शोध आलेख : सतत् विकास लक्ष्य 3 : चुनौतियां तथा भारत का प्रदर्शन / अजय कुमार यादव एवं सुनीता



सतत् विकास लक्ष्य 3 : चुनौतियां तथा भारत का प्रदर्शन
- अजय कुमार यादव एवं सुनीता

शोध सार : कोविड 19 की कभी विस्मृत होने वाली परिस्थितियों ने वैश्विक स्तर पर व्यक्ति की स्वास्थ्य सुरक्षा एवं उसकी खुशहाली के मुद्दे को मुख्यधारा में स्थापित कर दिया है। यद्यपि स्वास्थ्य सुरक्षा के संदर्भ में 20वीं शताब्दी में ही अनेकों महत्वपूर्ण अनुसंधान किया गया जिसमें वैश्विक संस्थानों ने अग्रणी भूमिका निभाई, तथापि विकासशील देशों में स्वास्थ्य सेक्टर के बजट पर बहुत ही कम आवंटन किया जाता रहा है। यह एक चिंता का विषय है। भारत जैसे विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाले देश में भी स्वास्थ्य सुरक्षा के मुद्दे को नीति  निर्माण एवं बजटीय आवंटन में वह स्थान नहीं मिला जो उसे मिलना चाहिए था। देश  की स्वास्थ्य सुरक्षा को प्राइवेट सेक्टर के सहारे छोड़ दिया गया है, जिसकी परिणति बाजारवादी शोषणकारी व्यवस्था के रुप में होती है, जहां महंगे इलाज़ के कारण देश की बड़ी आबादी मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित है और गंभीर बीमारियों में वह गरीबी के कुचक्र में फंस जाती है। जबकि भारत भी सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वैश्विक एजेंडा 2030 का सहभागी है। सतत् विकास लक्ष्य 3: उत्तम स्वास्थ्य और खुशहाली से संबंधित है जो यह सुनिश्चित करता है कि दुनियाभर में सभी राष्ट्र राज्य अपने सभी नागरिकों को जिसमें सभी आयुवर्ग के लोगों के लिए स्वस्थ जीवन को सुनिश्चित करेंगे और उनके कल्याण एवं खुशहाली को बढ़ावा देने का कार्य करेंगे। प्रस्तुत शोध प्रपत्र भारत में उत्तम स्वास्थ्य और खुशहाली के स्वीकृत एजेंडा को लोगों के वास्तविक जीवन में फलीभूत होने के मार्ग में आने वाली चुनौतियों  का विश्लेषण प्रस्तुत करता है, साथ ही प्रमुख कार्यनीतियों एवं संस्तुतियों पर प्रकाश डालता है।

 
बीज शब्द : उत्तम स्वास्थ्य, कल्याण, खुशहाली, सतत् विकास लक्ष्य, सार्वभौमिक स्वास्थ्य व्याप्ति, मातृ और बाल स्वास्थ्य, संचारी एवं गैर संचारी रोग, स्वास्थ्य सेवा पहुंच और समानता, पर्यावरणीय स्वास्थ्य जोखिम, स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम, सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति।


मूल आलेख : वैश्विक आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा आज भी स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित है। कोविड 19 महामारी और वैश्विक स्तर पर जारी अन्य संकटों ने सतत् विकास लक्ष्य 3 की दिशा में प्रगति को बाधित किया है। बच्चों के टीकाकरण में पिछ्ले तीन दशकों में सबसे बड़ी गिरावट देखी गई है। एक आंकड़े के अनुसार तपेदिक और मलेरिया से होने वाली मौतों में महामारी के पहले के स्तर की तुलना में वृद्धि हुई है।[1] भारत जैसे विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या  वाले देश में स्वास्थ्य एवं खुशहाली के मानवीय मुद्दे एक प्रमुख समस्या के रूप में विद्यमान है। यद्यपि भारत ने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। व्यक्ति के जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हुई है, शिशु मृत्यु दर में कमी आई है लेकिन यह सुधार सभी के लिए समान स्वास्थ्य और खुशहाली में परिणित नहीं हुए हैं। विभिन्न क्षेत्रों, सामाजिक-आर्थिक समूहों, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य संबंधी असमानताएं सर्वाधिक परिलक्षित होती हैं। 2022 के सतत् विकास लक्ष्य सूचकांक में भारत 163 देशों में 121 वें स्थान पर है। यह स्थिति निराशजनक प्रदर्शन को इंगित करती है और देश के नीति निर्माताओं एवं नेतृत्व को पुनर्विचार की आवश्यकता की ओर इशारा करती है कि क्या उनके द्वारा किए गए प्रयास संतोषजनक हैं विशेषकर सतत् विकास लक्ष्य 3 को प्राप्त करने के लिए।[2] भारत के लिए देश की बड़ी आबादी, विविध स्वास्थ्य चुनौतियों और सामाजिक एवं आर्थिक असमानताओं को दृष्टिगत रखते हुए 2030 तक निर्धारित लक्ष्य 3 को प्राप्त करना महत्वपूर्ण है।

 

2015 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने वैश्विक चुनौतियों के समाधान के लिए सतत् विकास लक्ष्यों को सार्वभौमिक ढांचे  के रूप में अपनाया। संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों द्वारा स्वीकृत एजेंडा 2030 का मुख्य लक्ष्य वर्तमान और भविष्य में शान्ति और समृद्धि की  स्थापना वैश्विक साझेदारी द्वारा मनुष्य (people) और ग्रहों (planet) को केंद्र में रखकर की गई। इसके लिए कुल 17 लक्ष्यों और 169 टारगेट की पहचान की गई जिसे 2030 तक प्राप्त करना है।[3] वैश्विक लक्ष्य 3 जिसका सीधा सम्बन्ध व्यक्ति के गुणवत्तायुक्त जीवन अर्थात् उत्तम स्वास्थ्य एवं खुशहाली से है, इसके अंतर्गत कुल 13 सन्निहित टारगेट को प्राप्त करना है। संबंधित लक्ष्यों का उद्देश्य "वैश्विक मातृ मृत्यु दर को कम करना; नवजात शिशुओं और बच्चों की रोकी जा सकने वाली मौतों को रोकना; एड्स, तपेदिक, मलेरिया और अन्य संक्रामक महामारी को समाप्त करना; गैर संक्रामक रोगों से होने वाली मृत्यु दर को कम करना; मादक पदार्थों के सेवन की रोकथाम और उपचार को मजबूत करना; सड़क यातायात दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों को और  चोटों की संख्या को आधा करना; यौन और प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करना; सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करना और खतरनाक रसायनों और प्रदूषण से होने वाली मौतों और बीमारियों की संख्या को कम करना है"[4]


स्वास्थ्य और खुशहाली :

 

उत्तम स्वास्थ्य एवं खुशहाली एक ऐसी संकल्पना है जो व्यक्ति के गुणवत्तायुक्त जीवन के लिए आवश्यक परिस्थितियों के निर्माण पर केन्द्रित है। स्वास्थ्य और खुशहाली के निर्धारण के लिए अनेक तत्व एवं परिस्थितियां शामिल हैं, जिसमें प्रमुख रूप से व्यक्ति की सामाजिक एवं आर्थिक स्थितियां, पर्यावरणीय खतरे, जीवन शैली में बदलाव, और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सहित कई कारकों के जटिल परस्पर क्रिया द्वारा आकर लेती हैं।[5] विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1946 में स्वास्थ्य की व्याख्या करते हुए बताया कि "स्वास्थ्य का अर्थ केवल बीमारियों से मुक्ति ही नहीं है, बल्कि खुशहाली की स्थिति से है।" विशेषज्ञों एवं अनुसंधानकर्ताओं के मध्य  "खुशहाली" की संकल्पना को लेकर मतैक्य नहीं है। कुछ विद्वानों ने इसके मापन के लिए सामाजिक एवं आर्थिक स्थितियों को महत्वपूर्ण बताया है तथा कुछ ने मनोवैज्ञानिक आधारों पर केन्द्रित किया हैं। विद्वानों का एक तीसरा समूह भी है जिन्होंने "खुशहाली" के निर्धारण के लिए सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक कारकों को आधारभूत संरचना के रूप में देखा है[6], जिसका निहितार्थ है कि एक व्यक्ति के "संतोषजनक" एवं "सुखमय" जीवन जीने के लिए आवश्यक परिस्थितियों के निर्माण का उत्तरदायित्व लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार एवं उसकी संस्थाओं का है। आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है कि वह "स्वास्थ्य एवं खुशहाली" को रणनीतिक रूप से शीर्ष प्राथमिकता पर रखे। प्लाक और नाइट के शब्दों में "खुशहाली की अवधारणा सार्वजनिक स्वास्थ्य संरचना के वर्तमान आधुनिकीकरण का अभिन्न अंग है जिसे "लोकतांत्रिक वैधता" और "भागीदारी" के इर्द गिर्द व्यापक अवधारणाओं के साथ जोड़ा जा रहा है, साथ ही व्यक्तियों और स्थानीय समुदायों द्वारा उन संरचनाओं में व्यापक भागीदारी की जा रही है जो उनके जीवन से संबंधित नीतियों और पहलों को परिभाषित एवं लागू करती हैं"[7] 

 

स्वास्थ्य के प्रति सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टिकोण स्वास्थ्य सेवाओं के अतिरिक्त उन पहलुओं पर भी ध्यान केन्द्रित करता है जो व्यक्ति के अच्छे स्वास्थ्य को मूर्त रूप देते हैं, जिनके कारण अपेक्षित स्वास्थ्य परिणाम नहीं मिल पाते हैं अर्थात् दयनीय स्वास्थ्य प्रदर्शन होता है। इस दयनीय परिणाम के लिए सामाजिकआर्थिक असमानता एवं सामाजिक अन्याय महत्वपूर्ण घटक हैं अर्थात् "जिन परिस्थितियों में व्यक्ति पैदा होता है, बढ़ता है, कार्य करता है, रहता है और कितनी उम्र तक जिंदा रहता हैइन सभी का निर्धारण दैनिक जीवन एवं स्थितियों को आकार देने वाली शक्तियों और प्रणालियों का व्यापक समूह करता है, जिसमें आय एवं सामाजिक सुरक्षा, शिक्षा, बेरोजगारी एवं  रोजगार  असुरक्षा, कामकाजी जीवन की स्थितियां, भोजन, घर और स्वस्थ वातावरण तक पहुंच, साथ ही बच्चे का शुरुआती विकास, सामाजिक समावेशन एवं गैरभेदभाव, तथा गुणवत्तायुक्त किफायती स्वास्थ्य  सेवाओं तक पहुंच शामिल हैं। अनुसंधान यह भी रेखांकित करता है कि स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों में स्वास्थ्य सेवाओं की तुलना में सामाजिकआर्थिक निर्धारक तत्व ज़्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं..."[8]-[9] विश्व स्वास्थ्य संगठन के  शब्दों में "खराब नीतियों, अर्थशास्त्र एवं राजनीति का विषाक्त संयोजन, काफी हद तक इस तथ्य के लिए जिम्मेदार है कि दुनिया में अधिकांश लोग जैविक रूप से संभव अच्छे स्वास्थ्य का आनंद नहीं ले पाते हैं"[10]

 

फ्रेडरिक एंजेल्स ने 1845 में अंग्रेजी सरकारों और पूंजीपतियों के ऊपर टिप्पणी करते हुए उन्हें अपराधिक जिम्मेदार ठहराया और  तर्क दिया कि यह जानते हुए भी कि कार्यस्थितियां श्रमिकों के जीवन एवं स्वास्थ्य के अनुकूल नहीं है जिसके कारण उनकी अकाल मृत्यु हो रही थी, लेकिन उन परिस्थितियों को बदलने के लिए जिम्मेदार शासक, अधिकारी और पूंजीपतियों ने कुछ भी नहीं किया, ऐसी स्थिति को एंजेल्स ने "सामाजिक हत्या" की संज्ञा दी जिसका सीधा सम्बन्ध लोगों के स्वास्थ्य एवं खुशहाली के मार्ग में आने वाली बाधाओं से था।[11] मेडवेडयुक, गोविन्देर एवं राफेल (2021) ने स्वास्थ्य एवं खुशहाली के मार्ग की बाधाओं अर्थात् "सामाजिक हत्या" को दो प्राथमिक अवधारणाओं में विश्लेषित किया है, प्रथमपूंजीवादी शोषण के परिणामस्वरूप सामाजिक हत्या; तथा द्वितीयकार्य करने की परिस्थितियां, रहने की स्थिति, गरीबी, आवास, प्रजाति, स्वास्थ्य असमानता, अपराध एवं हिंसा, नवउदारवाद, लिंग, भोजन, सामाजिक सहायता, विनियमन एवं मितव्ययिता के क्षेत्रों में खराब सार्वजनिक नीतियों के परिणामस्वरूप "सामाजिक हत्या" जोहान गालटुंग इसे "संरचनात्मक हिंसा" के रूप में देखते हैं जो व्यक्ति की क्षमताओं के पूर्ण विकास के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। दूसरे शब्दों में उत्तम  स्वास्थ्य एवं खुशहाली के जीवन से अभिप्राय को बृहत्तर रूप में सभी प्रकार के भय से मुक्ति, सभी प्रकार के अभावों से मुक्ति एवं सम्मानपूर्वक जीवन जीने की स्वतंत्रता हेतु आवश्यक परिस्थितियों के निर्माण से संबंधित अवधारणा के रूप में भी देखा जा सकता है।[12]

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2016 में शंघाई में "सतत् विकास लक्ष्यों में स्वास्थ्य को बढ़ावा" देने के लिए सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें स्वास्थ्य संवर्धन की नींव रखी गई और सभी 17 सतत् विकास लक्ष्यों में स्वास्थ्य संवर्धन को केंद्रीय ढांचे के रूप में शामिल किया गया। सम्मेलन में, स्वास्थ्य की अवधारणा, जो व्यवस्थागत विचारों और सामाजिकपारिस्थितिक दृष्टिकोण से उत्पन्न होती है, मानव कल्याण अथवा खुशहाली से परे प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रणालियों की भलाई, लोगों और प्रकृति के बीच स्वस्थ संसाधन आदानप्रदान और संसाधन प्रवाह को शामिल करती है जो लोगों और अन्य सामाजिकपारिस्थितिक प्रणालियों के लिए कमजोरियों एवं असमानताओं से बचती है। इसी सम्मेलन में "ग्रहीय स्वास्थ्य" (Planetary Health) शब्द को गढ़ा गया था और जिसे हाल ही में विद्वानों द्वारा वैश्विक पर्यावरणीय परिवर्तनों, प्राकृतिक प्रणालियों पर उनके प्रभावों और अंततः कई पैमानों पर मानव स्वास्थ्य एवं खुशहाली में परिवर्तनों के बीच गतिशील और प्रणालीगत संबंधों को इंगित करने के लिए नियोजित किया गया है।[13] ग्रहीय स्वास्थ्य फॉम एवं अन्य (2024) के शब्दों में, "वैश्विक स्वास्थ्य, खुशहाली और समानता के उच्चतम मानकों की प्राप्ति है, जो राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक विकास सहित मानव प्रणालियों और मानव विकास को पोषित करने वाली प्राकृतिक व्यवस्थाओं की वैश्विक संपोषणीयता से है। ग्रहीय स्वास्थ्य मानव स्वास्थ्य और प्राकृतिक प्रणालियों का एक माप है जिन पर यह निर्भर करता है।" इस प्रकार हम देख सकते हैं कि मानव स्वास्थ्य एवं खुशहाली सिर्फ आर्थिकसामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक ही होकर उन सभी पर्यावरणीय अवयवों एवं कारकों पर भी निर्भर करती है जिसमें व्यक्ति अपनी संपूर्णता को प्राप्त करता है जो ब्रह्माण्ड के सभी  तत्वों की संपोषणीयता से जुड़ी हुई है। किसी भी तत्व अथवा घटक में क्षरण मानव के अस्तित्व, उसके स्वास्थ्य एवं खुशहाली पर प्रभाव डालती है।

सतत् विकास लक्ष्य: 3 एवं भारत :

 

सतत विकास लक्ष्य 3 को प्राप्त करने हेतु भारत में मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाना एक मुख्य बिंदु के रुप में है।  2000 से 2020 के बीच में हम पाते हैं कि भारत में मातृ मृत्यु अनुपात (MMR) 374 प्रति लाख से घटकर 103 तक आया है। आज हम देखे तो 2021 के आंकड़े के आधार पर शिशु मृत्यु दर में काफी हद तक हमने कमी पाई है यह आंकड़ा 2000 में प्रति 1000 जन्मों पर 66 से घटकर 28 तक हुआ है[14], लेकिन फिर भी हमारे लिए चुनौतियां है, चूंकि अभी भी कुछ राज्यों मे सुधार की स्थिति नहीं पाई गई है। यह कहा जा सकता है कि भारत सरकार को यह उपलब्धि जननी सुरक्षा योजना (JSY) जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK) के जागरूकता कार्यक्रमों की वज़ह से सम्भव हो पाया है। सरकार द्वारा सुचारु जागरूक रुप से चलाई जा रही यह दोनों योजना प्रसव के समय आर्थिक सहायता और मातृ शिशु के मुफ्त स्वास्थ्य सेवा प्रसव के समय पूर्ण देखभाल का कार्य करती है [15]

 

भारत ने संचारी रोगों को काफी हद तक कम करने में सफलता हासिल की है। उदाहरण में हम देखते हैं कि भारत में 2014 के बाद पोलियो की बीमारी का अंत हो गया और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भारत को पोलियो मुक्ति के लिए प्रमाण पत्र दिया गया। टीबी के मामलों में काफ़ी कमी आई है, परंतु विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2021 की रिपोर्ट कहती है कि आज भी विश्व में भारत 26 प्रतिशत टीबी जैसी बीमारी से जूझ रहा है। संशोधित राष्ट्रीय तपेदिक नियंत्रण कार्यक्रम (RNTCP) राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम का मुख्य लक्ष्य है कि भारत सतत विकास लक्ष्य समय सीमा के अन्दर ही टीबी जैसी घातक बीमारी को खत्म करने में कामयाब हो सके। इसके इतर भी भारत ने एड्स जैसी संक्रामक बीमारियों में काफी हद तक नियंत्रण कर सफलता पाई है। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने लगभग 2010 से 2020 के अंतराल में 37 प्रतिशत तक की कमी की है [16]भारत ने स्वास्थ्य सुधारों में काफी बदलाव किया है स्वास्थ्य परिणाम में सुधार को केन्द्रित कर सार्वजनिक स्वास्थ्य में काफ़ी सुदृढ़ बेहतर कार्य किया है। भारत सरकार की कुछ योजनाएं सामान्य जनों के स्वास्थ्य सुधारों हेतु लाभ पहुंचा रही हैं, उदाहरण के लिए आयुष्मान भारत योजना जन औषधि केंद्र, इन दोनों ही योजनाओं का उद्देश्य स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में व्यापक प्रगति करने का लक्ष्य है। इनका मुख्य उद्देश्य गरीब परिवार के रोगियों को आर्थिक रुप से सहायता करना है जन औषधि केंद्र का मुख्य उद्देश्य रोगियों को सस्ते मूल्य पर दवाएं उपलब्ध कराना है। भारत ने COVID -19 महामारी के दौरान बहुत सी स्वास्थ्य सेवाओं हेतु ऑनलाइन या टेलीफोनिक माध्यम से हेल्पलाइनों का काफी विस्तार किया जिसके माध्यम से सामान्य जनों के सहायता हेतु 24*7 की सुविधा देने का पूरा प्रयास किया गया। भारत ने टीकाकरण स्वास्थ्य जागरूकता अभियानों में काफ़ी हद तक प्रगति की है। भारत में टीकाकरण कार्यक्रम इंद्रधनुष जैसे कारगर अभियानों के प्रयासों के माध्यम से टीकाकरण जैसे कार्यक्रमों के प्रतिशत में काफी बेहतर सुधार किया है। टीकाकरण के माध्यम से भारत में बाल मृत्यु दर को नियंत्रण कर मृत्यु दर में कमी लाई गई, यह जागरूकता भारत सरकार के कार्यक्रम मिशन इंद्रधनुष के माध्यम से सम्भव हो पाई। लेकिन बजट की कमी के कारण यह बहुत ही सीमित जनसंख्या को समाहित कर पाई है।


भारत में स्वास्थ्य एवं खुशहाली के लिए चुनौतियां :

 

भारत का बुनियादी स्वास्थ्य ढांचा निर्धारित स्वास्थ्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। अधिकांश स्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएं एवं स्वास्थ्य क्षेत्रों के पेशेवर शहरी क्षेत्रों में केन्द्रित हैं, जबकि ग्रामीण भारत इससे वंचित है। हालांकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और आयुष्मान भारत योजना का लक्ष्य सुलभ स्वास्थ्य सेवाओं को प्रदान करना है लेकिन बुनियादी ढांचे का अंतर स्पष्ट दिखाई देता है। भारत में प्रति हजार की जनसंख्या पर 0.5 बिस्तर है तथा 0.8 डॉक्टर हैं, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रति हजार लोगों पर कम से कम 3 बेड और 01 डॉक्टर होना चाहिए (WHO, 2021)[17] जिसके कारण अस्पतालों में लंबी भीड़, गंभीर बीमारियों में समय से इलाज़ हो पाना तथा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए यह बाधा और भी बड़ी हो जाती है। साथ ही भारत के विभिन्न क्षेत्रों और राज्यों में भी स्वास्थ्य के आधारभूत ढ़ांचे में असमानता विद्यमान है जो सतत् विकास लक्ष्य 3 के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में उपस्थित है। भारत में महंगे इलाज़ एवं प्राइवेट सेक्टर की प्रचुरता ने समाज के निचले तबके को स्वास्थ्य सेवाओं से दूर कर दिया है और गंभीर बीमारियों में गरीबी के कुचक्र में फंस जाते हैं तथा मानसिक रूप से भी बीमार होने के खतरे परिवार के अन्य सदस्यों में बढ़ जाते हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र में सार्वभौमिक वित्तीय सुरक्षा की सीमित उपलब्धता, स्वास्थ्य संकटों को बढ़ाता है तथा खुशहाली एवं कल्याण के लिए खतरे की घंटी है, जिस पर यथाशीघ्र निर्णय लेने की आवश्यकता है।

 

भारत में संचारी एवं गैर संचारी रोगों के कारण मृत्यु दर में उछाल देखा जाता है। तपेदिक, मलेरिया और हेपेटाइटिस जैसी संक्रामक बीमारियो के कारण स्वास्थ्य सेवाओं पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है तथा कम आय समूहों पर आर्थिक प्रभाव घातक एवं दीर्घकालिक होता है। भारत में 60 प्रतिशत से अधिक मौतें गैर संचारी रोगों जैसे कैंसर, हृदय रोग एवं मधुमेह से होती हैं[18] जो दोहरे बोझ के रूप में शामिल है।

स्वास्थ्य के सामाजिक पर्यावरणीय निर्धारक :

 

भारत में आय, शिक्षा और रोजगार जैसे सामाजिक निर्धारक तत्व स्वास्थ्य परिणामों पर प्रभाव डालते हैं। गरीब एवं वंचित परिवारों एवं समुदायों के लिए गुणवत्तायुक्त स्वास्थ्य देखभाल की अनुपस्थिति, पौष्टिक भोजन एवं शिक्षा तक सीमित उपलब्धता, उनके शारीरिक एवं मानसिक कल्याण एवं खुशहाली पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। हाशिए पर रहने वाले परिवारों एवं समुदायों के बच्चे एवं महिलाएं विशेषरूप से जोखिम का सामना करने के लिए विवश होते हैं, जिसके कारण उन्हें कुपोषण की उच्च दर, मातृ और शिशु मृत्यु दर का  सामना करना पड़ता है तथा उनकी आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच नहीं हो पाती है अथवा सीमित पहुंच होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य साक्षरता, सांस्कृतिक मान्यताओं एवं पारंपरिक प्रथाओं के कारण भी उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं के उपयोग में बाधा पड़ती है। पर्यावरणीय परिवर्तनों एवं कारकों ने भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण खतरे उत्पन्न करता है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण तथा सर्वत्र फैली हुई गंदगी संयुक्त रूप से श्वसन संबंधी बीमारियों तथा हृदय संबंधी रोगों, डायरिया, हैजा, टाइफाइड, डेंगू से होने वाली मौतों में इजाफा करती हैं।[19] अतः पर्यावरणीय जोखिमों को कम करने से भी निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।

 

भारत में लगातर बढ़ता हुआ मानसिक स्वास्थ्य विकार एक चिंता का विषय है। एक आंकड़े के अनुसार लगभग 13 प्रतिशत भारतीय किसी किसी प्रकार से मानसिक बीमारी के शिकार हैं।[20] तनाव, अवसाद एवं चिंता की उच्च दर होने के बावजूद देश भर में परामर्श केंद्रों की अति सीमित उपलब्धता ने भारतीय स्वास्थ्य सेवा पर गंभीर सवाल खड़े करती है। भारत में आज भी मानसिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की सीमित उपलब्धता मानसिक रोगियों के लिए प्रमुख चुनौती है क्योंकि देश के कई राज्यों में प्रति लाख लोगों पर एक से भी कम मनोचिकित्सक हैं, उपलब्ध सेवाएं शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित हैं देश में बड़े पैमाने पर आज भी अवसाद, तनाव एवं चिंता को स्वीकार्य बीमारी की श्रेणी में नहीं रखा जाता है तथा रूढ़िवादी सामाजिक संरचना के कारण परिवार के अभिभावक भी इसे गंभीरता से नहीं लेते, जिसकी परिणति आत्महत्या के रूप में होती है।

भारत ने सतत् विकास लक्ष्य 3 को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (2017) और आयुष्मान भारत योजना जैसी कई स्वास्थ्य योजनाएं शुरू की हैं जिसका उद्देश्य स्वास्थ्य सेवाओं तक गरीब एवं वंचित तबकों की पहुंच है। लेकिन कार्यान्वयन संबंधी जटिलताएं इन नीतियों की प्रभावशीलता को कम करती हैं। अक्षम नौकरशाही, खंडित स्वास्थ्य प्रणाली, सार्वजनिक स्वास्थ्य संरचना की सीमितता, संवेदनशीलता एवं इच्छाशक्ति की शून्यता, क्षेत्रीय एवं अंतरराज्यीय असमानताएं स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच और उनके प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा डालती है।[21]


निष्कर्ष : भारत की बड़ी आबादी, सामाजिकआर्थिक असमानताएं, अपर्याप्त एवं व्यापक स्तरीय सार्वजनिक बुनियादी ढांचे की कमी, पर्यावरणीय खतरे तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति कार्यान्वयन में अंतराल से उत्पन्न स्वास्थ्य एवं खुशहाली को प्राप्त करने की जटिलताओं के कारण 2030 तक निर्धारित सभी सन्निहित लक्ष्यों को प्राप्त करना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है भारत को सतत् विकास लक्ष्य 3 के सभी टारगेट को प्राप्त करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण एवं  रणनीतियों को अपनाना होगा, जो स्वास्थ्य एवं खुशहाली के सामाजिकआर्थिक, पर्यावरणीय निर्धारकों को ध्यान में रखकर स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में बड़े निवेश द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार पर केन्द्रित हो। पूरे देश के लिए एक समान सार्वजनिक स्वास्थ्य संरचना का समग्र विकास करना प्राथमिकता में होनी चाहिए, जिसके लिए फंड की जरूरत होगी। यदि भारत देश के सभी नागरिकों को उत्तम स्वास्थ्य और खुशहाली प्रदान करना चाहता है तो उसे अपने जीडीपी का कम से कम 15 प्रतिशत स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आवंटित करना होगा। ऐसा करने से ही स्वास्थ्य क्षेत्र में पेशेवरों की कमी को पूरा किया जा सकता है, क्षेत्रीय एवं अंतरराज्यीय असमानताओं को दूर किया जा सकता है, समाज में हाशिए पर रहने वाले लोगों तक सुगम स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को सुनिश्चित किया जा सकता है तथा अंततः देश के सभी नागरिकों के स्वास्थ्य एवं खुशहाली के मार्ग में आने वाली सभी जटिलताओं एवं चुनौतियों से मुकाबला किया जा सकता है। विश्व के जिन देशों में स्वास्थ्य एवं खुशहाली की स्थितियां बनी हुई हैं वे सभी देश अपनी अपनी जीडीपी का 20 प्रतिशत से अधिक फंड का आवंटन स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए लगातार करते रहे हैं। 

 

संदर्भ :


 [1] यूनाइटेड नेशन्स, हेल्थ एंड पॉपुलेशन. https://sdgs.un.org/topics/health-and-population
[2] जेफरी, साक्स, एट अल, सस्टेनेबल डेवलेपमेंट रिपोर्ट 2022, कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, 2022
[3] यूनाइटेड नेशन्स, ट्रांसफॉर्मिंग ऑर वर्ल्ड: 2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलेपमेंट, रेजोल्यूशन एडॉप्टेड बाई जनरल असेंबली ऑन 25 सेप्टेंबर 2015, यूनाइटेड नेशन्स, न्यू यॉर्क, 2015.
[4] यूनाइटेड नेशन्स, हेल्थ एंड पॉपुलेशन. https://sdgs.un.org/topics/health-and-population
[5] यूनाइटेड नेशन्स, सस्टेनेबल डेवलेपमेंट गोल्स, गोल 3: इंश्योर हेल्दी लाइव्स एंड प्रमोट वेलबेइन्ग फॉर ऑल एट ऑल एजेस. https://www.un.org/sustainabledevelopment/health/
[6] ला वी प्लास एंड नाइट, वेलबेइन्ग: इट्स इनफ्लुएंस एंड लोकल इंपैक्ट ऑन पब्लिक हेल्थ, पब्लिक हेल्थ, 2014, 38–82.
[7] उपर्युक्त: 39
[8]डब्लू एच , सोशल डिटरमिनेंट्स ऑफ हेल्थ. https://www.who.int/health-topics/social-determinants-of-health#tab=tab_1  
[9] टी पी जॉन्सन एंड मेलेनी वेंडलैंड, रोल फॉर डिजाइन इन ग्लोबल हेल्थ: मेकिंग कांसेप्ट ऑफ वुल्नरेबिलिटी एक्शनेबल, शी जी: जर्नल ऑफ डिजाइन, इकोनॉमिक्स एंड इनोवेशन, 2022, अंक 8, नम्बर 4.
https://www.sciencedirect.com/science/article/pii/S240587262200065X
[10] कमिशन ऑन सोशल डिटरमिनेंट्स ऑफ हेल्थ, क्लोजिंग गैप इन जनरेशन: हेल्थ इक्विटी थ्रू एक्शन ऑन सोशल डिटरमिनेंट्स ऑफ हेल्थ, 2008.
https://iris.who.int/bitstream/handle/10665/69832/WHO_IER_CSDH_08.1_eng.pdf?sequence=1&isAllowed=y
[11]स्टेला मेडवेडयुक, पिआरा गोविन्देर एंड डेनिस राफेल, रिमर्जेंस ऑफ एंजेल्सकांसेप्ट ऑफ सोशल मर्डर इन रिस्पांस टू ग्रोइंग सोशल एंड हेल्थ इनेक्यूलिटीज, सोशल साइंस एंड मेडिसिन, 2021, अंक 289.
https://www.sciencedirect.com/science/article/abs/pii/S0277953621007097?via%3Dihub
[12] अजय कुमार यादव, स्ट्रक्चरल वायलेंस एंड ह्यूमन सिक्योरिटी: गांधीश विजन, इन पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट: साउथ एशियन एक्सपीरियंसेज, एडिटेड बाई प्रियंकर उपाध्याय एंड एस एस कुमार, 133–150, न्यू डेल्ही: कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, 2014.
[13] एल टी फॉम, पी कुमार, डब्ल्यू डी दहाना एंड एच डी न्यूएन, एडवांसिंग सस्टेनेबल डेवलेपमेंट थ्रोउह प्लेनेटरी हेल्थ हॉलिस्टिक एप्रोच टू ग्लोबल हेल्थ: a सिस्टेमेटिक रीव्यू, एन्वायरनमेंटल साइंस एंड पॉलिसी, 2024, अंक 155.
https://www.sciencedirect.com/science/article/abs/pii/S1462901124000431?via%3Dihub
[14] सेंसस ऑफ इंडिया, सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम, स्टेटिस्टिकल रिपोर्ट 2020, 2022. https://censusindia.gov.in/nada/index.php/catalog/44376
[15] नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे, इंडिया हेल्थ डेटा सर्वे, मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर, 2021.
[16] नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन, एच आई वी/एड्स स्टेटिस्टिक्स, 2021.
https://naco.gov.in/sites/default/files/India%20HIV%20Estimates%202021%20_Fact%20Sheets__Final_Shared_24_08_2022_0.pdf
[17] वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन, हेल्थ सिस्टम स्ट्रेंथेनिंग इन इंडिया: वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन पर्सपेक्टिव, 2021.
[18] इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च. https://www.icmr.gov.in
[19] एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स, इंडिया एयर क्वालिटी एंड हेल्थ रिपोर्ट, 2022.
[20] नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे, मेंटल स्टेटस इन इंडिया, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस, 2022.
[21] मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर, नेशनल हेल्थ प्रोफाइल, गवर्नमेंट ऑफ इंडिया, 2022.

 

 

अजय कुमार यादव
असिस्टेंट प्रोफेसर, मालवीय शांति अनुसंधान केन्द्र, सामाजिक विज्ञान संकाय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी
ajaymcpr@bhu.ac.in  9451720906

सुनीता 
शोधार्थी, मालवीय शांति अनुसंधान केन्द्र, सामाजिक विज्ञान संकाय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी
sunita6711@gmail.com

 

  
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-57, अक्टूबर-दिसम्बर, 2024 UGC CARE Approved Journal
इस अंक का सम्पादन  : माणिक एवं विष्णु कुमार शर्मा छायांकन  कुंतल भारद्वाज(जयपुर)

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