सम्पादकीय : शक्ति की करो मौलिक कल्पना / डॉ. जितेंद्र यादव

शक्ति की करो मौलिक कल्पना

नवरात्र और दशहरा की स्मृतियां बचपन से जुड़ी हुई है। इन पर्वों का इंतजार हम कुछ महीने पहले से ही करने लगते थे क्योंकि इस अवसर पर जगह-जगह मेले लगते हैं, रावण का दहन किया जाता है, दुर्गा पंडाल सजा होता है चारों तरफ एक खुशनुमा माहौल होता है। गुल्लक में पैसे जुटाना फिर मेला में रंग-बिरंगे खिलौने खरीदना यह सब बचपन में जीवन का हिस्सा हुआ करता था

बचपन में त्यौहार के प्रति जो उमंग और उत्साह हुआ करता है वह आनंद बड़े होने पर नहीं आता है क्योंकि बड़े होने पर दुनियादारी का झमेला, रोजगार की चिंता यह सब मिलकर जीवन को उदासीन बना देते हैं। नवरात्र जहां शक्ति का प्रतीक है वही दशहरा असत्य पर सत्य की विजय उद्घोष है, बुराई पर अच्छाई की जीत है, अंधकार पर प्रकाश की विजय है।

अब जब भी यह त्यौहार आता है मुझे निराला की कविता राम की शक्ति पूजा याद आ जाती है। यह कविता महाकाव्यात्मक शैली में लिखी गई, अपने आधुनिक भावबोध और शिल्प के लिए सराही जाती है। मेरे लिए नवरात्र और दशहरा का अर्थ राम की शक्ति पूजा है। इस त्यौहार को सही मायने में निराला की कविता उसके पूरे निहितार्थ को स्पष्ट कर देती है।

आज का मनुष्य भी अपने चारों तरफ रावण जैसी असुर शक्तियों से घिरा हुआ है जहां राम जैसा व्यक्ति अपने को असहाय और लाचार महसूस करता है। निराला ने बहुत ही सहजता के साथ राम के व्यक्तित्व को सामान्य मनुष्य के धरातल पर लाकर खड़ा कर दिया है। राम का संघर्ष प्रत्येक व्यक्ति के खुद का संघर्ष बन जाता है। जीवन के इस समर में राम को यह महसूस होता है कि शक्ति रावण की तरफ है। जीवन के रण में जामवंत जैसे मित्र का मिलना और असुर शक्ति से लड़ने के लिए मार्गदर्शन देना कि शक्ति की करो मौलिक कल्पना करो पूजन छोड़ दो समर जब तक सिद्धि न हो रघुनंदन अमूमन सबके जीवन में कोई न कोई जामवंत होता है लेकिन हम उसकी बातों को कितनी तवज्जो देते हैं यह महत्व रखता है। जामवंत के कहने पर राम शक्ति की नौ दिन आराधना करते हैं और जब पूजा का अंतिम दिन होता है तो राम देखते हैं कि अंतिम कमल पुष्प जिसे चढ़ाना है वह गायब है। फिर क्या राम अपने आँख को ही कमल पुष्प की जगह चढ़ाने के लिए उद्धत हो जाते हैं। क्योंकि माता उन्हें राजीव नयन कहती थी। अर्थात उनकी आँख कमल के समान थी। खैर वह परीक्षा थी जिसमें राम सफल रहे। निराला ने इस कविता की विषय वस्तु बंगाल के कृत्तिवास रामायण से ही लिया था। बंगाल में शक्ति की पूजा बहुत धूमधाम से होती है। निराला बंगाल में बहुत समय तक रहे थे इसलिए स्वाभाविक है कि उसका असर रहा होगा।

मनुष्य का जीवन एक समर भूमि है यहां प्रत्येक क्षण रण के लिए तैयार होना पड़ता है। जीवन का युद्ध कौशल सीखना पड़ता है क्योंकि शत्रु दल रावण की तरह शक्तिशाली है। राम की शक्ति पूजा में निराला ने राम को सामान्य भाव भूमि से जोड़कर दिखलाया है इस कारण से कविता अत्यधिक अपील करती है। यहां पर राम भी रावण से युद्ध में विजय को लेकर सशंकित हैं। "बोले रघुमणि! मित्रवर विजय होगी न रण" यह संशय इसलिए भी था कि एक तरफ अथाह शक्ति और संसाधन है और दूसरी तरफ भील और वानर है।

राम और रावण के बीच युद्ध एक सभ्यता का युद्ध है। यह पूरी मनुष्य जाति को संघर्ष करने की संदेश देती है, उससे प्रेरणा मिलता है, मनुष्य को आत्मबल मिलता है। यदि राम जैसा व्यक्तित्व जीवन में इतना संघर्ष करता है तो फिर सामान्य मनुष्य इससे परे कैसे हो सकता है। फिर सामान्य मनुष्य को भी इसी तरह संघर्ष करना पड़ेगा। राम भी सामान्य मनुष्य की तरह परेशान और बेचैन होते हैं। अन्याय जिधर उधर शक्ति कहते, छल छल हो गए नयन

संघर्ष के आरंभ में शक्ति का संचय करना अत्यंत आवश्यक होता है। बिना शक्ति के युद्ध में विजय हासिल करना संभव नहीं है। राम सामान्य मनुष्य की तरह रावण से युद्ध करते हैं किंतु अपने को असहाय महसूस करते हैं लेकिन जब शक्ति की आराधना कर लेते हैं, फिर उनके अंदर शक्ति और आत्मबल आ जाता है। किसी मनुष्य का जीवन ऐसा नहीं होगा कि उसके जीवन में उतार-चढ़ाव न देखा होगा। सबके जीवन में अंधकार आता है किंतु राम के जीवन का संघर्ष हमें संदेश देता हैं कि अंधकार से और असत्य से पीछे हटने की जरुरत नहीं है बल्कि उससे लड़ने की जरूरत है।

यह दशहरा का पर्व जिसे विजयदशमी भी कहा जाता हैं क्योंकि राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी और अपनी पत्नी सीता को रावण के चंगुल से छुड़ा लिया था। निराला की कविता राम की शक्ति पूजा इस पर्व को समझने की एक सम्यक दृष्टि देती है। हमें इस पर्व को आधुनिक भावबोध के साथ समझने की जरूरत है। 

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यह अंक आने में थोड़ा विलंब हुआ है। उसके लिए खेद है। यह अंक विविधतापूर्ण है। इसमें कई प्रकार के आलेख मिलेंगे। 'अपनी माटी' पत्रिका आप लोगों के प्यार के कारण पाठकों के बीच बहुत लोकप्रिय हुई है। हमारा प्रयास है कि सभी लोगों को अवसर दिया जाए। फिर भी हमारी एक सीमा है। इसलिए बहुत लोगों को चाहते हुए भी प्रकाशित नहीं कर पाते हैं। इस अंक के लिए चित्रकार सौमिक नंदी का आभार। पिछले दिनों अपनी माटी परिवार के लिए बहुत दुखद सूचना मिली। अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय में हिन्दी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अभिषेक रौशन जी ब्रेन ट्यूमर की बीमारी से जूझ रहे थे। अंततः प्रकृति ने उन्हें हमसे छीन ही लिया। दु:ख की इस घड़ी में 'अपनी माटी' परिवार उनके शोक संतप्त परिवार के साथ खड़ा है। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।  


संपादक 
डॉ. जितेंद्र यादव 


  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक ई-पत्रिका 
अंक-48, जुलाई-सितम्बर 2023 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : डॉ. माणिक व डॉ. जितेन्द्र यादव 
चित्रांकन : सौमिक नन्दी
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