-फ्रेंडली बननें के लिए प्रेरित किया जा सके। 

भारत में पर्यटन उद्योग के स्थिति की बात करें तो यह निरन्तर वृद्धि की ओर अग्रसित है। 2019 में भारत नें 194.3 अरब अमेरिकी डाॅलर की आय यात्रा और पर्यटन के क्षेत्र से प्राप्त किया। जो भारत की जी0डी0पी0 का 6.8ःथा और यह 2028 तक बढ़कर 512 अरब अमेरिकी डालर होने का अनुमान है जो भारत की जी0डी0पी0 का 10.35 होगा। इस क्षेत्र में विदेशी पर्यटकों की भागीदारी की बात करें तो 2001 में 3.19 अरब डाॅलर जो 2010 में बढ़कर 14.49 अरब डाॅलर हो गया और 2019 में इसकी भागीदारी 30.05 अरब डाॅलर तक पहुंच गयी तथा 2028 तक इसकी 50.00 अरब डाॅलर तक पहंुचने का अनुमान है। भारत की विश्व पर्यटन में हिस्सेदारी की बात करें तो 2019 में विश्व में कुल 1465 बिलियन डाॅलर की प्राप्ति हुई। जिसमंे भारत की हिस्सेदारी 30.05 बिलियन डाॅलर की रही जो 2.05 थी और विश्व में भारत का तेरहवां स्थान रहा था।

        पर्यटकों की संख्या की बात करें तो 2019 मं 23219.8 लाख घरेलू पर्यटक और 314.1 लाख विदेशी पर्यटक का पर्यटन स्थलों को देखने समझने के लिए हुआ था इससे समझा जा सकता है कि विश्व में भारत की पर्यटन उद्योग के क्षेत्र में हिस्सेदारी निरन्तर बढ़ रही है। यहाॅ यह देखने वाली बात है कि भारत में अभी भी विदेशी पर्यटकों की अपेक्षा घरेलू पर्यटकों की संख्या कई गुना अधिक है। इसलिए पारिस्थितिकी पर्यटन के क्षेत्र मे भी ंविदेशी पर्यटकों की तुलना में घरेलू पर्यटकों का दायित्व अधिक है कि वह अपने प्राकृतिक संसाधनों और उससे सम्बन्धित रीति-रिवाजों, परम्परा आदि का सम्मान करें, उसे संरक्षित करें। इको-फ्रेंडली बने। जिससे खेत-खलिहान, नदियां, पहाड़, बाग-बगीेचे, जंगल, जीव-जन्तु, पक्षी, धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल आदि प्राकृतिक संसाधनों के प्रति हमारी जिम्मेदारी का निर्वहन सही तरीके से हो सकें। जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए हम प्राकृतिक संसाधनों को उनकी मूल अवस्था में सौंप सकें। इसके लिए वर्तमान समय में सरकार इस दिशा में प्रयास कर रही है। जिससे पर्यावरण को नुकसान पहंुचाते हुए पर्यटन उद्योग से आय और रोजगार की प्राप्ति हो। और जैव विविधता का भी संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके परन्तु पर्यटन उद्योग को अधिक बढ़ावा देने पर ध्यान केन्द्रित होने की वजह से पिछले वर्षों में पर्यावरण को बहुत नुकसान हुआ है।

       संयुक्त राष्ट्र, विश्व पर्यावरण संगठन का भी यही कहना है कि पर्यटन को आय, मौज-मस्ती और धनोपार्जन तक सीमित रखना सही नहीं है। इसके आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों को ध्यान में रखना होगा। जिस प्रकार हम पर्यटकों की सुख-सुविधा, उनकी सुरक्षा का ध्यान रखते हैं उसी प्रकार स्थानीय पर्यावरण, वहाॅ की संस्कृति को वहाॅ के समाज को भी उसी रूप में संरक्षण सुनिश्चित करना होगा जिससे कि वह अपनी मूल अवस्था में बने रहें। इसे ध्यान में रखते हुए भारत की पारिस्थितिकी पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सरकारी एवं निजी क्षेत्र द्वारा प्रयास किया जा रहा है। जिसके क्रम में हिमांचल प्रदेश में पर्यटन परामर्शी बोर्ड द्वारा हिमालयी पर्वतीय क्षेत्र के आर्थिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय विकास के लिए अपनी पर्यावरण पर्यटन विकास नीति की घोषणा की है। जिसमें स्थानीय समुदायों की भागीदारी पर बल दिया गया है। जिससे नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार, नौकरी के अवसर, यात्री अनुभव बढ़ाने, निजी क्षेत्र की भागीदारी से नवाचार आदि के विकास पर बल दिया गया।

केरल भारत के सबसे तेजी से विशिष्ट पहचान बनाने वाले राज्यों में एक है केरल में तेन्माला ईको-टूरिज्म प्रमोशन सोसाइटी द्वारा सरकारी एवं निजी दोनों क्षेत्रों द्वारा पर्यावरण अनुकूल पारिस्थितिकी पर्यटन को बढ़ाने की धारणा जोर पकड़ रही है। इसी प्रकार भारत के अन्य राज्यों केन्द्र शासित प्रदेशों द्वारा भी पारिस्थितिकी पर्यटन को बढ़ाने का प्रयास निरन्तर किया जा रहा है।

अध्ययन का उद्देश्यः-

               प्रस्तुत अध्ययन का उद्देश्य निम्नलिखित है-

              पारिस्थितिकी पर्यटन की अवधारणा एवं विकास

              पारिस्थितिकी पर्यटन उद्योग से होने वाले प्रभावों का अध्ययन

              पारिस्थितिकी पर्यटन उद्योग की संम्भावना एवं सुझाव

शोध प्रणालीः-

 प्रस्तुत अध्याय में अवलोकनात्मक विश्लेषणात्मक विधि का प्रयोग कर शोध कार्य किया गया द्वितियक स्त्रोत हेतु मूल ग्रंन्थ, बेबसाइट, जर्नल, सरकारी एवं गैर सरकारी वार्षिक रिपोर्ट आदि से अध्ययन कार्य सम्पन्न किया गया है।

पारिस्थितिकी पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने हेतु सुझावः-

 पर्यटन निश्चित रूप से आय का महत्वपूर्ण माध्यम है परन्तु पर्यटन उद्योग को बढ़ाने की कीमत पर पर्यावरण को नुकसान हो यह सही नहीं है। इसलिए पर्यावरण संरक्षण के उपायों को वृहद रूप से अपनाकर सही मायने में पारिस्थितिकी पर्यटन उद्योग को गति दे सकते हैं। इसके लिए केन्द्र सरकार, स्थानीय निकाय, पर्यटन उद्योग से जुड़े लोग, पर्यटक स्थानीय समुदायों आदि को पर्यावरण स्थानीय परम्पराओं के प्रति संवेदनशीन होकर इसके विकास के लिए दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए पारिस्थतिकी पर्यटन को बढ़ावा देने की जरूरत है। पारिस्थितिकी पर्यटन के विकास के लिए निम्न उपायों को अपनाकर इस आयाम से और अच्छे परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।

     ग्रामीण और आदिवासी समुदायों को पर्यटन से जोड़ने के लिए एक अच्छी कार्य प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है। पारिस्थितिकी पर्यटन उद्योग की अवधारणा को आम जनमानस तक व्यापक प्रचार-प्रसार के माध्यम से पहंुचाने जाने की आवश्यकता है जिससे उनको समझाया जा सके कि पारिस्थितिकी पर्यटन उद्योग और पर्यावरण संरक्षण दोनों आयामों के बीच सामंजस्य स्थापित कर कैसे स्थानीय लोग इससे जुड़कर इस क्षेत्र को और अधिक गति प्रदान कर सकते है।

    ईको-ट्रिज्म को ध्यान में रखकर पर्यटकांे के निवास हेतु भवन निर्माण के नियम-कानून बनाये जाने चाहिए।ईको-टूरिज्म के लिए ग्रामीण शहरी दीर्घ कालीन विकास के लिए नीतियों का निर्माण किया जाना चाहिए जिससे प्रकृति को किसी भी प्रकार के नुकसान से बचाया जा सके।

   ईकों-टूरिज्म केन्द्रों के बीच यात्रा पथों का निर्माण, परिवहन की अच्छी व्यवस्था, निर्देशन केन्द्र की स्थापना, मार्ग निर्देशन चिन्हों की उचित स्थानों पर स्थापना, खानें ठहरने की पर्याप्त सुविधा, साफ-सफाई पर विशेष ध्यान, पर्यटकों के सुरक्षा की व्यवस्था आदि बुनियादी साधनों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता हे।

    ईको-टूरिज्म क्षेत्र में अच्छे कार्य कर रहे लोगों संस्थाओं को सम्मानित करने की व्यवस्था करनी चाहिए।पारिस्थितिकी पर्यटन उद्योग और पर्यावरण को ध्यान में रखकर प्राकृतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थलों की पहचान कर वहां के विकास कार्यो को सरकार अपनी निगरानी में रखते हुए वहां के विकास कार्यो पर रोक लगा देनी चाहिए।पारिस्थितिकी पर्यटन उद्योग की गतिविधियों पर निरन्तर निगरानी रखते हुए इसके दुष्प्रभावों पर त्वरित उचित कदम उठाने की आवश्यकता है।

     प्राकृतिक संरक्षण से सम्बन्धित कठोर नियम-कानून बनाने के साथ उसके प्रचार-प्रसार करने की आवश्यकता है और नियम -कानून का पालन हो, यह सुनिश्चित करना अति आवश्यक है।पारिस्थितिकी पर्यटन उद्योग से जुड़े, प्रशासक, नियेाजक आॅपरेटरों, स्थानीय समुदाय को ईको टूरिज्म के बारे में प्रशिक्षण कार्यक्रम को समय-समय पर संचालित किए जानें चाहिए।

        पारिस्थितिकी पर्यटन का ढांचागत विकास कोई साधारण बात नहीं है। इसके लिए सरकार और समाज के बीच समांजस्य से ही इस लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है। वर्तमान समय में प्रकृति की अनदेखी कर प्राकृतिक संसाधनों का अनियंत्रित दोहन पर्यावरण को बहुत क्षति पहुंचा चुका है। इसलिए पारिस्थितिकी पर्यटन के माध्यम से प्राकृतिक केन्द्रों के संरक्षित करने के साथ स्थानीय समुदायों का विकास हो यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

निष्कर्षः-

                प्रस्तुत अध्ययन के विश्लेषण से निष्कर्षतया हम कह सकते है कि पारिस्थितिकी पर्यटन उद्योग पर्यटन उद्योग का एक महत्वपूर्ण आयाम है उसके माध्यम से पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक लाभ दोनों की प्राप्त होती है जो पर्यटन उद्योग की सार्थकता सिद्ध करता है। इसके माध्यम से स्थानीय समुदाय को रोजगार प्राप्ति के साथ स्थानीय समुदाय के रीति-रीवाज, परम्पराओं उनके आस-पास की प्रकृति का संरक्षण होता है। जिससे स्थानीय समुदाय के साथ ही साथ देश की अर्थ व्यवस्था को नई ऊंचाई प्रदान करने में मदत करता है।

      भारत विश्व के सर्वाधिक विविधता वाले सात देशों में एक है। यहाँ की विविधता पूर्ण प्राकृतिक, ऐतिहासिक विरासत को संरक्षित कर विश्व पटल पर प्रमुख स्थान दिलानें और विदेशी मुद्रा प्राप्त करने में पारिस्थितिकी पर्यटन उद्योग अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। इसमें और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। जिससे देश के प्राकृतिक संसाधनों और पर्यटन उद्योग के बीच सामंजस्य स्थापित कर पारिस्थितिकी पर्यटन उद्योग का सही दिशा में विकास हो सके। साथ ही पर्यटकों को ईको-फ्रेंडली बनाने के लिए प्रेरित किया जा सके।

संदर्भ ग्रंन्थः-

1- पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार,

2- पर्यटन विभाग, उत्तर प्रदेश

3- योजना मासिक पंत्रिका

4-   भारत पर्यटन सांख्यिकी रिपोर्ट

5-   पत्र-पत्रिका आदि

6-   सहायक वेवसाइट- w.w.w. in flibnet.ae.in

7-   - w.w.w.tourism.gov.in, etc.

 

                                 डाॅ आनन्द कुमार सिंह

                                     एसोसिएट प्रोफेसर

                                (वाणिज्य संकाय)

                                राजकीय महिला महाविद्यालय

                                शाहगंजजौनपुर

                                                         

 अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-41, अप्रैल-जून 2022 UGC Care Listed Issue

सम्पादक-द्वय : माणिक एवं जितेन्द्र यादव, चित्रांकन सत्या सार्थ (पटना)

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